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सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

सूचना से बेहाल, संदेशों का अकाल, समाधान की राह




 सूचना विस्फोट के युग में सकारात्मक संचार की चुनौती
आज हम सूचना विस्फोट के युग में जी रहे हैं, जिसमें हर पल विभिन्न जन माध्यमों से सूचनाओं की बौछार (बम्बार्डमेंट) हो रही है। ऐसे में जो सूचनाएं इंसान के ज्ञानबर्धन का माध्यम रही हैं, मानवीय सभ्यता-संस्कृति के विकास का आधार रही हैं, वेही आज इंसान के लिए तनाव, अवसाद और शांति हनन का अहम् कारण बन गई हैं। सूचना विस्फोट से उपजे तनाव व दबाव के बीच अपनी शांति-संतुलन खोए बिना सृजनात्मकता बर्करार रखना और सार्थक संदेश की खोज एक दुष्कर कार्य बन गया है, जिसका समाधान एक युग प्रश्न की भांति हर पल ताल ठोंकता रहता है। 
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सूचनाओं के इस विस्फोट का तकनीक (टेक्नोलॉजी) से सीधा सम्बन्ध है। शुरुआत प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से होती है, इसके बाद बौद्धिक पुनर्जागरण (रिनेसाँ) और औद्योगिक क्राँति के साथ पुस्तकों के प्रकाशन में तेजी आती है। इस युग में भी लोगों को शिकायत थी कि सूचनाओं का दबाव बढ़ रहा है। एक शोध के अनुसार, 1930 के दशक तक प्रिंट मीडिया के दौर में हर 30 वर्षों में सूचनाएं दुगुना हो रहीं थीं। इसके बाद इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ इस प्रवाह में और तेजी आती है। और 1960-70 के दशक तक यह बृद्धि 10 वर्षों में दोगुना हो जाती है। इसके बाद प्रिंटिंग टैक्नोलॉजी में कम्पयूटर जुड़ जाता है औऱ फिर इंटरनेट का आगमन होता है। प्रसिद्ध विचारक एवं भविष्यद्रष्टा एल्विन टॉफ्लर ने संचार क्राँति के इसी दौर को भाँपते हुए अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक फ्यूटर शॉक में इंफोर्मेशन लोड़ की बात की। जिसे आज सोशल मीडिया के वर्तमान युग में हम सूचना विस्फोट के रुप में प्रत्यक्ष देख रहे हैं। एक शोध आंकलन के अनुसार आज हर दस घंटे में सूचना का प्रवाह दौगुना हो रहा है। 

 
सोशल मीडिया का सूचना विस्फोट
आज सोशल मीडिया पर करोड़ों लोग जुड़े हैं और हर व्यक्ति यहाँ एक संचारक की भूमिका में है, जो इन माध्यमों पर कुछ भी पोस्ट और शेयर करने के लिए स्वतंत्र है। आश्चर्य नहीं कि सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क फेसबुक पर हर मिनट लगभग 30 लाख सूचनाएं पोस्ट हो रही हैं। माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर प्रत्येक मिनट 422,340 ट्वीट हो रहे हैं। यू-ट्यूब में हर मिनट 400 घंटों के वीडियोज अपलोड़ हो रहे हैं। ईमेल पर हर मिनट 20 करोड़ मेल का आदान-प्रदान हो रहा है। इंस्टाग्राम पर हर मिनट 55,555 फोटो पोस्ट हो रहे हैं। व्हाट्स-अप की बात करें, तो इस पर हर मिनट लगभग 4 करोड़ से अधिक संदेश शेयर हो रहे हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर दैनिक जीवन में सूचनाओं का यह दबाव जीवन की क्या गति बनाए हुए है इन माध्यमों से जुड़ा हर भुगतभोगी बखूबी अनुभव करता है।

पारम्परिक माध्यमों का सूचना दबाव -
इसके अलाबा पारम्परिक माध्यमों का अपना सूचना दबाव है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। देश में 1790 टीवी चैनल्ज और 190 सरकारी चैनल्ज हैं, जिनमें हर विषय पर दर्जनों से लेकर सैंकड़ों चैनल्ज हैं। टीआरपी की दौड़ में ये अपनी ब्रेकिंग न्यूज औऱ मनोरंजन के साथ हर पल आपके रिमोट बटन का इंतजार कर रहे हैं। आकाशवाणी व सामुदायिक रेडियो के साथ एफएम चैनलों की बाढ़ अपने नित नूतन संदेशों के साथ आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। रोज छप रहे सैंकड़ों-हजारों पत्र-पत्रिकाएं अपनी जगह हैं। हर रोज रिलीज हो रही फिल्मों को इसमें जोड़ा जा सकता है। इसके अतिरिक्त हर दिन प्रकाशित हो रही पुस्तकों, रोज छप रहे शोध पत्रों, रिसर्च जर्नलों को भी जोड़ें तो सूचनाओं के दबाब की कल्पना का जा सकती है। 
लेकिन सूचना दबाव में सशल मीडिया अग्रणी भूमिका में है।

 
तनाव-अवसाद के अंधेरे में धकेलता सूचना दबाव
कुल मिलाकर हम सूचना विस्फोट के युग में आज एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं, जहाँ सूचनाओँ का हाहाकार मचा हुआ है, सूचनाओं की बाढ़ एक शोर का रुप ले चुकी है, जिसमें जीवन का संगीत लुप्त प्राय है। इस शोर में अधिकाँश सूचनाएं विरोधाभासी है, अधकचरी हैं, भ्रमित करने वाली हैं, नकारात्मकता को लिए हुए हैं, सनसनाहट भरी हैं, समस्याओं को और उल्झाने वाली तथा निराशा और उन्माद की ओर ले जाने वाली हैं। संक्षेप में कहें तो सूचनाओं का यह विस्फोट वैचारिक प्रदूषण को जन्म दे रहा है, जिसमें अधिक देर तक कोई भी इंसान स्वस्थ-संतुलित नहीं रह सकता। इसके बीच एक स्वस्थ इंसान का भी तनाव, अवसाद और अंततः मनोविक्षिप्तता की ओर बढ़ना तय है। आज पश्चिम में इस मर्ज से पीढ़ित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इनके जीवन की खोई लय व संतुलन को ठीक करने के लिए डिजिटल डिटोक्शीकेशन सेंटर व मनो-चिकित्सालय खुल चुके हैं। भारत में भी स्थिति इसी ओर बढ़ रही है। 

सृजनात्मक संचार की चुनौती -
इस सूचना विस्फोट के बीच बाँछित सूचनाओं का चयन एक चुनौती बन गया है। सीमित समय में इस सूचनाओं के बाढ़ का सामना एक दुष्कर कार्य बनता जा रहा है और यह दबाव टेक्नोलॉजी के विकास के साथ बढ़ता जा रहा है। बाकि मानवीय मस्तिष्क की सूचनाओं को प्रोसेस करने की अपनी क्षमता है, अपनी सीमाएं हैं। सूचनाओं के दबाव एवं तनाव से एक ओर जहाँ मानवीय क्षमताएं बाधित-प्रभावित हो रही हैं, वहीं जीवन पहले से अधिक अशांत, अस्थिर, असंतुलित और ढगमग हो चला है। व्यक्ति की एकाग्रता इसके चलते बुरी तरह से प्रभावित हो रही है, मन की शांति-स्थिरता की जड़ों पर जैसे कुठाराघात हो रहा है। गंभीर सृजनात्मक कार्य के अनुकूल मनोभूमि इसके बीच दुष्कर होती जा रही है। इसके आगोश में इंसान जैसे एक मनो-विक्षिप्तता के बीच जीने के लिए विविश-बाध्य है।

समाधान की राह
सोशल मीडिया और मोबाइल के इस युग में हर व्यक्ति सूचना उपभोक्ता के साथ सूचना का संवाहक व प्रसारक है। अतः वह एक संचारक की भूमिका में भी है। इस नाते उसके अपने दायित्व भी हैं फेसबुक, ब्हाट्सअप, ट्विटर, ब्लॉग आदि पर सक्रियता के साथ वह एक नागरिक पत्रकार, एक सीटिजन जर्नलिस्ट की भूमिका में भी है। वह चाहे तो सूचनाओं से बेहाल इस युग में सार्थक संदेशों का सृजन कर सूचनाओं के प्रदूषण को कुछ कम करने में अपनी कुछ सार्थक भूमिका निभा सकता है। इसके लिए उसे दूसरों को कोरा उपदेश देने से पहले अपने सुधार का ईमानदार प्रयास करना होगा। दूसरों की खबर लेने से पहले अपनी खबर लेनी होगी। समस्याओं को अनावश्यक तूल देने की बजाए, इनके समाधान का हिस्सा बनने का साहस करना होगा। अंधेरे को अंधेरे से पीटने की बजाए, अंधेरे के बीच एक दीपक जलाने क प्रसाय करना होगा।
 बाकि, सूचनाओं की बाढ़ के बीच बिना मन की शांति, स्थिरता व संतुलन खोए किस हद तक जनमाध्यमों से जुड़े रहना है, किस तरह से इनका प्रभावी उपयोग करना है, यह हर व्यक्ति के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। अपने विवेक के आधार पर उसे अपनी आचारसंहिता तय करनी है। (मीडिया चौपाल, हरिद्वार - 2016 में प्रकाशित)

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