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रविवार, 28 सितंबर 2014

दिल से चाह कर, दाम चुका कर तो देखो



ऐसा क्या जो तुम नहीं कर सकते

 
क्यों भिखारी बन भीख माँगते हो,

क्रीतदास बन हाथ पसारते हो,

जो चाहते हो उसे पहले दिल से चाह कर तो देखो,

फिर उसकी कीमत चुका कर तो देखो।1।


ऐसा क्या है, जो तुम नहीं कर सकते,

ऐसा क्या है जो तुम नहीं पा सकते,

दिल से चाहकर, दाम चुकाकर तो देखो,

आलस-प्रमाद, अकर्मण्यता की खुमारी को हटाकर तो देखो।2।



 
सारा जग है तुम्हारा, तुम इस जग के,

यदि पात्रता नहीं, तो विकसित करने में क्या बुराई,

कौन पूर्ण यहाँ, सभी की अपनी अधूरी सच्चाई,

हर कोई संघर्ष कर रहा, लड़ रहा अपनी लड़ाई।3।


शॉर्टकट भी जीवन में कई, कुछ बनने के, कुछ पाने के, 

लेकिन, बिना दाम चुकाए, बढ़प्पन कमाने में क्या संतोष, क्या अच्छाई,

मुफ्त में हासिल कर भी लिए, तो क्या मज़ा, 

शांति-सुकून बिना कितना खालीपन, अंजाम कितना दुःखदाई।4।



गुरुवार, 18 सितंबर 2014

परिवर्तन के साथ जीने की तैयारी

माना परिवर्तन नहीं पसंद जड़ मन को

 

माना परिवर्तन नहीं पसंद जड़ मन को,

ढर्रे पर चलने का यह आदी,

अपनी मूढ़ता में ही खोया डूबा यह,

चले चाल अपनी मनमानी।1।


लेकिन, जड़ता प्रतीक ठहराव का,

यह पशु जीवन की निशानी,

परिवर्तन नियम शाश्वत जीवन का,

चैतन्यता ही सफल जीवन की कहानी।2।


यदि परिवर्तन के संग सीख लिया चलना,

खुद को ढालना, बदलना, कदमताल करना,

तो समझो, बन चले कलाकार जीवन के,

जीवन बन चला एक मधुर तराना।3।




सो परिवर्तन का सामना करने में होशियारी,

इसकी हवा, नज़ाकत को पढ़ने में समझदारी,

तपन सुनिश्चित इसकी कष्टकारी,

लेकिन यही तो जीवन के रोमाँच की तैयारी।4।


परिवर्तन के लिए नहीं अगर कोई तैयार,

अपनी मूढ़ता की आँधी पर सवार,

तो मूर्ति को गढ़ता छैनी का हर प्रहार,

बन जाए जीवन का वरदान भी अभिशाप।5।


ऐसे में दे कोई मासूमियत की दुहाई

कालचक्र ने कब किसकी सुनी है सफाई,

राजा को रंक बना कर, कितनों को है धूल चटाई।

समझ कर तेवर इसके, बदलने, सुधरने में है भलाई।6।


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