एक जागरुक मीडिया उपभोक्ता की भूमिका
स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव - आज सिर्फ
स्वास्थ्य के बारे में चर्चा पर्याप्त नहीं। समग्र स्वास्थ्य पर विचार आवश्यक हो
गया है। क्योंकि हमारे समाज व देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव दिखता
है। जब कोई बिमार पड़ता है,
दैनिक
जीवन पंगु हो जाता है,
कामकाज
पेरेलाइज हो जाता है,
तब
हम किसी डॉक्टर की शरण में जाते हैं। दवा-दारू लेकर ठीक हो जाते हैं और जिंदगी फिर
पुराने ढर्रे पर लुढकने लगती है। अपने स्तर पर स्वास्थ्य के लिए प्रायः हम सचेष्ट
नहीं पाए जाते।
स्वास्थ्य के प्रति पुरखों की गहरी समझ
और समग्र सोच
– जबकि स्वास्थ्य के
प्रति हमारे पुर्वजों की सोच बहुत गहरी और समग्र रही है। स्वस्थ्य की चर्चा में
शरीर, मन और आत्मा हर स्तर
पर विचार किया गया है। शरीर को जहाँ समस्त धर्म का आधार वताया गया (शरीरं खलु धर्म
साधनम्) वहीं रोग के कारण के रुप में धी, धृति और स्मृति के भ्रंषक अधर्म आचरण को
पाया गया। इसके साथ स्थूल स्तर पर वात-पित-कफ त्रिदोष का असंतुलन और मानसिक स्तर
पर तम और रज गुणों की प्रधानता को पाया गया। तथा इसी के अनुरुप समग्र उपचार का
विधान मिलता है।
आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान और समग्रता की
ओर बढते कदम – जबकि आधुनिक प्रचलित
चिकित्सा विज्ञान स्वास्थ्य की अधूरी सोच लिए हुए है, जो व्यक्तित्व के
घटकों को अलग-अलग मानने की गल्ती के कारण हैं। शरीर में किसी विकार होने पर इसे
स्वतंत्र रुप से ठीक करने की कवायद शुरु हो जाती है, जिसके मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक
कारणों पर विचार नहीं किया जाता। शरीर और मन को अलग-अलग देखने का यह तरीका आधुनिक
विज्ञान के अधूरेपन को दर्शाता है। हालाँकि अपने नवीनतम शोध निष्कर्षों के साथ यह
साइकोसोमेटिक रोगों की चर्चा करने लगा है, जहाँ शरीर में पनप रहे रोगों के कारण मन
की गहराइयों में खोजने की कोशिश की जाती है, जो समग्र स्वास्थ्य की दिशा में बढ़ रहे
स्वागतयोग्य कदम हैं।
समग्र स्वास्थ्य – समग्र स्वास्थ्य
मनुष्य के व्यक्तित्व की विभिन्न इकाइयों को एक साथ लेकर समग्र रुप से विचार करता
है। उसके शारीरिक,
मानसिक, बौद्धिक, भावनात्माक.
आध्यात्मिक और सामाजिक आयामों पर विचार करता है। यह कौरा विचार नहीं जीवन शैली है, जिसके स्पष्ट मानक
हैं। हम इसकी कसौटियों पर कसते हुए जाँच सकते हैं कि हम शारीरिक रुप से कितने फिट
हैं, हमारा
स्टेमिना-एंड्यूरेंस कैसा है। मानसिक स्तर पर संतुलन और मजबूती की स्थिति कैसी है।
बौद्धिक स्तर पर सोच कितनी समग्र है, समझदारी व दूरदर्शिता के अंश कित मात्रा
में हैं। भावनात्मक स्तर पर हम कितने परिवक्व, स्थिरता और संवेदनशील हैं।
पारिवारिक-सामाजिक स्तर पर रिश्तों में कितने समस्वर, जिम्मेदार व सूझ लिए
हुए हैं। और आध्यात्मिक स्तर पर कितने सरल-सहज, सकारात्मक (उदार-सहिष्णु) और आशावादी
हैं।
जीवन शैली और वैकल्पिक चिकित्सा पद्वति
के रुप में –
समग्र
स्वास्थ्य को व्यक्तिगत स्तर पर आध्यात्मिक जीवन दृष्टि और यौगिक जीवन शैली के रुप
में अपनाया जा सकता है। जिसके घटक हो सकते हैं – आत्मबोध-तत्वबोध, आसन-प्राणायाम, स्वाध्याय-सतसंग, ध्यान-प्रार्थना और
अनुशासित जीवनचर्या। रुगण होने पर इन वैकल्पिक चिकित्सा पद्वतियों का सहारा लिया
जा सकता है –
प्राकृतिक
चिकित्सा, पंचकर्म, यज्ञोपैथी, प्राणिक हीलिंग, वनौषधीय चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, योगिक चिकित्सा, आध्यात्मिक परामर्श
और मनोचिकित्सा आदि।
मीडिया की भूमिका – मीडिया स्वास्थ्य के
प्रति जनमानस को जागरुक करने का एक सशक्त माध्यम है। प्रिंट, इलैक्ट्रॉनिक, न्यूमीडिया आदि अपने
अपने ढंग से इसके प्रचार में अपनी भूमिका निभाते रहते हैं। अखबारों मे नित्य
स्तम्भ और साप्ताहिक परिशिष्टों में लेख आते रहते हैं। कुछ पत्रिकाएं स्वास्थ्य को
लेकर चल रही हैं। हेल्थ,
वेलवीइंग
और अध्यात्म को लेकर कई चैनल चल रहे हैं। इंटरनेट पर प्रचुर सामग्री स्वास्थ्य को
लेकर पड़ी हुई है।
मीडिया की सीमाएं – अपने प्रभाव के बावजूद
मीडिया की अपने सीमाएं हैं। सबसे पहले तो मीडिया से सेवा का भाव लुप्तप्रायः है।
यह विशुद्ध रुप से एक व्यापार बन चुका है। फिर टीआरपी की दौड़ में, हिट्स की आपाधापी में
नेगेटिवी से लेकर सनसनाहट इसेक अभिन्न हिस्सा बनते जा रहे हैं। फिर मीडिया का
हमेशा यह बहाना रहता है कि पाठक-दर्शक में उत्कृष्ट सामग्री को देखने, सुनने, पढ़ने की माँग नहीं
रहती। और अगर माँग रहती भी है तो ऐसा कंटेट हमें उपलब्ध नहीं होता। इस सबके बीच
समग्र स्वास्थ्य का अभीप्सु एक जागरुक मीडिया उपभोक्ता के रुप में मीडिया की
सीमाओं को समझ सकता है और अपना सार्थक योगदान दे सकता है।
एक जागरुक मीडिया यूजर के रुप में हमारी
भूमिका – हर मीडिया यूजर एक
मीडिया संवाहक,
संचारक
की भूमिका में भी है। यदि वह जीवन के समग्र उत्कर्ष, समग्र स्वास्थ्य के प्रति सचेत है तो
अपने निष्कर्षों को मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर शेयर कर सकता है। वह इन
सुत्रों को ट्विटर या फेसबुक पर शेयर कर सकता है। एक लेख के रुप में अखबार या
ब्लॉग में प्रकाशित कर सकता है। यदि सामग्री की वीडियो क्लिप या डॉक्यूमेंट्री हो
तो फेसबुक, यूटयूब आदि पर शेयर
हो सकती है। यदि सामग्री प्रचूर मात्रा में विविधता लिए हो तो अपनी साइट खोलकर
व्यापक स्तर पर शेयर किया जा सकता है।
निष्कर्षतः – देश की जनता को
समग्र स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना समय की माँग है। सिर्फ रोगी होने पर ही
स्वास्थ्य के प्रति सोचने की वजाए प्रोएक्टिव होकर में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकत
करने की जरुरत है। जिससे की हर नागरिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और
सामाजिक स्तर पर स्वास्थ्य के सुत्रों तो जीवनशैली में शुमार करते हुए एक स्वस्थ
सुखी जीवन जी सके। इसी आधार पर स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज की परिकल्पना
साकार होगी। इसकी शुरुआत हमें स्वयं से करनी है। हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग
सुधरेगा का युगऋषि का मंत्र तभी सिद्ध-साकार होगा। (देसंविवि में सम्पन्न सेंट्रल हेल्थ सर्विसिज मेडिकल ऑफिसर्ज फॉउंडेशन ट्रेेनिंग प्रोग्राम के दौरान दिया गया उद्बोधन-26 मई 2017 )