रविवार, 28 फ़रवरी 2021

हरिद्वार से चण्डीगढ़ वाया हथिनीकुँड

गाँव-खेत-फ्लाइऑवरों व नहरों के संग सफर का रोमाँच


हरिद्वार से चण्डीगढ़ लगभग दो सवा दो सौ किमी पड़ता है, जिसके कई रूट हैं। सबसे लम्बा रुट देहरादून-पोंटा साहिब एवं नाहन से होकर गुजरता है। दूसरा बड़ी बसों का प्रचलित रुट वाया रुढ़की-सहारनपुर-यमुनानगर-अम्बाला से होकर जाता है। छोटे चौपहिया वाहनों के लिए शोर्टकट रुट वाया हथिनीकुंड वैराज से होकर है, जिस पर दिन के उजाले में सफर का संयोग पिछले दिनों बना। फरवरी माह के तीसरे सप्ताह में सम्पन्न यात्रा कई मायनों में यादगार रही, जिसे यदि आप चाहें तो इस रुट का चुनाव करते हुए अपने स्तर पर अनुभव कर सकते हैं।

इस रुट की खासियत है, गाँव-खेतों, छोटे कस्वों एवं गंगा-यमुना नदी की नहरों के किनारे सफर, जिसमें कितनी तरह की फसलों, फल-फूलों व वन-बगानों से गुलजार रंग-बिरंगे अनुभव कदम-कदम पर जुड़ते जाते हैं। साथ में मिलते हैं लोकजीवन के अपने विविधतापूर्ण मौलिक रंग-ढंग, जो अपनी खास कहानी कहते प्रतीत होते हैं।



हरिद्वार से बाहर निकलते ही गंगनहर के किनारे सफर आगे बढ़ता है। महाकुंभ 2021 के लिए बने नए फलाई-ऑवर के संग सफर एकदम नया अनुभव रहा, क्योंकि सड़क पहले से अधिक चौड़ी, सपाट, सुंदर और सुव्यवस्थित हो गई हैं, साथ ही एक तरफे ट्रैफिक के चलते काफी सुरक्षित एवं आरामदायक भी। फिर फ्लाई-ऑवर के टॉप से नीचे शहर, गंगा नदी इसके मंदिर-आश्रमों एवं चारों ओर दूर पहाड़ियों के दृश्यों के नजारे स्वयं में दर्शनीय लगे।

गुरुकुल कांगड़ी विवि से होकर ज्वालापुर को पार करते ही सफर शहर के बाहर गंगाजी की छोटी सी धारा (नहर-कुल्ह) के संग आगे बढ़ता है और फिर आता है उत्तराखण्ड संस्कृत विवि और थोड़ी देर में बहादरावाद, जहाँ वाईं ओर सड़क रुढ़की के लिए मुड़ जाती है, लेकिन हमारा रुट दायीं ओर से होकर गंग नहर के संग आगे बढ़ता है, कुछ देर में नहर को पार कर हम भगवानपुर की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में खेत-खलिहानों के दर्शन शुरु हो जाते हैं। बीच-बीच में छोटे कस्बे आते रहे, नाम तो सही ढंग सें याद नहीं, हाँ बीच में बोर्ड देख पता चला कि पिरान कलियर से दो किमी दूरी पर आगे बढ़ रहे थे। मालूम हो कि पिरान कलियर शरीफ, सूफी संत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर को समर्पित दरगाह है, जो हिन्दु और मुस्लिम दोनों के लिए महान आध्यात्मिक ऊर्जा का स्थान माना जाता है।

आगे मार्ग में मुस्लिम बहुल आवादी के दर्शन मिले। खेतों में गैंहूं की फसल तैयार हो रही थी, बीच में जौ की खेती भी दिखी। इसके साथ कहीं-कहीं सरसों के खेत कहीं खालिस पीला रंग लिए हुए थे, तो कहीं गैंहूं के बीच हरा पीला रंग लिए अपनी खास उपस्थिति दर्शा रहे थे। 


गन्ने की खेती भी रास्ते भर होती दिखी, कहीं ट्रैक्टरों में गन्ने को लादकर फेक्ट्री में ले जाया जा रहा था तो कहीं सड़क के किनारे गन्ने से ताजा गुढ़ बनते कई ठिकाने दिखे, जो अपनी धुँआ उगलती भट्टियों के साथ बिखरती मिट्ठी खुशबू के साथ अपना परिचय दे रहे थे।

बीच-बीच में आम के बगीचे मिले। इस सीजन में भी आम के फलों को देखकर आश्चर्य हो रहा था, जो सड़क के किनारे दुकानों पर सजे थे। इस बेमौसमी फल के साथ कुछ स्थानों पर अखरोटों से सज्जे ठेले भी दिखे, जिन्हें टोकरियों में सजाया गया था व इन पर काश्मीर के कागजी अखरोट होने के लेबल लगे थे।


सफेदे के पेड़ तो खेत की बाउँडरी पर बहुतायत में दिखे, लेकिन इनके साथ जो अधिक सुंदर लग रहे थे, वे थे पॉपलर के पेड़, जिन्हें खेतों के बीच कतारबद्ध उगाया गया था। आसमान को छूते इनके सीधे खडे पेड़ कौतुहल जगा रहे थे कि इनका क्या मकसद रहता होगा। पता चला कि इन्हें माचिस की तिल्लियों से लेकर प्लाईवुड व पैंसिल के लिए उपयोग किया जाता है, इससे कागज भी तैयार होता है और इनकी फसल किसानों के लिए आमदनी का बेहतरीन स्रोत्र रहती है। यह बहुत तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, जो 50 से 165 फीट तक ऊँचाई लिए होता है, जो 5 से 7 साल में 85 फीट व इससे अधिक ऊँचाई पा लेता है। रास्ते में इनकी लकड़ी के लट्ठों से लद्दे ट्रैक्टर एवं ट्रकों को देखकर इसके व्यापार की झलक भी मिलती गई।

इस तरह कई खेत, कस्वे व गाँवों को पार करते हुए सफर आगे बढ़ता रहा। एक दूसरी नहर रास्ते में मिलती है, जिसका जल आसमानी नीला रंग लिए काफी निर्मल दिख रहा था। रास्ते में मिली गंग नहर जहाँ काफी गहरी थी, वहीं यह नई नहर उथली थी, लेकिन अपने दोनों ओर की दृश्यावलियों के साथ अधिक सुंदर एवं भव्य लग रही थी।


अगले लगभग आध-पौन घंटे तक इसके किनारे सुखद सफर आगे बढ़ता रहा, यथासंभव इसके सुंदर नजारों को कैप्चर करते रहे और उस पार बसे गाँव, घर, खेत, बगीचों को निहारते हुए सफर का आनन्द लेते रहे।

अब तक हम इसके उद्गम स्रोत्र की ओर पहुँच चुके थे, आवादी विरल हो चुकी थी, नदी के तट व नहरों के निकास मार्ग दिखे, जिनमें कुछ सूखे प़ड़े थे, तो कुछ में पानी बह रहा था। हम हथिनीकुंड बैराज की ओर बढ़ रहे थे। इसके उत्तर में जल सरोवर के रुप में एकत्र था, लेकिन जालीदार दिवार के कारण इसकी पूरी झलक नहीं मिल पा रही थी। वायीं ओर जल ना के बराबर था, ऐसा लग रहा था कि बाढ़ की स्थिति में ही इससे जल छोड़ा जाता होगा। अगले मुहाने पर जल नीचे एक नहर के रुप में बाहर छोडा गया था, जो आसमानी रंग लिए अपनी निर्मलता का सुखद अहसास दिला रहा था। बाँध के छोर पर एक ऊँट के दर्शन हमें थोड़ा चकित किए। अब हम इसके किनारे दायीं ओर से नीचे बढ़ रहे थे। लगभग आधा किमी तक हम नहर के किनारे दायीं ओर से बढ़ते गए, सुंदर नजारों का शीतल व सुखद अहसास लेते रहे। आश्चर्य़ हुआ कि दिल्ली में गंदे नाले का रुप लिए यमुनाजी यहाँ कितनी साफ व निर्मल थी।



मालूम हो कि हथिनी कुंड बैराज पोंटा साहिब की ओर से आ रही यमुना नदी पर बनी हुई है। इसका जल यमुना नदी के अतिरिक्त पूर्वी और पश्चिमी दो नहरों के माध्यम से निचले इलाकों में खेती के लिए सिंचाई के काम आता है। साथ ही बारिश में बाढ़ की स्थिति में यहाँ से जल को नियंत्रित करके आगे छोड़ा जाता है, हालाँकि पानी के बढ़ने पर इसके फाटकों के खुलने पर नीचे दिल्ली सहित मैदानी इलाकों में स्थिति विकराल हो जाती है, जिस कारण हथिनी बैराज का नाम एक वरदान के साथ एक खतरनाक संरचना के रुप में भी जोड़कर देखा जाता है। लेकिन आज तो हम इसके शांत-सौम्य स्वरुप के दर्शन कर रहे थे।

अब हम नीचे जंगल व खेतों के बीच आगे बढ़ रहे थे। दायीं ओर पीछे उत्तराखण्ड की छोटी शिवालिक पहाड़ियाँ दिख रही थीं और इसकी गोद में दूर तक फैले खेत-खलिहान एवं गाँव। रास्ते में ही एक ढावे में दोपहर के भोजन के लिए रुकते हैं। हम हरियाण में प्रवेश कर चुके थे और यहाँ भोजन में हरियाण्वी तड़का चख्न्ने को मिला। यहाँ मात्र तंदूरी रोटी और दाल-सब्जियाँ ही उपलब्ध थीं। चाबल का अभाव दिखा। बापसी के सफर में भी हथिनीकुँड के पास के वैष्णों ढावे में भोजन का यही अनुभव रहा। यहाँ सब्जी में मिर्च पर्याप्त मिली, जिसका दही के साथ संतुलन बिठाते रहे, हालाँकि लाल मिर्च पाउडर की वजाए यहाँ हरी मिर्च काटकर भोजन में उपयुक्त होती दिखी।


इसी रास्ते में सड़क के किनारे सेंट की दुकानें सजी मिली। फलों की दुकानें तो पूरे मार्ग में कदम-कदम पर आवादी बाले इलाकों में दिखती रही, जहाँ मुख्यता कीनूं, अमरुद, केला, अंगूर जैसे मौसमी फल बहुतायत में दिखे।

आगे का सफर जगाधरी से होकर गुजरा, जो यमुनानगर से पहले ही वाईपास रुट से मुड़ जाता है, जिसमें हम प्रचलित अम्बाला रुट से दूर ही रहे। यह सफर भी नए रुट पर था, जिस पर किसान आन्दोलन का असर साफ दिखा। मार्ग के टोल प्लाजा विरान पड़े थे, कहीं भी पैसा बसूली होती नहीं मिली। सड़क पर्याप्त चौड़ी और फ्लाई ऑवर से लैंस मिली। पंचकुला तक यह चौडी, स्पाट सड़कें हमारे सफर को सुकूनदायी बनाए रही।


 
इस रुट में भी खेत खलिहान, गाँव मिले, लेकिन पिछले रुट से कुछ चीजें नई दिखीं। यहाँ स्ट्रा बैरी की फसल अधिक मिली, जिनको सड़क के किनारे डब्बों में सजाकर बेचा जा रहा था। इनके खेत भी रास्ते में मिले, जिनको कतारबद्ध सुखी तरपाली की छाया में उगाया जाता है। इस राह में आम-अमरुद आदि के बगीचे कम दिखे, फूलगोभी, पत्तोगोभी, मटर जैसी सब्जियों के प्रयोग अधिक दिखे। लगा पास की शहरी आबादी की खपत के लिए इन्हें कैश क्रोप के रुप में तैयार किया जाता होगा। पोपलर के पेड़ इस रुट में भी खेतों में बीच-बीच में अपनी भव्य उपस्थिति दर्शा रहे थे।

साथ ही इस राह में एक नयी चीज दिखी, जो थी ईंट के भट्टे, जहाँ ईंटें तैयार की जा रही थी। शायद जहाँ जमीन अधिक उपजाई नहीं होती, एक खास किस्म की मिट्टी पाई जाती है, वहाँ ऐसे प्रयोग किए जाते होंगे। पंचकुला में प्रवेश करने से पूर्व हिमाचल प्रदेश की नाहन साईड़ की पहाडियाँ मिलती हैं, जिनमें कीकर के जंगल बहुतायत में दिखे और साथ ही बहुमंजिली ईमारतों के दर्शन भी शुरु हो गए थे, जिनमें शहर की फूलती आबादी को समेटने के प्रयास दिखे।

इसी के साथ थोडी देर में पंचकुला से चण्डीगढ़ शहर में प्रवेश होता है। इसके प्लानिंग के तहत बनाए गए सेक्टर, सुंदर गोल चौराहे, सड़कों के किनारे पर्याप्त स्पेस में सजे भव्य एवं सुंदर घर, सड़क के दोनों किनारों पर हरे-भरे सुंदर वृक्षों की कतारें, सिटी ब्यूटीफुल में प्रवेश का सुखद अहसास दिला रहे थे और सफर मंजिल की ओर बढ़ रहा था। इस तरह कई सुंदर चौराहों को पार कर हम अपने ठिकाने पर पहुँचते हैं। आज की शाम आस-पास चण्डीगढ़ में कुछ विशिष्ट स्थलों के नाम थी। धर्मशाला में फ्रेश होकर हम इनके दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं, जिनका जिक्र अगली ब्लॉग पोस्ट में पढ़ सकते हैं।

अगले दिन बापसी का सफर एक और शॉर्टकट रुट से होकर रहा, इसमें पंचकुला के थोड़ा आगे से बायीं ओर मुड़ जाते हैं, जिसकी राह में नरायणगढ़ और बिलासपुर जैसे कस्बे पड़े। हिमाचल प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के बाद आज हम हरियाणा के बिलासपुर से परिचित हुए। इस मार्ग में सिक्खों के तीर्थ स्थल बहुतायत में दिखे। रास्ते में काफी दूर तक गुरुगोविंद सिंह मार्ग एवं इस पर बंदा बहादुर सिंह चौक एवं कुछ गुरुद्वारे मिले। बापसी में फिर हथिनीकुंड बैराज पहुँचते हैं, जहाँ बापसी में इससे निस्सृत नहर के किनारे ढलती शाम के साथ एक यादगार सफर पूरा होता है। आगे गंग नहर और फिर हर-की-पौड़ी को पार करते हुए अपने गन्तव्य स्थल पहुँचते हैं। इस तरह दिन के उजाले में हरिद्वार से चण्डीगढ़ वाया हथिनीकुंड का सफर एक यादगार अनुभव के रुप में अंकित होता है।


रविवार, 31 जनवरी 2021

Creative use of stress and emotions

 तनाव एवं भावनाओं का रचनात्मक प्रयोग

Stress  दैनिक जीवन में तनाव का आना स्वाभाविक है, यह जीवन का अंग है। जब व्यक्ति किसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति का सामना करता है तो फाईट या फ्लाइट (जुझो-लड़ो या भागो) की स्थिति में शरीर से ऐसे जैविक रसायन (Harmons) निकलते हैं, जो उसे इनका सामना करने के लिए तैयार करते हैं। व्यक्ति इनसे निपटने के लिए आवश्यक तत्परता, जुझारुपन और एकाग्रता से लैंस हो जाता है तथा इनके पार हो जाता है।

इस तरह तनाव जीवन का एक सहायक तत्व है, लेकिन जब यह तनाव किसी कारणवश लगातार लम्बे समय तक बना रहता है, तो यह तन-मन के लिए नुकसानदायक हो जाता है और यह व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसे में व्यक्ति की मानसिक एकाग्रता, यादाशत एवं कार्य करने की क्षमता धीरे-धीरे प्रभावित होने लगती है। व्यक्ति सही ढंग से भोजन नही कर पाता, नींद डिस्टर्ब हो जाती है। प्रायः तनाव में व्यक्ति या तो भूखे रहता है या अधिक खाने की समस्या से ग्रसित हो जाता है। उसे छोटी-छोटी बातों पर खीज व गुस्सा आने लगता है, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। चुनौतियों से जूझने और सामना करने की क्षमता चूकने लगती है। व्यक्ति बहुत जल्द थक जाता है और हताश-निराश हो जाता है। 

और इसके बढ़ने पर व्यक्ति कई तरह के मनोविकारों, जैसे – चिंता, हताशा-निराशा, अवसाद, उद्गिनता, भय आदि से ग्रस्त हो जाता है। इनसे उबरने के चक्र में कई लोग तो शराब, नशे आदि के भी शिकार हो जाते हैं। शरीर व मन पर तनाव के पड़ने वाले दबाव समय के साथ कई तरह के मनोकायिक रोगों (Psychosomatic disorders) के रुप में प्रकट होने लगते हैं, जैसे – उच्च-रक्तचाप, हाईपरटेंशन, मोटापा, मधुमेह, ह्दयरोग, अस्थमा, सरदर्द आदि।

जीवन में तनाव के कई कारण हो सकते हैं। इनमें कई परिस्थितियाँ भी भारी तनाव का कारण बनती है, जैसे – किसी प्रिय का बिछुड़ना, मृत्यु, तलाक, रिटार्यमेंट, आर्थिक तंगी, गरीबी, बेरोजगारी, दीर्घकालीन बिमारी, पारिवारिक झगड़े, आपसी क्लह आदि। अचानक मिली कोई बड़ी उपलब्धि, धन-लाभ, लॉटरी, शादी, सफलता आदि भी परिस्थितिजन्य तनाव का कारण बनते हैं। ये तनाव समय के साथ स्वयं ही शांत होते जाते हैं। हालाँकि व्यक्ति अपनी सूझ, परिपक्वता एवं मनोबल के आधार पर इनसे बखूबी निपट लेता है व ये अधिक चिंता का कारण नहीं रहते।

परिस्थिति के अतिरिक्त अधिकाँश तनाव व्यक्ति की बिगड़ी जीवनचर्या, असंयमित आहार-विहार, नकारात्मक सोच एवं अवांछनीय व्यवहार के कारण पैदा होते हैं। नियमित आत्म-निरीक्षण के साथ जीवन में व्याप्त हो रहे ऐसे तनाव को इनके मूल में सक्रिय कारणों को खोजकर, रचनात्मक ढंग से निपटाया जा सकता है।

Steps for creative use of stress

·         तनाव के कारण खोजेंगे, तो अकसर पहले बाहर ही दिखने को मिलेंगे, इनके मूल को अपने अंदर (जीवन शैली, आहार-विहार, सोच, व्यवहार,) खोजने का प्रयास करें और फिर इनके उपचार का प्रय़ास करें।

·         अपनी जीवन शैली में आवश्यक सुधार करें। इसके लिए अपने आहार-विहार को अनुशासित करें। समय पर सोने-जागने का क्रम बनाएं। हर कार्य को प्राथमिकता के आधार पर निपटाएं।

   अपनी शारीरिक क्षमता के अनुरुप रोज कुछ व्यायाम करें। गहरी सांस लें, प्राणायाम का अभ्यास करें। अपनी हॉवी व शौक को भी रोज कुछ समय दें। 

·         अपने विचार शैली में सुधार का प्रयास करें। इसको सकारात्मक बनाएं। इसके लिए श्रेष्ठ पुस्तकों को पढ़ें, आध्यात्मिक महापुरुषों का सत्संग करें। और हमेशा मन को लक्ष्य केंद्रित या फोक्सड रखें तथा श्रेष्ठ विचारों से ओत-प्रोत रखने का प्रयास करें।

·         अपने व्यवहार को दुरुस्त करें। बढ़ों को सम्मान दें, छोटों को स्नेह प्यार दें। अपने सहपाठियों के साथ मिलजुल कर रहें। सबके साथ बिनम्रता, शालीनता पूर्वक व्यवहार करें। कोई कैसा भी व्यवहार करें, अपना व्यवहार एवं वाणी को न बिगड़ने दें, अपनी गरिमा बनाए रखें।

·         अपने स्वभाव को ठीक करने का प्रयास करें, जो कि सबसे कठिन कार्य होता है। इसके लिए आध्यात्मिक उपचारों की मदद लें। उपासना, ध्यान, प्रार्थना आदि को जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। रोज इनके लिए कुछ समय निकालें, बल्कि हर पल इनसे ओत-प्रोत करने का अभ्यास करें।

·         यदि हम आध्यात्मिक जीवन दृष्टि एवं जीवन शैली को अपनाते हैं तो कठिन से कठिन तनावपूर्ण परिस्थिति का रचनात्मक उपयोग कर सकते हैं। महाभारत के रणक्षेत्र में अवसादग्रस्त अर्जुन इसी आधार पर भगवान श्रीकृष्ण के सान्निध्य में विषाद को योग में बदलते हैं।

·         नियमित रुप से गीता के कुछ सुत्रों का स्वाध्याय करे व इनका चिंतन-मनन करें और जीवन में धारण करने का प्रयास करें। कुलाधिपति महोदय की गीता-ध्यान कक्षाओं में इन सुत्रों की सरल एवं व्यवहारिक व्याख्याओं को समझा जा सकता है।

·         गलत लोगों के संग साथ से बचें। सही संगत न मिल पाने की स्थिति में बुरी संगत से अकेला भला (Better alone than bad company) एक आदर्श नीति हो सकती है। मोबाईल का संयमित एवं अनुशासित प्रयोग करें, क्योंकि इसका अधिक उपयोग तनाव का एक बड़ा कारण बनता है।

·         नियमित रुप से किया गया डायरी लेखन मन के तनाव को हल्का करने का रामवाण उपाय सावित हो सकता है, इसे अवश्य अपनाएं। प्रकृति की गोद में कुछ पल अवश्य बिताएं, आपका तनाव हल्का होगा।

·         एक समय में एक ही काम करें, इसके बाद ही दूसरे कार्य में हाथ लगाएं। एक साथ कई काम करने से बचें और छोटे-छोटे कदमों को बढ़ाते हुए बढ़ा लक्ष्य हासिल करें।

·         अति महत्वाकाँक्षा से बचें। अपने मौलिक लक्ष्य को पहचानें। अपनी क्षमता के अनुसार धीरे-धीरे आगे बढ़ें। दूसरों से अनावश्यक कंपेटिशन से बचें। ईर्ष्या-द्वेष, निंदा-चुग्ली आदि से दूर ही रहें।

 


Emotions, what it is? ईमोश्न व्यक्ति के ह्दय से जुड़े भाव हैं। ये बहुत कुछ हमारी मान्यताओं, धारणाओं एवं स्व के भाव पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में ये हमारी भावनाओं से जुड़ी शक्ति हैं, जो जीवन की प्रेरक शक्ति का काम करते हैं, जिसके मूल में होता है व्यक्ति का स्व का भाव, सेल्फ-एस्टीम व अपने प्रति धारणा। यदि यह सकारात्मक है तो व्यक्ति का संतुलित भावनात्मक विकास होता है और व्यक्ति आत्म-विश्वास, आत्म-गौरव के भाव से भरा होता है और अदक ये नकारात्मक हैं तो व्यक्ति हीनता या दंभ आदि से पीडित पाया जाता है। 

How negative emotions disturb life? प्रायः बचपन में लालन-पालन में उचित भावनात्मक पौषण, परिवार का बिगड़ा माहौल आदि इसके विकास में प्रारम्भिक अबरोध बनते हैं। कुछ जन्मजात या आनुवांशिक कारणों (genetic) से भी इसका नकारात्मक विकास होता है। जिस कारण भावनात्मक शुष्कता, न्यूनता या विकृतियां, जीवन भर व्यक्ति को परेशान करती हैं। और व्यक्ति या तो हीनता-कुण्ठा-अपराध बोध से पीड़ित रहता है या फिर दर्प-दंभ-अहंकार आदि से ग्रसित पाया जाता है। ऐसे भावदशा में व्यक्ति की रचनात्मक शक्ति या क्रिएटिविटी कुंद पड़ जाती है। अतः क्रिएटिव एक्सलैंस के लिए इस अवस्था से उबरना आवश्यक हो जाता है।

जो भी हो, व्यक्ति जहाँ खड़ा है, वहीं से आगे बढ़ते हुए अपने भावनात्मक विकास को रचनात्मक दिशा दे सकता है।

Creative use of emotions, steps

सबसे पहले अपनी भावनात्मक अवस्था को समझें और इसे स्वीकार करें।

·       दूसरों से अधिक आशा अपेक्षा न रखें। जिसके प्रति जो कर्तव्य बनता है, उसे निष्ठा के साथ पूरा करें। 

·        किसी के प्रति अधिक लगाव या मोह न पालें। अपनी भावनाओं के तार व्यक्ति की अपेक्षा अपने आदर्श, ईष्ट या सद्गुरु से जोड़ें। व्यक्ति से भी अपने भावनात्मक सम्बन्ध को भी इसी प्रकाश में रखने का प्रयास करें।

·        किसी चीज को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं। नम्र रहें। दूसरों की भी भावनात्मक स्थिति को समझें व उसी अनुरुप व्यवहार करें।

·        अत्यधित संवेदनशील या भावुक न बनें। जीवन को समग्रता में समझने की कोशिश करें, मजबूत बनें तथा संतुलित रहें।

  दूसरों की बात को पूरी तरह सुने-समझें, तभी जबाव या समाधान दें। 

   जरुरतमंदो की सहायता करें। रोज एक सेवा कार्य बिना किसी अपेक्षा या स्वार्थ के करें। निष्काम सेवा का यह प्रयोग चित्तशुद्धि का एक प्रयोग सावित होगा।

·   ·     संयम, सहिष्णुता, उदारता और सेवा-सहकार के व्यवहारिक सुत्रों का अभ्यास करें।

·        अपनी अंतर्वाणी को सुने व इसका अनुसरण करें।

    इसके साथ अपने भावों को गीत-संगीत, लेखन, चित्रकला या अन्य माध्यमों से प्रकट करें। इसमें आपके सकारात्मक भावों के साथ नकारात्मक भावों को भी रचनात्मक अभिव्यक्ति मिलेगी। डायरी लेखन इसमें बहुत सहायक सिद्ध होगा।

 

जीवन में सबसे अधिक तनाव, अवसाद और विषाद की स्थिति तब बनती है, जब व्यक्ति जन्मजात किसी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्माक, आर्थिक या आध्यात्मिक न्यूनता, अशक्तता या अपंगता से ग्रस्त होता है। लेकिन व्यक्ति अपनी इच्छा शक्ति, कल्पना शक्ति, विचार शक्ति एवं भावनात्मक शक्ति का रचनात्मक उपयोग करते हुए इन न्यूनताओं पर विजय पा सकता है और आगे बढ़ सकता है। यहाँ तक कि अपने चुने हुए क्षेत्र में शिखर तक पहुँच सकता है।

ऐसे ही संकल्प शक्ति के धनी और अपने क्षेत्र में क्रिएटिव एक्सलेंस के शिखर को छूने वाले लोगों के उदाहरणों को आप पढ़ सकते हैं, आगे दिए लिंक में मानवीय इच्छा शक्ति के कालजयी प्रेरक प्रसंग

जरा सोचें (Just Think & Ponder!!)

·         आपके जीवन में तनाव, अवसाद या विषाद की स्थिति बनने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया रहती है?

·         आप इनके लिए कितना दूसरों को या परिस्थिति को दोषी मानते हैं तथा कितना इनकी जिम्मेदारी स्वयं पर लेते हैं?

·         उन परिस्थितियों को याद करें, जब आपने इन कठिन एवं विकट पलों का रचनात्मक प्रयोग किया हो? जबकि आप चाहते तो इसमें ध्वंसात्मक भी हो सकते थे।

·         आपकी जन्मजात या परिस्थितिजन्य न्यूनता, कमी, दुर्बलता या अपंगता क्या है, जिसे आप अपनी शक्ति बनाने के रचनात्मक प्रयास में लगे हैं?

·         क्या आपने अपने जीवन में कभी विषाद को योग में बदलते देखा है या प्रयास किया है? दुःख के पलों में स्वयं को समझने का प्रयास किया है?

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...