लेकिन अभी, आदर्श से कितना दूर, अज्ञात से कितना मजबूर।
लोग कहते हैं कि सफल इंसान हूं अपनी धुन का,
दे चुका हूँ कई सफल अभियानों को अंजाम,
दे चुका हूँ कई सफल अभियानों को अंजाम,
सफलता की बुलंदियों पर खुशियों के शिखर देखे हैं कितने,
लगा जब मुट्ठी में सारा जहाँ।
फिर सफर ढलुआ उतराई का, सफलता से दूर, गुमनामी की
खाई,
सफलता का शिखर छूटता रहा पीछे, मिली संग जब असफलता की परछाई,
मुट्ठी से रेत सा फिसलता समय, हाथ में जैसे झोली खाली,
ठगा सा निशब्द देखता हूँ सफलता-असफलता की यह आँख-मिचौली।
ऐसे में, सरक रही, जीवन की गाड़ी पूर्ण विराम की
ओर,
दिखता है, लौकिक जीवन का अवसान जिसका अंतिम छोर,
सुना यह एक पड़ाव शाश्वत जीवन का, बाद इसके महायात्रा का नया दौर,
क्षण-भंगुर जीवन का यह बोध, देता कुछ पल हाथ में शाश्वत जीवन की ढोर।
जीवन की इस ढलती शाम में, माना मंजिल, अभी आदर्श
से दूर, बहुत दूर,
एक असफल इंसान महसूस करता हूँ खुद को, आदर्श के आयने में,
आदर्श से अभी कितना दूर, अज्ञात से कितना मजबूर।
बस एक ही खासियत पाता हूँ इस अंधियारे में, टिमटिमा
रहा जो बनअंतर में आशादीप,