बुधवार, 29 जून 2016

थक गए पथिक, माना पथ पत्थरीला

                           बढ़ता चल मंजिल की ओर...

                          थक गए पथिक माना राह कठिन

पथ पत्थरीला पाँवों में पड़ गए छाले

कोई बात नहीं पथिक

यह तो कहानी हर ढगर की।।

 

वह राह ही क्या

जिसमें न कोई खाई खंदक, न कोई मोड़ चढाई

यात्रा का रोमाँच तो इन्हीं बीहड़ विकट व्यावानों में

इन्हें यात्रा का हिस्सा मान, मंजिल की ओर बढ़ता चल।। 

चलते चलते थक गए, कुछ टूट गए

कोई बात नहीं पथिक

थोड़ा विश्राम कर दम भर

यह बाजिव चल जाएगा।।


फिर दूने उत्साह के साथ बढ़ चल आगे

अपने ध्येय, अपनी मंजिल की ओर

बस दृष्टि लक्ष्य से औझल मत होने देना।।

 


लेकिन हार गए हिम्मत अगर पथिक

कोशिश ही छोड़ दिए बीच राह में, और मुड़ चले पीछे

तो फिर ये ठीक नहीं, मंजूर नहीं।।


 ऐसे में पहचान खो बैठोगे अपनी

छिन जाएंगे जीवन के, सुख चैन और आजादी

इससे बड़ी फिर, जीवन की क्या बर्वादी।।


 ऐसे में अंदर की चिंगारी का बुझ जाना

अपनी नज़रों में गिर जाना

इससे बड़ी क्या दुर्घटना, क्या गम जीवन का।।


हिम्मत हार जाना 

जीते जी मर जाना

नहीं इससे बड़ी हार जीवन की

ऐसी त्रास्दी, ऐसी हार से तो मरण अच्छा।।


 हर हमेशा के लिए इतना जान लो, यह मान लो

जूझते हुए हार अच्छी, लड़ते हुए शहादत भली

पलायन से संघर्ष भला, इसे ठान लो।।


 इसी के बीच फूटेगी किरण प्रकाश की, राह सूझेगी

फिर जब आ चला हाथ में जीवन पहेली का एक छोर

बढ़ता चल पथिक तू मंजिल की ओर।।

 

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

सार्थक यौवन की दिशा धारा



वसंत के आगमन के साथ सृजन के, उल्लास के, क्राँति के स्वर फिर चहु दिशाओं में गूंजने लगे हैं। प्रकृति का हर कौना एक नई स्फूर्ति, एक नए उत्साह, एक नई उमंग के साथ तरंगित हो चला है। ऐसे में सृष्टि का हर जीव प्रकृति के माध्यम से झर रहे परमेश्वर के दिव्य प्रवाह में वहने के लिए विवश है बाध्य है। जीवन के प्रति एक नई सोच, एक नई संकल्पना, एक नए उत्साह का उमड़ना स्वाभाविक है। यदि कोई ह्दय इन विशिष्ट पलों में भी अवसाद ग्रस्त है, जीवन के प्रति उत्साह-उमंग से हीन है, तो समझो जीवन का प्रवाह कहीं बाधित हो चला है, उसका यौवन कहीं ठहर गया है।

यौवन का उमर से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं। यदि ह्दय में उत्साह, उमंग और कुछ कर-गुजरने का जज्बा है तो वह आयु में वयोवृद्ध होता हुआ भी युवा है। और यदि ह्दय उत्साह से हीन, जीवन की चुनौतियों से थका हारा और हर चीज को नकारात्मक भाव में लेने लगा है, तो समझो वह युवा होते हुए भी बृद्ध हो चुका है। जीवन में सार्थकता की अनुभूति से शून्य ऐसा जीवन एक भारभूत त्रास्दी से कम नहीं। ऐसे जीवन के प्रवाह को उत्साह, उमंग, सृजन से भरना ही जीवन का वसंत है, जीने की कला है और सार्थक यौवन से भरा जीवन है।

लेकिन यह यौवन कहीं आसमान से नहीं टपकता, न ही किन्हीं जोशीले नारों के लगाने से, क्रांतिकारी भाषण देने भर से पूरा होता। यौवन का यह दिव्य प्रसून तो दीर्घकालीन आत्म संयम, तप-साधना, सत्यानुसंधान, सतत् कर्तव्यनिष्ठा, निस्वार्थ सेवाभाव, अखण्ड जागरुकता और आत्म बलिदान, त्याग की पृष्ठभूमि में खिलता है। संकीर्ण स्वार्थ, क्षुद्र अहंकार के पाप-ताप भरी घुटन में यह दम तौड़ने लगता है, मुरझाने, कुम्हलाने लगता है। ऐसे में जीवन के तनाब, चिंता, उदासी, भय, खिन्नता, अवसाद और विषाद का पर्याय बनते देर नहीं लगती।

प्रस्तुत है सच्चे यौवन की दिशा धारा जिसके बल पर किसी भी उम्र का व्यक्ति वासंती उल्लास के साथ सृजन पथ पर बढ़ते हुए समस्याओं से भरे समाज-संसार में समाधान का हिस्सा बनकर एक सार्थक जीवन की अनुभूति कर सकता है।

परिवर्तन की शुरुआत खुद से -
युवा जो बदलाव बाहर देखना चाहता है, उसकी शुरुआत खुद से करता है। चारों ओर की अव्यवस्था, अन्याय, गरीबी, बुराई, गंदगी, भ्रष्टाचार का जिम्मा सरकार, प्रशासन या दूसरों पर छोड़ने की वजाए पहले अपनी जिम्मेदारी तय करता है। व्यवस्था परिवर्तन से पहले वह बदलाव की शुरुआत खुद से करता है और इसके बाद ही वाहर परिवर्तन की हुँकार भरता है।

अपनी जिम्मेदारी का भाव -
अपने जीवन की असफलता, कमियों, दुर्बलताओं का दोषारोपण किसी दूसरे पर, या भाग्य या भगवान पर नहीं करता। इनकी पूरी जिम्मेदारी लेते हुए, अपने चिंतन, चरित्र और व्यवहार का गहन विश्लेषण करते हुए इनके बीज को अपने अंदर खोजता है और खुद को दुरुस्त करते हुए खुद को सुधारने की साहसिक पहल करता है। और अपने हाथों अपने भाग्य का विधान को सुनिश्चित के सत्प्रयास में संलग्न रहता है।

स्वधर्म की पहचान -
सच्चा यौवन सृजनशील होता है, उसके अपने व्यक्तित्व की समझ समग्र व गहरी होती है। अपनी मौलिक योग्यता, क्षमता, रुचि के अनुरुप उसकी जीवन लक्ष्य तय होता है। किसी की देखा देखी या समाज के अंधे चलन का वह शिकार नहीं होता। अपनी स्वतंत्र सोच व मौलिक पथ का वह अनुगामी होता है और अकिंचन सा ही सही किंतु समाज के प्रति ठोस योगदान के साथ जीवन की एक सार्थकता अनुभूति के साथ जीता है।

आदर्श का निर्धारण -
सार्थक यौवन के जीवन का आदर्श सदा ऐसा कुछ होता है जिसमें जीवन की चरम और परम सम्भावनाएं साकार होती हों। आश्चर्य नहीं कि भारतीय परम्परा में आदर्श सदा आध्यात्मिक शिखर पर आरुढ़ व्यक्ति रहे हैं या ऐसे महामानव, देवमानव जिनका जीवन समाज, राष्ट्र, संस्कृति व मानवता के लिए पूरी तरह समर्पित रहा हो। स्मरण रहे कि बौने आदर्शों के साथ यौवन के प्रसून कभी अपने पूर्ण विकास को नहीं हासिल कर पाते।

जीवन का समग्र विकास -
सार्थक यौवन जीवन को समग्रता में जीता है। वह व्यक्तित्व के सर्वाँगीण विकास की रुपरेखा बनाता है। शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक सभी पहलुओं को लेकर चलता है। नित्य अपने जीवन लक्ष्य और आदर्श की कसौटी पर इनको कसता हुआ जीवन का सर्वाँगीण विकास सुनिश्चित करता है। इनके साथ अपनी मौलिक क्षमता, प्रतिभा के अनुरुप समाज के उत्थान-उत्कर्ष में अपना योगदान देता है।

समस्याओं के सार्थक समाधान का हिस्सा -
सार्थक यौवन जीवन की, समाज की, युग की समस्याओं से संवेदित-आंदोलित होता है। और अपने दायरे में इनके समाधान में सदा सचेष्ट रहता है। अपने ही संकीर्ण स्वार्थ और क्षुद्र अहंकार, अपने ही परिवार के पोषण तक उसका जीवन सीमित नहीं हो सकता। वह समाज, राष्ट्र और युग की समस्याओं के एक सार्थक समाधान का हिस्सा बनकर जीवन जीता है।

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

मात्र मेरी सफाई, तुम्हारी दुहाई से काम चलने वाला नहीं



इतना तो धीरज रखना होगा, इंतजार करना होगा

उंगलियाँ उठ रही हैं, फिर नियत पर आज
नहीं कोई बात नयी, तल्खी जानी-पहचानीं,
नहीं कुछ नया, बक्रता शाश्वत, कुचाल नहीं अनजानी।

खुद से ही है हमें तो शिकायत-शिक्वे गहरे कल के,
हर रोज ठोक पीट कर, कर रहे हैं दुरुस्त खुद के तंग दरवाजे,
ऐसे में स्वागत है इन प्रहारों का, औचक ही सही,
ये प्रहार तो हमें लग रहे हैं, प्रसाद ईश्वर के।

लेकिन यह आलाप, प्रलाप, विलाप क्यों इतना,
गर सच के पक्ष में है जेहन, तो फिर तुम्हारे सांच को आंच कैसी,
क्यों नहीं छोड़ देते कुछ बातें काल की झोली में,
अग्नि परीक्षा से तप कर, जल कर, गल कर,
 आएगा सच निखर कर सामने।

सच हमारा भी और सच तुम्हारा भी,
सच के लिए इतना तो धैर्य रखना होगा,
इतना तो इंतजार करना होगा।

मात्र मेरी सफाई से और तुम्हारी दुहाई से तो काम चलने वाला नहीं,
काल के गर्भ में हैं जबाव सवालों के, सत्य के, न्याय के, इंसाफ के,
इसके पकने तक कुछ तो धैर्य रखना होगा, इंतजार करना होगा।
 

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

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