गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

ब्लॉगिंग - पहला कदम

ब्लॉगर पर ब्लॉगिंग की शुरुआत करें कुछ ऐसे
 
 
यदि आप ब्लॉगिंग की दुनियाँ से अधिक परिचित नहीं है व ब्लॉगिंग करना चाहते हैं, तो आपका स्वागत है। यह पोस्ट विशेषरुप से ऐसे जिज्ञासु पाठकों के लिए लिखी जा रही है, जो अपना ब्लॉग शुरु करना चाहते हैं, लेकिन इसके बारे में अधिक नहीं जानते। यह पोस्ट आपको मोटा-मोटी कुछ ऐसे जानकारियाँ देगी, जो नए ब्लॉगर के लिए उपयोगी साबित होंगी व आप निर्बाध रुप में अपना ब्लॉग जारी रख सकेंगे व इसके क्रिएटिव एडवेंचर का हिस्सा बनेंगे।
हमें याद है कि जब वर्ष 2013 में हमने अपना यह ब्लॉग शुरु करना चाहा, तो इसकी पहली पोस्ट डालने से कई माह लग गए। पहला कारण था उचित मार्गदर्शन का अभाव और दूसरा परफेक्ट समय का इंतजार। इस परफेक्शनिज्म के कुचक्र से अंततः हम अप्रैल 2014 में बाहर आते हैं और अपना पूरा साहस बटोर कर पहली पोस्ट के साथ ब्लॉगिंग की दुनियाँ में कदम रखते हैं। 

 
इसी तरह सप्ताह-दस दिन के अन्तराल में अगली पोस्ट डालते जाते हैं और शेयर करते हैं। बीच-बीच में उत्साहबर्धक कमेंट्स मिलते गए, तो लगा कि कंटेंट सही दिशा में जा रहा है। हालाँकि अधिकाँश पोस्टों में कमेंट्स नहीं भी मिले, लेकिन ब्लॉग में बने डैशबोर्ड पर आँकड़ों से पाठकों की संख्या को देख, लेखों की पठनीयता का अंदाजा मिलता रहता। हालाँकि अब हम इस लाईक-कमेंट्स के मायावी कुचक्र से काफी-कुछ बाहर आ चुके हैं, लेकिन शुरुआती दौर में तो ये सब काफी मायने रखता ही है।
 
मालूम हो कि ब्लॉग की शुरुआत वर्ष 1994 में वेब-डायरी के रुप में हुई थी, लेकिन आज इसका संसार इसके बहुत आगे निकल कर व्यापक रुप ले चुका है। 
 
ब्लॉग का उद्भव एवं विकास यात्रा...
 
हमारे विचार में ब्लॉग रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक ऐसा प्लेटफोर्म है, जहाँ आप अपने विषय के ज्ञान को जिज्ञासु पाठकों के साथ साझा करते हैं। यदि आप अभी विषय विशेषज्ञ नहीं भी हैं, तो भी हर व्यक्ति कुछ मौलिक विशेषताएं लिए होता है, बाहर प्रकट होने के लिए कुछ मौलिक विचार, भाव एवं आइडियाज कुलबुला रहे होते हैं, इन्हें तराशकर दूसरों के साथ शेयर किया जा सकता है। ब्लॉग इसमें बहुत सहायक रहता है। क्रमशः आपकी एक वेब डायरी बनती जाती है, जहाँ आपकी मौलिकता एवं रचनात्मक उत्कृष्टता के कदरदान मिल ही जाते हैं। 
इस संदर्भ में यह पूरी तरह से लोकतांत्रिक माध्यम है। यदि कंटेट की गुणवत्ता में क्रमशः इजाफा करते रहेंगे, तो पाठकों का प्रवाह बना रहेगा। इसके अतिरिक्त कुछ नए सृजन का आनन्द अपनी जगह, जो स्वयं में एक पारितोषिक रहता है, जो दूसरों की तारीफ न मिलने पर भी ब्लॉगर को मस्त मग्न रखता है। क्रमशः ब्लॉगिंग के तमाम लाभ निष्ठावान ब्लॉगर को समझ आते हैं।
 
ब्लॉगिंग के लाभ
 
अतः ब्लॉग में क्या लिखें, क्या शेयर करें, तो मोटा सा नियम है कि जो रचनात्मक संभावनाएं (किएटिव पोटेंशियल) आपके अंदर पक रही हैं, विचार-भावनाओं का समन्दर लहलहा रहा है, कुछ खिच़ड़ी पक रही है। उसे आप थोड़ा मेहनत कर सृजनात्मक तरीके से पेश कर शेयर कर सकते हैं। यह एक लेख हो सकता है, एक कविता भी हो सकती है, यात्रा वृतांत हो सकता है, एक कहानी हो सकती है या कोई पुस्तक या फिल्म समीक्षा हो सकती है या किसी ज्वलंत मुद्दे फर आपकी परिपक्व राय हो सकती है या आपकी विशेषज्ञता के अनुरुप कुछ और। यह पाठकों की आवश्यकता के अनुुरुप तैयार किया गया कंटेट भी हो सकता है, जिसे आप अपनी विशेषज्ञता के आधार पर साझा करने में सक्षम होते हैं। कुल मिलाकर यह आपके पैशन, आपकी रचनात्मक संभावनाओं, आपके निहायत मौलिक अनुभवों एवं जीवन दर्शन की रचनात्मक अभिव्यक्ति होती है, जिनके साथ आप अपने जीवन की यात्रा में निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ रहे होते हैं। 
 
सृजनात्मक जीवन की साहसिक यात्रा

यदि आप लेखन के क्षेत्र में नौसिखिया हैं व शुरुआती लेखन के गुर जानना चाहते हैं तो इसके लिए आप हमारी ब्लॉग पोस्ट - लेखन की शुरुआत करें कुछ ऐसे को पढ़ सकते हैं, लेखन के विभिन्न चरणों को समझ सकते हैं व आजमा सकते हैं और ब्लॉग की पहली उमदा पोस्ट तैयार कर शेयर कर सकते हैं। इसे शेयर करने के लिए प्रारम्भिक ब्लॉगर्ज के लिए सबसे सरल एवं निःशुल्क व्यवस्था गूगल में उपलब्ध ब्लॉगर सेवा है।
 
 
अपने जीमेल (gmail) एकाउंट के साथ आप अपना खाता खोल सकते हैं, अपना मनभावन नाम देते हुए ब्लॉगर पर उपलब्ध उचित टैंपलेट का चुनाव कर तैयार की गई पहली पोस्ट के साथ शुभारम्भ कर सकते हैं।  
https://www.blogger.com  को खोलें।
create your blog बटन को क्लिक कर, इसमें जीमेल के साथ प्रवेश करें।
ब्लॉग को उचित शीर्षक (Title) दें,
Address में blogspot.com से पहले उचित नाम दें, जो इसमें स्वीकार्य हो। बाद में custom domain से इसे बदला या परिवर्धित किया जा सकता है।
theme में उपलब्ध कई थीम्ज से उपयुक्त का चयन करें, इसे आप बाद में अपनी आवश्यकता व रुचि के अनुरुप बदल सकते हैं।
आपका ब्लॉग तैयार हो जाएगा।
New post बटन को क्लिक कर उपयुक्त शीर्षक व नीचे खाने में टाईप किया मैटर पेस्ट् करें।
दायीं ओर ऊपर post setting में label को क्लिक कर पोस्ट से जुड़े तीन-चार की-वर्ड टाईप करें, जो पोस्ट प्रकाशित करने के बाद पोस्ट के नीचे अंत में दिखेगी
ऊपर दायीं ओर Publish बटन दवाने पर पोस्ट पब्लिश हो जाएगा। इससे पहले preview बटन को दबाकर पोस्ट के स्वरुप को प्रकाशन से पूर्व एक बार चैक कर सकते हैं। 
 अब आपका ब्लॉअपनी पहली पोस्ट के साथ तैयार है। जिस आप जब चाहें अपने मित्रों या पब्लिक के बीच विभिन्न सोशल मीडिया में शेयर कर सकते हैं।
 
 
एक ब्लॉग के लेआउट में मोटा-मोटी चार हिस्सा होते हैं।
 
एक ब्लॉग की आधारभूत संरचना
 
ऊपर हेडर में ब्लॉग का शीर्षक व इसके सार को अभिव्यक्त करता उपशीर्षक व उपयुक्त फोटो। इसके दायीं और मुख्य कंटेंट रहता है, जिसमें आपकी नयी पोस्ट की लिखी हुई सामग्री व फोटो रहती हैं। ब्लॉग के वायीं और साईडवार में आपका प्रोफाईल फोटो-संक्षिप्त परिचय, विज्ञापन, आपके अनुसरणकर्ता, लोकप्रिय पोस्टों की एक निश्चित संख्या, कुल दर्शक संख्या आदि होते हैं इसी तरह ब्लॉग के नीचे फुटर में अपनी संपर्क मेल, कॉपीराईट स्टेटमेंट, व कोई विशिष्ट पोस्ट आदि को सजा सकते हैं।

अपनी पोस्ट के साथ विषयानुरूप उचित चित्रों का संयोजन कर इसे और अधिक रोचक एवं प्रभावशाली बना सकते हैं। इसके साथ ब्लॉग के लेआउट में जाकर विभिन्न गैजेट्स जोड़कर अपने ब्लॉग को अधिक आकर्षक, यूजर फ्रेंडली एवं प्रभावशाली बना सकते हैं।
 
          ले आउट सेक्शन में उपलब्ध गैजेट वार
 
ब्लॉग के संदर्भ में एक अहं बात का यहाँ जिक्र करना चाहूंगा, जिससे आपका ब्लॉग एक बार शुरु होकर फिर अनवरत चलता रहे। वह है ब्लॉग से जुड़ा आपका पैशन या जुनून। एक बार इसको अवश्य टटोलें व खोजें, जो आपके जीवन के मकसद से जुड़ा हो, जिससे कि इसे आप परिस्थितियों के तमाम विषम थपेड़ों के बीच भी उत्साह एवं निष्ठा के साथ आगे बढ़ सकें। इसके अभाव में नियमित अन्तराल पर ब्लॉग को मेंटेन रखना कठिन हो जाता है। 
हम कितने ऐसे ब्लॉगर्ज को जानते हैं, जो शुरु तो जोश के साथ किए थे, लेकिन जोश कुछ माह बाद ठंडा पड़ता गया। फिर कई महिनों का गैप होता गया। कुछ तो सालों का गैप लिए हुए हैं तथा जोश में शुरु हुए ब्लॉग अपने वजूद के लिए संघर्ष की स्थिति में हैं तथा कई अपना दम तोड़ चुके हैं। 
आपके ब्लॉग के साथ भी ऐसा कुछ न हो, तो समझना जरुरी है कि ब्लॉग के बारे में आपका पैशन ही शुरुआत है, आपका जुनून ही मध्य है और यही आपको नए मुकाम तक पहुँचाने वाला कीमिया है। 
 
ब्लॉगिंग का सारा खेल आपके पैशन, आपके जुनून का है
 
यदि आप अपनी ब्लॉगिंग पर डटे रहे, तो क्रमशः आपकी लेखन शैली में सुधार आएगा। आपके विचारों में धार आएगी। हर ब्लॉग के साथ मन का गुबार हल्का होगा तथा सृजन का आनन्द आपकी झोली में होगा। इसके साथ आपके ब्लॉग पर ट्रेफिक बढ़ना शुरु होगा। एक सुहानी सुबह आपको सुखद अहसास होगा कि अपनी रूचि के कुछ विषयों में आप एक विशेषज्ञ के रुप में उभर रहे हैं। गूगल में अपने ट्रैफिक फ्लो के साथ इन विषयों का आप इसका सहजता से अनुमान लगा सकते हैं। 
और यदि आप कभी चाहें तो ब्लॉगिंग को एक प्रोफेशनल ब्लॉगर्ज के रुप में अपनी कमाई का माध्यम भी बना सकते हैं। हालांकि इसकी अलग दुनियाँ है, जिस पर अभी हम अधिक कहने के अधिकारी विद्वान नहीं है। लेकिन सार रुप में ब्लॉग कमाई का भी माध्यम हो सकता है। ब्लॉग शुरु करने के कुछ माह बाद ही ब्लॉगर में उपलब्ध एड-सेंस एक्टिवेट हो जात है और आपके ब्लॉग को विज्ञापन मिलना शुरु हो जाते हैं, जिन पर यदि कोई पाठक क्लिक करता है, तो एक निश्चित राशि आपके ब्लॉग खाते में जुड़ना शुरु हो जाती है।
आर्थिक पहलु को छोड़ भी दें, तो ब्लॉग क्रिएटिव लोगों के लिए एक अद्भुत प्लेटफॉर्म है। अध्ययन-अध्यापन एवं पढ़ने-लिखने से जुड़े लोगों के लिए तो यह अभिन्न सहचर है, जिसे आज के वेबमाध्यम के युग में नजरंदाज नहीं किया जा सकता। (और कोविड काल के बाद तो यह प्लेटफार्म ऑनलाईन पढ़ाई का एक सशक्त माध्यम बनकर उभर चुका है, जिसे कोई भी शिक्षा से जुड़ा व्यक्ति नजरंदाज नहीं कर सकता।)
 


ब्लॉगिंग का अकादमिक महत्व

तः एक बार शुरु करने के बाद फिर आपको अपने ब्लॉग पर नियमित अन्तराल पर कुछ लिखते रहना है, कोई भी माह नागा नहीं जाना चाहिए, यह न्यूनतम है। अधिक की कोई सीमा नहीं। औसतन दो से तीन पोस्ट तो माह में डाल ही सकते हैं। यह एक मेरी तरह स्वान्तः सुखाय ब्लॉगर्ज का औसत है, जबकि प्रोफेशनल ब्लॉगर्ज का औसत सप्ताह में दो-तीन पोस्ट रहती है। आप भी अपनी शुरुआत न्यूनतम निष्ठा के साथ हल्के एवं मस्ती भरे अंदाज में कर सकते हैं। 
यदि इतना कुछ समझ आ रहा हो, तो फिर इंतजार कैसा? 
आज, इसी सप्ताह आप अपने जुनून के साथ अपनी रचनात्मक संभावनाओं (creative potential) को अभिव्यक्त करते एक उम्दा ब्लॉग की शुरुआत कर सकते हैं। ब्लॉगिंग की रोमाँचक दुनियाँ आपका इंतजार कर रही है।
 
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शनिवार, 25 जनवरी 2020

स्वागत 2020 – निर्णायक दशक का यह प्रवेश द्वार



परिवर्तन के ये पल निर्णायक महान
2020 नहीं महज वर्ष नया,
निर्णायक दशक का यह प्रवेश द्वार,
तीव्र से तीव्रतम हो चुका काल चक्र परिवर्तन का,
महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया, ऐतिहासिक महान।।
शुरुआती हफ्तों में ही मिल चुके ट्रेलर कई,
न रहें काल के तेवर से अनजान,
सभी कुछ निर्णायक दौर से गुजर रहा,
जड़ता, प्रतिगामिता नहीं अब काल को स्वीकार।।

 न भूलें सत्य, ईमान और विधान ईश्वर का, 
नवयुग की चौखट पर खड़ा इंसान,
देवासुर संग्राम के पेश होंगे लोमहर्षक नजारे,
कुछ रहेगा आधा-अधूरा, होगा सब आर-पार।।


धड़ाशयी होंगे दर्प-दंभ, झूठ के किले मायावी,  
नवसृजन का यह प्रवेश द्वार,
जनता की अदालत में होंगे निर्णय ऐतिहासिक,
 धर्मयुद्ध के युगान्तरीय पल दुर्घर्ष-रोमाँचक-विकराल।।

 अग्नि परीक्षाओं की आएंगी घड़ियाँ अनगिन,
 गुजरेंगे जिनसे हर राष्ट्र, समाज और इंसान,
2020 नहीं महज वर्ष नया,
निर्णायक दशक का यह प्रवेश द्वार।।

 महाकाल के हाथोंं स्वयं कमान युग की,

नवयुग की चौखट पर खड़ा इंसान,
परिवर्तन के ये पल ऐतिहासिक रोमाँचक,
स्वागत के लिए हम कितना हैं तैयार।।

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

फिल्म समीक्षा – तान्हाजी, द अनसंग वॉरियर


स्वराज के अमर योद्धा की अद्वितीय शौर्य-बलिदानी गाथा

बाहुबली के बाद एक ऐसी फिल्म आई है, जो दर्शकों को अपने सिनेमाई करिश्मे के साथ मंत्रमुग्ध कर रही है और उनमें एक नया जोश, एक नयी ऐतिहासिक समझ व सांस्कृतिक चेतना का संचार कर रही है। मराठा योद्धा तानाजी मालुसरे के अप्रतिम शौर्य, बलिदान एवं अदम्य साहस की गाथा पर आधारित यह फिल्म शुरु से अंत तक दर्शकों को बाँधे रखती है। इसके कथानक की कसावट, चरित्रों के रोल, चाहे वे तानाजी के रुप में अजय देवगन हों, खलनायक उदयभान सिंह राठौर के रुप में सैफ अली खान या सावित्री बाई के रुप में काजोल या छत्रपति शिवाजी महाराज के रुप में शरद केलकर या अन्य – सभी अपनी जगह सटीक छाप छोड़ते हैं। पृष्ठभूमि में सुत्रधार के रुप में संजय मिश्रा की आबाज अपना प्रभाव डालती है। एनीमेशन एवं वीएफएक्स का उत्कृष्ट प्रयोग इसकी विजुअल अपील को ज्बर्दस्त ढंग से दर्शकों को हर दृश्य में हिस्सेदार बनाती है। गीत-संगीत एवं नृत्य भी स्वयं में बेजोड़ है, जिनमें भागीदार होकर दर्शक शौर्यभाव से भर जाते हैं। युद्ध के बीच-बीच में हल्की कॉमेडी दर्शकों को गुदगुदाती है तो मानवीय भावों के मार्मिक चित्रण दर्शकों को भावुक कर देते हैं।

आश्चर्य नहीं कि जीवंत इतिहास के रोमाँचक पलों के साक्षी बनते हुए दर्शकों के अंदर जैसे भावनाओं का समन्दर लहलहा उठता है और फिल्म के अंत में नम आँखों के साथ दर्शक बाहर निकलता है। कुल मिलाकर अनसंग वॉरियर तानाजी का चरित्र दर्शकों के जेहन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है।

आश्चर्य नहीं कि पहले दिन से फिल्म को देखने के लिए दर्शकों की भीड़ उमड़ रही है और 2020 की यह सबसे लोकप्रिय एवं हिट फिल्म के रुप में उभरी है। 8.6 की आईबीडीएम रेटिंग के साथ बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने धमाल मचा रखा है। दूसरे सप्ताह भी तान्हाजी का जादू दर्शकों के सर चढ़कर बोल रहा है। बॉक्स आफिस पर महज सप्ताह में 100 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है और इस सप्ताह 200 करोड़ की ओर अग्रसर है और आगे यह किन नए रिकॉर्ड को स्थापित करती है, देखना रोचक होगा।
विदित हो कि सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक लगभग पूरा भारत मुगल शासकों के अधीन था। शिवाजी के पिता शाहजी भौंसले मुगल शासन में एक सैन्य अधिकारी के रुप में कार्यरत थे। माता जीजाबाई नहीं चाहती थी कि उनका वेटा शिवा भी मुगलों के अधीन काम करे। वे बालक शिवा को बचपन से ही रामायण-महाभारत की कथाओं के माध्यम से स्वतंत्रता, स्वाभिमान एवं शौर्य की भावना कूट-कूट कर भरती हैं।
दादाजी कोन्डेव उन्हें युद्धकला एवं नीतिशास्त्र में पारंगत बनाते हैं। साहसी एवं स्वाभिमानी मराठों को इक्टठा कर बालक शिवा उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और मात्र 15 साल की आयु में तोरण का किला जीतकर स्वराज की ओर पहला कदम उठाते हैं। इस तरह इनका विजय अभियान आगे बढ़ता है और कई किले इनके अधिकार में आ जाते हैं तथा स्वराज की परिकल्पना मूर्त होने लगती है। मुगल शासक औरंगजेब को यह विस्तार नागवार गुजरता है और वो विराट सेना के साथ हमला करवाता है। मध्यम मार्ग अपनाते हुए पुरन्दर की संधि होती है, जिसमें कोन्ढाणा सहित 23 किले खो बैठते हैं। कूटनीतिक चाल चलते हुए मुगल शासन मराठा शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से राजपूत यौद्धा उदयभान सिंह राठोर को कोन्ढाणा का सरदार बनाते हैं।
कोन्ढाणा का किला रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ माता जीजावाई को विशेषरुप से प्रिय था, जिसको अपने अधिकार में लाने की दृष्टि से शिवाजी महाराज स्वयं धावा करने की तैयारी करते हैं।

ईधर तानाजी अपने बेटे की शादी का निमंत्रण लेकर राजगढ़ पहुँचते हैं। जब पता चलता है कि कोन्ढाणा के किले के लिए युद्ध की तैयारियाँ चल रही हैं, तो वे इसका जिम्मा स्वयं पर ले लेते हैं। तानाजी एक बार छद्मवेश में जाकर किले का पूरा मुआइना करते हैं और इसके बाद पाँच सौ मराठा यौद्धाओं को साथ लेकर दो हजार सैनिकों से आबाद किले पर चढ़ाई करते हैं। इसके लिए वे रात के अंधेरे में किले के चढ़ाईदार पश्चिमी हिस्से से उपर चढ़ते हैं, जहां पहरा कम रहता है तथा कल्याण दरवाजे से प्रवेश करते हैं और अंदर घमासान युद्ध होता है।
 युद्ध के दौरान एक हाथ कटने के बाद, तानाजी इस पर पगडी लपेट कर ढाल के साथ लड़ते हैं। युद्ध में अंततः उदयभान सिंह राठोर परास्त हो जाता है, लेकिन तानाजी भी वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। किला मराठाओं के कब्जे में आ जाता है, लेकिन वे अपना सरदार खो बैठते हैं। इस पर शिवाजी महाराज के शब्द थे – गढ़ आला पण सिंह गेला अर्थात् गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मेरा सिंह नहीं रहा। तब से कोन्ढाणा किले का नाम सिंहगढ़ पड़ता है। पुना से महज 35 किमी दूर सिंहगढ़ आज एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो इस फिल्म के बाद पूरे देश की नजर में आ चुका है। युद्ध के बाद शिवाजी महाराज स्वयं तानाजी के बेटे की शादी करवाते हैं और तानाजी का बूत स्मृति समारक के रुप में सिंहगढ़ में स्थापित होता है।

उत्कृष्ट एनीमेशन एवं वीएफएक्स का उपयोग करते हुए किले को व युद्ध के हर दृश्य को जीवंत तरीके से दर्शाया गया है। युद्ध का फिल्माँकन हॉलीबुड की किसी भी युद्ध फिल्म से कम नहीं है, जिसमें भारतीय सिनेमा (बालीवुड़) के विश्व सिनेमा की ओर बढ़ते कदमों की आहट देखी जा सकती है। ऐसे तकनीकी कौशल से बनी फिल्में विदेशों में जहाँ इससे कई गुणा अधिक बजट में बनती है, वहीं यह फिल्म महज 150 करोड़ रुपए में तैयार हुई है, जिसे कुछ विशेषज्ञ भारत के मंगल ग्रह पर भेजे चंद्रयान की तरह किफायती प्रयोग मान रहे हैं। मालूम हो कि फिल्म के एनीमेशन व वीएफएक्स में स्वदेशी तकनीशियनों ने काम किया है।
हमारे विचार में तान्हाजी बाहुबली के बाद एक दूसरी बेमिसाल फिल्म आई है, जो दर्शकों के जेहन को कहीं गहरे छू जाती है। साथ ही ऐतिहासिक दस्ताबेजों के ऊपर आधारित होने के कारण तान्हाजी का असर बाहुबली से कहीं अधिक गहरा एवं व्याप्क प्रतीत होता है, क्योंकि इसके साथ छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य एवं दिव्य चरित्र भी अभिन्न रुप में जुड़ा हुआ है।
फिल्म के माध्यम से जहाँ दर्शकों की ऐतिहासिक समझ रवाँ हो रही है, वहीं स्वदेश एवं राष्ट्रभक्ति के भावनाएं हिलोंरें मार रही हैं। जिस पावन भाव के साथ इसके निर्देशक ओम राउत एवं प्रोड्यूसर अजय देवगन ने फिल्म को बनाया है, वह दर्शकों को कहीं गहरे छू रहा है। कहीं से भी हल्के फिल्मी मनोरंजन को परोसने की कुचेष्टा यहाँ नहीं दिखती। पात्रों के चरित्र के साथ उचित न्याय इस फिल्म की विशेषता है, जो आशा है कि अनसंग वॉरियर की श्रृंखला की अगली कढ़ियों में भी बर्करार रहेंगी।

यदि आपने यह फिल्म अभी तक न देखी हो तो बड़े थियेटर में जाकर अवश्य देखें। लेप्टॉप या मोबाईल पर इसके साथ न्याय नहीं हो पाएगा।
कुछ तथ्य जो फिल्म को और भी दर्शनीय बनाते हैं –
1.     अजय देवगन के फेन्ज के लिए यह फिल्म एक ट्रीट से कम नहीं है, जो इनकी 100वीं फिल्म भी है। काजोल के साथ इनकी भूमिका के कारण फिल्म ओर भी विशिष्ट बन गई है। दोनों आठ साल बाद एक साथ किसी फिल्म में काम कर रहे हैं।

2.  खलनायक उदयभान सिंह राठोर के रुप में सैफ अली खान का अभिनय दर्शनीय है।
3.     छत्रपति शिवाजी महाराज के रुप में शरद केलकर भी भूमिका बेजोड़ है। याद हो कि डब्ब की गई एसएस राजामौली की फिल्म बाहुबली के हिंदी संस्करण में इन्हीं की आबाज बाहुबली के रुप में गूंजती रही है।
4.     मराठा शौर्य पर आधारित यह फिल्म इतिहास का जीवंत दस्तावेज है। अपने इतिहास से अनभिज्ञ या भूला बैठी पीढ़ी के लिए यह फिल्म एक प्रभावी एवं जीवंत शिक्षण से कम नहीं है।
5.     फिल्म का थ्री-डी संस्करण भी उपलब्ध है, जिसमें थ्री-डी चश्में के साथ फिल्म के दृश्यों व घटनाओं का सघन फील लिया जा सकता है। हालाँकि फिल्म का दू-डी संस्करण भी स्वयं में जीवंत एवं प्रभावशाली है।

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...