यात्रा वृतांत लेखन के चरण
निश्चित रुप में यात्रा वृतांत का पहला ठोस
चरण तो यात्रा के साथ शुरु होता है। व्यक्ति कहाँ की यात्रा कर रहा है, किस
भाव और उद्देश्य के साथ सफर कर रहा है और किस तरह की जिज्ञासा व उत्सुक्तता लिए
हुए है, इनकी गहनता, गंभीरता एवं व्यापकता एक अच्छे यात्रा वृतांत के आधार बनते
हैं तथा यात्रा वृतांत में रोचकता और रोमाँच का रस घोलते हैं और साथ ही ज्ञानबर्धक
भी बनाते हैं।
यात्रा वृतांत ज्ञानबर्धक बने इसके लिए यह
भी आवश्यक हो जाता है कि यात्रा स्थल या रुट का पहले से कुछ अध्ययन किया
गया हो। या कह सकते हैं कुछ रिसर्च की हो। पहले इसका एक मात्र साधन दूसरों
के लिखे यात्रा वृतांत पढ़ना या वहाँ से घूम आए लोगों से की गई चर्चा होती थी।
लेकिन आज इंटरनेट के जमाने में यह काम बहुत आसान हो गया है। लगभग हर लोकप्रिय ठिकानों
पर ब्लॉग से लेकर वीडियोज मिल जाएंगे। बाकि कसर गूगल गुरु पूरा कर देते हैं,
जिसमें किसी भी स्थान पर तमाम तरह की जानकारियाँ उपलब्ध रहती हैं।
यहीं से यात्रा वृतांत में नूतनता लाने के सुत्र
भी मिल जाते हैं, कि अब तक दूसरे यात्री क्या कवर कर चुके हैं और इसमें कौन से
पहलु या एंग्ल अभी बाकि हैं। हो सकता है कि अमुक यात्रा में आपकी रुचि के विषय
पर अभी कोई प्रकाश ही न डाला गया हो या जो जानकारियाँ उपलब्ध है वे आपकी जिज्ञासा
व उत्सुक्तता का समाधान नहीं कर पा रही हों। ऐसे में यह जानकारी का अभाव या खालीपन
आपके यात्रा लेखन के नूतनता का एक प्रेरक तत्व बन जाता है।
उदाहरण के लिए हम एक शैक्षणिक भ्रमण में ऋषिकेश के पास कुंजादेवी शक्तिपीठ से बापसी में नीरझरना घूमना चाहते थे, लेकिन हमें कोई इसकी जानकारी देने वाला नहीं मिला। इंटरनेट खंगालने पर भी नीरझरने की कुछ फोटो या वीडियो के अलावा रुट की कोई जानकारी नहीं मिली। सो शिखर पर बसे कुँजापुरी से बापसी में लोगों से पूछते हुए, बीच में राह भटकते हुए हम इसको कवर किए थे। लेकिन यह स्वयं में एक रोचक एवं रोमाँचक यादगार यात्रा बन गई थी। इसे आप चाहें तो आगे दिए लिंक में पढ़ सकते हैं।यात्रा वृतांत - कुंजापुरी से नीरझरना ट्रैकिंग एडवेंचर।
और यदि स्थान बहुत लोकप्रिय है और इसमें पर्याप्त
कवरेज हो चुकी है, तो भी यात्रा लेखक अपने विशिष्ट नजरिए, अंदाज व शैली के आधार पर
इसे नयापन दे सकता है, बल्कि देता है। एक ही स्थान को देखने के अनगिन नजरिए हो
सकते हैं। किसी भी स्थान का प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक विशेषता, ऐतिहासिक-पौराणिक
पृष्ठभूमि, वहाँ का रहन-सहन, खान-पान, लोक संस्कृति, विशिष्टता, राह की खास बातें
आदि कितनी बातें, कितने तरीकों से व्यक्त हो सकती हैं। इसमें व्यक्ति के अपने मौलिक अनुभव एक
नयापन घोलने में सक्षम होते हैं, जिससे कि यात्रा वृतांत एक ताजगी लिए तैयार होता है।
इसके साथ कोई भी स्थान या रुट कितना ही सुंदर,
आकर्षक या मनभावन क्यों न हो, वहाँ कि कुछ कमियाँ, राह की दुर्गमताएं, समस्याएं या
क्लचरल शॉक्स आदि भी यात्रा वृतांत के रोचक विषय बनते हैं, जो पाठकों के लिए
उपयोगी हो सकते हैं। इससे नए यात्री या पर्यटक इनसे परिचित होकर आवश्यक तैयारी या
सावधानी के साथ यात्रा का पूरा आनन्द ले पाते हैं। यदि लेखक किसी विषय की जानकारी रखता
हो या विशेषज्ञता लिए हो तो स्थानीय समस्याओं के संभावित समाधान पर भी
प्रकाश डाल सकता है, जो यात्रा वृतांत में ज्ञानबर्धन आयाम जोड़ते हैं और इसकी
पठनीयता बढ़ जाती है। इसमें संवेदनशील व संतुलित रवैया उचित रहता है तथा दोषारोपण
या छिद्रान्वेषण आदि से हर हालत में बचना उचित रहता है।
यात्रा वृतांत में राह में मिले अन्य यात्रियों,
स्थानीय लोगों के साथ चर्चाएं भी यात्रा वृतांत के अनिवार्य पहलु रहते हैं, जो
जानकारी को और प्रामाणिक तथा रोचक बनाते हैं। इससे पाठकों की कई सारी जिज्ञासाओं व
प्रश्नों के समाधान बात-बात में मिल सकते हैं। अतः यात्रा में लोगों से संवाद एक
महत्वपूर्ण तत्व रहता है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यात्रा लेखक यदि घूमने
के जुनून व जिज्ञासाओं से भरा हुआ है, तो ऐसे संवाद सहज रुप में ही घटित हो जाते हैं और प्रकृति भी राह में उचित पात्र के साथ मुलाकात में सहायक बनती है। इसमें कई
लोगों को थोड़ा अचरज हो सकता है, लेकिन अनुभवी घुम्मकड़ ऐसे संयोगों को सहज रुप में समझ रहे होंगे व ऐसे संस्मरणों से नित्य
रुबरु होते रहते हैं।
यात्रा वृतांत में फोटो का अपना महत्व रहता है। सटीक
फोटो इसकी पठनीयत को बढ़ा देता है। यात्रा लेखक अपने लेखकीय कौशल के आधार पर
जो कह नहीं पाता, वह एक उचित चित्र बखूबी व प्रभावशाली ढंग से स्पष्ट कर देता है,
जिससे पाठक को यात्रा के साथ भाव चित्रण में सहायता मिलती है। हालाँकि किसी स्थल
के प्राकृतिक सौंदर्य़, भौगोलिक विशेषता या भावों के सुंदर व जीवंत चित्रण को लेखक
अपनी कलम से करने में काफी हद तक सक्षम होता है, जिसको पढ़ने का अपना आनन्द रहता
है। किसी जमाने में जब फोटोग्राफी का चलन नहीं था, तो लोग पेन या पेंसिल के स्कैच
से भी चित्रों का काम चला लिया करते थे।
यात्रा वृतांत लेखन में एक महत्वपूर्ण पहलू राह
के पड़ाव व स्थानों के नाम व उनसे जुड़ी मोटी व खास जानकारियाँ भी रहते हैं।
इसके लिए एक डायरी व पेन साथ में रहे, तो उचित रहता है। जहाँ भी जो स्थान
आए, इनके नाम नोट किए जा सकते हैं। और यदि पहले से कुछ रिसर्च कर रखें हैं, तो इन
स्थानों को पहले से ही डायरी में सुचिबद्ध कर रखा जा सकता है तथा साथ में सफर कर
रहे लोगों से कुछ खास जानकारियों को बटोरा जा सकता है। फिर अपने अनुभव के आधार पर
इनमें अतिरिक्त नयापन जोड़ा जा सकता है। अपनी डायरी या नोटबुक में नोट किए गए ये नाम
या बिंदु बाद में लेखन में सहायक बनते हैं।
यात्रा पूरी होने के बाद फिर लेखन की बारी
आती है। इसमें लेखन से जुड़े सर्वसामान्य नियमों का अनुसरण करते हुए पहला रफ
ड्राफ्ट तैयार किया जाता है, जिसमें अपनी यात्रा के अनुभवों को एक क्रम में कागज या कम्पयूटर-लैप्टॉप पर उतारा जाता है। फिर शांत मन से कुछ और विचार मंथन व शोध के आधार पर दूसरे
ड्रॉफ्ट में अतिरिक्त आवश्यक तथ्यों व जानकारियों को शामिल किया जा सकता है तथा
इसमें भाषा की अशुद्धियों को ठीक करते हुए इसे पॉलिश किया जाता है। यदि लेखन की इस
प्रक्रिया को विस्तार से जानना है तो हमारे ब्लॉग पर लेखन कला - लेखन की शुरुआत करें कुछ ऐसे को पढ़ा जा सकता है।
यात्रा वृतांत लेखन में यदि इन बातों का ध्यान
रखा जाए व इन चरणों का अनुसरण किया जाए, तो निश्चित ही एक बेहतरीन यात्रा ब्लॉग
तैयार हो जाएगा। और पाठक इसको पढ़कर यात्रा के साथ जुडी रोचकता व रोमाँच को अनुभव
करेंगे। उनके ज्ञान में इजाफा होगा तथा वे आपके साथ भावयात्रा करते हुए सफर के
आनन्द का हिस्सा बनेंगे। शायद यही तो एक यात्रा लेखन का मकसद रहता है।
यात्रा लेखन के ऊपर दिए बिंदुओं को और बेहतर समझने के लिए नीचे दिए कुछ यात्रा वृतांतों को पढ़ा जा सकता है -
यात्रा वृतांत - हमारी पहली झारखण्ड यात्रा
यात्रा वृतांत - सुरकुण्डा देवी का वह यादगार सफर, भाग-1
यात्रा वृतात - कुल्लू से नेहरुकुण्ड-वशिष्ट वाया मानाली लेफ्ट बैंक
यात्रा लेखन से जुड़े कुछ अन्य उपयोगी लेख -