रविवार, 31 जनवरी 2021

Creative use of stress and emotions

 तनाव एवं भावनाओं का रचनात्मक प्रयोग

Stress  दैनिक जीवन में तनाव का आना स्वाभाविक है, यह जीवन का अंग है। जब व्यक्ति किसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति का सामना करता है तो फाईट या फ्लाइट (जुझो-लड़ो या भागो) की स्थिति में शरीर से ऐसे जैविक रसायन (Harmons) निकलते हैं, जो उसे इनका सामना करने के लिए तैयार करते हैं। व्यक्ति इनसे निपटने के लिए आवश्यक तत्परता, जुझारुपन और एकाग्रता से लैंस हो जाता है तथा इनके पार हो जाता है।

इस तरह तनाव जीवन का एक सहायक तत्व है, लेकिन जब यह तनाव किसी कारणवश लगातार लम्बे समय तक बना रहता है, तो यह तन-मन के लिए नुकसानदायक हो जाता है और यह व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसे में व्यक्ति की मानसिक एकाग्रता, यादाशत एवं कार्य करने की क्षमता धीरे-धीरे प्रभावित होने लगती है। व्यक्ति सही ढंग से भोजन नही कर पाता, नींद डिस्टर्ब हो जाती है। प्रायः तनाव में व्यक्ति या तो भूखे रहता है या अधिक खाने की समस्या से ग्रसित हो जाता है। उसे छोटी-छोटी बातों पर खीज व गुस्सा आने लगता है, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। चुनौतियों से जूझने और सामना करने की क्षमता चूकने लगती है। व्यक्ति बहुत जल्द थक जाता है और हताश-निराश हो जाता है। 

और इसके बढ़ने पर व्यक्ति कई तरह के मनोविकारों, जैसे – चिंता, हताशा-निराशा, अवसाद, उद्गिनता, भय आदि से ग्रस्त हो जाता है। इनसे उबरने के चक्र में कई लोग तो शराब, नशे आदि के भी शिकार हो जाते हैं। शरीर व मन पर तनाव के पड़ने वाले दबाव समय के साथ कई तरह के मनोकायिक रोगों (Psychosomatic disorders) के रुप में प्रकट होने लगते हैं, जैसे – उच्च-रक्तचाप, हाईपरटेंशन, मोटापा, मधुमेह, ह्दयरोग, अस्थमा, सरदर्द आदि।

जीवन में तनाव के कई कारण हो सकते हैं। इनमें कई परिस्थितियाँ भी भारी तनाव का कारण बनती है, जैसे – किसी प्रिय का बिछुड़ना, मृत्यु, तलाक, रिटार्यमेंट, आर्थिक तंगी, गरीबी, बेरोजगारी, दीर्घकालीन बिमारी, पारिवारिक झगड़े, आपसी क्लह आदि। अचानक मिली कोई बड़ी उपलब्धि, धन-लाभ, लॉटरी, शादी, सफलता आदि भी परिस्थितिजन्य तनाव का कारण बनते हैं। ये तनाव समय के साथ स्वयं ही शांत होते जाते हैं। हालाँकि व्यक्ति अपनी सूझ, परिपक्वता एवं मनोबल के आधार पर इनसे बखूबी निपट लेता है व ये अधिक चिंता का कारण नहीं रहते।

परिस्थिति के अतिरिक्त अधिकाँश तनाव व्यक्ति की बिगड़ी जीवनचर्या, असंयमित आहार-विहार, नकारात्मक सोच एवं अवांछनीय व्यवहार के कारण पैदा होते हैं। नियमित आत्म-निरीक्षण के साथ जीवन में व्याप्त हो रहे ऐसे तनाव को इनके मूल में सक्रिय कारणों को खोजकर, रचनात्मक ढंग से निपटाया जा सकता है।

Steps for creative use of stress

·         तनाव के कारण खोजेंगे, तो अकसर पहले बाहर ही दिखने को मिलेंगे, इनके मूल को अपने अंदर (जीवन शैली, आहार-विहार, सोच, व्यवहार,) खोजने का प्रयास करें और फिर इनके उपचार का प्रय़ास करें।

·         अपनी जीवन शैली में आवश्यक सुधार करें। इसके लिए अपने आहार-विहार को अनुशासित करें। समय पर सोने-जागने का क्रम बनाएं। हर कार्य को प्राथमिकता के आधार पर निपटाएं।

   अपनी शारीरिक क्षमता के अनुरुप रोज कुछ व्यायाम करें। गहरी सांस लें, प्राणायाम का अभ्यास करें। अपनी हॉवी व शौक को भी रोज कुछ समय दें। 

·         अपने विचार शैली में सुधार का प्रयास करें। इसको सकारात्मक बनाएं। इसके लिए श्रेष्ठ पुस्तकों को पढ़ें, आध्यात्मिक महापुरुषों का सत्संग करें। और हमेशा मन को लक्ष्य केंद्रित या फोक्सड रखें तथा श्रेष्ठ विचारों से ओत-प्रोत रखने का प्रयास करें।

·         अपने व्यवहार को दुरुस्त करें। बढ़ों को सम्मान दें, छोटों को स्नेह प्यार दें। अपने सहपाठियों के साथ मिलजुल कर रहें। सबके साथ बिनम्रता, शालीनता पूर्वक व्यवहार करें। कोई कैसा भी व्यवहार करें, अपना व्यवहार एवं वाणी को न बिगड़ने दें, अपनी गरिमा बनाए रखें।

·         अपने स्वभाव को ठीक करने का प्रयास करें, जो कि सबसे कठिन कार्य होता है। इसके लिए आध्यात्मिक उपचारों की मदद लें। उपासना, ध्यान, प्रार्थना आदि को जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। रोज इनके लिए कुछ समय निकालें, बल्कि हर पल इनसे ओत-प्रोत करने का अभ्यास करें।

·         यदि हम आध्यात्मिक जीवन दृष्टि एवं जीवन शैली को अपनाते हैं तो कठिन से कठिन तनावपूर्ण परिस्थिति का रचनात्मक उपयोग कर सकते हैं। महाभारत के रणक्षेत्र में अवसादग्रस्त अर्जुन इसी आधार पर भगवान श्रीकृष्ण के सान्निध्य में विषाद को योग में बदलते हैं।

·         नियमित रुप से गीता के कुछ सुत्रों का स्वाध्याय करे व इनका चिंतन-मनन करें और जीवन में धारण करने का प्रयास करें। कुलाधिपति महोदय की गीता-ध्यान कक्षाओं में इन सुत्रों की सरल एवं व्यवहारिक व्याख्याओं को समझा जा सकता है।

·         गलत लोगों के संग साथ से बचें। सही संगत न मिल पाने की स्थिति में बुरी संगत से अकेला भला (Better alone than bad company) एक आदर्श नीति हो सकती है। मोबाईल का संयमित एवं अनुशासित प्रयोग करें, क्योंकि इसका अधिक उपयोग तनाव का एक बड़ा कारण बनता है।

·         नियमित रुप से किया गया डायरी लेखन मन के तनाव को हल्का करने का रामवाण उपाय सावित हो सकता है, इसे अवश्य अपनाएं। प्रकृति की गोद में कुछ पल अवश्य बिताएं, आपका तनाव हल्का होगा।

·         एक समय में एक ही काम करें, इसके बाद ही दूसरे कार्य में हाथ लगाएं। एक साथ कई काम करने से बचें और छोटे-छोटे कदमों को बढ़ाते हुए बढ़ा लक्ष्य हासिल करें।

·         अति महत्वाकाँक्षा से बचें। अपने मौलिक लक्ष्य को पहचानें। अपनी क्षमता के अनुसार धीरे-धीरे आगे बढ़ें। दूसरों से अनावश्यक कंपेटिशन से बचें। ईर्ष्या-द्वेष, निंदा-चुग्ली आदि से दूर ही रहें।

 


Emotions, what it is? ईमोश्न व्यक्ति के ह्दय से जुड़े भाव हैं। ये बहुत कुछ हमारी मान्यताओं, धारणाओं एवं स्व के भाव पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में ये हमारी भावनाओं से जुड़ी शक्ति हैं, जो जीवन की प्रेरक शक्ति का काम करते हैं, जिसके मूल में होता है व्यक्ति का स्व का भाव, सेल्फ-एस्टीम व अपने प्रति धारणा। यदि यह सकारात्मक है तो व्यक्ति का संतुलित भावनात्मक विकास होता है और व्यक्ति आत्म-विश्वास, आत्म-गौरव के भाव से भरा होता है और अदक ये नकारात्मक हैं तो व्यक्ति हीनता या दंभ आदि से पीडित पाया जाता है। 

How negative emotions disturb life? प्रायः बचपन में लालन-पालन में उचित भावनात्मक पौषण, परिवार का बिगड़ा माहौल आदि इसके विकास में प्रारम्भिक अबरोध बनते हैं। कुछ जन्मजात या आनुवांशिक कारणों (genetic) से भी इसका नकारात्मक विकास होता है। जिस कारण भावनात्मक शुष्कता, न्यूनता या विकृतियां, जीवन भर व्यक्ति को परेशान करती हैं। और व्यक्ति या तो हीनता-कुण्ठा-अपराध बोध से पीड़ित रहता है या फिर दर्प-दंभ-अहंकार आदि से ग्रसित पाया जाता है। ऐसे भावदशा में व्यक्ति की रचनात्मक शक्ति या क्रिएटिविटी कुंद पड़ जाती है। अतः क्रिएटिव एक्सलैंस के लिए इस अवस्था से उबरना आवश्यक हो जाता है।

जो भी हो, व्यक्ति जहाँ खड़ा है, वहीं से आगे बढ़ते हुए अपने भावनात्मक विकास को रचनात्मक दिशा दे सकता है।

Creative use of emotions, steps

सबसे पहले अपनी भावनात्मक अवस्था को समझें और इसे स्वीकार करें।

·       दूसरों से अधिक आशा अपेक्षा न रखें। जिसके प्रति जो कर्तव्य बनता है, उसे निष्ठा के साथ पूरा करें। 

·        किसी के प्रति अधिक लगाव या मोह न पालें। अपनी भावनाओं के तार व्यक्ति की अपेक्षा अपने आदर्श, ईष्ट या सद्गुरु से जोड़ें। व्यक्ति से भी अपने भावनात्मक सम्बन्ध को भी इसी प्रकाश में रखने का प्रयास करें।

·        किसी चीज को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं। नम्र रहें। दूसरों की भी भावनात्मक स्थिति को समझें व उसी अनुरुप व्यवहार करें।

·        अत्यधित संवेदनशील या भावुक न बनें। जीवन को समग्रता में समझने की कोशिश करें, मजबूत बनें तथा संतुलित रहें।

  दूसरों की बात को पूरी तरह सुने-समझें, तभी जबाव या समाधान दें। 

   जरुरतमंदो की सहायता करें। रोज एक सेवा कार्य बिना किसी अपेक्षा या स्वार्थ के करें। निष्काम सेवा का यह प्रयोग चित्तशुद्धि का एक प्रयोग सावित होगा।

·   ·     संयम, सहिष्णुता, उदारता और सेवा-सहकार के व्यवहारिक सुत्रों का अभ्यास करें।

·        अपनी अंतर्वाणी को सुने व इसका अनुसरण करें।

    इसके साथ अपने भावों को गीत-संगीत, लेखन, चित्रकला या अन्य माध्यमों से प्रकट करें। इसमें आपके सकारात्मक भावों के साथ नकारात्मक भावों को भी रचनात्मक अभिव्यक्ति मिलेगी। डायरी लेखन इसमें बहुत सहायक सिद्ध होगा।

 

जीवन में सबसे अधिक तनाव, अवसाद और विषाद की स्थिति तब बनती है, जब व्यक्ति जन्मजात किसी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्माक, आर्थिक या आध्यात्मिक न्यूनता, अशक्तता या अपंगता से ग्रस्त होता है। लेकिन व्यक्ति अपनी इच्छा शक्ति, कल्पना शक्ति, विचार शक्ति एवं भावनात्मक शक्ति का रचनात्मक उपयोग करते हुए इन न्यूनताओं पर विजय पा सकता है और आगे बढ़ सकता है। यहाँ तक कि अपने चुने हुए क्षेत्र में शिखर तक पहुँच सकता है।

ऐसे ही संकल्प शक्ति के धनी और अपने क्षेत्र में क्रिएटिव एक्सलेंस के शिखर को छूने वाले लोगों के उदाहरणों को आप पढ़ सकते हैं, आगे दिए लिंक में मानवीय इच्छा शक्ति के कालजयी प्रेरक प्रसंग

जरा सोचें (Just Think & Ponder!!)

·         आपके जीवन में तनाव, अवसाद या विषाद की स्थिति बनने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया रहती है?

·         आप इनके लिए कितना दूसरों को या परिस्थिति को दोषी मानते हैं तथा कितना इनकी जिम्मेदारी स्वयं पर लेते हैं?

·         उन परिस्थितियों को याद करें, जब आपने इन कठिन एवं विकट पलों का रचनात्मक प्रयोग किया हो? जबकि आप चाहते तो इसमें ध्वंसात्मक भी हो सकते थे।

·         आपकी जन्मजात या परिस्थितिजन्य न्यूनता, कमी, दुर्बलता या अपंगता क्या है, जिसे आप अपनी शक्ति बनाने के रचनात्मक प्रयास में लगे हैं?

·         क्या आपने अपने जीवन में कभी विषाद को योग में बदलते देखा है या प्रयास किया है? दुःख के पलों में स्वयं को समझने का प्रयास किया है?

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला

Indian Institute of Advanced Study (IIAS Shimla)

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला

शिमला की पहाडियों की चोटी पर बसा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला का एक विशेष आकर्षण है, जो शोध-अध्ययन प्रेमियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं। उच्चस्तरीय शोध केंद्र के रुप में इसकी स्थापना 1964 में तत्काकलीन राष्ट्रपति डॉ.एस राधाकृष्णन ने की थी। इससे पूर्व यह राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता था और वर्ष में एक या दो बार पधारने वाले राष्ट्र के महामहिम राष्ट्रपति का विश्रामगृह रहता था, साल के बाकि महीने यह मंत्रियों और बड़े अधिकारियों की आरामगाह रहता। डॉ. राधाकृष्णन का इसे शोध-अध्ययन केंद्र में तबदील करने का निर्णय उनकी दूरदर्शिता एवं महान शिक्षक होने का सूचक था।

 

आजादी से पहले यह संस्थान देश पर राज करने वाली अंग्रेजी हुकूमत की समर केपिटलका मुख्यालय था। सर्दी में कलकत्ता या दिल्लीतो गर्मिंयों में अंग्रेज यहाँ से राज करते थे और इसे वायसराय लॉज के नाम से जाना जाता था। अतः यह मूलतः अंग्रेजी वायसरायों की निवासभूमि के रुप में 1888 में तैयार होता है, जिसमें स्कॉटिश वास्तुशिल्प शैली को देखा जा सकता है। इसे शिमला की सात पहाड़ियों में से एक ऑबजरवेटरी हिल पर बसाया गया है।


मालूम हो कि शिमला में ऐसी सात प्रमुख पहाड़ियाँ हैं, जिन पर यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल बसे हैं। पश्चिमी शिमला का प्रोस्पेक्ट हिल, जिस पर कामना देवी मंदिर स्थित है। सम्मर हिल, जहाँ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का कैंपस पड़ता है। ऑबजर्वेटरी हिल, जहाँ इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी स्थित है। इन्वेरार्रम हिल, जहाँ स्टेट म्यूजियम स्थित है। मध्य शिमला काबेंटोनी हिल जहाँ ग्राँड होटलपड़ता है। मध्य शिमला की जाखू हिल, जहाँ हनुमानजी का मंदिर स्थित है। यह शिमला की सबसे ऊँची पहाड़ी है, जहाँ हनुमानजी की 108 फीट ऊँची प्रतिमा लगी है, जिसके दर्शन शिमला के किसी भी कौने से किए जा सकते हैं, यहाँ तक कि रास्ते में सोलन से ही इसके दर्शन शुरु हो जाते हैं। और उत्तर-पश्चिम दिशा का इलायजियम हिल, जहाँ ऑकलैंड हाउस और लौंगवुड़ स्थित हैं।

शिमला की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक विशेषता, फ्लोरा-फोनासब मिलाकर इसको विशिष्ट हिल स्टेशन का दर्जा देते हैं। एडवांस्ड स्टडी के संरक्षित परिसर में इनके विशेष दिग्दर्शन किए जा सकते हैं। यहाँ देवदार के घने जंगल हैं। इनके बीच में बुराँश के सघन पेड़ लगे हैं, जो अप्रैल-मईके माह में सुर्ख लाल फूलों के साथ यहाँ के वातावरण की खुबसूरती में एक नया रंग घोलते हैं। इसके साथ जंगली चेस्टनेट के पेड़ बहुतायत में मिलेंगे, जिनके फूलों के गुच्छेसीजन में यात्रियों का स्वागत करते हैं। इनके बीच बाँज के वन तो यहाँ आम हैं। इन वृक्षों पर उछल-कूद करते बंदर लंगूरों के झुण्ड भी इस परिसर की विशेषता है। बंदर हालाँकि थोड़े खुराफाती जीव हैं, खाने पीने की चीजें देख छीना झपटी करना अपना अधिकार मानते हैं, जबकि लंगूर बहुत शर्मीला और शांत जीव है। जो झुँड में रहता है और किसी को अधिक परेशान नहीं करता। लम्बी पूँछ लिए इस जीव को एक पेड़ से दूसरे पेड़ में लम्बी छलाँग लगाते यहाँ देखा जा सकता है।

संस्थान प्रायः सर्दियों में दिसम्बर से फरवरी तक शोधार्थियों के लिए बन्द रहता है। बाकि समय इसके यहाँ कई तरह के शोध अध्ययन से जुड़े कार्यक्रम चलते रहते हैं। जिनमें एक माह का एशोसिएटशिप कार्यक्रम पीएचडी स्कोलर्ज के बीच लोकप्रिय है। इसके बाद एक से दो वर्ष का फैलोशिप प्रोग्राम, जिसमें यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्ज एवं अपने क्षेत्र के विद्वान लोग आते हैं। इसके साथ बौद्धिक गोष्ठियां, सेमीनार आदि यहाँ चलते रहते हैं, जिसमें अपनेक्षेत्र के चुडान्त विद्वान एवं विषय विशेषज्ञ यहाँ पधारते हैं, बौद्धिक विमर्श होते हैं और विचार मंथन के साथ समाज राष्ट्र को दिशा देने वाली नीतियाँ तय होती हैं।

यहाँ का पुस्तकालय संस्थान की शान है, जो प्रातः नौ बजे से रात्रि सात बजे तक शोधार्थियों केलिए खुला रहता है। इसमें लगभग दो लाख पुस्तकें हैं औरइसके साथ समृद्ध ई-लाइब्रेरी, जिसमें विश्वभर की पुस्तकों एवं शोधपत्रों को एक्सेस किया जा सकता है। जब पढ़ते-पढ़ते थक जाएं तो तरोताजा होने के लिए पास ही एक कैंटीन और एककैफिटेरिया की भी व्यवस्था है। प्रकृति की गोद में बसा परिसर स्वयं में ही एक प्रशांतक ऊर्जा लिए रहता है, जिसमें टहलने मात्र से व्यक्ति तरोताजा अनुभव करता है। संस्थान की अपनी शोध पत्रिका सम्मर हिल रिव्यू है। यहाँ का अपना प्रकाशन भी है, जिसके प्रकाशनों का किसी भी बड़े पुस्तक मेले में अवलोकन किया जा सकता है।


चिनार एवं बांज के ऐतिहािसिक वृक्षों से सजा संस्थान का परिसर

परिसर में लाइब्रेरी के पीछे विशाल बाँज का पेड़ लगा है, जहाँ कभी कामना देवी का मंदिर था, जिसे अब पास की पहाड़ी में विस्थापित किया गया है। इसी के साथ दो भव्यमैपल पेड़ हैं, जो शिमला में रिज पर एक कौने में भी स्थित हैं। मौसम साफ होने पर इसके पास ही एक स्थान से दूर हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का अवलोकन किया जा सकता है, जहाँ इनकी ऊँचाई व नाम भी अंकित है। इसी के नीचे बहुत बड़ा बगीचा और पार्क है।उसके पार खेलने का बंदोवस्त है, जहाँ एक इंडोर स्टेडियम है। उसके आगेअंडरग्राउण्ड जेल है, जहाँ गाँधीजी को कुछ दिन नजरबंद किया गया था।

इसके साथ यहाँ का अपना समृद्धबोटेनिक्ल गार्डन है, जिसमें तैयार किए जा रहे फूलों के गमलों से पूरा परिसर शोभायमान और सुवासित रहता है। संस्थान में जल संरक्षण की बेहतरीन व्यवस्था है। मुख्य भवन की छत से गिरता बारिश का पानी सीधे छनकर लॉन के नीचे बने स्टोरेज टैंक में जाता है और इसका उपयोग फूलों, पौधों व लॉन की सिंचाई में किया जाता है।


रहने के लिए यहाँ परिसर में भव्य भवन हैं, जिनमें वेहतरीन कमरों की व्यवस्था है। भोजन के लिए पहाड़ी पर मेस है, जिसमें उम्दा नाश्ता, लंच और डिन्नर परोसा जाता है। यहीं आगंतुकों के लिए अतिथि गृह भी है। फिल्म देखने के लिए छोटा सा ऑडिटोरियम भी है। जरुरत का सामान खरीदने के लिए परिसर के नीचे बालुगंज में तमाम दुकानें हैं। यहाँ का कृष्णा स्वीट्सदूध-जलेबी के लिए प्रख्यात है। थोड़ी ही दूरी पर शिमला यूनिवर्सिटी है, जहाँ बस व पैदल मार्ग दोनों तरीकों से जाया जा सकता है। दोनों मार्ग घने देवदार, बुराँश व बाँज के जंगल से होकर गुजरते हैं।

यहाँ पर रुकने व अध्ययन के इच्छुक शोधार्थियों के लिए ऑनलाइन प्रवेश की सुविधा है। एक माह से लेकर दो साल तक इस सुंदर परिसर में गहन अध्ययन, चिंतन-मनन एवं सृजन के यादगार पल बिताए जा सकते हैं। हमें सौभाग्य मिला 2010,11 और 2013 में तीन वार एक-एक माह यहाँ रुकने का और अपने एसोशिएटशिप कार्य़क्रम पूरा करने का, जिसमें हमने अपने पीएचडी के विषय को गंभीरता एवं व्यापकता में एक्सप्लोअर किया। भारत भर से आए विद्वानों से चर्चा होती रही, फैलोज के साप्ताहिक सेमीनार में खुलकर भाग लिया और कई सारी नई चीजें सीखने को मिलीं। उस बक्त यहाँ के निर्देशक थे, प्रो. पीटर रोनाल्ड डसूजा, जिनके सज्जन एवं भव्य व्यक्तित्व, प्रखर विद्वता, बौद्धिक ईमानदारी, शोधधर्मिता एवं भावपूर्ण संवाद से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला, जिसे समरण करने पर मन आज भी पुलकित हो उठता है।

तारा देवी मंदिर एवं ट्रेकिंग मार्ग की जानकारी के लिए पढ़ें,  शिमला के बीहड़ वनों में एकाकी सफर का रोमांच

तत्कालीन संस्थान के निर्देशक प्रो. पीटर रोनाल्ड डसूजा के साथ

रविवार, 24 जनवरी 2021

शिमला के ट्रेकिंग ट्रेल्ज एवं दर्शनीय स्थल

 

शिमला के बीहड़ वन (तारा देवी रेंज)

हिमाचल प्रदेश की राजधानी के साथ शिमला का हिल स्टेशन के रुप में सदा से एक विशेष स्थान रहा है। हालाँकि बढ़ती आबादी, मौसम की पलटवार और गर्मियों में पानी की कमी के चलते यहाँ नई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है, लेकिन प्रकृति एवं रोमाँच प्रेमियों के लिए इस हिल स्टेशन में बहुत कुछ है, जो इसके भीड़ भरे बाजारों से दूर एक अलग दुनियाँ की सैर साबित होता है। यहाँ पर ऐसे ही कम प्रचलित ऑफ-बीट किंतु दर्शनीय स्थलों की चर्चा की जा रही है।

        जब अंग्रेज घोड़ों पर सवार होकर इस इलाके से 1815 के आसपास गुजरे थे, तो देवदार से घिरे इस स्थल को देखकर उन्हें इँग्लैंड-स्कॉटलैंड के अपनी ठण्डी आवोहवा वाले क्षेत्रीय पहाड़ों की याद आई थी। और इसे अपने आवास स्थल के रुप में विकसित करने की योजना बनी। तब यहाँ चोटी पर मात्र जाखू मंदिर था और आस पास कुछ बस्तियाँ।सन 1830 तक यहाँ 50 घर आबाद हो चुके थे और आबादी मुश्किल से 600 से 800 की थी।धीरे-धीरे यह एक हिल स्टेशन और गर्मियों में समर केपिटल के नाम से प्रख्यात हुई। उस समय श्यामला माता (काली माता) के मंदिर के रुप में इस इलाके का नाम शिमला पड़ा। आज काली बाड़ी के रुप में इसके दर्शन रिज से थोड़ा नीचे किए जा सकते हैं, जहाँ से शिमला की घाटियों व सुदूर पर्वतश्रृंखलाओं का विहंगावलोकन किया जा सकता है। यहाँ से सूर्यास्त का नजारा भी दर्शनीय रहता है।

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला

ब्रिटिश काल में वायसराय के रहने के लिए शिमला की एक पहाड़ी पर वायसराय लॉज का निर्माण हआ, जिसमें सबसे पहले पानी व बिजली की व्यवस्था 1888 तक हो जाती है। इसे बाद में राष्ट्रपति भवन और आज भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी) के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त उस समय के स्थापित प्रख्यात समारक भवन हैंकैनेडी हाउस,(ओवरोयसेसिल होटल,विधान सभा भवन, शिमला रेल्वे बोर्ड बिल्डिंगआदि। रिज के पास चर्च, गेयटी थिएटर, स्केंडल प्वाइंट, टाउन हॉल,जनरल पोस्ट ऑफिस आदि भवन एवं स्थल अंग्रेजों की विरासत की याद दिलाते हैं। राह में नीचे घाटी की तली में अन्नाडेल ग्राउण्ड भी इसका एक समारक है, जिसकी देखभाल अभी सेना कर रही है। इसी दौर मेंसन 1898 में 102 सुरंगों तथा 18 स्टेशनों के साथ भारत का ऐतिहासिक पहाडी नेरो गेज रेल्वे ट्रेक बनता है, जो आज सांस्कृतिक धरोहर के रुप में यूनेस्को हेरिटेज साइट में शामिल है।काल्का से शिमला तक पहाडियों के बीच लुका छिपी करता इसका सफर बेहद रोमाँचक और यादगार रहता है।


शिमला के दर्शनीय स्थलों में सबसे ऊँचे पहाड़ की चोटी पर जाखू मंदिर स्थित है, जिसके दर्शन शिमला के लगभग हर कौने से किए जा सकते हैं। रिज व माल रोड़ से तो इसके दर्शन एक दम प्रत्यक्ष ही रहते हैं। देवदार के गंगनचूम्बी वृक्षों से भी उँचे108 फीट ऊँचे हनुमानजी जैसे अपनी विराट उपस्थिति के साथ सबको अनुग्रहित करते प्रतीत होते हैं।


जाखू में बजरंगवली की 108 फीट ऊंची प्रतिमा

रिज से यहाँ तक पैदल भी जाया जा सकता है और टेक्सी से भी। शिमला के प्रवेश द्वार पर दायीं ओर संकटमोचन मंदिर है, जिसे उत्तर भारत के प्रख्यात हनुमान भक्त एवं महान संत नीम करौरी बाबा के आशीर्वाद स्वरुप बनाया गया था। शिमला के उस पार तारा देवी हिल्ज पर माता तारा देवी मंदिर भी अपनी उपस्थिति से श्रद्धालुओं को श्रद्धानत करता है, जिसका नजारा रात को टिमटिमाती रोशनी में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराता है।

बस से सीधा इसके प्राँगण तक शोघी से होकर जाया जा सकता है, लेकिन तारा देवी तक सीधे संकटमोचन मंदिर के पास से पैदल ट्रेकिंग मार्ग भी है। तारा देवी मंदिर से सामने अलग अलग दिशाओं में कसौली, चैयल तथा शिमला की पहाडियों का विहंगावलोकन किया जा सकता है। हर रविवार को यहाँ वृहद भण्डारा लगता है, जिसमें स्वादिष्ट भोजन-प्रसाद का आनन्द लिया जा सकता है। प्रायः लोग तारा देवी से बापसी में नीचे उतर कर प्राचीन शिव मंदिर आते हैं, जो तारा देवी से महज 1-2 किमी नीचे बाँज के घने जंगल में एकाँत-शांत जगह पर स्थित है। यहाँशीतल जल का चश्मा इसके परिसर में है तथा साथ ही पास अखण्ड धुनी जलती रहती है, जहाँ कुछ पल गहन चिंतन-मनन एवं आंतरिक शांति-सुकून के बिताए जा सकते हैं। यहां से सीधे जंगल से होकर 4-5 किमी लम्बा ट्रेकिंग मार्ग सीधा संकट मोचन के पास मुख्य मार्ग तक आता है। रास्ता घने बांज, देवदार, चीड़ के वनों से होकर गुजरता है। बीहड़ रास्ते में जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है, अतः ग्रुप में ही इस मार्ग की ट्रेकिंग उचित रहती है।

बांज के वनों के बीच शिमला के पैदल मार्ग

शिमला विश्वविद्यालय का परिसर भी एक पहाड़ी के ऊपर बसा है, जहाँ बस अड्डे से बसें चलती रहती हैं। एडवांस्ड स्टडी से होकर भी यहाँ तक पैदल आया जा सकता है। इसका पक्का रास्ता देवदार, बाँज और बुराँश के घने जंगल से होकर गुजरता है, जिसमें पैदल या वाहन में सफर काफी रोमाँचक रहता है। सड़क के नीचे समानान्तर रेल्वे ट्रैक है, जिसमें छुकछुक करपहाड़ी की ओट में लुकाछिपी करती रेल का नजारा दर्शनीय रहता है, जो कभी जंगल के बीच सुरंग में गायब हो जाती है, तो कभी अगली सुरंग में प्रकट हो जाती है। विश्वविद्याल के आगे एक छोर पर पीटर हिल्ज पड़ती है। इस एकांत स्थल पर एक रेस्टोरेंट भी है, यहाँ ट्रेकिंग व नाइट हाल्ट आदि की व्यवस्था है। इस छोर से नीचे घाटी के दर्शन भी अवलोकनीय रहते हैं।

यूनिवर्सिटी के नीचे सम्मर हिल रेल्वे स्टेशन है। जहाँ से पैदल ट्रेकिंग करते हुए बालुगंज पहुँचा जा सकता है। देवदार की छाया में बने पैदल रास्तों में शीतल जल की बाबडियाँ पड़ती हैं। गर्मियों के जल संकट में शिमला के वन्यप्रदेश में फैली ऐसी बाबड़ियाँ निवासियों के लिए पर्याप्त राहत देती हैं। मुख्य मार्ग पर बालुगंज में जलेबी व पकौड़े का लुत्फ उठाया जा सकता है। यहीं से सीधे ऊपर कामना देवी मंदिर का रास्ता जाता है। लगभग 2 किमी पैदल ट्रेकिंग करते हुए यहाँ पहुंचा जा सकता है। रास्ते में कुछ सरकारी मकान हैं, तो कुछएडवांस्ड स्टडी के क्वार्टर भी। लेकिन पहाड़ी के ऊपर सिर्फ मंदिर पड़ता है, जहाँ से एक ओर शिमला का नजारा तो दूसरी ओर सोलन साइड की घाटियाँ व पहाड़ियों का अवलोकन किया जा सकता है।

बालुगंज से पुराना बस अड्डा होते हुए शिमला के दूसरे छोर पर पडती है पंथा घाटी, जो शिमला का ही विस्तार है। यहाँ से नीचे 4-5 किमी की दूरी पर एपीजी शिमला युनिवर्सिटी का कैंप्स है, जिसके बारे में यहाँ से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। यहीं से सड़क तारा देवी हिल की परिक्रमा करते हुए शोघी पहुँचती है, जिसे वाइपास रोड के रुप  में विकसित किया गया है। फलों के सीजन में अप्पर शिमला के फलों से लदे ट्रक प्रायः इसी रुट से चण्डीगढ़ व दिल्ली की सब्जी मंडियों तक जाते हैं।

पंथा घाटी से ही पहाड़ी के दक्षिण ओर साइँ मंदिर (पुजारली) का रास्ता जाता है, जिसे शिमला का छिपा हुआ नगीना कहा जा सकता है। एकाँत स्थल पर बसे इस पाँच मंजिले मंदिर के सामने बहुत बड़ा मैदान है, जहाँ से उस पार कुफरी, जुन्गा व चैयल की पहाडियों के दर्शन किए जा सकते हैं। यहाँ पर भी सनसेट का नजारा अलौकिक सौंदर्य़ लिए रहता है, जिसके प्रकाश में तारा देवी की पहाड़ियां विशेष रुप से आलोकित दिखती हैं।

पंथा घाटी का विहंगम दृश्य

फिर शिमला में खरीददारी के शौकीनों के लिए मालरोड़ और लक्कड़ बाजार में बेहतरीन व्यवस्था है। यहाँ हर तरह के सामान, पहाड़ी गिफ्ट मिलते हैं। साथ ही शिमला के आसपास उगने वाले मौसमी फल भी एक छोर पर सजे मिलेंगे। यहाँ का कॉफी हाउस मशहूर है। रिज पर आशियाना रेस्टोरेंट कैंडल लाइट डिन्नर के लिए सर्वथा उपयुक्त रहता है। बाकि रिज व लक्कड़ बाजार के आसपास स्ट्रीट फुड़ का स्वाद भी लिया जा सकता है। ड्राई फ्रूट्स व स्थानीय हैंडिक्राफ्ट की बेहतरीन दुकानें यहाँ मिल जाएंगी, जहाँ से कुछ यादगार गिफ्ट खरीदे जा सकते हैं। भुट्टिको बुनकरों के केंद्र सेअपने मनमाफिक पहाड़ी शाल, टोपी, मफ्फलर आदि उत्पाद देखे जा सकते हैं। लक्कड़ बाजार के नीचे देश का एकमात्र ऑपन-एअरस्केटिंग रिंग स्थित है, जहाँ सर्दियों में जमीं बर्फ पर कुछ शुल्क के साथआइस-स्केटिंग का आनन्द लिया जा सकता है।

ऐतिहासिक रिज़ मैदान, शिमला


रिज के मैदान को शिमला में शाम की चहल-पहल का केंद्र माना जा सकता है, जो पर्यटकों के बीच भी खासा लोकप्रिय रहता है। यहाँ बच्चों-बुढ़ों की घुड़सवारी, ऐतिहासिक समारकों की पृष्ठभूमि में यादगार फोटोग्राफी के नजारे सर्वसुलभ रहते हैं। रिज के पूर्व में ऊँचाई पर स्टेज है, जो ऐतिहासिक संबोधनों का साक्षी रहा है और प्राँत के बड़े आयोजन इसी रिज पर होते हैं। रिज के एक और इंदिरा गाँधी की प्रतिमा है तो दूसरी ओर डॉ. यशवन्त सिंह परमार की। मालूम हो कि डॉ. यशवन्त परमार हिंप्र के पहले मुख्यमंत्री रहे, जिनके कुशल एवं दूरदर्शी नेतृत्व के कारण उन्हें हिमाचल का निर्माता माना जाता है। हिमाचल को एक विकसित पहाड़ी राज्य के रुप में खड़ा करने में इनका उल्लेखनीय योगदान रहा।

रिज के नीचे ही पानी के वृहद टैंक मौजूद हैं, जिनसे शिमला शहर के लिए पानी सप्लाई होता है। रिज के नीचे गेयटी थिएटर के सामने ही यहाँ का लेटेस्ट  पुस्तकों से समृद्ध मिनेरवा बुक हाऊस है, जहाँ पर पुस्तक प्रेमी अपने पसंद की पुस्तकों का अवलोकन कर सकते हैं। इसी तरह लोअर बाजार में बंसल बुक डिपो, ज्ञान भण्डार तथा लक्कड़ बाजार में स्टुडेंट स्टोर आदि पुस्तक केंद्र हैं। पुस्तक प्रेमियों के लिए रिज पर चर्च के सामने स्टेट लाइब्रेरी की भी व्यवस्था है।

माल रोड़ से नीचे लोअर बाजार से होते हुए एक दम नीचे पुराना बस अड्डा पड़ता है, जहाँ से नए बस अड्डा आईएसबीटी टुटी कण्डी लिए कुछ मिनट परबसें चलती रहती हैं।

आईएसबीटी टुटीकण्डी बस स्टैंड, शिमला

यहाँ से अपने गन्तव्य के लिए ऑर्डिनरी से लेकर डिलक्स, ऐसी, एवं वोल्बो बसें ली जा सकती हैं। हिमाचल परिवहन की ऑनलाइन बुकिंग  की सुबिधा का भी घर बैठे लाभ लिया जा सकता है। रेल्वे सफर के लिए सम्मर हिल या पुराने बस अड्डे के पास के मुख्य रेल्वे स्टेशन से चढ़कर काल्का तक रेल यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा जुब्बड़हट्टी में है, जो शिमला से 22 किमी की दूरी पर है।

इस तरह दो-तीन दिनों में शिमला के मुख्य स्थलों की सैर की जा सकती है। सामान्य यात्रियों के लिए मार्च से जून तथा सितम्बर से नवम्बर माह उपयुक्त माने जाते हैं। गर्मियों में हालाँकि भीड़ अधिक रहती है, लेकिन शिमला का असली आनन्द तो बरसात में रहता है। अगस्त के माह में जब आसमान बादलों से घिरे रहते हैं, तो एक पहाड़ी से दूसरी पहाडी की ओर इसके फाहों के बीच सफर मनमोहक रहता है। कभी ये बादल पूरी तरह से यात्रियों को अपने आगोश में ले लेते हैं तो कभी पूरी घाटी इनसे पट जाती है। पहाडों की चोटी से इनका नजारा पैसा बसूल ट्रिप साबित होता है। (इस बर्ष 2023 की बरसात में हुई त्रास्दी के चलते, उपरोक्त धारणा में कुछ बदलाव आ गया है। जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के साथ मानवीय छेड़खान के चलते, प्रकृति की गोद में आनन्द के मायने बदल रहे हैं, यह विचारणीय व चिंता का विषय है।) 

बर्फ के शौकीनों के लिए सर्दी भी कम रोमाँचक नहीं रहती।लेखकों, विचारकों एवं कवियों के लिए शिमला सृजन की ऊर्बर भूमि साबित होती है और कई लेखक तो यहाँ इसी उद्देश्य से डेरा जमाए रहते हैं।

यदि समय हो तो शिमला के आसपास घूमने के कई दर्शनीय स्थल हैं, जहाँ ग्रामीण परिवेश के साथ यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक तथा आध्यात्मिक विशेषताओं से भी रुबरु हुआ जा सकता है। इसके लिए आप पढ़ सकते हैं, शिमला के आस-पास के दर्शनीय स्थल।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

वर्ष-2020 के ऐतिहासिक-युगान्तरीय पल

अस्पताल की पाठशाला में जीवन का तत्व-बोध

वर्ष 2020 इतिहास के पन्नों में एक यादगार वर्ष के रुप में अंकित रहेगा, जिसमें इंसान एवं मानवीय सभ्यता कई ऐतिहासिक एवं युगान्तरीय घटनाओं की साक्षी बनी। घटनाओं का क्रम जिस तरह से व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं समूचे विश्व को मंथता हुआ आगे बढ़ा, इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि ये ईश्वरीय विधान था, महाकाल की योजना का हिस्सा था, प्रकृति का अपने बच्चों की नादानियों के लिए कठोर सबक भरा उपचार था, जिसमें सभी को गहन आत्मावलोकन का अवसर मिला, अपने भूत की भूल-चूकों को सुधारने का संयोग बना और बेहतरीन भविष्य के लिए सरंजाम जुटाने की समझ मिली।

हमारी भी लम्बे अर्से की गुफा में प्रवेश करने व धुनी रमा कर रहने की इच्छा इसमें पूरी हुई। हिमालय यात्रा के दौरान प्रायः पर्वत कंदराओं को देखकर यह इच्छा बलवती होती थी। कोरोना काल के बीच अस्पताल की परिक्रमा, भर्ती से लेकर तमाम तरह के अनुभवों से रुबरु होते रहे, जो लगता है कोरोना काल के बीच अपनी पूर्णाहुति की ओर अग्रसर है।

20 फरवरी 2020 के आसपास लक्ष्ण शुरु हो गए थे। बहाना गंगाजी के बर्फीले जल में डुबकी रहा। लेकिन उसके पिछले कई माह से चल रही खाँसी व बदन में टूटन अब चरम पर थी। उपचार के नाम पर कोई खाँसी के नाम पर एलर्जी की दबा देता रहा तो कोई बुखार की। अंततः पीठ में व साइड पसलियों में ऐसा दर्द उठा कि चलना फिरना दुभर हो गया, रात को करबट बदलना मुश्किल हो गया। इसके लिए पेन किल्लर मल्हम, स्प्रै व दबाईयों से लेकर एंटिवायोटिक के डोज चलते रहे। इसी बीच मार्च माह में कोविड-19 का कोरोना काल शुरु हो चुका था। 20 अप्रैल तक आते-आते दो माह तक जब सारे उपचार विफल हुए तो सीटी स्कैन हुआ और मर्ज पकड़ में आया। इसका शुरुआती उपचार ऐसे अनाड़ी ढंग से हुआ कि दबाईयों के ऑवरडोज में अस्पताल भर्ती होना पड़ा।

यहाँ बात स्पष्ट हुई कि रोग का उपचार तब तक निष्प्रभावी रहता है, जब तक कि सही डायग्नोज न हो। अन्यथा शरीर दवाईयों की प्रयोगशाला बन जाता है और ऐसे में चल रहे एलौपेथिक उपचार और किन रोगों का कारण बनेंगे, कह नहीं सकते।

अप्रैल-मई के लगभग दो सप्ताह तक अस्पताल के वार्ड में ऐसा गुफा प्रवेश मिला, जहाँ मात्र एक व्यक्ति सेवा-सुश्रुषा के लिए साथ में था और चारों ओर था मरीजों का हुजूम, जिन्हें देखकर स्वस्थ व्यक्ति भी बिमार पड़ जाए। इनके बीच बिमारी को लेकर चिंता-भय एवं उद्गिनता (हेल्थ एंग्जायटी) के तमाम तरह के अनुभवों से गुजरते रहे, जिसे कोई भुगतभोगी अच्छे से समझ सकता है। बिमारी का आलम कुछ ऐसा रहा कि जीवन से लगभग मोहभंग की स्थिति आ गई थी। यकायक अपनों से बिछुडने की वेदना अंदर कहीं गहरे कचोट रही थी। बाहरी दुनियाँ से संपर्क लगभग कट चुका था, जीवन के मायने, अर्थ सब धुँधले हो चले थे। ऐसे में मोबाईल में तक झाँकने का मन नहीं करता था।

अप्रैल-मई माह में अस्पताल की गुफा में बिताए दो सप्ताह के अनुभवों में, कुछ पाठकों से शेयर करना चाहूँगा, जो शायद उनके कभी काम आएं। जो कभी बिमार न पड़ा हो और जो अस्पताल के जीवन से अधिक परिचित न हो, उसके लिए पहली बार भर्ती होना एक घबराहट भरा अनुभव रहता है। डायग्नोज से लेकर उपचार की प्रक्रिया के तहत हाथ की नसों से सीरिंज से खून का निकाला जाना, हाथ या बाँह की नसों में कैनूला डालकर ड्रिप लगाना या इंजेक्शन देना, शुरु में भयावह प्रतीत होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे समझ आता है कि पूरा अस्पताल, इसके डॉक्टर्ज, सिस्टर्ज और पूरी टीम रोगी को जल्द से जल्द ठीक कर रोग मुक्त करने में लगे होते हैं। फिर जब व्यक्ति की स्थिति में थोड़ा सा भी सुधार शुरु हो जाता है, तो उसकी घबराहट कम हो जाती है और एक नया विश्वास जगता है।

साथ ही समझ आता है कि अस्पताल गाड़ियों को दुरुस्त करने वाले एक गैराज की तरह है जहाँ टूटी-फूटी गाड़ियों ठीक होने के लिए आती हैं और एक्सपर्ट मैकेनिक कुछ मिनट, घंटे या दिनों में उनके खराब या टूटे पूर्जों या हिस्सों की मुरम्मत कर या उन्हें बदलकर नया बना देता है और फिर गाड़ी नए सिरे से सड़क पर सपरट दौड़ने लगती है। ऐसे ही व्यक्ति अस्पताल में कुछ दिन सप्ताह भर्ती होकर भला चंगा हो जाता है और फिर जीवन की गाड़ी अपने ढर्रे पर चल पड़ती है। फिर व्यक्ति अस्पताल के भयावह अंधकार से भरे पलों को यादकर आश्चर्य करता है कि वह इनके पार हो चुका है और अपने अनुभवों को किवदंतियों की भांति सुनाने व चर्चा का आनन्द लेता है। यही जीवन का रंगमंच है, जिसमें व्यक्ति न जाने कितनी भूमिकाओं में हंसते-रोते हुए अभिनय करता हुआ आगे बढ़ता है।

अस्पताल में हर रोगी अपने कष्टों से उबरने के लिए जूझ रहा होता है और चारों ओर नित नए मरीजों का हुजूम जुड़ रहा होता है, जिन्हें देखकर कल्पना के घोड़े का यदा-कदा नकारात्मकता के भंवर में उलझना स्वाभाविक होता है। इन्हीं भंवरों से दो-चार होते हुए हमारी पहली भर्ती का काल पूरा होता है और फिर 6-7 माह तक दवाओं का कोर्स उचित पथ्य-कुपथ्य के साथ चलता रहा। माह में दो-तीन चक्र अस्पताल के लगते रहे। इसी परिक्रमा को नियति द्वारा निर्धारित 2020 का ट्रैब्ल एडवेंचर मानते हुए अपने घूमने के शौक को पूरा करते रहे।

इसी बीच हमारे गाल-ब्लैडर में स्टोन (पिताशय की पत्थरी) डिटेक्ट हो चुका था। एक दो स्टोन होते तो दवा दारू से ठीक हो जाते, यहाँ तो पूरी थैली ही पत्थरियों से भरी हुई मिली। भरने का अर्थ हुआ कि यह प्रक्रिया कई वर्षों से चल रही थी। इसका संकेत भी कभी नहीं मिल पाया, जो इसका समय रहते उपचार कर पाते। जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब ऑपरेशन ही उपचार था। इसे प्रारब्ध का अटल विधान मानते हुए मन को इसके लिए तैयार करते रहे।

दिसम्बर माह के उत्तरार्ध में सर्जरी तय होती है। इस तरह की शल्य से हम पहली बार रुबरु होने जा रहे थे। अतः मन का एक बार घबराना स्वाभाविक था। लेकिन हम मानसिक रुप से तैयार हो चुके थे, क्योंकि और कोई विकल्प था नहीं। चारों ओर इस तरह के कितने ऑपरेशन के अनुभव के किस्से हम सुन चुके थे, जिनसे मन का ढाढ़स बनता गया। यहाँ मैं आधुनिक चिकित्सा की तारीफ के साथ हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि इसने दर्द के प्रबन्धन (pain management) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिसमें रोगी को ऑपरेशन के दौरान पता भी नहीं चलता कि हुआ क्या है, इतनी सफाई के साथ ऑपरेशन हो जाता है। इसके बाद भी घाबों के भरने तक दर्द निवारक दबाईयाँ रोगी को असह्य पीड़ा से बचाए रखती हैं। बाकि चिकित्सकों का संवेदनशील रवैया रोगी को हर कदम पर मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक सहारा देता है। वर्ष 2020 के अस्पताल के अनुभवों के बाद हमें यह बात और गहराई से समझ आई कि एक चिकित्सक रोगी के लिए ईश्वर के माध्यम (Next to God) की भूमिका में होता है, जिसपर पूरा विश्वास कर  रोगी निश्चिंत होता है तथा अपने मन के संशयों व प्रश्नों की खुलकर चर्चा कर अपने समाधान पाता है।

ऑपरेशन के पहले और बाद इससे जुड़े भय एवं उद्गिनता में सारा खेल मन का होता है। मन बेसिर पैर की कुकल्पानओं एवं आशंकाओं में उलझता रहता है, जो कई बार ऑपरेशन के भय के भूत को इतना विकराल बना देता है कि ऑपरेशन से पहले ही रोगी अनावश्यक मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा होता है। हालाँकि मन के इस भय भूत से निपटने के तरीके रोगी अंदर से ही ईजाद करता है। सर्वन्तर्यामी ईश्वर-अराध्य का समरण जिसमें अहम् होता है। इस बीच बेहतरीन पुस्तकों का स्वाध्याय बहुत सहायक सिद्ध होता है, विशेष रुप से आध्यात्मिक पुस्तकों का। ये देहबोध से व्यक्ति को ऊपर उठाने में मदद करती हैं और सकारात्मक सोच के साथ सशक्त मनोभूमि को तैयार करती हैं।

यह समय आत्मचिंतन के लिए भी श्रेष्ठ होता है। इस दौरान यह बखूबी समझ आता है कि स्वस्थ व निरोग जीवन के लिए जीवनशैली का सुधार कितना आवश्यक है और इस दिशा में आगे क्या किया जाना है। एक तरह से पूरे जीवन का ही मंथन तथा चित्त प्रक्षालन ऐसे दौर में हो रहा होता है और जीवन का तत्वदर्शन गहरे से समझ आता है। जिन बातों को हम पुस्तकें पढ़कर, गुरुजनों द्वारा बारम्बार समझाए जाने के बावजूद वर्षों, दशकों से नहीं समझ पा रहे होते, वे अल्प काल में ही ह्दयंगम हो जाती हैं।

इस तरह अस्पताल एक तरह से जीवन की एक ऐसी पाठशाला सावित होता है, जहाँ रोगी अपने उपचार के साथ जीवंत एवं गहन प्रशिक्षण से होकर गुजरता है। भगवान करे कि किसी को जीवन के तत्वदर्शन को समझने के लिए ऐसी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े। वह स्वस्थ एवं निरोग जीवन के रहस्य सामान्य अवस्था में ही समझे, सीखे व जीए। और प्रारब्धवश यदि कहीं ऐसे दौर से गुजरना पड़े, तो साहसपूर्वक इसका सामना करे और जीवन के तत्वदर्शन को अल्पकाल में ही आत्मसात कर आगे अधिक होशोहवाश में जीए।

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...