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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

जीवन शैली के चार आयाम, रहे जिनका हर पल ध्यान



आधुनिक जीवन के वरदानों के साथ जुड़ा एक अभिशाप है बिगड़ती जीवन शैली, जिससे तमाम तरह की शारीरीक-मानसिक व्याधियाँ पैदा हो रही हैं। इसके चलते जवानी के ढ़लते ही व्यक्ति तमाम तरह के मनो-कायिक (साइकोसोमेटिक) रोगों से ग्रस्त हो रहा है। इतना ही नहीं डिप्रेशन, मोटापा, डायबिटीज जैसी बीमारियां बचपन से अपना शिकंजा कसने लगी हैं। युवा इसके चलते अपनी पूरी क्षमता से परिचित नहीं हो पा रहे और जवानी का जोश सृजन की बजाए निराशा और अवसाद के अंधेरे में दम तोड़ने लगा है।

जीवन शैली क्या है? इसके प्रमुख आयाम क्या हैं?, इतना समझ आ जाए और इनके सर्वसामान्य सरल सूत्रों का दामन थाम कर जीवन शैली से जुड़ी विकृतियों से बहुत कुछ निजात पाया जा सकता है और एक स्वस्थ, सुखी एवं संतोषपूर्ण जीवन की नींव रखी जा सकती है। 
जीवन शैली के चार आयाम हैं – आहार, विहार, व्यवहार और विचार।

आहार हल्का एवं पौष्टिक ही उचित है। स्वस्थ तन-मन का यह सबल आधार है। यदि हम भोजन ठूस कर खाते हैं तो सात्विक भोजन को भी तामसिक बनते देर नहीं लगती। आहार का सार इतना है कि वह शरीर का पोषण करे,  इसे सशक्त बनाए व स्फुर्त रखे। 
भोजन शांत मन से खूब चबाकर खाएं, जिससे कि दांत का काम आंत को न करना पड़े। देश, काल, परिस्थिति के अनुरुप अपनी रुचि, प्रकृति एवं क्षमता के अनुरुप इसका विवेकसंगत चयन अभीष्ट है।

इसके साथ श्रम, व्यायाम का अनुपान। यथासम्भव शारीरिक श्रम को महत्व दें। यदि समय हो तो लिफ्ट की बजाए सीढियाँ चढ़कर जाएं। आस-पास कैंपस या मार्केट में स्कूटर की बजाए साइकल से जाएं या पैदल चलें। अपनी आयु और समय-क्षमता के अनुरुप नित्य टहल, कसरत या व्यायाम का न्यूनतम क्रम निर्धारित किया जा सकता है।

साथ में उचित नींद-विश्राम। औसतन नींद के 6-8 घंटे पर्याप्त होते हैं, जिसके बाद व्यक्ति तरोताजा अनुभव करता है। इसके लिए रात को कम्प्यूटर, गैजट्स व टीवी के अनावश्यक प्रयोग से बचें। दिन में थकान के पलों में झपकी (कैट नैप) का सहारा लिया जा सकता है।
यह शारीरिक स्वास्थ्य औऱ निरोगिता का सर्वसामान्य कार्यक्रम है, जिसके आधार पर व्यक्ति ताउम्र न्यूनतम फिटनेस के साथ जीवन का आनंद उठा सकता है।
इसके साथ जीवन शैली का दूसरा आयाम है – विहार
विहार – विहार का अर्थ है दैनन्दिन विचरण। सुबह उठने से लेकर रात्रि शयन तक की जीवन चर्या। समय पर शयन और समय पर प्रातः जागरण - पहला स्वर्णिम सुत्र है। सुबह जागते ही, अपने जीवन लक्ष्य व ईष्ट-आदर्श के सुमरण के साथ दिनचर्या का आगाज। फिर दिन भर के कार्यों का निर्धारण, इनको प्राथमिकताओं के आधार पर अंजाम देने की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था। इस तरह व्यवस्थित, अनुशासित दिनचर्या जहाँ एक ओर कर्तव्य निर्वाह का संतोष देती है, तो वहीं दूसरी ओर सामाजिक जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। 

इसके साथ दिनभर का संग साथ मायने रखता है। अंग्रेजी कहावत है कि – अ मेन इज नोन वाई द कंपनी ही कीप्स। क्योंकि आपका संग-साथ आपकी सोच व व्यवहार को प्रभावित करता है। अतः सकारात्मक एवं प्रेरक संग-साथ ही वांछनीय है। आज के विषाक्तता से भरे टीवी, इंटरनेट, सिनेमा एवं मोबाइल के युग में सात्विक, प्रेरक एवं लक्ष्य को पोषित करने वाला संग-साथ महत्वपूर्ण है। ऐसे संग साथ से दूर ही रहें जो मन को दूषित करता हो, चित्त को कलुषित करता हो और ह्दय को दुर्भावनाओं से भरता हो।
दिनचर्या में प्रार्थना, ध्यान-जप, स्वाध्याय आदि का समावेश सकारात्मक विचारों से भरे वातावरण का सृजन करता है, जो नकारात्मकता भरे दमघोंटू वातावरण में हमारे लिए संजीवनी का काम करता है। इस तरह अनुशासित आहार-विहार के आधार पर हममें वह आत्म-विश्वास आता है, जिसके बल पर हम सकारात्मक एवं प्रभावी व्यवहार की ओर बढ़ते हैं।

व्यवहारशालीन एवं सहकार-सहयोग भरा व्यवहार, जीवन शैली प्रबन्धन का तीसरा चरण है। वाणी व्यवहार की मुख्य वाहक है। अतः इसका स्वर्णिम सुत्र विज्ञजनों द्वारा दिया गया है – मित, मधुर और कल्याणी। वाणी ऐसी हो जिससे किसी की भावना आहत न हो, जिसके सबका कल्याण हो। लेकिन अवांछनीय तत्वों से भरे इस संसार में आवश्यकता पड़ने पर प्रभावी निपटारे के लिए उपेक्षा का सहारा लिया जा सकता है। उपेक्षा कर सकते हैं अपमान नहीं, एक मार्गदर्शक वाक्य हो सकता है। व्यवहार में उदारता-सहिष्णुता का समावेश निश्चित रुप में व्यक्तित्व को भावप्रवण बनाता है और भावनात्मक स्थिरता की ओर ले जाता है, जो चारों ओर सहयोग-सहकार भरा सुख-शांतिपूर्ण वातावरण का सृजन करता है।

और अंत में, विचार, जीवन शैली का चौथा एवं सबसे सूक्ष्म एवं महत्वपूर्ण पक्ष है। विचारों की शक्ति सर्वविदित है। विचार ही क्रमशः कर्म बनते हैं, जो आगे चलकर आदतें बनकर व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण करते हैं। सो विचारों की शक्ति का सही नियोजन महत्वपूर्ण है। विचारों का सकारात्मक, विवेकसंगत, परिष्कृत और सशक्त होना वरेण्यं है। इसके लिए अपने आदर्श का सुमरण, सतसंग एवं सुदृढ़ धारणा आवश्यक है। 

इसके साथ मस्तिष्क का लक्ष्य केंद्रित होना जरुरी है, जिससे अपना कैरियर एवं प्रोफेशनल लक्ष्य का भेदन हो सके। इसके साथ व्यापक एवं गहन अध्ययन, बौद्धिक विकास को सुनिश्चित करता है। लेखन के रुप में विचारों की रचनात्मक अभिव्यक्ति मौलिक सोच को पुष्ट करती है, वहीं सृजन का आनंद देती है। इसी के साथ सामाजिक जीवन में एक प्रभावी संचार का मार्ग प्रशस्त होता है।

इस तरह जीवन शैली के चार आयाम हैं – आहार, विहार, व्यवहार और विचार, जो व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करते हैं। इनको साधने के लिए बनाया गया न्यूनतम कार्यक्रम स्वस्थ, सुखी एवं सफल जीवन की दिशा में एक समझदारी भरा साहसिक कदम माना जाएगा। 

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

जब पहिया जीवन का ठहर सा जाए


  अवसाद से वाहर निकलें कुछ ऐसे
जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब जिंदगी का पहिया थम सा जाता है, जीवन ठहर सा जाता है। लगता है जीवन की दिशाएं धूमिल हो चलीं। प्रगति का चक्का जाम सा हो चला। विकास की राह अबरुद्ध सी हो चली। तमस के गहन अंधेरे ने वजूद को अपने आगोश में ले लिया।
इन पलों में बेचैनी-उद्विग्नता भरी निराशा-हताशा स्वाभाविक है। निराशा का दौर यदि लम्बा चले तो जीवन का अवसादग्रस्त होना तय है। जीवन के इन विकट पलों में जीवन अग्नि परीक्षाओं की एक अनगिन कड़ी बन जाता है। छोटी छोटी बातें गहरा असर डालती हैं, सांघातिक प्रहार लगती हैं। थोड़ा सा श्रम तन-मन को थका देता है। जीवन के उच्च आदर्श, लक्ष्य, ध्येय, क्राँतिकारी विचार-भाव सब न जाने किस अंधेरी माँद में जाकर छिप जाते हैं। जीवन एक निरर्थक सी ट्रेजिक कॉमेडी लगता है। भाग्य का विधान, भगवान का मजाक समझ नहीं आता। वह कैसा करुणासागर है, जिसका विधान इतना क्रूर, मन प्रश्न करता है। यथार्थ के पथरीले व कंटीले धरातल पर लहुलूहान जीवन ऐसा लगता है जैसे जेल में कैदी किसी जुर्म की सजा भुगत रहा हो।
इन पलों को धैर्य, संतुलन, संजीदगी से जीना ही वास्तविक कला है, असल बहादुरी व समझदारी है। जो इन क्षणों को साहसपूर्वक पार कर ले जाते हैं, वे समझ पाते हैं कि ये विकट पल प्रगति के लिए कितने जरुरी थे। नवल विकास के लिए परिवर्तन की यह प्रक्रिया कितनी आवश्यक थी, जैसे सुबह से पहले का घनघोर अंधेरा, रोशनी से पहले की लम्बी अंधेरी सुरंग, बरसात से पहले की अंगारे बरसाती गर्मी, बसंत से पहले की पतझड़ व हाड़ कंपाती ठंड।


येही वे क्षण होते हैं जब सबसे अधिक व्यक्ति के विश्वास की परीक्षा होती है। इन्हीं क्षणों में आत्म-श्रद्धा और ईश्वरीय न्याय पर आस्था काम आती है। धैर्य, ईमान, धर्म और भगवान इन्हीं क्षणों में काम आते हैं। अपने परायों की, मित्र-बैरी की, सच्चे झूठे की परीक्षा भी इन्हीं पलों में हो जाती है। अपनी अंतर्निहित क्षमताओं व शक्तियों से गाढ़ा परिचय भी इन्हीं पलों में होता है। यदि इन पलों को धैर्य, साहस व सूझ के साथ पार कर गए तो ये अनुभवों की ऐसी सोगात झोली में दे जाते हैं, जो जीवन को हर स्तर पर कृतार्थ कर देते हैं। अनुभव से मिला शिक्षण, बुद्धि को प्रकाशित करता है, भावनाओं को मजबूत करता है और व्यक्तित्व में एक नई शक्ति का संचार करता है। अपने चरम पर ये अनुभव आत्म जागरण के पल साबित होते हैं।
इन बोझिल पलों को सरल, सहज व संजीदा बनाने और इनसे उबरने में निम्न सुत्रों को अपनाया जा सकता है -
1.     इनको अपनी प्रगति का अनिवार्य अंग माने। धैर्यपूर्वक इनका सामना करें।
2.     अपने पुरुषार्थ को जारी रखें। सामाधान की दिशा में हर कदम मायने रखता है।
3.     ऐसे सत्पुरुषों का संग साथ करें, जो हौंसला देते हों।
4.     यदि ऐसा संग सहज न हो तो, इसकी पूर्ति महापुरुषों के प्रेरक सत्साहित्य से की जा सकती है।
5.     किसी से अपनी तुलना न करें। प्रपंच (परचर्चा-परनिंदा) से दूर ही रहें।
6.     अपने सपनों को मरने न दें। जो रुचिकर लगे, उस कार्य को करते रहें।
7.     प्रकृति का सान्निध्य ऐसे दौर में नई ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करता है। यथासंभव इसका लाभ उठाएं।
8.     ऐसे दुष्कृत्यों से दूर ही रहें, जो जीवन के अंधेरे को और घना करते हों।
9.     प्रार्थना, जप-ध्यान जैसे आध्यात्मिक उपचारों का सहारा ऐसी अवस्था में कारगर रहता है।
जीवन के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली चट्टान को चटकाने में ये सत्प्रयास हथोड़े की मार जैसे होते हैं, जिनका हर प्रहार अपना काम करता है। शनैः-शनैः चट्टान में दरारें पड़ती हैं और चट्टान को चटकाने वाला अंतिम प्रहार भी एक दिन बन पड़ता है। इसीके साथ जाम पड़ी जीवन की गाड़ी, पटरी पर आ जाती है और जीवन का प्रवाह अपनी लय में बहने लगता है।


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