तिरंगे का पैगाम
हर कोई चाहता है जीवन में,
सफलता, उपलब्धि, बुलन्द पहचान संग,
सुख-शांति, खुशी, सुकून अपार,
बस प्रश्न एक ही, कितना हम कीमत चुकाने हैं तैयार।
यही बात सच है अपने देश की, राष्ट्र की, मातृभूमि की,
चाहे इसे कोई इंडिया कहे या भारत, अधिक फर्क
नहीं पड़ता,
लेकिन इतना सुनिश्चित, नहीं यह महज माटी का टुकड़ा,
इसकी बुलंदी माँगे कीमत अपनी, कितना हम चुकाने को तैयार।
इसकी बुलंदी माँगे कीमत अपनी, कितना हम चुकाने को तैयार।
जीवंत सत्ता है इसकी, कालजयी है इसका
व्यक्तित्व-इतिहास,
गौरवपूर्ण रहा है अतीत इसका, शाश्वत-सनातन जिसकी पहचान,
काल के अनगिन थपेड़ों में भी नहीं मिट सकी है हस्ती
जिसकी,
बस, ज़रा निहार लें तिरंगे को, थोड़ा उतर कर गहराईयों में एक बार,
छिपे हैं जहाँ राज सारे, स्पष्ट है जिनका पैगाम,
छिपे हैं जहाँ राज सारे, स्पष्ट है जिनका पैगाम,
हरा रंग है प्रतीक शांति का, प्रगति का,
खुशहाली का,
केसरिया रंग प्रतीक त्याग-बलिदान का,
जज्बा कुछ कर गुजरने का, सत्य के लिए जीने-मरने का,
श्रम श्वेद से सींचित करने का माटी को,
जरुरत पड़ी तो निभाने का, बड़े से बड़ा आत्म-बलिदान।
सफेद रंग पावन प्रतीक राष्ट्र भक्ति, देश सेवा का,
अशोक चक्र, ह्दय में श्रद्धा प्रवाहित अविराम,
अशोक चक्र, ह्दय में श्रद्धा प्रवाहित अविराम,
नहीं अधिक आशा अपेक्षा किसी से,
प्रचण्ड पुरुषार्थ संग कर्तव्य निष्ठा जिसकी बुलंद पहचान।
राष्ट्र का नवनिर्माण होगा, नया भारत उठेगा फिर,
सुनें समझें बस तिरंगे का पैगाम,
धारण कर संदेश इसका शाश्वत, बस, प्रश्न एक ही,