यदि आप प्रकृति की गोद में कुछ सुकून भरे पलों की
तलाश में हैं और वह भी हिमालय की किन्हीं एकांत-शांत वादियों में अपने शहर के पास,
तो आपकी खोज लैंसडाउन में पूरा हो सकती है। दिल्ली और हरिद्वार से महज 5 घंटे का
सफर आपको यहाँ पहुँचा देता है। रास्ता कोटद्वार शहर से होकर गुजरता है। हरिद्वार
से कोटद्वार के बीच का लालढांग कस्बे एवं बीच में कार्बेट पार्क से होता हुआ
रास्ता स्वयं में प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ है।
मार्च-अप्रैल माह में गैंहूं की पक रही फसल से
लहलहाते खेत अपने भूरे, हरे रंग के पैटर्न के साथ एक अद्भुत नजारा पेश करते हैं।
साथ में हरी-भरी सब्जियों से भरे खेत आंखों को शीतलता देते हैं। आम के वृक्षों के
बौर, कुछ अन्य तराई के फलों के रंग-बिरंगे फूल वसंती आभा लिए रास्ते भर आपका
स्वागत करते हैं। पृष्ठभूमि में गढ़वाल हिमालय के पहाड़, उनमें फूल रहे जंगल, फूट
रहीं ताजा कौंपलें एक बहुत ही सुंदर नजारा पेश करते हैं।
यही नजारा कोटद्वार के बाद लैंसडाउन तक लगभग 40 किमी
की मोड़दार चढाई के साथ एकदम साथ नजर आता है। इसमें पहाड़ की चढ़ाई के साथ कुछ नए
आकर्षण जुड़ते जाते हैं, जिनमें एक है नीचे घाटी में बहती मालिनी नदी, जिसका पानी इस
सीजन में घुटने जितना ही दिखता है, लेकिन इसके किनारे फल-फूल रहे लोकजीवन की
सक्रियता को निहारा जा सकता है।
कहीं किसान इसके किनारे खेती कर रहे हैं, तो कहीं मछुआरे मच्छली पकड़ रहे, कहीं कपड़े धुल रहे हैं तो कहीं इसके किनारे भेड़-बकरियाँ-गाय-घोड़े आदि चर रहे हैं तो कहीं इसके किनारे तम्बू लगे हैं, रिजॉर्ट बने हैं, टूरिस्ट कैंप चल रहे हैं। कहीं इसके किनारे पूरे गाँव आबाद हैं।
कहीं किसान इसके किनारे खेती कर रहे हैं, तो कहीं मछुआरे मच्छली पकड़ रहे, कहीं कपड़े धुल रहे हैं तो कहीं इसके किनारे भेड़-बकरियाँ-गाय-घोड़े आदि चर रहे हैं तो कहीं इसके किनारे तम्बू लगे हैं, रिजॉर्ट बने हैं, टूरिस्ट कैंप चल रहे हैं। कहीं इसके किनारे पूरे गाँव आबाद हैं।
कोटद्वार से चढ़ाई शुरु होते ही मालिनी नदी के
वाँए तट पर प्रसिद्ध सिद्धबली मंदिर ध्यान आकर्षित करता है, जो एक टीले पर स्थित है। इसे हनुमानजी का चमत्कारी मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की मान्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें भंडारा करवाने के लिए 2025 तक की बुकिंग हो चुकी है।
आगे ग्यारह किमी दूरी पर मालिनी नदी के तट पर सड़क किनारे खड़ा माँ दुर्गा का मंदिर है। रास्ते में आगे एक छोटा कस्बा आता है। इसके आगे सड़क के दोनों और साल के जंगल सफर को सुकूनदायी बनाते हैं।
आगे ग्यारह किमी दूरी पर मालिनी नदी के तट पर सड़क किनारे खड़ा माँ दुर्गा का मंदिर है। रास्ते में आगे एक छोटा कस्बा आता है। इसके आगे सड़क के दोनों और साल के जंगल सफर को सुकूनदायी बनाते हैं।
कुछ देर बाद रास्ते में चीड़ के जंगल शुरु हो
जाते हैं, जो देखने में बहुत खराब तो नहीं लगते, किंतु पर्यावरण की दृष्टि से
अनुकूल भी नहीं माने जाते। सरकार ने किस योजना के तहत इनके जंगलों से पहाड़ों को
पाट रखा है, ये तो वे ही जाने, लेकिन इनका रिप्लेसमेंट अन्य वेहतरीन वृक्षों से हो
सकता है। और शायद सरकार इस दिशा में कुछ काम भी कर रही है।
जितना हम पहाड़ों में ऊपर चढ़ते जाते हैं, नीचे
घाटी का विहंगम दृश्य एक दूसरे ही भावलोक में ले जाता है। इस पर दूर घाटियों में
एकांत-शांत स्थल पर बसे पहाड़ी गाँबों को देखकर मन कल्पना के पंख लगाकर उड़ान भरने
लगता है। रास्ते में रीज पर बसा एक पहाड़ी गाँव बहुत ही लुभावना नजारा पेश करता
है।
इस रास्ते में जल स्रोत्रों का अभाव थोड़ा अजीव लगा, नालों में नमी के साथ सफेद और पीले जंगली फूलों के गलीचों को बिच्छे देखा, यह नजारा पूरी राह कई स्थानों पर दिखा, व देखने में अच्छा लगा।
इस रास्ते में जल स्रोत्रों का अभाव थोड़ा अजीव लगा, नालों में नमी के साथ सफेद और पीले जंगली फूलों के गलीचों को बिच्छे देखा, यह नजारा पूरी राह कई स्थानों पर दिखा, व देखने में अच्छा लगा।
लैंसडॉन से पहले बांज के नन्हें पेड़ नजर आना
शुरु होते हैं, चीड के पेड़ विरल हो जाते हैं।
लैंसडॉन में प्रवेश करते ही बाँज के बड़े पेड़ दिखना शुरु होते हैं और सुर्ख लाल फूलों से लदे बुराँश के सुंदर पेड़ भी, जो हिमालय की बर्फिली उंचाईयों में पहुँचने का अहसास देते हैं। मार्च-अप्रैल माह में बाँज की नई पत्तियाँ उग रही होती हैं, ऐसे में इनके भूरे, हल्के हरे रंग के चमकीले पत्ते एक अलग ही ताजगी भरा मखमली अहसास दिलाते हैं, जिसे सैलानी बखूवी अनुभव कर सकते हैं।
लैंसडॉन में प्रवेश करते ही बाँज के बड़े पेड़ दिखना शुरु होते हैं और सुर्ख लाल फूलों से लदे बुराँश के सुंदर पेड़ भी, जो हिमालय की बर्फिली उंचाईयों में पहुँचने का अहसास देते हैं। मार्च-अप्रैल माह में बाँज की नई पत्तियाँ उग रही होती हैं, ऐसे में इनके भूरे, हल्के हरे रंग के चमकीले पत्ते एक अलग ही ताजगी भरा मखमली अहसास दिलाते हैं, जिसे सैलानी बखूवी अनुभव कर सकते हैं।
लैंसडाउन की निर्मल एवं शीतल आवोहवा बहुत ही
सुकूनदायी लगती है। लगता है कि हम किसी शांत-एकांत हिल स्टेशन में पहुँच गए हैं।
इस कस्बे की खासियत है इसका आर्मी केंटोनमेंट क्षेत्र में होना। गढ़वाल राइफल्ज का
यह केंद्र है, जिसके चलते अन्य हिल स्टेशनों की तरह अनावश्यक जन हस्तक्षेप, भव
निर्माण, एन्क्रोचमेंट आदि के अभिशाप से यह मुक्त है, जो इसे एक प्राकृतिक, स्वच्छ
और मनभावन हिल स्टेशन बनाता है। एक अनुशासन एवं सुरक्षा का माहौल इसकी
एक अतिरिक्त विशेषता अनुभव होती है।
यहाँ का भुल्ला ताल एक मानव निर्मित झील है,
जिसमें वोटिंग का आनन्द लिया जा सकता है। इसके चारों और बैठने आराम करने की
छायादार सुबिधा है। बाँज बुराँश के पेड़ों से यह क्षेत्र आच्छादित है, जिस कारण
झील के किसी भी कौने में बैठकर प्रकृति की नीरव शांति में अंतर संवाद के विशिष्ट पलों को
अनुभव किया जा सकता है। झील में तैर रहे बत्खों के झुंड़ को निहारना स्वयं में एक
मजेदार अनुभव रहता है। झील के शुरुआती कोर्नर में खाने-पीने की भी उचित व्यवस्था
है।
टिप-एन-टॉप यहां से ऊपर चोटी पर दर्शनीय बिंदु
है, जहाँ से दूर घाटी का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है। इसके नीचे व किनारे बाँज, बुराँश व देवदार के घने जंगल बसे हैं, जिसके बीच का पैदल सफर पैसा बसूल ट्रिप
सावित होता है।
रास्ते में चर्च के पास ही गाड़ी खड़ी कर पैदल यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। देवदार-बुराँश के जंगल के बीच स्थित चर्च में शांत चित्त होकर दो पल प्रार्थना के विताए जा सकते हैं।
टिप-एन-टॉप पर चाय, नाश्ते व भोजन आदि की व्यवस्था है। इसके आगे संतोषी माता का मंदिर पड़ता है। समय हो तो यहाँ के दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसे ही लैंसडाउन मार्केट से नीचे कालेश्वर शिव मंदिर है, तो यहाँ से 38 किमी दूर ताड़केश्वर शिव का मंदिर, समय हो तो इन धार्मिक स्थलों को जोडकर आध्यात्मिक पर्यटन का लाभ उठाया जा सकता है।
रास्ते में चर्च के पास ही गाड़ी खड़ी कर पैदल यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। देवदार-बुराँश के जंगल के बीच स्थित चर्च में शांत चित्त होकर दो पल प्रार्थना के विताए जा सकते हैं।
टिप-एन-टॉप पर चाय, नाश्ते व भोजन आदि की व्यवस्था है। इसके आगे संतोषी माता का मंदिर पड़ता है। समय हो तो यहाँ के दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसे ही लैंसडाउन मार्केट से नीचे कालेश्वर शिव मंदिर है, तो यहाँ से 38 किमी दूर ताड़केश्वर शिव का मंदिर, समय हो तो इन धार्मिक स्थलों को जोडकर आध्यात्मिक पर्यटन का लाभ उठाया जा सकता है।
लैंसडाउन मुख्यतः गढ़वाल राइफल्ज की छावनी है।
अतः रविवार को छोड़कर वाकि दिन यहाँ के वार मैमोरियल एवं रेजीमेंट म्यूजियम में यहाँ के
गौरवपूर्ण इतिहास की झलक पायी जा सकती है। पास में ही पैरेड़ ग्राउंड के दर्शन किए जा सकते हैं, जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी कई गतिविधियों का गवाही रहा है। यहाँ सेना द्वारा किए जा रहे रचनात्मक
कार्यों को भी देखा जा सकता है।
कम ही लोगों को पता होगा कि यहाँ सेना उफरैंखाल
के प्रख्यात पर्यावरणविद श्री सच्चिदानन्द भारतीजी के मार्गदर्शन में जल एव वन
संरक्षण के मॉडल को लागू किए हुए हैं। अभी
इसको लागू किए दो-तीन साल ही हुए हैं, लेकिन इससे परिणाम उत्साहबर्धक देखे जा रहे
हैं। पीर बाबा मजार साईड के पुराने धोबीघाट क्षेत्र में सूखा जल स्रोत रिचार्ज हो
रहा है। ऐसे ही नए धोबीघाट में भी इसके प्रयोग के चलते जल स्रोत्र रिचार्ज हो रहे
हैं।
छावनी बोर्ड के उपाध्यक्ष डॉ. नैथानीजी के
मार्गदर्शन में हम संक्षिप्त समय में ही बहुत कुछ देख पाए। हालाँकि हमारा
पत्रकारिता के विद्यार्थियों के साथ सम्पन्न यह टूर संयोग से रविवार के दिन पड़ा,
जिसके कारण हम इसके पूरे दिग्दर्शन नहीं कर पाए।
इस भ्रमण में लैंसडाउन से सतही लेकिन दिल को छूने वाला परिचय हुआ, लगा जैसे यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता गहरे रुह में समा गयी है। अभी तक यह हिल स्टेशन कैसे अपनी पहुँच से दूर रहा, इस पर ताज्जुक होता रहा।
इस भ्रमण में लैंसडाउन से सतही लेकिन दिल को छूने वाला परिचय हुआ, लगा जैसे यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता गहरे रुह में समा गयी है। अभी तक यह हिल स्टेशन कैसे अपनी पहुँच से दूर रहा, इस पर ताज्जुक होता रहा।
सार रुप में लैंसड़ाउन अभी प्राकृतिक रुप से
संरक्षित पहाड़ी कस्वा है, जहाँ अपने यार-दोस्तों व परिवार के साथ क्वालिटी समय
विताया जा सकता है। एक दिन में इसके साथ न्याय नहीं हो सकता है, कम से कम दो दिन में
इससे जुड़े स्थलों को एक्सप्लोअर किया जा सकता है। यहाँ के टिप-इन-टॉप से सनराईज
एवं सनसेट का नजारा बेहतरीन रहता है।
बरसात के दिनों में यहाँ बादलों के फाहों के बीच के सौंदर्य को एक अलग ही अंदाज में निहारा जा सकता है। रुकने के लिए यहाँ गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस एवं अन्य होटलों की व्यवस्था है, जिनकी ऑनलाइन बुकिंग की जा सकती है।
समुद्र तल से लगभग 5600 फीट की ऊँचाई पर बसा यह हिल स्टेशन अंग्रेजों द्वारा 1887 में वसाया गया था। आज सेना की देख-रेख में होने के कारण इस हिल स्टेशन का प्राकृतिक सौंदर्य बर्करार है, जो किसी भी प्रकृति प्रेमी और शाँत-एकांत स्थल की तलाश में भटक रहे पथिक की मुराद पूरी करने में सक्षम है।
बरसात के दिनों में यहाँ बादलों के फाहों के बीच के सौंदर्य को एक अलग ही अंदाज में निहारा जा सकता है। रुकने के लिए यहाँ गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस एवं अन्य होटलों की व्यवस्था है, जिनकी ऑनलाइन बुकिंग की जा सकती है।
समुद्र तल से लगभग 5600 फीट की ऊँचाई पर बसा यह हिल स्टेशन अंग्रेजों द्वारा 1887 में वसाया गया था। आज सेना की देख-रेख में होने के कारण इस हिल स्टेशन का प्राकृतिक सौंदर्य बर्करार है, जो किसी भी प्रकृति प्रेमी और शाँत-एकांत स्थल की तलाश में भटक रहे पथिक की मुराद पूरी करने में सक्षम है।