मंगलवार, 9 मई 2017

यात्रा वृतांत - कुंजापुरी शक्तिपीठ





कुंजापुरी से नीरझरना, ट्रेकिंग एडवेंचर



कुंजापुरी ऋषिकेश क्षेत्र का एक कम प्रचलित किंतु स्वयं में एक अद्वितीय एवं दर्शनीय तीर्थ स्थल है। शक्ति उपासकों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है क्योंकि कुंजापुरी पहाडी के शिखर पर बसा यह शक्तिपीठ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 52 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती का छाती वाला हिस्सा गिरा था। कुंजा पहाडी के शिखर पर बसे इस तीर्थ का एकांत-शांत वातावरण, प्रकृति की गोद में शांति को तलाशते पथिकों के लिए एक आदर्श स्थान है। 



राह का प्राकृतिक सौंदर्य़ – 
यह स्थान ऋषिकेश से महज 25 किमी की दूरी पर स्थित है। नरेन्द्रनगर से होकर यहाँ का रास्ता हरे-भरे सघन जंगल से होकर जाता है, जिसके बीच यात्रा जैसे प्रकृति की गोद में शांति-सुकून का गहरा अहसास देती है। जैसे-जैसे सफर ऊपर बढ़ता है नीचे ऋषिकेश, गंगाजी व ऊधर जोलीग्रांट-देहरादून का विहंगमदृश्य क्रमशः स्पष्ट होने लगता है। आसपास पहाड़ियों पर बसे गाँव, उनके सीढ़ीदार खेत दूर से दिलकश नजारा पेश करते हैं। बरसात के बाद अगस्त-सितम्बर के माह में इस राह का नजारा अलग ही रहता है जब पग-पग पर झरने झरते मिलते हैं। नरेन्द्रनगर रास्ते का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो टिहरी के राजा का आवास स्थल रहा है। यहाँ का आनन्दा रिजोर्ट बड़ी हस्तियों के बीच खासा लोकप्रिय है, जिसके दूरदर्शन कुंजापुरी से सहज ही किए जा सकते हैं।

कुंजादेवी ट्रेकिंग मार्ग
चम्बा-उत्तरकाशी की ओर जाता मुख्य मार्ग से हिंडोलखाल स्टॉप से एक सड़क दाईं ओर मुडती है। यहाँ से 4 किमी अपने वाहन से कुंजापुरी तक जाया जा सकता है। दूसरा एडवेंचर प्रेमियों के लिए 3 किमी का ट्रेकिंग रुट है। जो हल्की चढ़ाई और घने बाँज के जंगलों से होकर जाता है। इसकी बीच ट्रेकिंग एक यादगार अनुभव रहती है। रास्ते में बंदर, लंगूर, जंगली पक्षी सुनसान के सहचर के रुप में मिलते रहते हैं। इस सीजन में हिंसालू(आंछा), किल्मोडे (शांभल), मेहो (शेगल) जैसे कांटेदार झाडियों व वृक्षों में लगे खटे-मीठे जंगली फल सहज ही रास्ते में यात्रियों का स्वागत करते हैं।
ट्रेकिंग मार्ग का रोमाँच
रास्ते में कहीं-कहीं बहुत ही संकरे मार्ग से आगे बढ़ना होता है, नीचे सीधे गहरी खाई के दर्शन नवांतुकों को सर चकराने का अनुभव दे सकते हैं। ऐसे में सारा ध्यान अपनी राह पर आगे व बढ़ते चरणों में नीचे की ओर रहे तो ठीक रहता है। साथ में लाठी इस रास्ते में बहुत बड़ा सहारा सावित होती है। बहुत तंग जगह पर दाएं हाथ से पहाड़ का सहारा लेकर आगे बढ़ना सुरक्षित रहता है। नीचे खाई की और देखने की भूल न करें। ट्रेकिंग रास्ते में इस तरह के 3-4 छोटे-छोटे पड़ाव आते हैं। दूसरा, ऐसे स्थानों पर अपना सेल्फी प्रेम दूर ही रखें, क्योंकि ऐसा प्रयोग मिसएडवेंचर सावित हो सकता है। बीच-बीच में विश्राम के शानदार ठिकाने बने हुए हैं। पत्थरों के आसन पर, बांज-देवदार के घनी छाया के नीचे कुछ पल बैठकर यहाँ रिचार्ज हो सकते हैं। रास्ते में घने बाँज के बनों के बीच बहती हवा के झौंके नेचुलर ऐ.सी. का काम करते हैं। पूरे रास्ते में ऐसे झौंके दोपहरी की गर्मी के बीच ट्रेकरों के रास्ते को सुकूनदायी बनाए रखते हैं।

 मंदिर परिसर में
आधा-पौना घंटे बाद यात्री पीछे की ओर से मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं। यहां मुख्य गेट पर प्रहरी के रुप में दो शेर स्वागत करते हैं। मंदिर में प्रणाम, पूर्जा अर्चन के बाद बाहर परिसर के खुले एवं साफ-सुथरे परिसर में भ्रमण आनन्ददायी रहता है। यहाँ से चारों ओर घाटी, पर्वत, चोटियों का विहंगम दृश्य यात्रियों को दूसरे लोक में विचरण की अनुभूति देता है। 1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा स्थल है। यहाँ से नीचे दक्षिण की ओर ऋषिकेश, सुदूर हरिद्वार दक्षिण-पश्चिम की ओर जोलीग्रांट-देहरादून के दर्शन किए जा सकते हैं। 
 उत्तर में गढ़वाल के शिखरों के दर्शन साफ मौसम में सहज ही किए जा सकते हैं, जिनमें स्वर्गारोहण, बंदरपूँछ, चौखम्बा, गंगोत्री चोटियां प्रमुख हैं। यहाँ से इस क्षेत्र के अन्य दो शक्तिपीठ सुरकुण्डा और चंद्रवदनी के दर्शन भी किए जा सकते हैं, जो मिलकर एक शक्तिपीठों का दिव्य त्रिकोण बनाते हैं। यहाँ से नीलकण्ठ की पहाड़ियों सहज ही दर्शनीय हैं, जो यहाँ से काफी नीचे दीखती हैं।
यहाँ के परिसर में बने चबूतरे व इसके आसपास बने बेंचों पर बैठकर सहज ही हरपल वह रहे हवा के झौंकों का लुत्फ उठाया जा सकता है। यहाँ चाय-नाश्ता के लिए स्थानीय ढावा है। यहाँ के खुले व साफ परिसर में यात्री सुकून के पल विता सकता है, जो अन्य भीड़ भरे कंजेस्टेड तीर्थों में मुश्किल होता है। शहरों की भीड़ ते आजीज आ चुके तीर्थयात्रियों व प्रकृति प्रेमियों के लिए कुंजापूरी एक आदर्श स्थल है। यदि यहाँ प्रातः 7 बजे पहुंचने की व्यवस्था हो सके तो यहाँ के सूर्योदय का दर्शन एक यादगार अनुभव रहता है।

परिसर से बापसी का सीढीदार मार्ग
 यहाँ से बापसी मोटर मार्ग से हो सकती है। सड़क तक का रास्ता छत से ढकी लगभग 300 सीढियों से होकर जाता है। हर सीढ़ी में देवीसुक्त के मंत्र उत्कीर्ण हैं, जो इस यात्रा को विशेष बनाते हैं। श्रद्धालु इनका पाठ करते हुए सीढी का अवरोहण करते हैं। नीचे टैक्सी स्टेंड में भी चाय-नश्ते की कई दुकानें हैं। जहाँ से अपने बाहन से बापस आया जा सकता है। इसी रास्ते से सीधा बढ़ते हुए पुराने ट्रेकिंग मार्ग से नीचे हिंडोलखाल उतरा जा सकता है। जहाँ से चम्बा की ओर से आ रही बसों से सीधे ऋषिकेश पहुँचा जा सकता है।

गाँव से होता हुआ आगे का ट्रेकिंग मार्ग
ट्रेकिंग के इच्छुक रोमाँचप्रेमियों के लिए सडक के पहले मोड से वाइँ और नीचे की और जाते हुए पैदल मार्ग है, जो पटेर गांव से नीचे कच्ची सड़क तक पहुंचता है। यहाँ से एक सीधा मार्ग जंगल से होते हुए सीधे तपोवन पहुंचता है। जो 6 किमी लम्बा है। दूसरा ट्रेकिंग मार्ग वाइँ और से कोड़ाड, धारकोट व नीरगाँव से होकर बढ़ता है, जो कुल मिलाकर 15 किमी लम्बा है और अंत में नीरझरने से होकर नीचे ऋषिकेश-देवप्रयाग मुख्यमार्ग में निर्गड्डू पर मिलता है।
यह ट्रेकिंग मार्ग शांत वादियों से होकर गुजरता है। गांव के सीधे-सरल और मेहनती लोग यात्रा में अच्छे मार्गदर्शक और मेहमानवाज की भूमिका निभाते हैं। रास्ते में चाय व ठंडे के शौकीनों को रास्ते में निराश होना पड़ सकता है। रास्ता निर्जन है, कोई दुकान या ढावा नहीं है। नीरगाँव में आकर ही एक-दो दुकाने हैं, जहाँ ये जरुरतें पूरी की जा सकती हैं।

 नीरझरना ट्रेकिंग मार्ग
नीरगाँव से मोटर मार्ग से नीचे की ओर पैदल मार्ग नीर झरने की और बढ़ता है। गाँव के बीच से ही खेतों की मेड़ पर सीमेंट से बनी छोटी नहरें(कुल्ह) पानी को आगे प्रवाहित करती हैं। इसके कल-कल कर बहते जल की आबाज रास्ते के सफर में मिठास घोलती है। रास्ते में सीढ़ीदार खेतों में चाबल से लेकर अन्य फसलें देखी जा सकती हैं। हालांकि फल-सब्जी का चलन यहाँ नहीं दिखा, जो पानी की प्रचुरता के कारण सम्भव था। गांव के छोर पर नीचे नीर झरना आता है। अंतिम पढ़ाव गहरी उतराई से भरा है, जहाँ थके ट्रेकरों की कड़ी परीक्षा होती है। एक कदम फिसला कि गए सीधे खाई में। सामने झरना दो चरणों में नीचे गिरता है। उपर एक झील बनती है, फिर पानी नीचे दूसरी झील में गिरता है। यहाँ के निर्मल व शीतल जल में स्नान का लोभ शायद ही कोई संवरण कर पाए। इसमें डुबकी रास्ते की थकान को छूमंतर करती है। आसपास बने ढावों से मैगी चाय व नाश्ते का आनन्द उठाया जा सकता है।
यहाँ से नीचे आधा किमी भी छोटे छोटे झरनों से भरा है। जिसका यात्री पूरा लुत्फ उठा सकते हैं। कोई हरिद्वार-ऋषिकेश में आया यात्री कल्पना भी नहीं कर पाता कि यहाँ एक ऐसा प्राकृतिक झरने का खजाना भी छिपा हुआ है। ट्रेकिंग मार्ग नीचे आधा किमी बाद कच्ची सड़क से मिलता है। जो आगे लगभग 2 किमी के बाद निर्गड्डू में मुख्य मार्ग से मिलती है। जहाँ से तपोपन 1.5 किमी है। जहाँ से आटो टेक्सी आदि से यात्री ऋषिकेश बस स्टेंड होते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़ सकते हैं।

शनिवार, 29 अप्रैल 2017

फिल्म समीक्षा - एसएस राजामौली का सिनेमाई जादू फिर चला




भारतीय सिनेमा में नए मानक गढ़ती बाहुबली-2
बाहुबली के पहले संस्करण ने दर्शकों को जिस जादूई आगोश में बाँधा था, उसमें निहित प्रश्नों के उत्तर पाने व उसकी पूरी कहानी जानने के लिए बाहूबली-2 का सबको पिछले दो वर्षों से बेसब्री से इंतजार था। सो तमाम परिस्थितिजन्य प्रतिकूलताओं को चीरते हुए दर्शक बाहुबली बनकर सिनेमा हाल पहुँचे। सस्पेंस था कि बाहुबली का दूसरा हिस्सा कसौटियों पर खरा उतरता भी है या निराश करता है। लेकिन जब पूरी बाहुबली देखी तो लगा कि एसएस राजामौली का सिनेमाई जादू बर्करार है, बल्कि नए स्तर को छू गया है, जिसके चलते फिल्म हर दृष्टि से नए मानक स्थापित कर रही है। अखिल भारतीय फिल्म के साथ बाहुबली-2 का दिग्विजय अभियान पूरे विश्व में जारी है। फिल्म का जादूई रोमाँच, पात्रों की सशक्त भूमिका, कथा की कसावट, भावों के रोमाँचक शिखर, प्रकृति के दिलकश नजारे, अदाकारों का बेजोड़ अभिनय, कर्णप्रिय संगीत - सब मिलकर दर्शकों के सिर चढ़कर बोल रहे हैं और शुरु से अंत तक बाँधे रखते हैं। 
इस सब के बीच युद्ध के बीभत्स दृश्य, खलनायकों की कुटिल चालें बीच-बीच में कुछ विचलित अवश्य करती हैं लेकिन अंत तक न्यायपूर्ण समाधान के साथ दर्शकों को गहरे संतोष के भाव से भर देती हैं। भारतीय परम्परा में सत्यमेव जयते, धर्मो रक्षति रक्षतः, सत्यं-शिवं-सुंदरं के भाव बोध के साथ फिल्म की समाप्ति दर्शकों को गहन तृप्ति, तुष्टि और आनन्द से सराबोर कर देती है। 
कुल मिलाकर बाहुबली-2 इसके पिछले संस्करण से उपजी आशा-अपेक्षाओं पर खरा उतरती है और ऐसे ऊच्च मानक स्थापित करती है, जिसपर खुद को सावित करना बॉलीवुड़ सहित अन्य भाषायी फिल्मों के लिए कठिन ही नहीं दुष्कर होगा। बॉक्स ऑफिस पर पहले ही बाहुबली-2 नए मानक स्थापित कर चुकी है। 28 अप्रैल को दिखाए जाने से पहले ही 250 करोड़ बजट की यह फिल्म 500 करोड़ कमा चुकी थी। पहले ही दिन 28 अप्रैल को यह फिल्म विश्वभर में 200 करोड़ रुपए कमा लेती है,  जहाँ तक पहुँचने के लिए बॉलीवुड सुपरहिट फिल्मों को हफ्तों लग जाते हैं। कुल मिलाकर अनुमान है कि बाहुबली-2 1000 करोड़ रुपए के जादूई आंकड़े को पार कर जाए तो आश्चर्य नहीं। (बल्कि नौवें दिन बाहुबली-2 इस मानक को पार कर जाती है, अब 1500 करोड़ इसका अगला मानक है।) आईएमडीबी के अंतर्राष्ट्रीय मानक पर 9.1 रेटिंग के साथ यह वैश्विक स्तर पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कर रही है, जो आगे कितना बर्करार रहती है देखना रोचक होगा। कुल मिलाकर भारतीय सिनेमा ही नहीं विश्व सिनेमा के इतिहास में बाहूबली एक कालजयी फिल्म के रुप में अपना स्थान पाती दिख रही है।
इंटरवल के पहले हिस्से में प्राकृतिक दृश्यों का फिल्माँकन एक जादूई दुनियाँ में ले जाने वाला है। चाहे घाटियाँ हों या बर्फीले पहाड़, नदियाँ हों या फूलों से सजे खेत-बागान, हर जगह सीजीआई और विजुअल इफेक्ट तकनीक का बेहतरीन उपयोग, दर्शकों को एक आलौकिक सौंदर्य़ सृष्टि में विचरण की अनुभूति देता है, जिसमें कनाडा के रॉकी माउँटेन, यूरोप के आल्पस, एशिया की गगनचूम्बी पर्वत-श्रृंखलाओं एवं हिमालय की हिमाच्छादित दिलकश वादियों के दिग्दर्शन किए जा सकते हैं। एनीमेशन के माध्यम से पूरे विश्व के प्राकृतिक सौंदर्य़ को फिल्म में समेटने का यह प्रयास प्रकृति प्रेमियों के लिए ग्लोबल सिनेमा का एक बेजोड़ प्रयोग प्रतीत होता है।
इसके नारी पात्र पिछली बार की तरह बहुत ही सशक्त और दमदार हैं। राजमाता शिवगामी का चरित्र स्वयं में बेजोड़ है। ममतामयी, दृढ़ प्रतिज्ञ, नीतिज्ञ किंतु कहीं-कहीं राजसी अतिरेक में निर्णय की चूकें, इनकी विशेषता है। जो कहानी को आगे बढ़ाने के हिसाब से इंसानी पात्रों की जरुरत भी है। राजकुमारी देवसेना अपने अप्रतिम सौंदर्य़, शौर्य-पराक्रम, राजसी स्वाभिमान और युद्ध कौशल के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती है। इसके साथ महायौद्धा राजकुमार अमरेंद्र बाहूबली की जोड़ी खूब जमती है। फिल्म के पूर्वार्ध में प्रेम प्रसंग के दृश्य हल्की कॉमेडी के साथ दर्शकों को गुदगुदाते और रोमाँचित करते हैं, जिसमें मामा कट्टप्पा और बाहूबली छद्म बेश में देशाटन के लिए निकले होते हैं। राजकुमारी देवसेना के राज्य में इनकी लीला दर्शक खुद ही देख कर फिल्म के पूर्वाद्ध का रहस्य-रोमाँच भरा लुत्फ उठा सकते हैं।
फिल्म में राजमाता शिवगामी, अमरेंद्र बाहूबली, देवसेना व कट्टप्पा जैसे सशक्त पात्रों के साथ कहानी को आगे बढ़ाने के लिए राजकुमार भल्ललादेव और इनके पिता बाजाला देव की कुटिलता, धूर्तता, सत्ता लोलुपता और क्रूरता सब मिलकर दुर्घष संघर्ष, रोमहर्षक युद्ध के दृश्य प्रस्तुत करती है, जिसके लोमहर्षक दृश्य कमजोर दिलवालों को बीच-बीच में बिचलित कर सकते हैं। लेकिन एसएस रोजामोली का ऐसे दृश्यों का कलात्मक फिल्माँकन अपने आप में बेजोड़ है, जिनको दर्शक बखूबी लुत्फ उठाते हुए देख सकते हैं। युद्ध दृश्यों का फिल्माँकन विश्व की श्रेष्ठतम युद्ध फिल्मों से किसी तरह कमतर नहीं है। 
मार्शल आर्ट फिल्मों के दर्शक अमरेंद्र बाहुबली के फाइटिंग सीन्ज में ड्रंक्ड कुंगफू मास्टर की शैली को देख सकते हैं। देवसेना के सौंदर्य-प्रेम में डूबे राजकुमार की अलमस्त किंतु अचूक युद्ध शैली दर्शकों का खासा मनोरंजन करती है। सफेद नंदियों की पीठ पर आगे बढ़ता बाहुबली एंटर द न्यू ड्रेगन के कुंग्फू मास्टर टॉनी झा के हाथी के पीठ पर दौड़ते सीन की याद दिलाता है। वृक्षों, पर्वत शिखरों व दिवारों को लांघटे-फांदते बाहुबली को देख सहज ही टार्जन से लेकर इंद्रजाल कॉमिक्स के महानायकों का अपराजेय शौर्य-पराक्रम दर्शकों की सांसे थाम कर देखने के लिए सीटों पर बाँधे रखता है।
देेवसेना के कुंटल राज्य से बापसी का दृश्य स्वयं में एनीमेशन तकनीक की विलक्षण क्षमता का परिचायक है, जो परिलोक का स्वर्गोपम दृश्य जीवंत कर देता है। कुछ पल के लिए समुद्री यान को पंख लग जाते हैं, सफेद बादलों के घोड़ों के संग यह हवाई यान बन जाता है। देवसेना और बाहुबली का प्रेम प्रसंग यहाँ टाइटेनेिक फिल्म के यादगार दृश्य सी अनुभूति देता है। समीक्षकों का यह कथन कि फिल्म का हर सीन मानो एक आइटम सीन है, बाहुबली-2 पर सटीक बैठता है।


पिछली फिल्म से चला आ रहा महाप्रश्न, बाहूबली को कट्ट्प्पा ने क्यों मारा, का उत्तर आंशिक रुप से पूर्बार्ध में मिलता है, जो उत्तरार्ध में स्पष्ट हो जाता है। राज्य की सुरक्षा की खातिर दीवार की तरह खड़े और बज्र बनकर देशद्रोहियों की कुटिल चालों को ध्वस्त करते कट्टप्पा का युद्ध कौशल रोमाँचित करता है। कट्टप्पा का चरित्र शुरु से लेककर अंत तक विभिन्न भूमिकाओं में दर्शकों के दिल को गहरे छू जाता है। लेकिन यहाँ भीष्म पितामह की तरह राज प्रतीज्ञा में बंधी कट्टप्पा की बेबसी-लाचारी कचोटती है। इसी के चलते षडयन्त्र का वाहन बनकर कट्टप्पा की प्रतिज्ञा अमरेंद्र बाहुबली के अंत का त्रास्द कारण बन जाती है।
 इसी मरणात्क अपराधबोध से मुक्ति के प्रायश्चित बोध के साथ कहानी आगे बढ़ती है, जब राजमाता शिवगामी को षडयन्त्र में उलझने का बोध हो जाता है। इसी के साथ वह शिशु महेंद्र बाहुबली को महिष्मति का भावी राजा घोषित कर देती है। राजकुमार के बढ़े होने की कहानी बाहुबली के पिछले हिस्से में फिल्माई गई है। उसी के निष्कर्ष के रुप में अब कट्टप्पा और महेद्र बाहुबली कहर बनकर भल्लादेव के अन्याय, अत्याचार और आतंक पर टूट पड़ते हैं। यहाँ से  युद्ध के फाइटिंग सीन ऐसा रोमाँच पैदा करते हैं कि बाहूबली के हर प्रहार के साथ दर्शक अधर्म और असुरता की जड़ों पर कुठाराघात होता देखते हैं। और अंत में अपनी माँ देवसेना द्वारा पिछले 25 वर्षों से सजाई जा रही लकड़ी की चिता पर भल्लालदेव की आहुति के साथ आसुरी आतंक का एक अध्याय समाप्त होता है।

फिल्म के नायक प्रभास ने बाहूबली की भूमिका में अपने फिल्मी कैरियर के 4-5 वर्षों को एक ही फिल्म पर केंद्रित करने का जो दाँव लगाया और एसएस राजामौली पर अटूट विश्वास जताया, वह त्याग-बलिदान और तप फलित होता दिख रहा है। इस सिनेमा के बाद प्रभास भारतीय सिनेमा में एक ऐसे महानायक के रुप में उभर चुके हैं जिनके सामने बॉलीबुड के स्थापित नायक खुद को बौना महसूस करें तो आश्चर्य़ न होगा। दक्षिण भारत उनमें सुपरस्टार रजनीकाँत का नया संस्करण देख रहा है, और उनके चाहने वाले उनकी फोटो पर दूग्धाभिषेक तक करते दिख रहे हैं।
बाहुबली-2 की सुनामी के बीच भारतीय फिल्मों के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो चुके हैं। फिल्म अखिल भारतीय फिल्म के रुप में उभर कर सामने आई है, जिसमें विश्व सिनेमा की और भारतीय सिनेमा के दृढ़ एवं आश्वस्त कदमों को देखा जा सकता है। भारत के बाहर विश्व के हर कौने से इसकी रिकॉर्ड तोड़ परर्फोमेंस के चर्चे हो रहे हैं। फिल्म की यह ऐतिहासिक सफलता एसएस राजामौली की पूरी टीम के सामूहिक श्रम का फल है, जिसके लिए सभी बधाई के पात्र हैं। इस फिल्म के निर्देशक एसएस राजमौली इस फिल्म के साथ देश के सबसे प्रतिभावान डायरेक्टर के रुप में उभर चुके हैं, जिन्हें भारत के जेम्स केमरून की संज्ञा दी जा रही है। और उनके पिता श्री विजयेंद्र प्रसाद देश के सबसे लोकप्रिय एवं मंहगे सक्रिप्ट राइटर के रुप में उभर चुके हैं।  

विश्वभर की 9000 सक्रीन पर एक साथ रिलीज होने वाली बाहुबली-2 भारतीय फिल्मों के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त कर चुकी है। अभी देखना रोचक है कि यह रिकॉर्ड के किन-किन शिखरों तक पहुँचती है और नए मानक स्थापित करती है। अगर आप बाहुबली-2 न देखे हों तो अपने शहर-कस्बे के उम्दा थिएटर में जाकर एक बार इस ऐतिहासिक फिल्म को अवश्य देखें, क्योंकि ऐसी फिल्में कभी-कभार ही बनती हैं। लेप्टॉप या मोबाइल पर इस फिल्म के साथ न्याय नहीं हो सकता।

जुड़ते नए तथ्य -
बाहुबली-2 पहले तीन दिन में 500 करोड़ रुपए की कमाई कर चुकी है, जो दूसरी भारतीय फिल्मों से बहुत आगे है। 
अमेरिका में 100 करोड़ कमाने वाली यह पहली भारतीय फिल्म है।
नौ दिन में बाहुबली-2 1000 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। 1500 करोड़ का आंकड़ा कब छूती है, इसका इंतजार है।
सुपरस्टार रजनीकान्त ने जब बाहुबली-2 को देखा तो बोले - बाहुबली भारतीय सिनेमा का गौरव है। उन्होंने एसएस राजामौली को भगवान का बच्चा बताते हुए सलाम किया और बाहुबली को मास्टपीस करार दिया।

 

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...