गुरुवार, 30 मई 2019

यात्रा वृतांत - मेरी पहली हवाई यात्रा, भाग1

उत्तर से दक्षिण भारत की ओर - सफर 2 घंटे का

भाग1 - नोएडा मेट्रो से दिल्ली एयरपोर्ट तक
हवाई यात्रा हमारे लिए अब तक एक गहरे कौतुक और जिज्ञासा का विषय रही है। बचपन से ही घर-गाँव में आसमान में उड़ते हवाई जहाज, हेलीकोप्टर व जंगी जहाज देखते, तो आश्चर्य, रोमाँच और भय मिश्रित भाव से इनकी उड़ान निहारते रहते। कभी हम भी इस उड़ान का हिस्सा बनेंगे, तब यह सोचा न था। लेकिन कालक्रम में लगा कि अब यात्रा हकीकत बन सकती है, उसको फिल्मों से लेकर डोक्यूमेंट्रीज व फोटोज में देखकर, सुनकर एक धारणा बन रही थी कि आसमान से नीचे के दृश्य कैसे लगते होंगे, लेकिन प्रत्यक्ष इसका हिस्सा बनकर अनुभव करना एक अलग बात होगी, यह अहसास था। आज हमारी चिरप्रतीक्षित हवाई यात्रा का संयोग बन रहा था।

हमारी यह पहली हवाई यात्रा थी। डोमेस्टिकर फलाइट के तहत इंडिगो हवाई सेवा से टिकट लिया गया था। सफर महज दो घंटे का था, दिल्ली से हैदरावाद का। हरिद्वार से नोएडा तक बस में और फिर नोएडा से हवाई अड्डे तक का सफर मेट्रो से तय होता है। दिल्ली में मेट्रो का सफर हमेशा ही स्वयं में एक रोचक एवं सुखद अनुभव रहता है। इस बार जाने से पूर्व नोएडा से हवाई अड्डे तक के रुट को एक दिन पूर्व आकर एक्सप्लोअर करते हैं। हवाई अड्डे के दो रुट हैं, एक तो नई दिल्ली से होकर तो दूसरा द्वारिका-21 से होकर। दोनों ओर से मेट्रो की विशेष सेवा एअरपोर्ट एक्सप्रेस लाईन चालित है, जिसमें सफर करना किसी वर्ल्ड क्लास ट्रेन में सफर करने जैसा अनुभव रहता है, जिसे आज पहली वार अनुभव किया। सबकुछ स्वचालित, सुव्यस्थित और अनावश्यक भीड़ व धक्का-मुक्की से रहित, जो सामान्य मेट्रो का अनुभव रहता है, विशेषकर राजीव चौक से होकर।


हमारे ट्रायल का अनुभव यह रहा कि नोएडा से आते हुए यदि सामान ज्यादा है, या साथ में बच्चे, महिला या बुजुर्ग हैं या आप कम्फर्टेवल जर्नी करना चाहते हैं, तो एयरो स्टेशन तक के लिए द्वारिका-21 वाला रुट ज्यादा वेहतर है। यह थोड़ा लम्बा जरुर है लेकिन बिना ट्रेन में उतरे आप सीधा द्वारिका पहुँचते हैं, दूसरी ओर राजीव चौक से नई दिल्ली के लिए मेट्रो चेंज करनी पड़ती है और राजीव चौक की भीड़ के दबाव को झेलना सामान के साथ सबके बूते का नहीं है। द्वारिका-21 से एक्सप्रेस लाईन एयरो स्टेशन तक चंद मिनटों में सफर तय करता है। हालाँकि नई दिल्ली से रुट थोडा लम्बा है, लेकिन रास्ते के नजारे अद्भुत हैं, कहीं शहर से होकर तो कहीं जंगल से होकर, सबकुछ किसी थ्री-डी मूवी का हिस्सा बनने के रोमाँचक अहसास जैसा रहता है।

यह सब विगत वर्ष 2018 जून माह की स्थिति है, जबकि हाल ही में 6-7 माह पूर्व नया रुट (मजेंटा लाईन) तैयार हुआ है, जो सीधे नोएडा से एयरपोर्ट टर्मिनल-1 तक जाता है। इसका रुट बोटेनिक्ल गार्डन से जनकपुरी तक का है। इसके चलते नोएडा से डोमेस्टिक फ्लाईट्स के लिए एयरपोर्ट जाने वालों के लिए यात्रा सरल हो गई है।



एयरो स्टेशन (सीटी) से बाहर फीडर बस के लिए टिकट लेना पड़ता है, जो सीधे एयरपोर्ट तक पहुँचाती हैं। डोमेस्टिक फलाइट्स का टर्मिनल-1 है, जबकि इंटरनेशनल फलाइट्स का टर्मिनल-2 और 3। रास्ते का सफर सुंदर दृश्यों से भरा बहुत सुकूनदायी व सुखद रहता है। सड़कें ऊच्चस्तरीय मानको के अनुरुप, हरियाली, पेड़ व लॉन से घिरी हुई, एक दम साफ–सुथरी व फर्स्ट क्लास, जिसमें समूथ ड्राइविंग एक खुशनुमा अहसास देती हैं। एक टनल रास्ते में आती है, इसके पार होते ही, लो हम एयरस्टेशन की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। 
रास्ते में वरगद-पीपल के वृहद पेड़ आश्वस्त करते हैं। रास्ते में दायीं ओर की कुछ बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, चौकोर से लेकर अलग-अलग डिजायन में अपने देसी माइंडसेट में फिट न होते भवन। प्रश्न उठा कि क्या अपना भारतीय वास्तुशिल्प आर्किटेक्ट के क्षेत्र में कुछ नहीं कर सकता। मॉडर्न आर्ट की तरह यह मॉर्डन आर्किटेक्ट एक कृत्रिम सी रचना लगती है, जो मन में कोई सौंदर्यबोध नहीं जगाती, न ही कोई आध्यात्मिक भाव। खैर हम वृक्षों की छाया के साथ टर्मिनल-1 के गेट पर पहुँच चुके थे, जहाँ से डोमेस्टिक फ्लाईट मिलती है।



यहाँ अंदर हवाई टिकट व आधार कार्ड के साथ स्कियूरिटी चैक होता है और अंदर प्रवेश मिलता है। लिफ्ट से ऊपर चढ़ते हैं और लो हम एयरपोर्ट के मुख्य परिसर में हैं, जहाँ सबसे पहले बोर्डिंग पास लेते हैं, जो लगी ऑटोमेटेड मशीन में टिकट के पीएनआर नंबर व अन्य फील्ड को भरने का साथ एक स्लिप के रुप में मिलता है। यहाँ से आगे बेग ड्रॉप की लाईन लगी होती है, जहाँ अपना भारी सामान जमा होता है, जो सीधे हवाई जहाज में भेजा जाता है, जिसे अपने गन्तव्य स्थल पर उतरने के बाद कलेक्ट किया जाता है।


 
डोमेस्टिक फ्लाईट में चेक-इन लगेज की अधिकतम सीमा 15 किलो रहती है। बाकि साथ ले जाया जा रहा हल्का सामान भी चैक होता है, जो अधिकतम 7 किलो तक हो सकता है, इसमें भी मोबाइल, वालेट व लैप्टोप को अलग टोकरियों में रखा जाता है। इस तरह सामान स्कियूरिटी मशीन से पास होकर दूसरी ओर मिलता है और अब यात्री वेटिंग रुम की ओर बढ़ते हैं, जहाँ अपनी फ्लाइट्स का इंतजार कर रहे यात्रियों के एसी परिसर युक्त इंतजार की उम्दा व्यवस्था रहती है। 



यहाँ हम लगभग फ्लाइट टाइम से 2 घंटे पहले पहुँच चुके थे। सारी फोर्मेलिटीज पूरी होने के बाद अभी पर्याप्त समय था। बीच-बीच में बैठकर बोअर होते तो घूमने निकलते। चारों और तमाम तरह की खाने-पीने से लेकर पहने-ओढ़ने व डेली यूज की चीजों से सजी दुकाने लगी थीं, सजी थीं। अधिकाँश विदेशी ब्राँड ही हमें दिखे। इनका दाम ठीकठाक होगा यह अनुमान लगाते रहे। कंघी की जरुरत थी, तो एक चुनकर खरीद ली, 139 रुपए कीमत निकली। पहली परचेजिंग के प्रतीक के रुप में इसको साथ लिए, जो आज भी साथ है। आशा थी कि ताउम्र मजबूती से हमारे साथ रहेगी, लेकिन आधे दाँत इसके झर चुके हैं, बाकि संभालकर उसको पहली उड़ान की याद के रुप में सावधानी से उपयोग करते हैं। 
यहाँ के हाई-फाई स्टाल में चाय 105 रुपए की पी थी, जो याद रहेगी। पानी की मुश्किल से 200 ग्राम की बोटल 60 रुपए की। अनुभव रहा कि हमारे जैसे औसत आदमी के लिए यहाँ ड्यूटी फ्री सर्विस के बावजूद लुटने के पूरे सरंजाम थे, यहाँ सामान खरीदने की वजाए खाने-पीने का अपना घर का या बाहर से खरीदा सामान ज्यादा किफायती रहेगा। बाकि अनुभव के लिए एक-आध बार कुछ परचेजिंग प्रयोग अपनी पॉकेट के हिसाब से अवश्य किए जा सकते हैं। 
यात्रा के अगले भाग को आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं -


मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

पर्यावरण प्रदूषण - प्लास्टिक क्लचर के लिए कौन जिम्मेदार?


सम्मिलित प्रयास से ही होगा समाधान


पिछले लगभग अढाई दशकों से हरिद्वार में रह रहा हूँ। गंगा नदी के तट पर शहर का बसा होना ही इसे विशेष बनाता है। इसके वशिष्ट स्थलों पर स्नान-डुबकी पर जीवन के पाप-ताप से मुक्त होने व परलोक सुधार का भाव रहता है। श्रद्धालुओं का सदा ही यहाँ रेला लगा रहता है, वशिष्ट पर्व-त्यौहारों में इनकी संख्या लाखों में हो जाती है और कुंभ के दौरान तो करोड़ों में।
हर बर्ष साल में एक बार गंगा क्लोजर होता है, सामूहिक सफाई अभियान चलते हैं। तब समझ आता है कि गंगाजी के साथ इसके भक्तों ने क्या बर्ताव किया है। तमाम तरह के कचरे से लेकर पॉलिथीन इसमें बहुतायत में मिलता है। जब गंगाजी के किनारे ही यह धड़ड्ले से बिक रहा हो तो फिर क्या कहने। इस पर नियंत्रण के लिए, सरकार हमारे संज्ञान में अब तक तीन-चार बार पॉलिथीन बंदी का ऐलान कर चुकी है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात दिखते हैं। ( अभी हाल ही में 1 फरवरी 2021 से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशानसुर पहले चरण में गोमुख से हरिद्वार तक प्लास्टिक के किसी तरह के उपयोग पर पाबन्दी का आदेश आया है, जिसमें नियम का उल्लंघन करने वाले पर पांच हजार तक के जुर्माने की बात कही गई है।)
हालांकि चार धाम यात्रा के शुरु होने के पूर्व सरकार पुनः पॉलिथीन की बंदी को लेकर संजीदा दिखी है(थी)। अखबार के समाचारों के अनुसार, इसके खिलाफ उपयुक्त दंड़ का भी भय दिखाया जा रहा है। केदारनाथ में गौरीकुंड़ से आगे बरसाती व अन्य पालीथीन ले जाने की मनाही घोषित हो चुकी है। प्रशासन द्वारा गौरिकुँड से पॉलिथीन के बरसाती दिए जाएंगे, जिन्हें बापिसी में लौटाना होगा। इसी तरह यमुनोत्री तीर्थ में पालिथीन में पैक अग्रवती एवं प्रसाद आदि पर बंदी के समाचार मिल रहे हैं। ऐसा ही कुछ बाकि धामों में भी सुनने को मिल सकता है, जो स्वागत योग्य कदम हैं।
लेकिन प्लास्टिक बैन का यह मुद्दा हमें काफी पेचीदा लगता है, जिसके अपने कारण हैं। पिछले कुछ बर्षों से हम व्यैक्तिगत स्तर पर इसके खिलाफ एक्ला अभियान चलाए हुए हैं। अपना थैला लेकर दुकान जाते हैं। शांतिकुंज आश्रम और देवसंस्कृति विवि की बात छोड़ें (दोनों परिसर प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र बन चुके हैं) तो बाहर दुकानों, ठेलों, हाटों व बाजार में पालिथीन बैन को लेकर जो स्थिति है, वह इस पोस्ट में शेयर कर रहा हूँ। ये लगभग हमारी लम्बी व्यवहारिक शोध के अनुभूत परिणाम हैं, जो लगभग हर पर्चेजिंग के बक्त प्लास्टिक उपयोग कर रहे दुकानदारों व ग्राहकों से पूछे गए सबालों के रिस्पोंस पर आधारित है।
जहाँ पालिथीन में ही समान दिया जाते हैं, पूछने पर जबाब रहता है कि हम क्या करें, ग्राहक ही इसकी माँग करते हैं। अपना थैला तो लाते नहीं, उल्टा पालीथीन पैकेट के लिए झगड़ते हैं। जब वहाँ ऐसी माँग करने वालो ग्राहकों से पूछा जाता है, तो प्रायः जबाव रहता है कि कुछ होने वाला नहीं। जब तक सरकार पीछे से ही पालिथीन बैन नहीं करती, ऐसे ही चलता रहेगा। दुकानदार भी जोर से सहमति जताते हुए अपना आक्रोश व्यक्त करता है, कि सरकार ऐसी फेक्ट्रियों को बंद क्यों नहीं करती।
पूछने पर कि यदि प्रशासन आकर जुर्माना लगाए तो। जबाब रहता है कि देख लेंगे जब ऐसा होगा तो। आए दिन प्रशासन के शहर के हरकी पौड़ी साईड या कुछ अन्य स्थानों पर छापे व सजा की खबरे आती रहती हैं, लेकिन दुनाकदारों के बीच इन छुट पुट घटनाओं का कोई भय नहीं है।
मूल प्रश्न भय का नहीं है, अपनी जिम्मेदारी का है, जिसका लगता है न अधिकाँश दुकानदारों को, न अधिकाँश ग्राहकों को अहसास है और सरकार के ढुलमुल रवैये पर भी सवाल तो उठता ही है। कुल मिलाकर, यदि पालिथीन बैन पर राजनैतिक इच्छा शक्ति में दम होता, प्रशासन कड़क होता, थोड़ा सा ग्राहक अपनी जिम्मेदारी समझता (अपना बैग ही तो साथ रखना है) और थोड़ा सा दुकानदार खर्च करता या प्लास्टिक की माँग बाले ग्राहकों को वायकोट करने का साहस रखता। उसी पल समाधान हो जाता।
हमें याद है पिछले दो दशकों की, हम जब भी हिमाचल में शिमला जाते हैं या कुल्लू-मानाली, हमें प्लाटिक क्लचर का ऐसा गैर-जिम्मेदाराना रवैया नहीं दिखता, जैसा हरिद्वार धर्मनगरी में है। शायद वहाँ प्रशासन, ग्राहक एवं दुकानदार – तीनों स्तर पर न्यूनतम जिम्मेदारी के सम्मिलित प्रयास हुए हैं, जिसका सुखद परिणाम प्लास्टिक मुक्त क्लचर के रुप में सामने है।
हमारी हमसे जुड़े मित्रों, छात्रों, बुजुर्गों, गृहणियों एवं जिम्मेदार नागरिकों से एक ही गुजारिश है कि प्लास्टिक बैन को सफल बनाने में अपने न्यूनतम दायित्व का निर्वाह करने का प्रयास करें। इसमें अधिक कुछ नहीं करना है, बस खरीददारी के वक्त अपने साथ अपना थैला भर साथ रखना है। प्लास्टिक के प्रति गैरजागरुक दुकानदार एवं ग्राहक को एक बार, नहीं बार-बार प्यार से अगाह जरुर करते रहें। हम तो अपना एक्ला अभियान जारी रखे हैं, आप भी रखें। न जाने कब इसका सम्मिलित प्रभाव प्लास्टिक क्लचर से मुक्ति का आधार बनेगा। फिर न गंगाजी या अन्य किसी नदी का दम प्लास्टिक के कचरे से चोक होगा। न कोई गाय व अन्य पशु प्लास्टिक के कारण दम तोड़ने को विवश होंगे। और शायद सरकार व प्रशासन के ढुलमुल रबैये के कारण चल रही फैक्ट्रियों भी खुद-व-खुद बंद हो जाए।

मेरा गाँव, मेरा देश – महाप्रकृति का कृपा कटाक्ष


प्रकृति की सच्चे पुत्र बनकर जीने में ही समझदारी
पिछले दशकों में प्राकृतिक जल स्रोत्र जिस तरह से सूखे हैं, वह चिंता का विषय रहा है। अपना जन्म स्थान भी इसका अपवाद नहीं रहा। मेरा गाँव मेरे देश के तहत हम पिछले चार-पाँच वर्षों से इस विषय पर कुछ न कुछ प्रकाश डाल रहे हैं। साथ ही इससे जुड़ी विसंगतियों एवं संभावित समाधान की चर्चा करते रहे हैं।
गाँव का पुरातन जल स्रोत - नाला रहा, जिसकी गोद में हमारा बचपन बीता। इसका जल हमारे बचपने के पीने के पानी का अहं स्रोत था, फिर गाँव में नल के जल की व्यवस्था होती है। साथ ही गाँव के छोर पर चश्में का शुद्ध जल (लोक्ल भाषा में जायरु) हमेशा ही आपात का साथी रहा है। नाले पर बना सेऊबाग झरना गाँव का एक अहम् आकर्षण रहा, जिसके संग प्रवाहमान जीवन की चर्चा होती रही है। लेकिन पिछले दशकों में इस झरने को वर्ष के अधिकाँश समय सूखा देखकर चिंता एवं दुख होता रहा और पिछले दो साल से इसके रिचार्ज हेतु कार्य योजना पर प्रयास चल रहा है।
हालाँकि अभी समस्या इतना गंभीर भी नहीं थी, क्योंकि यह प्राकृतिक से अधिक मानव निर्मित रही। क्योंकि खेतों की सिंचाई को लेकर जिस तरह से पाईपों का जाल बिछा और नाले के जल को खेतों तक पहुँचाया जा रहा है, दूसरा पारंपरिक रुप से जल अभाव से ग्रस्त पड़ोस की फाटी की जल आपूर्ति के लिए पीछे से ही जल का बंटवारा हो रहा है, तो ऐसे में नाले का सूखना स्वाभाविक था। लेकिन दो वर्ष से हम इसके मूल स्रोत्र का मुआइना किए, तो दोनों बार, मूल झरने के जल को न्यूनतम अवस्था में देखकर दुःख हुआ, जिसके कारण नीचे की ओर दोनों जल धाराएं सूखी मिलीं। जो थोड़ा बहुत जल था वह अंडरग्राऊँड होकर नीचे नाले में प्रकट होता था और पाईपों के माध्यम से खेतों में जा रहा था। और नीचे का सेऊबाग झरना नाममात्र की नमी के साथ सूखा ही मिला।
इस बार जुलाई में जिस तरह की बरसात हुई, तो गाँव के नाले व झरनों को पूरे श्बाव पर देखा।
इसके बाद सर्दियों में जिस तरह की रिकार्डतोड़ बारिश और बर्फवारी हुई, उसने जैसे जल स्रोत्रों को पूरी तरह से रिचार्ज कर दिया। अप्रैल माह में हुई हमारी संक्षिप्त यात्रा के दौरान नाले के पानी को नीचे व्यास नदी तक दनदनाते हुए बहते हुए देख अत्यन्त हर्ष हुआ। सेऊबाग झरना लगातार पिछले छः माह से पूरे श्बाब पर झर रहा है, जैसे इसको पुनर्जीवन मिला हो, खोया जीवन बापिस आ गया हो। नाले के ईर्द-गिर्द निर्भर जीव-जंतुओं, वनस्पतियों से लेकर इंसान के जीवन में जैसे एक नया प्राण लहलहा उठा हो।
इसके मूल में पीछे प्रवाहित हो रहे झरने व जलधाराओं को देखने के लिए जब गए तो पनाणी शिला के मूल झरने को भी पूरे श्बाब के साथ झरते हुए देखकर हर्ष हुआ। नीचे जल की दोनों धाराएं बहती हुई दिखी, जो पिछले दो वर्षों से नादारद थीं। पूरा नाला दनदनाते हुए बह रहा था। लगा जैसे महाप्रकृति कितनी समर्थ है, एक ही झटके में कैसे वह अपने अनुदानों से त्रस्त इंसान एवं जीवों की व्यथा का निवारण कर सकती है। उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं।
लेकिन यहाँ मात्र प्रकृति के भरोसे बैठे रहने और अपने कर्तव्य से मूँह मोड़ने से भी काम चलने वाला नहीं। प्रकृति के वरदान एक तरफा नहीं हो सकते। मनुष्य ने पहले ही प्रकृति के साथ पर्याप्त खिलवाड़ कर इसे कुपित कर रखा है, इसका संतुलन बिगाड़ दिया है, और दूषित करने से बाज नहीं आ रहा, इसका दोहन शौषण करने पर उतारू है। ऐसे में वह इसके कोप से नहीं बच सकता। कितने रुपों में इसके प्रहार हो रहे हैं और आगे भी होंगे, इसके लिए तैयार रहना होगा।
जो अभी अपने गाँव-घाटी में समाधान की उज्जली किरण दिखी है, वह प्रकृति की कृपा स्वरुप है। लेकिन यह सामयिक ही है। सिकुड़ते बनों और सूखते जल स्रोत्रों की समस्या यथावत है। गर्मियों में इसके अस्ली स्वरुप के दर्शन होने बाकि हैं। सारतः इस दिशा में लगातार प्रयास की जरुरत है। जब प्रकृति इस वर्ष की तरह अनुकूल न हो, उस स्थिति के लिए भी तैयार रहना होगा। उस विषमतम परिस्थिति में अधिक से अधिक किया गया वृक्षारोपण, जल संरक्षण के लिए किए गए प्रयोग ही काम आएंगे। इस दिशा में हर क्षेत्र के जागरुक व्यक्तियों को आगे आकर दूरदर्शिता भरे कदम उठाने होंगे, जिससे कि संभावित संकट से निपटने की पूर्व तैयारी हो सके।
सार रुप में प्रकृति के सामयिक उपहार अपनी जगह, समस्या की जीर्णता को देखते हुए समाधान के मानवीय प्रयास अपनी जगह, जो रुकने नहीं चाहिए। इसमें लापरवाही और चूक भारी पड़ सकती है। कुल मिलाकर प्रकृति से जुड़कर, इसकी सच्ची संतान बनकर जीने में ही हमारी भलाई है, समझदारी है।

रविवार, 31 मार्च 2019

Travelogue - In the lap of Surkunda Hill via Dhanaulti-Dehradun


A blessed trip for the seekers of Himalayan touch
Surkunda is the highest peak in Garwal Himalayan region near Mussoorie Hills with Shaktipeeth at the top. It is easily accessible by motorable route from Dehradun as well Rishikesh side. The trip to Surkunda from Haridwar advances from Rishikesh with Chamba town on the way. It is a wonderful tour with breathtaking views on the route.
From DSVV Haridwar, it takes just half an hour to reach Rishikesh. There from Mahakali temple, the road ascends towards Narendernagar, a small hill town situated at the foothills of Kunja Devi.
The route crosses through dense jungle and dripping water sources on the roadside. The panoramic view of Rishikesh from the ascending heights looks spectacular. Within half an hour one crosses through Narendernagar, the small town established by King of Garhwal, whose palace still bears a majestic look on the top of small hill as Ananda Resort; occasionally graced by celebrities, sports and film stars.
After Narendernagar the route crosses under the foothills of Kunja Devi situated at the top of the hill. Within next half an hour passengers reach Agarakhal, where pahadi Dhaba are ready with morning breakfast and local meals. Afterward journey descends till Jajal, where river Hamwle crosses the bridge. On the way one can have beautiful views of distant Himalayan villages, green terrace fields and dense jungles.
Route from Jajal onwards crosses through a narrow valley with Hamwle river at left-side flowing southwards. One can see crash crops and vegetables growing on the banks of the river. Jarhdhari village on the route gives a wonderful view spread over length and width of the valley.
Next comes Chamba town on the top of the hills, which is gateway to New Tehri as well as Mussoorie Hills.
Dhanaulti is about 100 KM from Chamba on Mussoorie route.
The major station on the way are Kanataal, Kaddukhal etc. The road is well above 7-8000 feet height. Cool breeze on the way gives the distinct feel of Himalayan touch all the way. Half of the route passes over the ridge, giving panoramic view of both sides. On the left side are the deep valleys of Dehradun side and on the right side stands snow covered Mighty Himalayan range with peaks like Trishul, Nanda Devi, Panchachuli etc.
Near Kanataal one can have group photo at the view point. Tea lovers can enjoy hot-drink on the adjacent Dhaba and gain some warmth in this cold region. In the terrace fields one can view apricot, pears, plum and apple trees, which are the gifted fruits for this height. Also cabbage, broccoli, salads, iceberg, peas etc. are abundantly grown over the sloppy fields. Their taste and organic nature make these vegetables and fruits special ones. One can purchase from roadside shops as family gift.
In the next one hour one reaches Kaddukhal after crossing dense Deodar jungle at the feet of Surkunda Hills. 
It is one of the most beautiful routes of the way. Also Buransh trees (Rhododendron arboreum) with red flowers grow here abundantly in April month. It is the special attraction of the season and indeed treat to the eyes.

Surkunda temple is 3 km trek from Kaddukhal station situated at 8000 ft.
It take about one hour to trek the route. Buransh (Rhododendron) jungles, thick wild bushes welcome the trekkers on the way. As one ascends the route one can get panoramic view of the valley down which spreads many km far down South.
Surkunda top is at 10,000 feet with a beautifully carved temple of Divine Mother. Distant view of snow covered Himalayas from the temple is simply heavenly. One can have look of Mountain peaks of Ganagotri, Kedarnath, Badrinath region from here. Also Chanderbadni Shaktipeeth on the top of distant hill is visible from here.
Even in the months of March one get snow at this height.  Lost in the heavenly beauty of this height, dwelling in the spiritual vibes of the place is a meditative experience. Presence of Lord Siva-Parvati, Hanuman and Shiva family in the premises enhances the sacredness of the Shaktipeeth. 
During Navratra and Dussera there are special celebrations here. After spending some quality moments of devotion and deep self-reflection, one can descend down to main road at Kaddukhal that takes just half an hour. Beautiful view of valley down on the way are simply captivating, which hardly any person can forget to capture in camera and mobile.
At Kaddukhal one can have pahari lunch at local Dhabas and restaurants at reasonable price. Fresh and hot food refreshes and recharge the trekkers.
After half an hours come Dhanaulti hill station engulfed with sky high Deodar trees. One can expect snow on the sloppy side with little exposure to sun light. It is a cold place. One can have some memorable pics here in the lap of nature. There is one Bio diversity park and some view points on the route for group photos.
After about one hour drive from here comes Mussoorie hill bypass, with Dehradun at foothill visible from the top. City lake on the way is an attraction. One can enjoy boating in its cool waters and enjoy shopping and adventure activities.
With Sunset panoramic view of Dehradun from top is worth watching. Curvy road with steep U-turns popularly known as Jalebi road is in itself a new experience to the fresh visitors. If one gets time, one can stop by and visit places like, Shakya College, Prakasheswar temple, Ramakrishna Mission etc. on the way. Generally it gets dark when one enters Dehradun. Road by Dehradun leads to Haridwar in the dark night amid the sparkling lights of the capital city and one enters Haridwar by 8:00/9:00 pm. There are good Dhabas for dinner on the way near Bhaniawala and fun valley.
Journey completes in 12-14 hours with remarkable experiences and sweet memories of the way. 
If traveler has one more day, night halt in the camping sites near Dhanaulti and Kanataal region can be arranged with so many service providers. A combo of adventure activities, hill trekking, village safari, birds watching, camp fire etc. can be enjoyed in the lap of mountains.
In fact this route is a blessing to those living in Dehradun or Haridwar region, especially to the nature lovers and seekers of peace with Himalayan touch. This route is the perfect one capable of giving the seeker one of the most fulfilling and memorable experience.

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...