रविवार, 31 मार्च 2019

यात्रा वृताांत - लैंसडाउन : प्रकृति की गोद में बसा स्वप्निल सौंदर्य


आपके सुकून भरे पलों की तलाश पूरी हो सकती है यहाँ

यदि आप प्रकृति की गोद में कुछ सुकून भरे पलों की तलाश में हैं और वह भी हिमालय की किन्हीं एकांत-शांत वादियों में अपने शहर के पास, तो आपकी खोज लैंसडाउन में पूरा हो सकती है। दिल्ली और हरिद्वार से महज 5 घंटे का सफर आपको यहाँ पहुँचा देता है। रास्ता कोटद्वार शहर से होकर गुजरता है। हरिद्वार से कोटद्वार के बीच का लालढांग कस्बे एवं बीच में कार्बेट पार्क से होता हुआ रास्ता स्वयं में प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ है।
मार्च-अप्रैल माह में गैंहूं की पक रही फसल से लहलहाते खेत अपने भूरे, हरे रंग के पैटर्न के साथ एक अद्भुत नजारा पेश करते हैं। साथ में हरी-भरी सब्जियों से भरे खेत आंखों को शीतलता देते हैं। आम के वृक्षों के बौर, कुछ अन्य तराई के फलों के रंग-बिरंगे फूल वसंती आभा लिए रास्ते भर आपका स्वागत करते हैं। पृष्ठभूमि में गढ़वाल हिमालय के पहाड़, उनमें फूल रहे जंगल, फूट रहीं ताजा कौंपलें एक बहुत ही सुंदर नजारा पेश करते हैं।
यही नजारा कोटद्वार के बाद लैंसडाउन तक लगभग 40 किमी की मोड़दार चढाई के साथ एकदम साथ नजर आता है। इसमें पहाड़ की चढ़ाई के साथ कुछ नए आकर्षण जुड़ते जाते हैं, जिनमें एक है नीचे घाटी में बहती मालिनी नदी, जिसका पानी इस सीजन में घुटने जितना ही दिखता है, लेकिन इसके किनारे फल-फूल रहे लोकजीवन की सक्रियता को निहारा जा सकता है।
कहीं किसान इसके किनारे खेती कर रहे हैं, तो कहीं मछुआरे मच्छली पकड़ रहे, कहीं कपड़े धुल रहे हैं तो कहीं इसके किनारे भेड़-बकरियाँ-गाय-घोड़े आदि चर रहे हैं तो कहीं इसके किनारे तम्बू लगे हैं, रिजॉर्ट बने हैं, टूरिस्ट कैंप चल रहे हैं। कहीं इसके किनारे पूरे गाँव आबाद हैं।
कोटद्वार से चढ़ाई शुरु होते ही मालिनी नदी के वाँए तट पर प्रसिद्ध सिद्धबली मंदिर ध्यान आकर्षित करता है, जो एक टीले पर स्थित है। इसे हनुमानजी का चमत्कारी मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की मान्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें भंडारा करवाने के लिए 2025 तक की बुकिंग हो चुकी है।
आगे ग्यारह किमी दूरी पर मालिनी नदी के तट पर सड़क किनारे खड़ा माँ दुर्गा का मंदिर है। रास्ते में आगे एक छोटा कस्बा आता है। इसके आगे सड़क के दोनों और साल के जंगल सफर को सुकूनदायी बनाते हैं।
कुछ देर बाद रास्ते में चीड़ के जंगल शुरु हो जाते हैं, जो देखने में बहुत खराब तो नहीं लगते, किंतु पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल भी नहीं माने जाते। सरकार ने किस योजना के तहत इनके जंगलों से पहाड़ों को पाट रखा है, ये तो वे ही जाने, लेकिन इनका रिप्लेसमेंट अन्य वेहतरीन वृक्षों से हो सकता है। और शायद सरकार इस दिशा में कुछ काम भी कर रही है।
जितना हम पहाड़ों में ऊपर चढ़ते जाते हैं, नीचे घाटी का विहंगम दृश्य एक दूसरे ही भावलोक में ले जाता है। इस पर दूर घाटियों में एकांत-शांत स्थल पर बसे पहाड़ी गाँबों को देखकर मन कल्पना के पंख लगाकर उड़ान भरने लगता है। रास्ते में रीज पर बसा एक पहाड़ी गाँव बहुत ही लुभावना नजारा पेश करता है।
इस रास्ते में जल स्रोत्रों का अभाव थोड़ा अजीव लगा, नालों में नमी के साथ सफेद और पीले जंगली फूलों के गलीचों को बिच्छे देखा, यह नजारा पूरी राह कई स्थानों पर दिखा, व देखने में अच्छा लगा।
लैंसडॉन से पहले बांज के नन्हें पेड़ नजर आना शुरु होते हैं, चीड के पेड़ विरल हो जाते हैं।
लैंसडॉन में प्रवेश करते ही बाँज के बड़े पेड़ दिखना शुरु होते हैं और सुर्ख लाल फूलों से लदे बुराँश के सुंदर पेड़ भी, जो हिमालय की बर्फिली उंचाईयों में पहुँचने का अहसास देते हैं। मार्च-अप्रैल माह में बाँज की नई पत्तियाँ उग रही होती हैं, ऐसे में इनके भूरे, हल्के हरे रंग के  चमकीले पत्ते एक अलग ही ताजगी भरा मखमली अहसास दिलाते हैं, जिसे सैलानी बखूवी अनुभव कर सकते हैं।

लैंसडाउन की निर्मल एवं शीतल आवोहवा बहुत ही सुकूनदायी लगती है। लगता है कि हम किसी शांत-एकांत हिल स्टेशन में पहुँच गए हैं। इस कस्बे की खासियत है इसका आर्मी केंटोनमेंट क्षेत्र में होना। गढ़वाल राइफल्ज का यह केंद्र है, जिसके चलते अन्य हिल स्टेशनों की तरह अनावश्यक जन हस्तक्षेप, भव निर्माण, एन्क्रोचमेंट आदि के अभिशाप से यह मुक्त है, जो इसे एक प्राकृतिक, स्वच्छ और मनभावन हिल स्टेशन बनाता है। एक अनुशासन एवं सुरक्षा का माहौल इसकी एक अतिरिक्त विशेषता अनुभव होती है।
यहाँ का भुल्ला ताल एक मानव निर्मित झील है, जिसमें वोटिंग का आनन्द लिया जा सकता है। इसके चारों और बैठने आराम करने की छायादार सुबिधा है। बाँज बुराँश के पेड़ों से यह क्षेत्र आच्छादित है, जिस कारण झील के किसी भी कौने में बैठकर प्रकृति की नीरव शांति में अंतर संवाद के विशिष्ट पलों को अनुभव किया जा सकता है। झील में तैर रहे बत्खों के झुंड़ को निहारना स्वयं में एक मजेदार अनुभव रहता है। झील के शुरुआती कोर्नर में खाने-पीने की भी उचित व्यवस्था है।
टिप-एन-टॉप यहां से ऊपर चोटी पर दर्शनीय बिंदु है, जहाँ से दूर घाटी का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है। इसके नीचे व किनारे बाँज, बुराँश व देवदार के घने जंगल बसे हैं, जिसके बीच का पैदल सफर पैसा बसूल ट्रिप सावित होता है। 

रास्ते में चर्च के पास ही गाड़ी खड़ी कर पैदल यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। देवदार-बुराँश के जंगल के बीच स्थित चर्च में शांत चित्त होकर दो पल प्रार्थना के विताए जा सकते हैं। 

टिप-एन-टॉप पर चाय, नाश्ते व भोजन आदि की व्यवस्था है। इसके आगे संतोषी माता का मंदिर पड़ता है। समय हो तो यहाँ के दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसे ही लैंसडाउन मार्केट से नीचे कालेश्वर शिव मंदिर है, तो यहाँ से 38 किमी दूर ताड़केश्वर शिव का मंदिर, समय हो तो इन धार्मिक स्थलों को जोडकर आध्यात्मिक पर्यटन का लाभ उठाया जा सकता है।
लैंसडाउन मुख्यतः गढ़वाल राइफल्ज की छावनी है। अतः रविवार को छोड़कर वाकि दिन यहाँ के वार मैमोरियल एवं रेजीमेंट म्यूजियम में यहाँ के गौरवपूर्ण इतिहास की झलक पायी जा सकती है। पास में ही पैरेड़ ग्राउंड के दर्शन किए जा सकते हैं, जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी कई गतिविधियों का गवाही रहा है। यहाँ सेना द्वारा किए जा रहे रचनात्मक कार्यों को भी देखा जा सकता है।
कम ही लोगों को पता होगा कि यहाँ सेना उफरैंखाल के प्रख्यात पर्यावरणविद श्री सच्चिदानन्द भारतीजी के मार्गदर्शन में जल एव वन संरक्षण के मॉडल को लागू किए हुए हैं।  अभी इसको लागू किए दो-तीन साल ही हुए हैं, लेकिन इससे परिणाम उत्साहबर्धक देखे जा रहे हैं। पीर बाबा मजार साईड के पुराने धोबीघाट क्षेत्र में सूखा जल स्रोत रिचार्ज हो रहा है। ऐसे ही नए धोबीघाट में भी इसके प्रयोग के चलते जल स्रोत्र रिचार्ज हो रहे हैं।
छावनी बोर्ड के उपाध्यक्ष डॉ. नैथानीजी के मार्गदर्शन में हम संक्षिप्त समय में ही बहुत कुछ देख पाए। हालाँकि हमारा पत्रकारिता के विद्यार्थियों के साथ सम्पन्न यह टूर संयोग से रविवार के दिन पड़ा, जिसके कारण हम इसके पूरे दिग्दर्शन नहीं कर पाए।
इस भ्रमण में लैंसडाउन से सतही लेकिन दिल को छूने वाला परिचय हुआ, लगा जैसे यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता गहरे रुह में समा गयी है। अभी तक यह हिल स्टेशन कैसे अपनी पहुँच से दूर रहा, इस पर ताज्जुक होता रहा।
सार रुप में लैंसड़ाउन अभी प्राकृतिक रुप से संरक्षित पहाड़ी कस्वा है, जहाँ अपने यार-दोस्तों व परिवार के साथ क्वालिटी समय विताया जा सकता है। एक दिन में इसके साथ न्याय नहीं हो सकता है, कम से कम दो दिन में इससे जुड़े स्थलों को एक्सप्लोअर किया जा सकता है। यहाँ के टिप-इन-टॉप से सनराईज एवं सनसेट का नजारा बेहतरीन रहता है।
बरसात के दिनों में यहाँ बादलों के फाहों के बीच के सौंदर्य को एक अलग ही अंदाज में निहारा जा सकता है। रुकने के लिए यहाँ गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस एवं अन्य होटलों की व्यवस्था है, जिनकी ऑनलाइन बुकिंग की जा सकती है।
समुद्र तल से लगभग 5600 फीट की ऊँचाई पर बसा यह हिल स्टेशन अंग्रेजों द्वारा 1887 में वसाया गया था। आज सेना की देख-रेख में होने के कारण इस हिल स्टेशन का प्राकृतिक सौंदर्य बर्करार है, जो किसी भी प्रकृति प्रेमी और शाँत-एकांत स्थल की तलाश में भटक रहे पथिक की मुराद पूरी करने में सक्षम है।

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

यात्रा वृतांत – हरिद्वार से मसूरी, कैंप्टिफॉल वाया देहरादून


12 घंटों में जैसे सफर तीन लोकों का
हरिद्वार से अक्सर लोग एक दिन में बहुत कुछ घूमने का प्लान करते हैं, खासकर पास के पहाड़ उन्हें आकर्षित करते हैं। ऐसे पर्यटकों के लिए हरिद्वार से मसूरी, कैंप्टीफॉल का टूर इच्छा पूर्ण करने वाला साबित हो सकता है। अगर सस्ते में टूर करना हो तो स्थानीय किसी भी टूर-ट्रैब्ल से महज 250 रुपए में बुकिंग हो जाती है, रास्ते में खाने-पीने व कुछ विजिट टिक्टस को मिलाकर बजट 4-6 सौ के अंदर पूरा हो जाता है, यदि शॉपिंग भी करनी हो तो फिर तो कोई सीमा नहीं। हजार रुपए के अंदर एक बेहतरीन ट्रिप का प्लान किया जा सकता है।
हरिद्वार से बसें सुबह 8,9 बजे शुरु हो जाती हैं, जो शाम को 8,9 बजे तक पहुँचा देती हैं अर्थात् 12 घंटे में आप देहरादून से होते हुए मसूरी पहुँचते हैं और कैंप्टीफॉल से होकर बापिस आ जाते हैं। रास्ते में फन बैली, प्रकाशेश्वर महादेव, मसूरी सिटी लैक, मॉल रोड़, केंप्टीफॉल स्टेशन आते हैं। यदि पूरी बस बुक हो तो स्टेशनों को अपने अनुसार जोड़, घटाया जा सकता है। जैसे फन वैली की जगह सहस्रधारा को जोड़ा जा सकता है। समय बचने पर बापसी में देहरादून पलटन बाजार में शॉपिंग का समय निकाला जा सकता है।

हरिद्वार से हरकी पौड़ी पार करते ही वाईं और शिवालिक पहाड़ियों और दाईं ओर गढ़वाल हिमालय के दर्शन शुरु हो जाते हैं। वाईं ओर गगनचुम्बी भगवान शिव की प्रतिमा और नीचे गंगाजी की निर्मल धारा के दर्शन के साथ यात्रा का शुभारम्भ हो जाता है। आगे शांतिकुंज, देसंविवि से होते हुए रेल्वे फाटक पार करते ही रायवाला की ओर सफर बढ़ता है। रास्ते में ही पहाड़ों की गोद में बसे नरेंद्रनगर सहित शिखर पर स्थित सिद्धपीठ कुंजादेवी ध्यान आकर्षित करते हैं। देहरादून से आ रही सोंग नदी को पार करते ही नेपाली फार्म से सड़क वाईं ओर देहरादून की ओर मुड़ जाती है। जबकि सीधी सड़क ऋषिकेश जाती है, जो आगे बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि के लिए बढ़ती है।


नेपाली फार्म से बाई ओर मुड़ते ही सड़क कुछ दूरी तक सोंग नदी से कुछ दूरी बनाए बढ़ती है, नदी में मिलती एक छोटी सी जलधार के किनारे सदावहार हरे-भरे जंगल और दायीं ओर फसलों से लदे खेत-खलिहान यात्रियों का स्वागत करते हैं। बारहों महीनों जल से आवाद यह नाला सुना है कि बीच में घने जंगल से प्रकट होता है, जिसके उद्गम स्रोत की खोज स्वयं में एक रोचक एवं रोमाँचक ट्रेकिंग एडवेंचर का मसाला हो सकता है। आगे छिद्दरवाला कस्वा पड़ता है, इसको पार करते ही फेक्ट्री के आगे फन वैली आती है। 


इसमें कन्शेसन में 200 की एंट्री फीस के साथ अंदर के सुंदर नजारों एवं नाना प्रकार के खेलों का लुत्फ उठाया जा सकता है। प्रवेश करते ही वायीं ओर हनुमान मंदिर और सामने फब्बारा आपका स्वागत करते हैं। अंदर कई तरह की खेलों का इंतजाम है, जैसे स्ट्राइकिंग कार, जंपिंग फ्रॉग, गो कार्ट आदि। 


बीच-बीच में सागर की कृत्रिम लहरें यहाँ के स्वीमिंग पूल में देखी जा सकती हैं। कई तरह के झूलों का यहाँ इंतजाम है, जिनका रफ-टफ लोग ही आनन्द उठा सकते हैं। स्लाइंडिंग वाटर स्पोर्ट्स सर्दी में हालांकि बंद रहते हैं, गर्मियों में इनका भी आनन्द लिया जा सकता है। फन वैली का लैंडस्केप वेहतरीन है, हराभरा, फूलों से सजा। जिसके बीच में फब्बारे के सामने बेहतरीन यादगार फोटो ली जा सकती हैं। कुल मिलाकर फन वैली की दुनियां में एक वार अवश्य पधारकर कुछ यादगार पलों को सहेजा जा सकता है।

यहाँ 1 घंटे के बाद बस आगे बढ़ती है। रास्ते में दोनों ओर गन्ने, बास्मती चाबल के खेत मिलेंगे। दूर गढ़वाल की पहाड़ियां मौसम साफ होने पर आपके समानान्तर चलती प्रतीत होती हैं। नरेंद्रनगर से आगे मसूरी तक की पहाडियों के दर्शन रास्ते भर सहज ही होते हैं। भानेवाले त्रिराहे से वाईं ओर सड़क आगे डोईवाला की ओर बढ़ती है, जिसके आगे लच्छीवाला फ्लाईऑवर पुल के साथ घने जंगल में प्रवेश होता है। 

सड़क के किनारे यात्रियों द्वारा फैंकी जा रही सामग्री को बटोरते बंदरों की फोज को देखा जा सकता है। घना हरा-भरा साल के वृक्षों से जड़ा जंगल अगले कुछ किमी आपके सफर को सुकूनदायी बनाता है, जिसके अंतिम छोर पर आप देहरादून में प्रवेश करते हैं। रास्ते में हाल ही में बने जोगीवाला फ्लाईओवर से देहरादून के विस्तार को दायीं ओर पहाड़ों के तल तक देखा जा सकता है।


जोगीवाला से बाईपास सीधा राजपुर मसूरी रोड़ पर निकलता है। बीच में रायपुर कस्वे को पार करना होता है। रास्ते में राजधानी बनने के बाद बढ़ती आवादी के साथ फूलते देहरादून के दर्शन किए जा सकते हैं। रास्ते में साल के जंगल मिलेंगे, साथ ही कुछ वेहतरीन संस्थान और साथ ही घिच-पिच आवादी की बसावट। आधे पौन घंटे में बस उस पार राजपुर रोड़ पर निकलती है।
वहाँ से मसूरी की ओर मूड़ जाती है। यदि वाईपास की वजाए देहरादून शहर से प्रवेश किया जाए तो रास्ता रिस्पियाना पुल से होकर पलटन बाजार या फिर पैरेड ग्राऊँड से होकर किशनपुर मसूरी रोड़ तक पहुँचता है। इस सड़क पर भीड़ के बावजूद देहरादून शहर की भव्यता के दर्शन किए जा सकते हैं। रास्ते में कई राष्ट्रीय महत्व के प्रतिष्ठित संस्थान राजपुर सड़क के दोनों ओर पड़ते हैं।


यहाँ से चढ़ाई के साथ जंगल से आच्छादित हरी-भरी पहाडियाँ भी शुरु हो जाती हैं, जो नेत्रों को ठंड़क व मन को शांति देती हैं। इसी रुट पर वाईँ और डीआईटी, आईएमएस जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान और दायीं ओर डीयर पार्क और क्रिश्चियन रिट्रीट सेंटर रास्ते में पड़ते हैं। 

देहरादून से मसूरी की ओर आगे बढ़ते हुए रास्ते में आता है प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ स्फटिक शिवलिंग स्थापित है। 


इसके साथ ही है शाक्या कालेज, जो बौद्धधर्म का उच्च शिक्षा का केंद्र है, यदि समय हो तो इसके शांत परिसर में तिब्बती कला, स्थापत्य एवं अध्यात्म की झलक पायी जा सकती है। प्रकाशेश्वर शिवमंदिर में चाय नाश्ते की निशुल्क व्यवस्था रहती है, जिसके अंदर मार्केटिंग की सुविधा भी है। जिनमें तरह-तरह की मालाएं, रत्न, स्फटिक, ज्बैलरी आदि खरीदी जा सकती हैं।



आगे जलेबी रोड़ के साथ 4000 फीट से ऊपर 6500 फीट की ऊँचाई का मसूरी तक का आरोहण शुरु हो जाता है। । क्रमशः नीचे देहरादून के दर्शन, विहगम दृश्य व विस्तार बहुत स्पष्ट दिखाई देता है, ऐसे लगता है जैसे मैदान में पन्नियों को फैला रखा हो। रास्ते में ही देवदार व बांज के वृक्षों के दर्शन शुरु हो जाते हैं, साथ ही हवा में ठंडक का अहसास भी। लगता है कि हम पहाड़ी के आगोश में आ गए हैं। मसूरी से 6 किमी पहले ही बस रुकती है। नीचे 400 मीटर उतर कर मसूरी लेक आती है।


 यहाँ गढवाली परिधानों में फोटो की सुविधा रहती है, जिसमें पर्यटकों को खासी दिलचस्पी लेते देखा जा सकता है। साथ ही छोटी सी मार्केट है, जहाँ शाल, मफलर, स्वैटर जैसे गर्म कपड़े और लेडीज पर्स आदि खरीदे जा सकते हैं। साथ ही भोजन के ढावे हैं, जहाँ लंच किया जा सकता है। यात्रियों की राहत के लिए साथ ही सुलभ शौचालय की भी व्यवस्था है।


झील में बोटिंग की भी सुविधा है। पहाड़ों से झर रहे झरने के जल से यह झील बनी है। पानी एक दम ठंड़ा, हिमालयन टच लिए रहता है। यहाँ आधा घंटा घूमने-फिरने, फोटो खींचने व चाय-भोजन के बाद बापिस बस की ओर काफिला कूच करता है। रास्ते में तीव्र वेग से झर-झर बहता पानी दर्शनीय रहता है। पूछने पर कि यह पानी कहाँ से आता है, जबाव था कि पहाड़ों से। उसके उद्गम की सही जानकारी हमें नहीं मिल पायी। मेन रोड़ में बड़ा झरना पाईप से झर रहा था औऱ शेष जल तीव्र वेग के साथ नीचे वह रहा था।

यहाँ से बस आगे चल पड़ती है, कुछ ही देर में हम मसूरी चौराहे पर लगभग 6500 फीट की ऊँचाई पर थे, जिसके दायीं ओर माल रोड़ है, तो वायीं ओर पुरानी मार्केट।


हम सीधा आगे बढ़े मसूरी के उस पार, जहाँ से गंगोत्री-यमुनोत्री की ओर की हिमाच्छादित पर्वतश्रृंखलाएं दिख रही थीं। मसूरी शहर की छायादार जगहों में जमीं बर्फ के सफेद अवशेष दिख रहे थे। जैसे-जैसे हम आगे केंप्टीफॉल की ओर बढते गए, दूर बर्फ से ढकी पहाड़ियों का नजारा ओर निखरकर सामने आ रहा था। और साथ ही बादलों के बीच लुकाछपी करते धूप की रोशनी में जगमगाते पहाड़ भी। इन पहाड़ों की गोद में नीचे घाटी में बसे गाँव बरवस ध्यान आकर्षित करते हैं और किसी रुमानी दुनियाँ में ले जाते हैं। अधिकाँश दूर-दूर बसे इन गाँव में कच्ची सड़कें दिख रही थी। कुछ के लिए लगा पैदल ही चलना पड़ता होगा। 




अब हम केंप्टीफॉल के लिए नीचे उतर रहे थे। रास्ते में सड़क के दोनों ओर पिछले दिनों हुई बर्फवारी के अवशेष दिख रहे थे। मौसम में ठंडक थी। बांज-देवदार के जंगल के बीच सफर आगे बढ रहा था। रास्ते में पहाड़ी पर एक भव्य मंदिर के दर्शन हुए। उसके आगे कुछ ही मिनटों में मोड के बाद हम केंप्टीफाल के पास सामने थे। यहाँ बस स्टॉप पर बस खड़ी हो गई, सवारियाँ, नीचे केंप्टीफाल का नजारा लेती हैं।


यहाँ स्नान तो गर्मी में ही कोई सोच सकता है, ठंड में तो महज दर्शन कर सवारियाँ फोटो सेशन के बाद बापिस आ जाती हैं। रास्ते में कुछ यादगार मार्केंटिंग। समय हो तो मालरोड़ पर शांपिग की जा सकती है, हालाँकि खरीददारी यहाँ काफी मंहगी पड़ती है। फिर मसूरी से होकर नीचे उतरते हुए बापसी में सूर्यास्त का नजारा सफर में एक नया अध्याय जोड़ता है। 


सांय कालीन रोशनी में जगमगाते शिखरों के बीच देहरादून शहर का अद्भुत दृश्य रोमाँचित करता है और अस्त होते सूर्य की स्वर्णिम आभा ढलते सफर को आलोकित करती है। प्रकाशेश्वर मंदिर में चाय प्रसाद के बाद यात्रा आगे बढ़ती है। राह में अंधेरा शुरु जाता है। गाड़ी वाईपास से होते हुए हरिद्वार गन्तव्य पर छोड़ देती हैं।
12 घंटे के एक ही सफर में व्यक्ति इतने सारे अनुभव वटोर आता है, ऐसे लगता है जैसे कि तीनों लोकों का भ्रमण कर आए और यात्री सुखद स्मृतियों के साथ अपने गन्तव्य की ओर कूच कर जाते हैं।

 

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

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