उत्तर से दक्षिण भारत की ओर - सफर 2 घंटे का
एयरो स्टेशन (सीटी) से बाहर फीडर बस के लिए टिकट लेना पड़ता है, जो सीधे एयरपोर्ट तक पहुँचाती हैं। डोमेस्टिक फलाइट्स का टर्मिनल-1 है, जबकि इंटरनेशनल फलाइट्स का टर्मिनल-2 और 3। रास्ते का सफर सुंदर दृश्यों से भरा बहुत सुकूनदायी व सुखद रहता है। सड़कें ऊच्चस्तरीय मानको के अनुरुप, हरियाली, पेड़ व लॉन से घिरी हुई, एक दम साफ–सुथरी व फर्स्ट क्लास, जिसमें समूथ ड्राइविंग एक खुशनुमा अहसास देती हैं। एक टनल रास्ते में आती है, इसके पार होते ही, लो हम एयरस्टेशन की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं।
रास्ते में वरगद-पीपल के वृहद पेड़ आश्वस्त करते हैं। रास्ते में दायीं ओर की कुछ बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, चौकोर से लेकर अलग-अलग डिजायन में अपने देसी माइंडसेट में फिट न होते भवन। प्रश्न उठा कि क्या अपना भारतीय वास्तुशिल्प आर्किटेक्ट के क्षेत्र में कुछ नहीं कर सकता। मॉडर्न आर्ट की तरह यह मॉर्डन आर्किटेक्ट एक कृत्रिम सी रचना लगती है, जो मन में कोई सौंदर्यबोध नहीं जगाती, न ही कोई आध्यात्मिक भाव। खैर हम वृक्षों की छाया के साथ टर्मिनल-1 के गेट पर पहुँच चुके थे, जहाँ से डोमेस्टिक फ्लाईट मिलती है।
यहाँ अंदर हवाई टिकट व आधार कार्ड के साथ स्कियूरिटी चैक होता है और अंदर प्रवेश मिलता है। लिफ्ट से ऊपर चढ़ते हैं और लो हम एयरपोर्ट के मुख्य परिसर में हैं, जहाँ सबसे पहले बोर्डिंग पास लेते हैं, जो लगी ऑटोमेटेड मशीन में टिकट के पीएनआर नंबर व अन्य फील्ड को भरने का साथ एक स्लिप के रुप में मिलता है। यहाँ से आगे बेग ड्रॉप की लाईन लगी होती है, जहाँ अपना भारी सामान जमा होता है, जो सीधे हवाई जहाज में भेजा जाता है, जिसे अपने गन्तव्य स्थल पर उतरने के बाद कलेक्ट किया जाता है।
डोमेस्टिक फ्लाईट में चेक-इन लगेज की अधिकतम सीमा 15 किलो रहती है। बाकि साथ ले जाया जा रहा हल्का सामान भी चैक होता है, जो अधिकतम 7 किलो तक हो सकता है, इसमें भी मोबाइल, वालेट व लैप्टोप को अलग टोकरियों में रखा जाता है। इस तरह सामान स्कियूरिटी मशीन से पास होकर दूसरी ओर मिलता है और अब यात्री वेटिंग रुम की ओर बढ़ते हैं, जहाँ अपनी फ्लाइट्स का इंतजार कर रहे यात्रियों के एसी परिसर युक्त इंतजार की उम्दा व्यवस्था रहती है।
यहाँ हम लगभग फ्लाइट टाइम से 2 घंटे पहले पहुँच चुके थे। सारी फोर्मेलिटीज पूरी होने के बाद अभी पर्याप्त समय था। बीच-बीच में बैठकर बोअर होते तो घूमने निकलते। चारों और तमाम तरह की खाने-पीने से लेकर पहने-ओढ़ने व डेली यूज की चीजों से सजी दुकाने लगी थीं, सजी थीं। अधिकाँश विदेशी ब्राँड ही हमें दिखे। इनका दाम ठीकठाक होगा यह अनुमान लगाते रहे। कंघी की जरुरत थी, तो एक चुनकर खरीद ली, 139 रुपए कीमत निकली। पहली परचेजिंग के प्रतीक के रुप में इसको साथ लिए, जो आज भी साथ है। आशा थी कि ताउम्र मजबूती से हमारे साथ रहेगी, लेकिन आधे दाँत इसके झर चुके हैं, बाकि संभालकर उसको पहली उड़ान की याद के रुप में सावधानी से उपयोग करते हैं।
यहाँ के हाई-फाई स्टाल में चाय 105 रुपए की पी थी, जो याद रहेगी। पानी की मुश्किल से 200 ग्राम की बोटल 60 रुपए की। अनुभव रहा कि हमारे जैसे औसत आदमी के लिए यहाँ ड्यूटी फ्री सर्विस के बावजूद लुटने के पूरे सरंजाम थे, यहाँ सामान खरीदने की वजाए खाने-पीने का अपना घर का या बाहर से खरीदा सामान ज्यादा किफायती रहेगा। बाकि अनुभव के लिए एक-आध बार कुछ परचेजिंग प्रयोग अपनी पॉकेट के हिसाब से अवश्य किए जा सकते हैं।
भाग1 - नोएडा मेट्रो से दिल्ली एयरपोर्ट तक
हवाई यात्रा हमारे लिए अब
तक एक गहरे कौतुक और जिज्ञासा का विषय रही है। बचपन से ही घर-गाँव में आसमान में
उड़ते हवाई जहाज, हेलीकोप्टर व जंगी जहाज देखते, तो आश्चर्य, रोमाँच और भय मिश्रित
भाव से इनकी उड़ान निहारते रहते। कभी हम भी इस उड़ान का हिस्सा बनेंगे, तब यह सोचा
न था। लेकिन कालक्रम में लगा कि अब यात्रा हकीकत बन सकती है, उसको फिल्मों से लेकर
डोक्यूमेंट्रीज व फोटोज में देखकर, सुनकर एक धारणा बन रही थी कि आसमान से नीचे के
दृश्य कैसे लगते होंगे, लेकिन प्रत्यक्ष इसका हिस्सा बनकर अनुभव करना एक अलग बात
होगी, यह अहसास था। आज हमारी चिरप्रतीक्षित हवाई यात्रा का संयोग बन रहा था।
हमारी यह पहली हवाई यात्रा
थी। डोमेस्टिकर फलाइट के तहत इंडिगो हवाई सेवा से टिकट लिया गया था। सफर
महज दो घंटे का था, दिल्ली से हैदरावाद का। हरिद्वार से नोएडा तक बस में और फिर नोएडा से हवाई अड्डे तक का सफर मेट्रो से तय
होता है। दिल्ली में मेट्रो का सफर हमेशा ही स्वयं में एक रोचक एवं सुखद अनुभव रहता है। इस बार जाने से पूर्व नोएडा से हवाई अड्डे तक के रुट को एक दिन पूर्व आकर एक्सप्लोअर करते हैं। हवाई अड्डे के दो
रुट हैं, एक तो नई दिल्ली से होकर तो दूसरा द्वारिका-21 से होकर। दोनों ओर से
मेट्रो की विशेष सेवा एअरपोर्ट एक्सप्रेस लाईन चालित है, जिसमें सफर करना किसी
वर्ल्ड क्लास ट्रेन में सफर करने जैसा अनुभव रहता है, जिसे आज पहली वार अनुभव किया। सबकुछ स्वचालित, सुव्यस्थित और अनावश्यक
भीड़ व धक्का-मुक्की से रहित, जो सामान्य मेट्रो का अनुभव रहता है, विशेषकर राजीव
चौक से होकर।
हमारे ट्रायल का अनुभव यह
रहा कि नोएडा से आते हुए यदि सामान ज्यादा है, या साथ में बच्चे, महिला या बुजुर्ग
हैं या आप कम्फर्टेवल जर्नी करना चाहते हैं, तो एयरो स्टेशन तक के लिए
द्वारिका-21 वाला रुट ज्यादा वेहतर है। यह थोड़ा लम्बा जरुर है लेकिन बिना ट्रेन
में उतरे आप सीधा द्वारिका पहुँचते हैं, दूसरी ओर राजीव चौक से नई दिल्ली के लिए
मेट्रो चेंज करनी पड़ती है और राजीव चौक की भीड़ के दबाव को झेलना सामान के साथ
सबके बूते का नहीं है। द्वारिका-21 से एक्सप्रेस लाईन एयरो स्टेशन तक चंद मिनटों
में सफर तय करता है। हालाँकि नई दिल्ली से रुट थोडा लम्बा है, लेकिन रास्ते के नजारे
अद्भुत हैं, कहीं शहर से होकर तो कहीं जंगल से होकर, सबकुछ किसी थ्री-डी मूवी का
हिस्सा बनने के रोमाँचक अहसास जैसा रहता है।
यह सब विगत वर्ष 2018 जून माह की
स्थिति है, जबकि हाल ही में 6-7 माह पूर्व नया रुट (मजेंटा लाईन) तैयार हुआ है, जो
सीधे नोएडा से एयरपोर्ट टर्मिनल-1 तक जाता है। इसका रुट बोटेनिक्ल गार्डन से
जनकपुरी तक का है। इसके चलते नोएडा से डोमेस्टिक फ्लाईट्स के लिए एयरपोर्ट
जाने वालों के लिए यात्रा सरल हो गई है।
एयरो स्टेशन (सीटी) से बाहर फीडर बस के लिए टिकट लेना पड़ता है, जो सीधे एयरपोर्ट तक पहुँचाती हैं। डोमेस्टिक फलाइट्स का टर्मिनल-1 है, जबकि इंटरनेशनल फलाइट्स का टर्मिनल-2 और 3। रास्ते का सफर सुंदर दृश्यों से भरा बहुत सुकूनदायी व सुखद रहता है। सड़कें ऊच्चस्तरीय मानको के अनुरुप, हरियाली, पेड़ व लॉन से घिरी हुई, एक दम साफ–सुथरी व फर्स्ट क्लास, जिसमें समूथ ड्राइविंग एक खुशनुमा अहसास देती हैं। एक टनल रास्ते में आती है, इसके पार होते ही, लो हम एयरस्टेशन की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं।
रास्ते में वरगद-पीपल के वृहद पेड़ आश्वस्त करते हैं। रास्ते में दायीं ओर की कुछ बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, चौकोर से लेकर अलग-अलग डिजायन में अपने देसी माइंडसेट में फिट न होते भवन। प्रश्न उठा कि क्या अपना भारतीय वास्तुशिल्प आर्किटेक्ट के क्षेत्र में कुछ नहीं कर सकता। मॉडर्न आर्ट की तरह यह मॉर्डन आर्किटेक्ट एक कृत्रिम सी रचना लगती है, जो मन में कोई सौंदर्यबोध नहीं जगाती, न ही कोई आध्यात्मिक भाव। खैर हम वृक्षों की छाया के साथ टर्मिनल-1 के गेट पर पहुँच चुके थे, जहाँ से डोमेस्टिक फ्लाईट मिलती है।
यहाँ अंदर हवाई टिकट व आधार कार्ड के साथ स्कियूरिटी चैक होता है और अंदर प्रवेश मिलता है। लिफ्ट से ऊपर चढ़ते हैं और लो हम एयरपोर्ट के मुख्य परिसर में हैं, जहाँ सबसे पहले बोर्डिंग पास लेते हैं, जो लगी ऑटोमेटेड मशीन में टिकट के पीएनआर नंबर व अन्य फील्ड को भरने का साथ एक स्लिप के रुप में मिलता है। यहाँ से आगे बेग ड्रॉप की लाईन लगी होती है, जहाँ अपना भारी सामान जमा होता है, जो सीधे हवाई जहाज में भेजा जाता है, जिसे अपने गन्तव्य स्थल पर उतरने के बाद कलेक्ट किया जाता है।
डोमेस्टिक फ्लाईट में चेक-इन लगेज की अधिकतम सीमा 15 किलो रहती है। बाकि साथ ले जाया जा रहा हल्का सामान भी चैक होता है, जो अधिकतम 7 किलो तक हो सकता है, इसमें भी मोबाइल, वालेट व लैप्टोप को अलग टोकरियों में रखा जाता है। इस तरह सामान स्कियूरिटी मशीन से पास होकर दूसरी ओर मिलता है और अब यात्री वेटिंग रुम की ओर बढ़ते हैं, जहाँ अपनी फ्लाइट्स का इंतजार कर रहे यात्रियों के एसी परिसर युक्त इंतजार की उम्दा व्यवस्था रहती है।
यहाँ हम लगभग फ्लाइट टाइम से 2 घंटे पहले पहुँच चुके थे। सारी फोर्मेलिटीज पूरी होने के बाद अभी पर्याप्त समय था। बीच-बीच में बैठकर बोअर होते तो घूमने निकलते। चारों और तमाम तरह की खाने-पीने से लेकर पहने-ओढ़ने व डेली यूज की चीजों से सजी दुकाने लगी थीं, सजी थीं। अधिकाँश विदेशी ब्राँड ही हमें दिखे। इनका दाम ठीकठाक होगा यह अनुमान लगाते रहे। कंघी की जरुरत थी, तो एक चुनकर खरीद ली, 139 रुपए कीमत निकली। पहली परचेजिंग के प्रतीक के रुप में इसको साथ लिए, जो आज भी साथ है। आशा थी कि ताउम्र मजबूती से हमारे साथ रहेगी, लेकिन आधे दाँत इसके झर चुके हैं, बाकि संभालकर उसको पहली उड़ान की याद के रुप में सावधानी से उपयोग करते हैं।
यहाँ के हाई-फाई स्टाल में चाय 105 रुपए की पी थी, जो याद रहेगी। पानी की मुश्किल से 200 ग्राम की बोटल 60 रुपए की। अनुभव रहा कि हमारे जैसे औसत आदमी के लिए यहाँ ड्यूटी फ्री सर्विस के बावजूद लुटने के पूरे सरंजाम थे, यहाँ सामान खरीदने की वजाए खाने-पीने का अपना घर का या बाहर से खरीदा सामान ज्यादा किफायती रहेगा। बाकि अनुभव के लिए एक-आध बार कुछ परचेजिंग प्रयोग अपनी पॉकेट के हिसाब से अवश्य किए जा सकते हैं।
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