बुधवार, 31 अगस्त 2022

यात्रा डायरी - शिमला के बीहड़ वनों में एकाकी सफर का रोमांच

 बाबा शिव का बुलावा और मार्ग का रोमाँचक सफर


 दोपहर के भोजन के बाद मन कुछ बोअर सा व अलसाया सा लग रहा था। बोअर कुछ इस तरह से कि एडवांस स्टडीज का कोई सेमिनार या प्रेजेंटेशन आदि का बंधन आज के दिन नहीं था, क्योंकि यहाँ के प्रवास का काल लगभग पूरा हो चुका था, सामूहिक भ्रमण का कार्यक्रम भी सम्पन्न हो चुका था। (संस्मरण वर्ष
2013 मई माह का है)

एक माह के दौरान शिमला के कई स्थलों को मिलकर एक्सप्लोअर किया था, लेकिन शिमला में शिव के धाम की खोज शेष थी। कल सुबह ही विक्रम ने सफाई के दौरान सुबह बीज डाल दिया था कि तारा देवी शिखर के नीचे शिव का बहुत सुंदर व शांत मंदिर है। आज दोपहर के खाली मन में एडवेंचर का कीड़ा जाग चुका था कि आज वहीं हो लिया जाए। कोई साथ चलने को तैयार न था, सो यायावरी एवं तीर्थाटन की मनमाफिक परिस्थितियों सामने थीं। कमरे में आकर विश्राम का विकल्प भी साथ में था, लेकिन परिस्थिति एवं मनःस्थिति का मेल कुछ ऐसे हो रहा था कि लगा जैसे बाबा का बुलावा आ रहा है और मन की पाल को हवा मिल गई, कि चलो शिवालय हो आएं।

एडवांस्ड स्टडी शिमला का ऐतिहासिक भवन एवं भव्य परिसर
 

एडवांस स्टडीज के गेट के बाहर बालूगंज से बस भी मिल गई थी। सीधा शिमला के पुराना बस अड्डा उत्तरे। यह क्या, यहाँ तो एक ही बस खड़ी नहीं थी तारा देवी मंदिर के लिए। रास्ते में शोधी या तारा देवी स्टेशन पर उतरने का कोई ईरादा न था। कौन चलेगा दूसरी बस में। जाएंगे तो सीधा माता के द्वार पर उतरेंगे, फिर देखेंगे आगे की शिव मंदिर यात्रा।

लगभग एक घंटा बीत गया बस के आगे पीछे भागते, ड्राइवर व सवारियों से बस का पता-ठिकाना पूछते..। इसी बीच अपने बी.टेक. लुधियाना के सहपाठी अवस्थीजी की कोचिंग अकादमी - विद्यापीठ के दर्शन भी हो गए। फुर्सत में मिल लेंगे इनसे बाद में। लो बस आ गई, शोघी तक। चलो वहां तक ही सही, वापस आ जाएंगे, यदि वहाँ से सीधे तारा देवी मंदिर के लिए बस न मिली तो। कुछ ऐसा ही हुआ भी। शोघी से स्कूल बच्चों से भरी एक लोक्ल बस में बैठ गए, कुछ मिनट खड़े खड़े यात्रा करते हुए स्कूली बच्चों के साथ बस ने हमें राह में उत्तार दिया। लेकिन तारा देवी का प्रवेश गेट और रास्ता तो पीछे है 300 मीटर लगभग। सवा 2 किलोमीटर ऊपर है मंदिर अभी।

कुछ देर बस-टैक्सी आदि की उम्मीद में खड़े रहे, लेकिन जल्द ही ना उम्मीद होकर अपनी सबसे विश्वस्त 11 नंबर की गाड़ी से चल दिए। सड़क को छोड़कर शॉर्टकट पगडंडी का सहारा लिए। पत्थरों पर बज्री नुमा पत्थरों पर ऊपर चढ़ने से आज की यात्रा की कठिन शुरुआत हो चुकी थी। ऊपर मुख्य मार्ग पर कुछ टैक्सी अभी चल रही थी। लेकिन इन्हें एक अजनबी पथिक से क्या लेना देना। 

शिमला का वैली व्यू (प्रतिनिधि फोटो)
 

ऊपर देखता, मंदिर का भवन काफी ऊपर था। राह में धूप सीधे बरस रही थी, साथ ही ठंडी हवा भी, नीचे गांव सड़क घाटी का हरा-भरा विहंगम दृश्य सुहावना लग रहा था। प्यास भी लग रही थी। पानी की कोई व्यवस्था साथ नहीं थी, क्योंकि सोचा नहीं था कि ऐसी ट्रैकिंग की भी नौबत आएगी। यह आज मेरी कौन सी परीक्षा ली जा रही थी,  व यह कौन सी शक्ति मुझे इन सुनसान राहों पर ऊपर बड़ा रही थी। यह तो भगवान शिव ही जाने, जिनके द्वार तक हम संकल्पित हो कर चल पड़े थे। अभी तो सीधे ऊपर तारा देवी का मंदिर था।  

शॉर्टकट पगडंडी से ऊपर चढ़ा ही था कि बड़ी सी पानी की सीमेंट टंकी दिखी। आवाज आ रही थी अंदर से पाइप में पानी के निकासी की, लेकिन नल कहीं ना दिखा। खाली हाथ ऊपर बढ़ चला। रास्ते में यह क्या, नीचे आवाज आ रही थी जानी पहचानी हॉर्न की और छुक-छुक की भी। तो यहीं नीचे सुरंग से होकर रेल्वे ट्रैक आगे बढ़ता है। कुल मिलाकर सामने एक रोमांचक दृश्य था। शिमला-कालका ट्रैन पहाडियों के बीच लुका-छिपा करती हुई सुरंगों के आर पार हो रही थी।

हम भी अपनी मंजिल तारा देवी शिखर की ओर बढ़ रहे थे, जहाँ से हमें शिव मंदिर के लिए दूसरी ओर नीचे उतरना था। सड़क पार कर चोड़ी पगडंडी मिली, लगा पक्की सड़क बनने से पहले तीर्थ यात्री इसी राह से सामान के साथ घोड़ा आदि के साथ जाते रहे होंगे। आज भी हो सकता है श्रद्धालु पर्व त्योहारों में इसी राह से चढ़ते उतरते होंगे। 

रास्ता चीड़ की सूखी पत्तियों से ढका था, कुछ-कुछ फिसलन भरा। लेकिन इनके साथ अपनी बचपन की विरल यादें अचेतन की अतल गहराईयों से उभर कर आज ताजा हो रहीं थी। भूंतर के आगे मणिकर्ण घाटी में शड़शाड़ी से पुलपार कर ओल्ड़ जाते समय ऐसे ही चीड़ पत्तियों से भरे रास्ते बचपन में देखे थे, बुआजी की बड़ी बेटी की शादी में शरीक होने गए थे। आज वो पुरानी यादें ताजा हो रहीं थीं।

एक ओर याद ताजा हो उठी। यह जंगली झाड़ियों में खट्टी-मिठी आँछ (बुश बैरी) को बीन कर खाने का अनुभव था। कुछ-कुछ पानी की कमी इनसे पूरी होती अनुभव कर रहा था। बीयर ग्रिल के मैन वर्सेज वाइल्ड का एक पात्र खुद को अनुभव कर रहा था। सच में निपट अकेला, बिना किसी तैयारी के भोलेनाथ शिव के दर्शनार्थ उनके धाम की खोज में। बीहड़ वन के सन्नाटे को चीरते हुए हम अकेले बड़ रहे थे।

अब रास्ता मुख्य मार्ग से अलग हो गया था। ऊपर दूर मोड़ दिख रहा था। बीच का सफर अपने गाँव के पीछे (बनोगी गांव के ऊपर और रेऊंश के नीचे का वन क्षेत्र) बीहड़ बनों में बचपन के बिताए रोमाँचक पलों को तरोताजा कर रहे थे। रास्ते भर खट्टी मिठी बुश बैरी की हरी भरी झाडियां जहाँ भी मिलती गईं, उनसे दो-चार दाने तोड़कर सेवन करता रहा।

मार्ग में लेबर काम करते मिले। अपना रोल्लर आगे-पीछे कर रहे थे। एक थके हैरान-परेशान लेकिन लक्ष्य केंद्रित तीर्थ यात्री को वे कौतुक भरी निगाहों से देख रहे थे। बात-चीत करने का न समय था और न ही मनःस्थिति। राह में उतरता हुआ एक यात्री दुआ-सलाम कर कुछ मन हल्का व आश्वस्त करता प्रतीत हुआ। इस निर्जन राह में एक आस्थावान श्रद्धालु के दर्शन व उसका आत्मीय स्पर्श  निःसंदेह रुप में सकूनदायी लगे।

शिमला के ट्रेकिंग ट्रैल्ज - (प्रतिनिधि फोटो)

इनको पार कर आधे से अधिक मार्ग, लगभग डेढ़ किमी तय हो चुका था। आगे मुख्य मार्ग से पत्थर की सीढ़ियाँ और कछ घने वन से होकर रास्ता पार किया। मुख्य मार्ग पर आते ही – लो यह क्या। ऊपर माँ का मंदिर दिख रहा था, सहज विश्वास न हुआ कि पहुँच गए। अब एक मोड़ और बस...। कुछ पल बैठ दम भरा। प्यास लगी थी, लेकिन पानी न था। फिर आगे बढ़ चले। यह क्या मोड़ पर शिव मंदिर का बोर्ड लगा था। क्यों न सीधे इस मार्ग से बढ़ चलें, पहले शिव बाबा के दर्शन कर लें, वहीं तो आज की मूल मंजिल थी, फिर देखेंगे ऊपर माता का द्वार, जहाँ पिछले दो रविवार आ चुके थे वहाँ। तब शिवमंदिर का बोर्ड पढकर उतरने की इच्छा जगी थी, लेकिन साथी लोग तैयार नहीं थे। लगा, जो होता है, अच्छा ही होता है।

अब हम पगडंडी पर बढ़ चल रहे थे, जो बहुत ही संकरी थी। बाँज के पत्तों से भरी, फिसलन भरी थी। एक कदम दाएं कि सीधे नीचे गए गहरी घाटी में। हालाँकि बांज के घने पतले वृक्ष बीच में रोक सकते हैं, लेकिन चोट तो काफी गंभीर लग सकती है ऐसे में...। हम एकाकी आगे बढ़ रहे थे, पीछे ऊपर माता का मंदिर दिख रहा था। शनै-शनै हम जितना नीचे उतरते गए, मंदिर पीछे छूटता गया और अब दृष्टि से औझल हो चुका था व आगे जंगल और घना होता जा रहा था। बढ़ते बढ़ते दूर कुछ हलचल दिखी, बंदर कूद रहे होंगे, नहीं ये तो गाय जैसा पशु लगा। पास में वन विभाग का बोर्ड भी दिखा। यहाँ जंगल में लोगों के छोड़े हुए मवेशी चर रहे थे।

बीच राह में किसी तरह के अप्रत्याशित खतरे या हमले से निपटने के लिए एक हाथ में नुकीला पत्थर और दूसरे हाथ में एक ठूंठ का डंड़ा हम थाम चुके थे। (जारी....शेष भाग-2 व अंतिम किस्त अगली पोस्ट में - यात्रा डायरी - शिमला के बीहड़ वनों में एकाकी सफर का रोमांच, भाग-2)  

तारा देवी हिल्ज के बीहड़ बन और बांजवनों के मध्य शिवमंदिर

रविवार, 31 जुलाई 2022

यात्रा डायरी, सावन-2022, भाग-1

यात्रा डायरी, सावन-2022, भाग-1



सावन में पहाड़ों की यात्रा हमेशा ही हमारे लिए रोमाँच भरा अनुभव रहती है। हालाँकि इस मौसम में यात्रा के अपने जोखिम भी रहते हैं, भूस्खलन से लेकर बाढ़ और बादल फटने जैसी तमाम तरह की प्राकृतिक विपदाएं पहाड़ों में आए दिन घटती रहती हैं। लेकिन हम अभी तक इस संदर्भ में सौभाग्यशाली रहे हैं, प्रकृति का दैवीय संरक्षण मिलता रहा है।

19 जुलाई 2022, पारिवारिक कार्य से घर जाने का संयोग बन रहा था, सपरिवार हरिद्वार से 4 बजे की बस में बैठ जाते हैं। हिमाचल परिवहन की बसों में ऑनलाईन बुकिंग की सुबिधा के चलते सीट आसानी से अपनी पसन्द के हिसाव से मिल गई थी। पहली बार परिवहन की 2,3 ऐसी हिमधारा बस में बैठ रहे थे। एकदम नया मॉडल, सीटें भी आरामदायक। ऐसे लग रहा था जैसे हमारे लिए ईश्वर ने यात्रा की विशेष व्यवस्था कर रखी हो।

दोपहर ठीक 4,20 पर बस चल पड़ती है। देवपुरा चौक से वायं मुड़ते ही कुछ ही देर में गंगनहर पार होती है, फिर उत्तर की ओर बढ़ते हुए शंकराचार्य चौक से नीचे मुड़ती है। फ्लाईऑवर बनने से सीधे सड़क को पार करना अब कठिन हो गया है, सो यह कवायद रहती है। अब हम पुनः थोड़ी देर में फ्लाईऑवर से गुजर रहे थे। दायीं और गंगनहर साथ में थी तो बाईं और कनखल के नजारे। इसी क्रम में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय आता है, कन्यागुरुकुल, ज्वालापुर और फिर बहादरावाद वाइपास।

इस बार सावन के मौसम की विशेषता थी, सड़क पर शिवभक्त काँवड़ियों की भरमार, पूरा मार्ग का इनकी भक्तिमयी एवं अलमस्त चहलकदमी से अटा पड़ा था। रंगविरंगी कांवड़ को कंधे पर टाँगे कांवड़िए बोल बम के नारे के साथ अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। यह सिलसिला बिना किसी ब्रेक के रुढ़की तक देखने को मिला। अधिकाँश पैदल चल रहे थे, तो कुछ गाड़ी में तथा कुछ ट्रैक्टर व बाईक में।

रास्ते में तिरंगों की भी भरमार दिख रही थी। शिवभक्ति और देश भक्ति के जज्वे का अद्भुत दृश्य पूरे श्बाव पर दिख रहा था। इस मार्ग की यात्रा का आडियो-विजुअल दृष्टाँत नीचे दी गई विडियो क्लिप में भी देखा जा सकता है।

 

राह में मार्ग डायवर्ट होता है औऱ थोड़ा देर में बारिश शुरु हो गई थी। इसके बीच रुढ़की शहर में प्रवेश होता है। बारिश काफी तेज हो गई थी, मूसलाधार बारिश के बीच बाहर के नजारे धुंधले पड़ गए थे, काँवड़ियों के दर्शन भी अब नहीं हो रहे थे। यात्रा के पहले पड़ाव में बारिश के इस विशेष अभिसिंचन के साथ मौसम भी खुशनुमा हो गया था।

रुढ़की में गंगनहर को पार करते-करते बारिश थम गई थी, अब हमारी बस ग्रामीण परिवेश से गुजर रही थी। कांवड़ यात्रा के कारण यहाँ से हमारी अम्बाला तक की यात्रा बाई पास रुट से होती रही। मार्ग में आने वाले मुख्य शहर यथा – सहारनपुर, युमनानगर आदि के बाहर से ही बस आगे बढ रही थी।

रास्ते भर खेतों के हरे-भरे नजारें नेत्रों को शीतल एवं सुखद अहसास दिला रहे थे। कहीं खेत में अभी धान की ताजा रुपाई हुई थी, कहीं जुताई के लिए खेत तैयार थे, तो अधिकाँशतः खेतों में हरी-भरी फसल लहलहा रही थी। खेतों की मेड़ पर पोपलर व सफेदा की ईमारती लकड़ियों के वृक्ष कतार में बहुत सुन्दर लग रहे थे, कहीं-कहीं पूरे खेतों में इन्हीं की खेती भी होती दिखी। कहीं-कहीं सब्जियों को भी उगते देखा, फल के बगीचों के दर्शन कम ही हुए। शुरुआती दौर में आम के बगीचे अवश्य दिखे।

इस मार्ग पर भी कांवड यात्रा के दर्शन बीच-बीच में होते रहे। रास्ते में एक-दो स्थान पर टोल-प्लाजा व फ्लाई ऑवर को पार करते हुए खेत व गाँव के दृश्य बहुत ही मनोरम व आकर्षक लगे, जिनका अवलोकन करते हुए यात्रा का पूरा आनन्द लेते रहे। इस तरह से शाम होते-होते बस अम्बाला शहर के समीप चण्डीगढ़ ढावा पर भोजन के लिए रुकती है। घर से तैयार की गई भोजन सामग्री के साथ पेट पूजा करते हैं, अंत में ढावे की चाय के साथ पूर्णाहुति करते हुए रिफ्रेश होकर आगे की यात्रा पर बढ़ते हैं। अब तक अँधेरा हो चुका था। रुढ़की से यहाँ ढावा तक के ऑडियो-विजुअल यात्रा को नीचे दिए वीडियो में भी देख सकते हैं।

 

इसके बाद अंधेरे में अम्बाला शहर से गुजरते हैं और फिर चण्डीगढ़ वाइपास से आगे बढ़ते हुए मोहाली, खरड़ से होते हुए रुपनगर (रोपड) को पार करते हुए कीर्तपुर में बस चाय-नाश्ते के लिए रुकती है। अंधेरे में हालाँकि बाहर के दृश्य खेत खलियान आदि तो नहीं दिख रहे थे, लेकिन सड़क के दोनों और भवनों में झिलमिलाती रोशनियाँ व भव्य भवन सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे। इस रुट पर कई बार यात्रा की होने के कारण हम बाहर की लोकेशन को समझ पा रहे थे।

कीरतपुर में फ्रेश होने के बाद बस आगे बढ़ती है, व्यास-सतलुज नहर को पार करते हुए मार्ग में किरतपुर गुरुद्वारे के दूरदर्शन होते हैं, व थोड़ी ही देर में बस मैदानी इलाके से पहाड़ पर चढ़ने लगती है, हिमाचल प्रदेश सीमा में प्रवेश का स्वागत संदेश मिलता है। अगले आधे घण्टे में पहाडी की चोटी पर स्वारघाट स्थान पर पहुंचते हैं, जहाँ से एक रास्ता नालागढ़ से होकर चण्डीगढ़ जाता है। जरुरत पड़ने पर वाहन इस रुट का भी इस्तेमाल करते हैं।

स्वारघाट की पहाड़ी को पार कर बिलासपुर के दूरदर्शन होते हैं, जो गोविंदसागर झील के किनारे बसा शहर है। भाखड़ा बाँध बनने के कारण इस पर झील में पूरा शहर जलमग्न हो गया था, इसी के किनारे नया बिलासपुर शहर बसा है। रास्ते में शिखर पर नैना देवी के मंदिर की टिमटिमाती रोशनी अपनी भव्य एवं दिव्य उपस्थिति दर्शा रहीं थी। अगले 2 घण्टे में हम विलासपुर पहुँच चुके थे। यहाँ की वर्कशॉप में गाड़ी ईँधन भरने के लिए रुकती है। सवारियाँ भी बाहर निकल कर सफर की जकड़न को दूर करती हैं।

आधी रात के अंधेरे को चीरते हुए बस आगे बढ़ रही थी। सलापड़ में बस सतलुज नदी को पार करती है (जहाँ पहाड़ों के अंदर की टनल से व्यास नदी का तल विद्युत उत्पादन करते हुए सतलुज नदी में प्रवाहित होता है), फिर कुछ मिनटों में सुन्दरनगर शहर आता है और फिर मण्डी। रास्ते में बस चाय के लिए रुकती है। दस-बारह घण्टे के सफर के बाद मंडी-पण्डोह के बीच सुबह होती है। पण्डोह डेम के किनारे यात्रा आगे बढ़ती है।

रुट काफी खतरनाकर दिखता है। पहाड़ व चट्टानों को काटकर बनायी गयी संकड़ी सड़क, नीचे गहरी खाई व तली में व्यास नदी पर बने पंडोह डेम का बैक वाटर। रास्ते में पहाड़ को खोद कर बनती सुरंगे व पुल के ऊँचे पिल्लर दिखे, जो बिलासपुर-लेह रेल्वे रुट की महत्वाकाँक्षी योजना का हिस्सा हैं।

व्यास नदी के किनारे बने हनोगी माता के मंदिर से होते हुए आउट टनल को पार कर कुल्लू घाटी में प्रवेश करते हैं। सामने व्यास नदी का तीव्र प्रवाह, पृष्ठभूमि में शिखर पर बिजली महादेव के दर्शन और सड़क के दोनों ओर गगनचूम्बी पर्वत। भून्तर हवाई अड्डे के किनारे से होते हुए ढालपुर मैदान से होकर लगभग छ बजे सरवरी नदी के किनारे स्थित कुल्लू बस स्टैंड पर पहुँचते हैं।  

नवनिर्मित बस स्टैंड अपनी भव्य उपस्थिति दर्ज करा रहा था, जो हाल ही में तैयार हुआ है। यहाँ पर अपने वाहन में घर की ओर कूच करते हैं व सकुशल घर पहुँचते हैं। धन्यवाद करते हैं प्रकृति-परमेश्वर, गुरुसत्ता व देव शक्तियों को, जिनकी कृपा से रास्ते के तमाम वरसाती जोखिमों के बीच भी यात्रा सुरक्षित व आनन्ददायक रही।

इस यात्रा से जुड़े कुछ संदर्भ लिंक्स

चण्डीगढ़ से आगे के सफर को देहरादून-चण्डीगढ़ से होकर इस रुट के पूर्व में प्रकाशित यात्रा वृतांत, हरिद्वार से कुल्लू वाया चण्डीगढ़ में विस्तार से पढ़ सकते हैं।

सावन में ही इस रुट के मनोरम अनुभव को सावन में कु्ल्लू घाटी की मनोरम छटा ब्लॉग में पढ़ सकते हैं।


शनिवार, 18 जून 2022

जीवन प्रबन्धन (Life management) – क्यों व कैसे, कुछ आधारभूत बातें

 

Life management की क्या आवश्यकता है, जो चल रहा क्या वही पर्याप्त नहीं है? जब हम सुख चैन की खा पी रहेक, मौज मस्ती की जिंदगी जी रहे हैं व सबकुछ ठीक चल रहा है, तो फिर जीवन प्रबन्धन की क्या आवश्यकता?

लेकिन जो चल रहा है, क्या वह सब ठीक चल रहा है, शायद नहीं।

क्योंकि अधिकाँशतः हमें पता ही नहीं कि 

- हम जा किधर रहे हैं?

- जो कर रहे हैं, वो क्यों कर रहे हैं?

- आज से 10-20 वर्ष बाद इसके क्या परिणाम होने वाले हैं?

इस पर तब विचार और भी गंभीरता से करने की जरुरत हो जाती है, जब जीवन में धन, शौहरत, रौब-दौव व बहुत कुछ अचीव करने के बाद भी जीवन में संतुष्टि नहीं, शांति नहीं, सेटिस्फेक्शन  नहीं। अन्दर एक शून्यता, खालीपन का भाव।

- जीवन में कुछ मजा नहीं आ रहा, इसमें सार्थकता के बोध का अभाव। जीवन गहरे  तनाव, अवसाद, खालीपन, शून्यता, असुरक्षा व भय से आक्रान्त हो रहा है।

फिर यदि हम बहुत प्रतिभाशाली हैं, बहुत कुछ कर सकते हैं, तो इससे परेशान कि इग्जेक्टली हमें करना क्या है, जिससे हमारा जीवन डिफाइन हो, जीवन की पहेली का समाधान हो, जीवन का स्वधर्म समझ आ जाए तथा इसी जीवन में चिरस्थायी सुख, शांति, आनन्द व आजादी को अनुभव हो।

यहीं पर लाइफ मैनेजमेंट की जरुरत..। ताकि

1 जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो,

2 जो भगवान के दिए हए स्वाभाविक उपहार हैं, जैसे शरीर, मन, बुद्धि, भावना, अंतर्प्रज्ञा, समय आदि, इनका श्रेष्ठतम सदुपयोग करते हुए जीवन में सफलता के साथ शांति व सतुष्टि भी मिले।

3 एक्सलैंस के साथ समग्र सफलता मिले।

अपना बेस्ट वर्जन बनते हुए, जो बेहतरतम कर सकते थे इस जीवन में, उसके साथ जीवन का निष्कर्ष, अवसान या विदाई हो।

आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में कहें, तो हम Self-Actualization के लक्ष्य की ओर बढ़े व पा जाएं तथा भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में Self-knowledge, Self Realization, आत्मबोध, आत्म साक्षात्कार आत्म ज्ञान को प्राप्त हों, जिसे सकल ज्ञान का आधार माना गया है।

4 इस सबके साथ जीवन में सार्थकता का बोध हो A meaningful life, a sense of fulfillment.

और ऐसा न लगे कि इतना वेशकीमती जीवन यूँ ही बरवाद चला गया।

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परमपूज्य गुरुदेव ने, इसके सुत्र दिए –

सुबह उठते ही आत्मबोध– एकटूडू लिस्ट तैयार करना।

रात को सोते समय, तत्वबोध – दिन भर के क्रियाक्लापों का मूल्याँकन, निष्कर्ष और कल के लिए नया संकल्प। और दिन भर की भूल चूक का प्रायश्चित, परिमार्जन।

इसी में डायरी लेखन शामिल।

(पढ़ सकते हैं - डायरी लेखन की कला, डायरीलेखन के फायदे हजार)

और दिन भर, अनुशासित दिनचर्या अर्थात् आहार, विहार, विचार और व्यवहार।

आहार, मित, ऋत, हित। सात्विक, पौष्टिक मिताहार।

व्यायाम का न्यूनतम पैकेज – आसन, टहल से लेकर जिम तक अपनी क्षमता के अनुसार। इसके साथ नींद विश्राम का उचित अनुपान।

विहार,दिन भर की चर्चा, संग साथ, टाईम मैनेजमेंट। जीवन शैली के चारआयाम, रहे जिनका हर पल ध्यान।

प्राथमिकता के आधार पर कार्य –

1.     Urgent भी और Important भी – क्लास, इग्जाम, प्रोजेक्ट, ड्यूटी आदि।

2.     Urgent नहीं, लेकिन Important, जैसे – व्यायाम, ध्यान, स्वाध्याय, डायरी लेखन आदि।

3.     Urgent, लेकिन Important नहीं, जैसे – किसी की शादी, फोन कॉल, मिलने वाले आ गए रिश्तेदार, यार-दोस्त आदि।

4.     Urgent और न ही Important, जैसे फिल्म देखना, मोबाईल साशल मीडिया व अन्य हल्का मनोरंजन आदि।

यदि न. 4 को प्राथमिक बना दिया और न. 3 को भी, तो फिर नं.1 के कार्य छुटने तय। परीक्षा के समय तनाव, बीपी हाई, तवीयत खराब। व्यायाम, ध्यान, डायरी लेखन के लिए समय ही नहीं। सुबह की क्लास में लेट। जीवन अस्त-व्यस्त और जीवन क्राइसिस मैनेजमेंट की अंतहीन प्रकिया में उलझा हुआ।

व्यवहार,

1.       किसी को हर्ट नहीं, भावनाओं को ठेस नहीं।

2.       वाणी –मित, मधुर, कल्याणी।

3.       संवेदी श्रवण (एम्पेथिक लिस्निंग)  जो ईमोशनल बैंक अकाउंट को समृद्ध बनाए।

4.       अपने कर्तव्य का पालन, यथासंभव सेवा, न्यूनतम आशा अपेक्षा के।

विचार,

1.       अपने लक्ष्य में व्यस्त, कसी हुई दिनचर्या।

2.       अच्छी पुस्तकों का अध्ययन, अपनी रुचि की

3.       स्वाध्याय, सतसंग, महापुरुषों का, अपने आदर्श का।

4.       नित्य कुछ ध्यान प्रार्थना आदि।

योग्यता बर्धन

1.       टेक्निक्ल स्किल्जनया सॉफ्यवेयर, फोटोग्राफी, एडिटिंग स्किल आदि।

2.       लेंग्वेज स्किल्जनई भाषा, लेखन आदि।

3.       सॉफ्ट स्किल्जसेल्फ मैनेजमेंट, कम्यूनिकेशन स्किल आदि।

4.       प्रोफेशनल स्किल्जआपके विषय के अनुरुप ....।

इस तरह, हर रोज, हर पलअपने जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ने केक्रिएटिव एडवेंचर में मश्गूल।

गोल सेटिंग, लक्ष्य निर्धारण – अंतःप्रेरित हो ,देखा देखी नहीं। begin with the end of your mindआपके स्वाभाव, प्रकृति, योग्यता, रुचि व पैशन से जुड़ा हुआ हो।

1 कैरियर गोल, 2 लाईफ गोल – दोनों स्पष्ट हों। यदि दोनों का मिलान होता हो, तो फिर इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं, जीवन का वास्तविक अर्थ यहाँ शुरु हो जाए।

नित्य रुप से जीवन के हर आयाम को पोलिश - शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक-व्यवहारिक, आध्यात्मिक, प्रोफेशनल, सामाजिक।

स्वर्णिम सुत्र – अपनी अन्तर्वाणी (Inner Voice) का अनुसरण।

जीवन साधना के स्वर्णिम सुत्र – परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार,

इस युग के यम-नियम – पंचशील - श्रमशीलता, सुव्यवस्था, मितव्ययिता, शालीनता, सहकारिता। 4 मानसिक सुत्र - समझदारी, ईमानदारी,  जिम्मेदारी, बहादुरी। जिनका नित्य अभ्यास हो व जीवन में अधिकाधिक समावेश।

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...