रविवार, 24 जनवरी 2021

शिमला के ट्रेकिंग ट्रेल्ज एवं दर्शनीय स्थल

 

शिमला के बीहड़ वन (तारा देवी रेंज)

हिमाचल प्रदेश की राजधानी के साथ शिमला का हिल स्टेशन के रुप में सदा से एक विशेष स्थान रहा है। हालाँकि बढ़ती आबादी, मौसम की पलटवार और गर्मियों में पानी की कमी के चलते यहाँ नई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है, लेकिन प्रकृति एवं रोमाँच प्रेमियों के लिए इस हिल स्टेशन में बहुत कुछ है, जो इसके भीड़ भरे बाजारों से दूर एक अलग दुनियाँ की सैर साबित होता है। यहाँ पर ऐसे ही कम प्रचलित ऑफ-बीट किंतु दर्शनीय स्थलों की चर्चा की जा रही है।

        जब अंग्रेज घोड़ों पर सवार होकर इस इलाके से 1815 के आसपास गुजरे थे, तो देवदार से घिरे इस स्थल को देखकर उन्हें इँग्लैंड-स्कॉटलैंड के अपनी ठण्डी आवोहवा वाले क्षेत्रीय पहाड़ों की याद आई थी। और इसे अपने आवास स्थल के रुप में विकसित करने की योजना बनी। तब यहाँ चोटी पर मात्र जाखू मंदिर था और आस पास कुछ बस्तियाँ।सन 1830 तक यहाँ 50 घर आबाद हो चुके थे और आबादी मुश्किल से 600 से 800 की थी।धीरे-धीरे यह एक हिल स्टेशन और गर्मियों में समर केपिटल के नाम से प्रख्यात हुई। उस समय श्यामला माता (काली माता) के मंदिर के रुप में इस इलाके का नाम शिमला पड़ा। आज काली बाड़ी के रुप में इसके दर्शन रिज से थोड़ा नीचे किए जा सकते हैं, जहाँ से शिमला की घाटियों व सुदूर पर्वतश्रृंखलाओं का विहंगावलोकन किया जा सकता है। यहाँ से सूर्यास्त का नजारा भी दर्शनीय रहता है।

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला

ब्रिटिश काल में वायसराय के रहने के लिए शिमला की एक पहाड़ी पर वायसराय लॉज का निर्माण हआ, जिसमें सबसे पहले पानी व बिजली की व्यवस्था 1888 तक हो जाती है। इसे बाद में राष्ट्रपति भवन और आज भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी) के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त उस समय के स्थापित प्रख्यात समारक भवन हैंकैनेडी हाउस,(ओवरोयसेसिल होटल,विधान सभा भवन, शिमला रेल्वे बोर्ड बिल्डिंगआदि। रिज के पास चर्च, गेयटी थिएटर, स्केंडल प्वाइंट, टाउन हॉल,जनरल पोस्ट ऑफिस आदि भवन एवं स्थल अंग्रेजों की विरासत की याद दिलाते हैं। राह में नीचे घाटी की तली में अन्नाडेल ग्राउण्ड भी इसका एक समारक है, जिसकी देखभाल अभी सेना कर रही है। इसी दौर मेंसन 1898 में 102 सुरंगों तथा 18 स्टेशनों के साथ भारत का ऐतिहासिक पहाडी नेरो गेज रेल्वे ट्रेक बनता है, जो आज सांस्कृतिक धरोहर के रुप में यूनेस्को हेरिटेज साइट में शामिल है।काल्का से शिमला तक पहाडियों के बीच लुका छिपी करता इसका सफर बेहद रोमाँचक और यादगार रहता है।


शिमला के दर्शनीय स्थलों में सबसे ऊँचे पहाड़ की चोटी पर जाखू मंदिर स्थित है, जिसके दर्शन शिमला के लगभग हर कौने से किए जा सकते हैं। रिज व माल रोड़ से तो इसके दर्शन एक दम प्रत्यक्ष ही रहते हैं। देवदार के गंगनचूम्बी वृक्षों से भी उँचे108 फीट ऊँचे हनुमानजी जैसे अपनी विराट उपस्थिति के साथ सबको अनुग्रहित करते प्रतीत होते हैं।


जाखू में बजरंगवली की 108 फीट ऊंची प्रतिमा

रिज से यहाँ तक पैदल भी जाया जा सकता है और टेक्सी से भी। शिमला के प्रवेश द्वार पर दायीं ओर संकटमोचन मंदिर है, जिसे उत्तर भारत के प्रख्यात हनुमान भक्त एवं महान संत नीम करौरी बाबा के आशीर्वाद स्वरुप बनाया गया था। शिमला के उस पार तारा देवी हिल्ज पर माता तारा देवी मंदिर भी अपनी उपस्थिति से श्रद्धालुओं को श्रद्धानत करता है, जिसका नजारा रात को टिमटिमाती रोशनी में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराता है।

बस से सीधा इसके प्राँगण तक शोघी से होकर जाया जा सकता है, लेकिन तारा देवी तक सीधे संकटमोचन मंदिर के पास से पैदल ट्रेकिंग मार्ग भी है। तारा देवी मंदिर से सामने अलग अलग दिशाओं में कसौली, चैयल तथा शिमला की पहाडियों का विहंगावलोकन किया जा सकता है। हर रविवार को यहाँ वृहद भण्डारा लगता है, जिसमें स्वादिष्ट भोजन-प्रसाद का आनन्द लिया जा सकता है। प्रायः लोग तारा देवी से बापसी में नीचे उतर कर प्राचीन शिव मंदिर आते हैं, जो तारा देवी से महज 1-2 किमी नीचे बाँज के घने जंगल में एकाँत-शांत जगह पर स्थित है। यहाँशीतल जल का चश्मा इसके परिसर में है तथा साथ ही पास अखण्ड धुनी जलती रहती है, जहाँ कुछ पल गहन चिंतन-मनन एवं आंतरिक शांति-सुकून के बिताए जा सकते हैं। यहां से सीधे जंगल से होकर 4-5 किमी लम्बा ट्रेकिंग मार्ग सीधा संकट मोचन के पास मुख्य मार्ग तक आता है। रास्ता घने बांज, देवदार, चीड़ के वनों से होकर गुजरता है। बीहड़ रास्ते में जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है, अतः ग्रुप में ही इस मार्ग की ट्रेकिंग उचित रहती है।

बांज के वनों के बीच शिमला के पैदल मार्ग

शिमला विश्वविद्यालय का परिसर भी एक पहाड़ी के ऊपर बसा है, जहाँ बस अड्डे से बसें चलती रहती हैं। एडवांस्ड स्टडी से होकर भी यहाँ तक पैदल आया जा सकता है। इसका पक्का रास्ता देवदार, बाँज और बुराँश के घने जंगल से होकर गुजरता है, जिसमें पैदल या वाहन में सफर काफी रोमाँचक रहता है। सड़क के नीचे समानान्तर रेल्वे ट्रैक है, जिसमें छुकछुक करपहाड़ी की ओट में लुकाछिपी करती रेल का नजारा दर्शनीय रहता है, जो कभी जंगल के बीच सुरंग में गायब हो जाती है, तो कभी अगली सुरंग में प्रकट हो जाती है। विश्वविद्याल के आगे एक छोर पर पीटर हिल्ज पड़ती है। इस एकांत स्थल पर एक रेस्टोरेंट भी है, यहाँ ट्रेकिंग व नाइट हाल्ट आदि की व्यवस्था है। इस छोर से नीचे घाटी के दर्शन भी अवलोकनीय रहते हैं।

यूनिवर्सिटी के नीचे सम्मर हिल रेल्वे स्टेशन है। जहाँ से पैदल ट्रेकिंग करते हुए बालुगंज पहुँचा जा सकता है। देवदार की छाया में बने पैदल रास्तों में शीतल जल की बाबडियाँ पड़ती हैं। गर्मियों के जल संकट में शिमला के वन्यप्रदेश में फैली ऐसी बाबड़ियाँ निवासियों के लिए पर्याप्त राहत देती हैं। मुख्य मार्ग पर बालुगंज में जलेबी व पकौड़े का लुत्फ उठाया जा सकता है। यहीं से सीधे ऊपर कामना देवी मंदिर का रास्ता जाता है। लगभग 2 किमी पैदल ट्रेकिंग करते हुए यहाँ पहुंचा जा सकता है। रास्ते में कुछ सरकारी मकान हैं, तो कुछएडवांस्ड स्टडी के क्वार्टर भी। लेकिन पहाड़ी के ऊपर सिर्फ मंदिर पड़ता है, जहाँ से एक ओर शिमला का नजारा तो दूसरी ओर सोलन साइड की घाटियाँ व पहाड़ियों का अवलोकन किया जा सकता है।

बालुगंज से पुराना बस अड्डा होते हुए शिमला के दूसरे छोर पर पडती है पंथा घाटी, जो शिमला का ही विस्तार है। यहाँ से नीचे 4-5 किमी की दूरी पर एपीजी शिमला युनिवर्सिटी का कैंप्स है, जिसके बारे में यहाँ से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। यहीं से सड़क तारा देवी हिल की परिक्रमा करते हुए शोघी पहुँचती है, जिसे वाइपास रोड के रुप  में विकसित किया गया है। फलों के सीजन में अप्पर शिमला के फलों से लदे ट्रक प्रायः इसी रुट से चण्डीगढ़ व दिल्ली की सब्जी मंडियों तक जाते हैं।

पंथा घाटी से ही पहाड़ी के दक्षिण ओर साइँ मंदिर (पुजारली) का रास्ता जाता है, जिसे शिमला का छिपा हुआ नगीना कहा जा सकता है। एकाँत स्थल पर बसे इस पाँच मंजिले मंदिर के सामने बहुत बड़ा मैदान है, जहाँ से उस पार कुफरी, जुन्गा व चैयल की पहाडियों के दर्शन किए जा सकते हैं। यहाँ पर भी सनसेट का नजारा अलौकिक सौंदर्य़ लिए रहता है, जिसके प्रकाश में तारा देवी की पहाड़ियां विशेष रुप से आलोकित दिखती हैं।

पंथा घाटी का विहंगम दृश्य

फिर शिमला में खरीददारी के शौकीनों के लिए मालरोड़ और लक्कड़ बाजार में बेहतरीन व्यवस्था है। यहाँ हर तरह के सामान, पहाड़ी गिफ्ट मिलते हैं। साथ ही शिमला के आसपास उगने वाले मौसमी फल भी एक छोर पर सजे मिलेंगे। यहाँ का कॉफी हाउस मशहूर है। रिज पर आशियाना रेस्टोरेंट कैंडल लाइट डिन्नर के लिए सर्वथा उपयुक्त रहता है। बाकि रिज व लक्कड़ बाजार के आसपास स्ट्रीट फुड़ का स्वाद भी लिया जा सकता है। ड्राई फ्रूट्स व स्थानीय हैंडिक्राफ्ट की बेहतरीन दुकानें यहाँ मिल जाएंगी, जहाँ से कुछ यादगार गिफ्ट खरीदे जा सकते हैं। भुट्टिको बुनकरों के केंद्र सेअपने मनमाफिक पहाड़ी शाल, टोपी, मफ्फलर आदि उत्पाद देखे जा सकते हैं। लक्कड़ बाजार के नीचे देश का एकमात्र ऑपन-एअरस्केटिंग रिंग स्थित है, जहाँ सर्दियों में जमीं बर्फ पर कुछ शुल्क के साथआइस-स्केटिंग का आनन्द लिया जा सकता है।

ऐतिहासिक रिज़ मैदान, शिमला


रिज के मैदान को शिमला में शाम की चहल-पहल का केंद्र माना जा सकता है, जो पर्यटकों के बीच भी खासा लोकप्रिय रहता है। यहाँ बच्चों-बुढ़ों की घुड़सवारी, ऐतिहासिक समारकों की पृष्ठभूमि में यादगार फोटोग्राफी के नजारे सर्वसुलभ रहते हैं। रिज के पूर्व में ऊँचाई पर स्टेज है, जो ऐतिहासिक संबोधनों का साक्षी रहा है और प्राँत के बड़े आयोजन इसी रिज पर होते हैं। रिज के एक और इंदिरा गाँधी की प्रतिमा है तो दूसरी ओर डॉ. यशवन्त सिंह परमार की। मालूम हो कि डॉ. यशवन्त परमार हिंप्र के पहले मुख्यमंत्री रहे, जिनके कुशल एवं दूरदर्शी नेतृत्व के कारण उन्हें हिमाचल का निर्माता माना जाता है। हिमाचल को एक विकसित पहाड़ी राज्य के रुप में खड़ा करने में इनका उल्लेखनीय योगदान रहा।

रिज के नीचे ही पानी के वृहद टैंक मौजूद हैं, जिनसे शिमला शहर के लिए पानी सप्लाई होता है। रिज के नीचे गेयटी थिएटर के सामने ही यहाँ का लेटेस्ट  पुस्तकों से समृद्ध मिनेरवा बुक हाऊस है, जहाँ पर पुस्तक प्रेमी अपने पसंद की पुस्तकों का अवलोकन कर सकते हैं। इसी तरह लोअर बाजार में बंसल बुक डिपो, ज्ञान भण्डार तथा लक्कड़ बाजार में स्टुडेंट स्टोर आदि पुस्तक केंद्र हैं। पुस्तक प्रेमियों के लिए रिज पर चर्च के सामने स्टेट लाइब्रेरी की भी व्यवस्था है।

माल रोड़ से नीचे लोअर बाजार से होते हुए एक दम नीचे पुराना बस अड्डा पड़ता है, जहाँ से नए बस अड्डा आईएसबीटी टुटी कण्डी लिए कुछ मिनट परबसें चलती रहती हैं।

आईएसबीटी टुटीकण्डी बस स्टैंड, शिमला

यहाँ से अपने गन्तव्य के लिए ऑर्डिनरी से लेकर डिलक्स, ऐसी, एवं वोल्बो बसें ली जा सकती हैं। हिमाचल परिवहन की ऑनलाइन बुकिंग  की सुबिधा का भी घर बैठे लाभ लिया जा सकता है। रेल्वे सफर के लिए सम्मर हिल या पुराने बस अड्डे के पास के मुख्य रेल्वे स्टेशन से चढ़कर काल्का तक रेल यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा जुब्बड़हट्टी में है, जो शिमला से 22 किमी की दूरी पर है।

इस तरह दो-तीन दिनों में शिमला के मुख्य स्थलों की सैर की जा सकती है। सामान्य यात्रियों के लिए मार्च से जून तथा सितम्बर से नवम्बर माह उपयुक्त माने जाते हैं। गर्मियों में हालाँकि भीड़ अधिक रहती है, लेकिन शिमला का असली आनन्द तो बरसात में रहता है। अगस्त के माह में जब आसमान बादलों से घिरे रहते हैं, तो एक पहाड़ी से दूसरी पहाडी की ओर इसके फाहों के बीच सफर मनमोहक रहता है। कभी ये बादल पूरी तरह से यात्रियों को अपने आगोश में ले लेते हैं तो कभी पूरी घाटी इनसे पट जाती है। पहाडों की चोटी से इनका नजारा पैसा बसूल ट्रिप साबित होता है। (इस बर्ष 2023 की बरसात में हुई त्रास्दी के चलते, उपरोक्त धारणा में कुछ बदलाव आ गया है। जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के साथ मानवीय छेड़खान के चलते, प्रकृति की गोद में आनन्द के मायने बदल रहे हैं, यह विचारणीय व चिंता का विषय है।) 

बर्फ के शौकीनों के लिए सर्दी भी कम रोमाँचक नहीं रहती।लेखकों, विचारकों एवं कवियों के लिए शिमला सृजन की ऊर्बर भूमि साबित होती है और कई लेखक तो यहाँ इसी उद्देश्य से डेरा जमाए रहते हैं।

यदि समय हो तो शिमला के आसपास घूमने के कई दर्शनीय स्थल हैं, जहाँ ग्रामीण परिवेश के साथ यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक तथा आध्यात्मिक विशेषताओं से भी रुबरु हुआ जा सकता है। इसके लिए आप पढ़ सकते हैं, शिमला के आस-पास के दर्शनीय स्थल।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

वर्ष-2020 के ऐतिहासिक-युगान्तरीय पल

अस्पताल की पाठशाला में जीवन का तत्व-बोध

वर्ष 2020 इतिहास के पन्नों में एक यादगार वर्ष के रुप में अंकित रहेगा, जिसमें इंसान एवं मानवीय सभ्यता कई ऐतिहासिक एवं युगान्तरीय घटनाओं की साक्षी बनी। घटनाओं का क्रम जिस तरह से व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं समूचे विश्व को मंथता हुआ आगे बढ़ा, इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि ये ईश्वरीय विधान था, महाकाल की योजना का हिस्सा था, प्रकृति का अपने बच्चों की नादानियों के लिए कठोर सबक भरा उपचार था, जिसमें सभी को गहन आत्मावलोकन का अवसर मिला, अपने भूत की भूल-चूकों को सुधारने का संयोग बना और बेहतरीन भविष्य के लिए सरंजाम जुटाने की समझ मिली।

हमारी भी लम्बे अर्से की गुफा में प्रवेश करने व धुनी रमा कर रहने की इच्छा इसमें पूरी हुई। हिमालय यात्रा के दौरान प्रायः पर्वत कंदराओं को देखकर यह इच्छा बलवती होती थी। कोरोना काल के बीच अस्पताल की परिक्रमा, भर्ती से लेकर तमाम तरह के अनुभवों से रुबरु होते रहे, जो लगता है कोरोना काल के बीच अपनी पूर्णाहुति की ओर अग्रसर है।

20 फरवरी 2020 के आसपास लक्ष्ण शुरु हो गए थे। बहाना गंगाजी के बर्फीले जल में डुबकी रहा। लेकिन उसके पिछले कई माह से चल रही खाँसी व बदन में टूटन अब चरम पर थी। उपचार के नाम पर कोई खाँसी के नाम पर एलर्जी की दबा देता रहा तो कोई बुखार की। अंततः पीठ में व साइड पसलियों में ऐसा दर्द उठा कि चलना फिरना दुभर हो गया, रात को करबट बदलना मुश्किल हो गया। इसके लिए पेन किल्लर मल्हम, स्प्रै व दबाईयों से लेकर एंटिवायोटिक के डोज चलते रहे। इसी बीच मार्च माह में कोविड-19 का कोरोना काल शुरु हो चुका था। 20 अप्रैल तक आते-आते दो माह तक जब सारे उपचार विफल हुए तो सीटी स्कैन हुआ और मर्ज पकड़ में आया। इसका शुरुआती उपचार ऐसे अनाड़ी ढंग से हुआ कि दबाईयों के ऑवरडोज में अस्पताल भर्ती होना पड़ा।

यहाँ बात स्पष्ट हुई कि रोग का उपचार तब तक निष्प्रभावी रहता है, जब तक कि सही डायग्नोज न हो। अन्यथा शरीर दवाईयों की प्रयोगशाला बन जाता है और ऐसे में चल रहे एलौपेथिक उपचार और किन रोगों का कारण बनेंगे, कह नहीं सकते।

अप्रैल-मई के लगभग दो सप्ताह तक अस्पताल के वार्ड में ऐसा गुफा प्रवेश मिला, जहाँ मात्र एक व्यक्ति सेवा-सुश्रुषा के लिए साथ में था और चारों ओर था मरीजों का हुजूम, जिन्हें देखकर स्वस्थ व्यक्ति भी बिमार पड़ जाए। इनके बीच बिमारी को लेकर चिंता-भय एवं उद्गिनता (हेल्थ एंग्जायटी) के तमाम तरह के अनुभवों से गुजरते रहे, जिसे कोई भुगतभोगी अच्छे से समझ सकता है। बिमारी का आलम कुछ ऐसा रहा कि जीवन से लगभग मोहभंग की स्थिति आ गई थी। यकायक अपनों से बिछुडने की वेदना अंदर कहीं गहरे कचोट रही थी। बाहरी दुनियाँ से संपर्क लगभग कट चुका था, जीवन के मायने, अर्थ सब धुँधले हो चले थे। ऐसे में मोबाईल में तक झाँकने का मन नहीं करता था।

अप्रैल-मई माह में अस्पताल की गुफा में बिताए दो सप्ताह के अनुभवों में, कुछ पाठकों से शेयर करना चाहूँगा, जो शायद उनके कभी काम आएं। जो कभी बिमार न पड़ा हो और जो अस्पताल के जीवन से अधिक परिचित न हो, उसके लिए पहली बार भर्ती होना एक घबराहट भरा अनुभव रहता है। डायग्नोज से लेकर उपचार की प्रक्रिया के तहत हाथ की नसों से सीरिंज से खून का निकाला जाना, हाथ या बाँह की नसों में कैनूला डालकर ड्रिप लगाना या इंजेक्शन देना, शुरु में भयावह प्रतीत होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे समझ आता है कि पूरा अस्पताल, इसके डॉक्टर्ज, सिस्टर्ज और पूरी टीम रोगी को जल्द से जल्द ठीक कर रोग मुक्त करने में लगे होते हैं। फिर जब व्यक्ति की स्थिति में थोड़ा सा भी सुधार शुरु हो जाता है, तो उसकी घबराहट कम हो जाती है और एक नया विश्वास जगता है।

साथ ही समझ आता है कि अस्पताल गाड़ियों को दुरुस्त करने वाले एक गैराज की तरह है जहाँ टूटी-फूटी गाड़ियों ठीक होने के लिए आती हैं और एक्सपर्ट मैकेनिक कुछ मिनट, घंटे या दिनों में उनके खराब या टूटे पूर्जों या हिस्सों की मुरम्मत कर या उन्हें बदलकर नया बना देता है और फिर गाड़ी नए सिरे से सड़क पर सपरट दौड़ने लगती है। ऐसे ही व्यक्ति अस्पताल में कुछ दिन सप्ताह भर्ती होकर भला चंगा हो जाता है और फिर जीवन की गाड़ी अपने ढर्रे पर चल पड़ती है। फिर व्यक्ति अस्पताल के भयावह अंधकार से भरे पलों को यादकर आश्चर्य करता है कि वह इनके पार हो चुका है और अपने अनुभवों को किवदंतियों की भांति सुनाने व चर्चा का आनन्द लेता है। यही जीवन का रंगमंच है, जिसमें व्यक्ति न जाने कितनी भूमिकाओं में हंसते-रोते हुए अभिनय करता हुआ आगे बढ़ता है।

अस्पताल में हर रोगी अपने कष्टों से उबरने के लिए जूझ रहा होता है और चारों ओर नित नए मरीजों का हुजूम जुड़ रहा होता है, जिन्हें देखकर कल्पना के घोड़े का यदा-कदा नकारात्मकता के भंवर में उलझना स्वाभाविक होता है। इन्हीं भंवरों से दो-चार होते हुए हमारी पहली भर्ती का काल पूरा होता है और फिर 6-7 माह तक दवाओं का कोर्स उचित पथ्य-कुपथ्य के साथ चलता रहा। माह में दो-तीन चक्र अस्पताल के लगते रहे। इसी परिक्रमा को नियति द्वारा निर्धारित 2020 का ट्रैब्ल एडवेंचर मानते हुए अपने घूमने के शौक को पूरा करते रहे।

इसी बीच हमारे गाल-ब्लैडर में स्टोन (पिताशय की पत्थरी) डिटेक्ट हो चुका था। एक दो स्टोन होते तो दवा दारू से ठीक हो जाते, यहाँ तो पूरी थैली ही पत्थरियों से भरी हुई मिली। भरने का अर्थ हुआ कि यह प्रक्रिया कई वर्षों से चल रही थी। इसका संकेत भी कभी नहीं मिल पाया, जो इसका समय रहते उपचार कर पाते। जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब ऑपरेशन ही उपचार था। इसे प्रारब्ध का अटल विधान मानते हुए मन को इसके लिए तैयार करते रहे।

दिसम्बर माह के उत्तरार्ध में सर्जरी तय होती है। इस तरह की शल्य से हम पहली बार रुबरु होने जा रहे थे। अतः मन का एक बार घबराना स्वाभाविक था। लेकिन हम मानसिक रुप से तैयार हो चुके थे, क्योंकि और कोई विकल्प था नहीं। चारों ओर इस तरह के कितने ऑपरेशन के अनुभव के किस्से हम सुन चुके थे, जिनसे मन का ढाढ़स बनता गया। यहाँ मैं आधुनिक चिकित्सा की तारीफ के साथ हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि इसने दर्द के प्रबन्धन (pain management) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिसमें रोगी को ऑपरेशन के दौरान पता भी नहीं चलता कि हुआ क्या है, इतनी सफाई के साथ ऑपरेशन हो जाता है। इसके बाद भी घाबों के भरने तक दर्द निवारक दबाईयाँ रोगी को असह्य पीड़ा से बचाए रखती हैं। बाकि चिकित्सकों का संवेदनशील रवैया रोगी को हर कदम पर मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक सहारा देता है। वर्ष 2020 के अस्पताल के अनुभवों के बाद हमें यह बात और गहराई से समझ आई कि एक चिकित्सक रोगी के लिए ईश्वर के माध्यम (Next to God) की भूमिका में होता है, जिसपर पूरा विश्वास कर  रोगी निश्चिंत होता है तथा अपने मन के संशयों व प्रश्नों की खुलकर चर्चा कर अपने समाधान पाता है।

ऑपरेशन के पहले और बाद इससे जुड़े भय एवं उद्गिनता में सारा खेल मन का होता है। मन बेसिर पैर की कुकल्पानओं एवं आशंकाओं में उलझता रहता है, जो कई बार ऑपरेशन के भय के भूत को इतना विकराल बना देता है कि ऑपरेशन से पहले ही रोगी अनावश्यक मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा होता है। हालाँकि मन के इस भय भूत से निपटने के तरीके रोगी अंदर से ही ईजाद करता है। सर्वन्तर्यामी ईश्वर-अराध्य का समरण जिसमें अहम् होता है। इस बीच बेहतरीन पुस्तकों का स्वाध्याय बहुत सहायक सिद्ध होता है, विशेष रुप से आध्यात्मिक पुस्तकों का। ये देहबोध से व्यक्ति को ऊपर उठाने में मदद करती हैं और सकारात्मक सोच के साथ सशक्त मनोभूमि को तैयार करती हैं।

यह समय आत्मचिंतन के लिए भी श्रेष्ठ होता है। इस दौरान यह बखूबी समझ आता है कि स्वस्थ व निरोग जीवन के लिए जीवनशैली का सुधार कितना आवश्यक है और इस दिशा में आगे क्या किया जाना है। एक तरह से पूरे जीवन का ही मंथन तथा चित्त प्रक्षालन ऐसे दौर में हो रहा होता है और जीवन का तत्वदर्शन गहरे से समझ आता है। जिन बातों को हम पुस्तकें पढ़कर, गुरुजनों द्वारा बारम्बार समझाए जाने के बावजूद वर्षों, दशकों से नहीं समझ पा रहे होते, वे अल्प काल में ही ह्दयंगम हो जाती हैं।

इस तरह अस्पताल एक तरह से जीवन की एक ऐसी पाठशाला सावित होता है, जहाँ रोगी अपने उपचार के साथ जीवंत एवं गहन प्रशिक्षण से होकर गुजरता है। भगवान करे कि किसी को जीवन के तत्वदर्शन को समझने के लिए ऐसी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े। वह स्वस्थ एवं निरोग जीवन के रहस्य सामान्य अवस्था में ही समझे, सीखे व जीए। और प्रारब्धवश यदि कहीं ऐसे दौर से गुजरना पड़े, तो साहसपूर्वक इसका सामना करे और जीवन के तत्वदर्शन को अल्पकाल में ही आत्मसात कर आगे अधिक होशोहवाश में जीए।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence)

रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence)

अर्थ, उपकरण एवं प्रक्रिया (Meaning, its tools and process)

रचनात्मकता (Creativity) मनुष्य की एक ऐसी विशेषता है, जिसके आधार पर वह नित नूतन नया सृजन करता रहा है तथा समूची मानवीय सभ्यता-संस्कृति की विकास यात्रा आगे बढ़ी है। साहित्य, कला, मानविकी, धर्म-अध्यात्म, संस्कृति, दर्शन आदि इसी के परिणाम है, जो आज विज्ञान, टेक्नोलॉजी एवं संचार क्राँति के चरम पर विकास के वर्तमान मुकाम तक आ पहुँचा है।

रचनात्मकता (Creativity) का अर्थ कुछ नया सृजन करने की क्षमता से है, किसी कार्य को नए अंदाज से करने की प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति की मौलिकता झलकती हो। इसमें किसी समस्या के रचनात्मक ढंग से समाधान की क्षमता भी शामिल है। सार रुप में, Creativity is to create something as if out of nothing…जो पहले था नहीं...। जैसे – कोई नई कविता, गीत, संगीत, चित्रकला, लेखन, विचार-पटकथा, फिल्म, अभिनय, शोध, फोटोग्राफी, खोज, आविष्कार आदि

रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence) किसी व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता का अपने श्रेष्ठतम रुप में प्रदर्शन एवं अभिव्यक्ति है। जीवन प्रबन्धन के संदर्भ में, रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence) - स्वयं के व्यक्तित्व की कमियों, दुर्बलताओं और दुर्गुणों का परिमार्जन, परिष्कार तथा अपनी अंतर्निहित क्षमताओ, विशेषताओं एवं सद्गुणों का विकास, उभार है, जिससे कि व्यक्ति का Best version, श्रेष्ठतम स्वरुप  उभर कर सामने आ सके।

इसका आधार रहता है अपने व्यक्तित्व एवं जीवन की समग्र समझ (Holistic understanding of your personality and life), मौलिक लक्ष्य का निर्धारण (Goal setting) तथा उसे हासिल करने की प्रक्रिया, जिसके प्रधान उपकरण (Tools of creative excellence) हैं - कल्पना शक्ति (Imagination), इच्छा शक्ति (Will power), विचार शक्ति (Thought power), भावनात्मक शक्ति (Emotional power) आदि। रचनात्मकता को एक कला (Art) माना जाता रहा है, लेकिन यह स्वयं में एक बुद्धिमता (intelligence) भी है, जो उपलब्ध संसाधनों से कुछ नया एवं मौलिक सृजन को संभव बनाती है तथा जटिल समस्याओं के सरल समाधान प्रस्तुत करती है।

कल्पना के आधार पर व्यक्ति अपने मनचाहे वाँछित स्वरुप का निर्धारण करता है, विचार शक्ति के आधार पर कल्पनाओं को काटता तराशता है, अपने लक्ष्य को स्पष्ट करता है, इसको हासिल करने की रणनीति बनाता है तथा ईच्छा शक्ति के आधार पर लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करता है तथा अपने निर्धारित लक्ष्य को साकार करता है। भावनात्मक शक्ति इसमें आवश्यक ईँधन एवं प्रेरक शक्ति का काम करती है।

इस तरह रचनात्मक उत्कृष्टता वह प्रक्रिया है, जिसके आधार पर व्यक्ति जो चाहे कर सकता है, जैसा चाहे बन सकता है और अपनी मनचाही सृष्टि का सृजन कर सकता है। लेकिन यह अपनी मौलिक विशिष्टता के साथ तभी सम्भव हो पाता है, जब व्यक्ति इसके विज्ञान-विधान को समझता है तथा इसकी प्रक्रिया का अनुसरण करता है।

रचनात्मक उत्कृष्टता की व्यवहारिक प्रक्रिया (Process of Creative Excellence)

पहला चरण है अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारण – लक्ष्य ऐसा हो जो आपके व्यक्तित्व से मेल खाता हो, जिसमें आपकी इच्छा, आकाँक्षा, रुचि, पैशन (Passion) अभिव्यक्त होते हों, साथ ही यह आपकी क्षमताओं से भी जुडा हो। दूसरों की देखा देखी बिना स्वयं को समझे किया गया लक्ष्य का निर्धारण आगे चलकर एक बडी चूक हो सावित होता है, जिसके कारण व्यक्ति जीवन भर इसे भार की तरह ढोता फिरता है। जबकि अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुरुप चुना गया लक्ष्य व्यक्ति के लिए हर पग पर आनन्द का कारण बनता है, व्यक्ति इसको एन्जोय करते हुए आगे बढता है और धीरे धीरे अपने पूर्ण विकास को प्राप्त होता है। यदि आपका लक्ष्य आपकी मनपसंद का है तो रचनात्मक उत्कृष्टता स्वतः ही उभरने लगती है। आपके दैनिक कार्यों में मन की एकाग्रता सहज रुप से जुड़ती है तथा आप इसमें रोज प्रगति के नए आयाम छू रहे होते हैं।

दूसरा चरण है, जहाँ खड़े हैं वहीं से आगे बढ़ें। जीवन में आगे बढने के लिए किसी से तुलना-कटाक्ष में न उलझें। हर व्यक्ति की उपनी जीवन यात्रा है, वह आज जहाँ खड़ा है या खड़ी है, उसकी अपनी एक लम्बी विकास यात्रा का परिणाम है। आपकी अपनी जीवन यात्रा है, इसको समझने की कोशिश करें। सब एक विशेष मकसद के साथ धरती पर आए हैं। इसको जानने का प्रयास करें। अपना सही सही (सम्यक) मूल्याँकन आपको आगे बढ़ने का आधार देगा। यह जो भी है इसको ईमानदारीपूर्वक स्वीकार करें तथा यहाँ से आगे बढ़ना शुरु करें। आपको रोज अपने रिकॉर्ड तोड़ने हैं, अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन देना है। रात को सोते समय इस संतोष के साथ विस्तर पर जाना है कि जो बेहतरतम हम आज कर सकते थे वह हमने किया और कल हम इससे भी बेहतर करेंगे। प्रतिदिन पिछले कल से बेहतर करते हुए रचनात्मक उत्कृष्टता आपके जीवन का अंग बनती जाएगी। इस तरह परीक्षा की घड़ी के लिए आप हर रोज तैयार हो रहे होंगे न कि परीक्षा आने पर इसका आपात की तरह सामना करते हुए आपके हाथ पैर फूल रहे होंगे।

तीसरा चरण, रोज अपनी रचनात्मक प्रगति का लेखा जोखा करें – रोज रात को सोने से पूर्व स्थिर चित्त होकर बैठें। परमपूज्य गुरुदेव ने इसको तत्वबोध की साधना कहा है। इसमें दिन भर का लेखा जोखा करें। सुबह जो कार्य निर्धारित थे, उनमें से कितने काम संभव हुए और कहाँ पर चूक रह गई। अपने विचार, भाव एवं व्यवहार का क्रम दिन भर कैसा रहा, निर्धारित मानक से ये कहीं विचलित तो नहीं हुए। इसमें आहार-विहार, संग साथ की स्थिति को भी देख सकते हैं। इसके साथ आज की विशिष्ठ उपलब्धि क्या रही, क्या नए सबक मिले, दूसरों से क्या नया सीखा। इन सबका हिसाब किताब किया जा सकता है। समय कहाँ बर्वाद हुआ, इसका मूल्याँकन किया जा सकता है। अपनी भूल चूक के लिए प्रायश्चित का क्रम निर्धारित किया जा सकता है और संकल्प भी कि कल इससे बेहतर करेंगे। इस तरह हर रोज आप उत्कृष्टता के नए स्तर को छू रहे होंगे और आपका श्रेष्ठतम स्वरुप(Best version) उभर कर सामने आ रहा होगा।

चौथा चरण, डायरी लेखन को बनाए अपना साथी – इन अनुभवों को एक डायरी में कलमबद्ध करते जाएं। ये कुछ लाइन से लेकर कुछ पैरा में हो सकते हैं। यदि आप लगातार ऐसा करते गए तो, कुछ समय बाद आपके पास जीवन प्रबन्धन एवं व्यक्तित्व निर्माण से जुड़ी विचार सामग्री तैयार हो रही होगी। नियमित रुप से डायरी लेखन से आपकी लेखन शैली (Writing style) विकसित होगी, विचार-भाव और स्पष्ट होते जाएंगे, इनकी अभिव्यक्ति सटीक होती जाएगी। अपने व्यक्तित्व एवं स्वभाव का पैटर्न समझ आने लगेगा। जितना आप स्वयं को समझने लगेंगे, उतना ही दूसरों की समझ भी बढ़ेगी। धीर-धीरे जीवन का तत्व-दर्शन समझ आने लगेगा, जो स्वयं में एक बढ़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

इसके आधार पर एक संतुलित, सफल एवं सुखी जीवन संभव होता है, अन्यथा इस समझ के अभाव में व्यक्ति को इस बेशकीमती जीवन को यूँ ही बर्वाद करते देखा जाता है, जीवन उत्कृष्टता की वजाए निकृष्टता की सीढियों पर नीचे लुढ़क रहा होता है और घोर निराशा, अवसाद, विषाद एवं पश्चाताप के बीच जीने के लिए अभिशप्त होता है। नित्य स्व-मूल्याँकन (Self introspection) एवं डायरी लेखन इस त्रास्दी से व्यक्ति को उबारता है और एक सफल-सार्थक जीवन के साथ क्रिएटिव एक्सलैंस के पथ पर आगे बढाता है।

डायरी लेखन के लाभ को यदि और जानना हो तो आप दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं।

रोज तराशें व्यक्तित्व का हर आयाम – व्यक्तित्व को मोटे तौर पर चार आयामों में बाँट सकते हैं - शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक-व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक। इनको नियमित रुप से तराशने का न्यूनतम कार्यक्रम निर्धारित किया जा सकता है।

अपनी पढाई लिखाई के साथ शारीरिक स्वास्थ्य का न्यूनतम कार्यक्रम बनाएं। जिसमें योग आसन, प्राणायाम, खेल कूद, टहल, जिम आदि को अपनी आवश्यकता एवं क्षमता के अनुरुप शामिल किया जा सकता है। आहार का अपने स्वास्थ्य, रुचि एवं स्वभाव के अनुकूल निर्धारण करें। पर्याप्त नींद और विश्राम का अनुपान रचनात्मकता में सहायक रहता है। कहावत भी प्रसिद्ध है कि Sound mind in a sound body अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।

बौद्धिक विकास के लिए अपनी क्लास की पढ़ाई के साथ मोटिवेशनल एवं प्रेरक पुस्तकों के स्वाध्याय को शामिल करें। विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य को पुस्तकालय में जाकर देखें व अपनी रुचि के अनुरुप अपने बौद्धिक आयाम को विस्तार दें। यह प्रयोग बौद्धिक उत्कृष्टता के लिए आहार का काम करेगा और आपका जीवन स्वतः ही श्रेष्ठ एवं महान कार्यों के लिए प्रेरित होगा।

भावनात्मक विकास के तहत किसी की भावनाओं को आहत न करें। दूसरों को सम्मान दें, बिनम्र रहें तथा यथायोग्य जरुरतमंदों की सहायता करें। एक अच्छा श्रोता बनें, दूसरों की बात को ध्यानपूर्वक समझ कर ही समाधान या परामर्श दें। शालीनता, सहकारिता, कृतज्ञता, उदारता, सहिष्णुता जैसे सद्गुणों का अभ्यास करें। इससे आपसी सम्बन्ध बेहतरीन बनेंगे तथा आपके भावनात्मक स्तर पर उत्कृष्टता के द्वार खुलेंगे। दिन में एक कार्य बिना किसी आशा अपेक्षा के करें। निष्कार्म कर्म का ऐसा नन्हा सा प्रयोग मन को संतोष व आनन्द से भरेगा, जो रचनात्मक उत्कृष्टता का एक सबल आधार सावित होता है।

आध्यात्मिक विकास के तहत नित्य स्वाध्याय-सत्संग के साथ कुछ समय आत्मचिंतन मनन के लिए निकालें, जिसमें आत्म-सुधार से लेकर आत्म-निर्माण एवं विकास का खाका बनाया जा सकता है। कुछ मिनट ध्यान के लिए अवश्य निकालें। परिसर की आध्यात्मिक गतिविधियों में अपनी रुचि एवं समय के अनुरुप यथासंभव भाग लें। प्रातः आत्मबोध एवं सोते समय तत्वबोध को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।

इसके अतिरिक्त अपने विषय एवं भावी प्रोफेशनल जीवन के अनुरुप आवश्यक कौशल (Skill) के विकास पर ध्यान दें। जहाँ कमजोर पड़ रहे हों, वहाँ नियमित रुप से एक निश्चित समय लगाएं एवं नित्य अभ्यास करें। इसमें अपनी भाषा, टेक्निक्ल स्किल या अन्य प्रोफेशनल या सॉफ्ट स्किल पर काम किया जा सकता है और अपने पेशे के अनुरुप व्यक्तित्व को तराशते हुए रचनात्मक उत्कृष्टता की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

इसके साथ जीवन के विद्यार्थी के रुप में अपने अनुभवों को अभिव्यक्त करते हुए रचनात्मक उत्कृष्टता के नए सोपान को छू सकते हैं। क्रिएटिव लेखन (Creative writing) इसका एक सशक्त माध्यम हो सकता है। अपने दैनिक अध्ययन, चिंतन, मनन, विचार मंथन, जीवन यात्रा के अवलोकन एवं अनुभव के आधार पर आप स्वयं के जीवन तथा चारों ओर की घटनाओं, स्थानों तथा तथ्यों को अपने अंदाज से देखते समझते हुए लिपिबद्ध करें। इसको डायरी लेखन का अगला चरण कह सकते हैं। नित्यप्रति अपने ऐसे अनुभवों एवं अवलोकन के आधार पर पक रही आपकी जीवन यात्रा एवं इसकी कहानी को आप चाहें तो जरुरतमंदों के साथ शेयर कर सकते हैं, जो किसी लेख, कविता, फीचर, यात्रा वृतांत, जीवन संस्मरण, कहानी, जीवन सार सुक्ति (Quotation) आदि के रुप में हो सकती है। यदि आपको उचित लगे तो इन्हें सोशल मीडिया के उचित प्लेटफार्म पर शेयर किया जा सकता है।

यदि आप रचनात्मक लेखन से अनभिज्ञ हैं तो आप लेखनकला के शुरुआती टिप्स को यहाँ पढ़ सकते हैं।

रचनात्मक उत्कृष्टता की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया (Psychological process of Creative Excellence) – यह इन चरणों में घटित होती है, जिसकी समझ आपके लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है –

पूर्व-तैयारी (Preparation) - पहले हम उस विषय को लेते हैं जिस में कुछ नया सृजन करना होता है, या समस्या को लेते हैं, जिसका समाधान करना होता है या नया प्रकाश डालना होता है।

विचार-मंथन (Brainstorming) – अब उस विषय या समस्या पर हर तरह से विचार करते हैं, विषय या समस्या के हर पहलु पर चिंतन, मनन एवं विचार मंथन करते हैं।

विश्रांति काल (Incubation) – अब आगे की प्रक्रिया को अवचेतन मन के हिस्से में छोड़ देते हैं और दूसरे कार्यों में लग जाते हैं। एक तरह से समस्या को तकिए के नीचे डाल कर सो जाते हैं या दूसरी चीजों पर विचार करते हैं।

प्रकाशन (Illumination) – यह अगला चरण है जब चलते फिरते, टेबल पर बैठ या नींद में या स्वप्न में समाधान कौंधता है, नए विचार आते हैं। एक तरह से दिमाग की बत्ती जल जाती है।

क्रियान्वयन (Execution) – अब नए विचार या समाधान को लागू करते हैं।

बार बार इन मनोवैज्ञानिक चरणों से होकर गुजरते हुए जब तक कि आपके प्रश्न या समस्या का संतोषजनक उत्तर या समाधान न मिले। इस तरह आपकी क्रिएटिव एक्सलैंस की राह तय होती है, जो हर क्रिएटिव व्यक्ति के दैनिक जीवन का अनुभव रहता है।

आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में इस प्रक्रिया को लागू करते हुए नित्य प्रति रचनात्मक उत्कृष्टता के नए आयामों को छू सकते हैं और हार्ड वर्क की वजाए स्मार्ट वर्क के साथ मनचाही सफलता की दिशा में ब़ढ़ सकते हैं।

जरा सोचें (Just Think & ponder!!)

·        आपका जीवन लक्ष्य क्या है? आप इसे कितना स्पष्ट मानते हैं? अर्थात् यह कितना अंतःप्रेरित है व कितना देखा देखी निर्धारित है?

·        आप अपने मूल्याँकन एवं विकास के लिए नित्य कितना समय दे पातें हैं?

·        क्या आप डायरी लेखन नियमित रुप से करते हैं? यदि नहीं, तो क्यों?

·        आप शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक-व्यवहारिक, आध्यात्मिक एवं प्रोफेशनल स्तर पर रचनात्मक उत्कृष्टता के पैमाने पर कहाँ खड़ा पाते हैं?

·        और इन क्षेत्रों में अपना श्रेष्ठतम स्वरुप (Best version) को कैसा देखते (visualize करते) हैं।

·        तथा इनके विकास के लिए आपका न्यूनतम दैनिक या साप्ताहिक कार्यक्रम क्या है?

·        आपकी रचनात्मक क्षमता की अभिव्यक्ति का सबसे सहज माध्यम एवं प्लेटफॉर्म क्या है?

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