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बुधवार, 12 अगस्त 2015

परिस्थितियों के प्रहार से मायूस मन को


THIS WORLD as GREAT GYMNASIUM


 क्यों होते हो निराश-हताश इतना,
क्यों इतना विचलित-मायूस-उदास,
छोटी सी तो घटना घटी है,
बहुत बड़ी जिंदगी की कायनात।1

कब अबारा बादल ढक पाए हैं सूरज को,
कब रात, मिटा सकी है भौर की आश,
घटना घट गई, बिजली कड़क गई, करारे सबक दे गई,
अब, बढ़ चलो धूल झाड़कर, खुला सामने पूरा आकाश।2



माना मायावी दौड़ में शामिल दुनियां,
क्यों होते हो इस भीड़ में शुमार,
जब तुम्हारा ध्येय मौलिक अलक्षित,
क्यों तुलना-कटाक्ष में समय बर्बाद।3

क्या भूल गए अपना यथार्थ-हकीकत,
मौलिक सच, अद्वितीय पथ-पहचान,
जब तोड़ने हैं रिकॉर्ड अपने ही,
फिर कैसी प्रतियोगिता का भ्रम-भटकाव।4



 ऐसे में स्वागत हर चुनौती का,
स्वागत हर विषम परिस्थिति प्रहार,
अंतिम विजय जब ध्रुब सुनिश्चित,
बढ़ता चल तू हर सीमा के पार।5

 बस रहे ईमानदार कोशिश पहचान अपनी,
जज्बा अद्म्य, सीखने की ललक अपार,
कौन सी बाधा रोक सके फिर ढगों को,
होशोहवाश में देखो सपना होता साकार।6



राह में आएंगी बाधाएं अप्रत्याशित, अपरिमित,   
होंगे स्वार्थ-दंभ-झूठ के औचक मायावी, कुटिल प्रहार,
ये तो आवश्यक अग्नि परीक्षाएं पूर्व लक्ष्य-सिद्धि के, 
रहना इस महा-एडवेंचर के लिए भी तैयार।7

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

ध्येय निष्ठा


मंजिल की ओर बढ़ती रुत दीवानी

कौन पूर्ण यहाँ, हर इंसान अधूरा,
लेकिन, पूर्णता की ओर बढ़ने की चाहत,
भीड़ से अलग कर देती है एक इंसान को।
अपने ध्येय के प्रति समर्पित,
लेजर बीम की तरह लक्ष्य केंद्रित,
एक विरल चमक देती है यह निष्ठा एक इंसान को।

उससे भी आगे,
हर प्रहार, हर चुनौती, हर मंजर के बीच भी,
मोर्चे पर खड़ा, अपने कर्तव्य पर अडिग-अविचल,
मिशन को सफल बनाने में तत्पर,
मोर्चे का चैतन्यतम घटक, प्रहरि सजग,
अभियान को मंजिल के करीब पहुँचा रहा हर ढग।

फिर, जमाने से दो कदम आगे की सोच,
बदलते जमाने की नब्ज भी रहा टटोल,
सबको आगे बढ़ने के लिए कर रहा प्रेरित-सचेत।
बिरल है यह कोटी तत्परता की, प्रेरक अतिभावन,
ऐसी सजग निष्ठा के संग हमने,
कई सफलतम् अभियानों को अंजाम होते देखा है।

नहीं यह महज किसी एक व्यक्ति की कहानी,
यह हर विजयी मुस्कान, सफल समाज की जुबानी,
तमाम मानवीय दुर्बलताओं, मजबूरियों के बीच,
हर कसौटी पर कसते, मंजिल की ओर बढ़ रही रुत दीवानी,
मानवीय नहीं, अतिमानवीय प्राण झरते हैं फिर वहाँ,

हवा के रुख को बदलने के होते हैं चमत्कार यहाँ।


चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...