दैनिक जीवन में अध्यात्म
अध्यात्म का सामान्य अर्थ कुछ इस रुप में लिया
जाता है, जिसके लिए घर-परिवार, व्यवसाय, ऑफिस आदि छोड़ने पड़ते हैं व ये मुख्यतः साधु
सन्यासियों व बाबाओं या बुढ़े-बुजुर्गों के लिए है। जबकि अध्यात्म जीवन से घुला
अन्तरतम पहलु है, अस्तित्व की पहेली का समाधान करता जीवन दर्शन एवं जीवन शैली है,
जिसका दैनिक जीवन में जितना जल्दी समावेश किया जाए, उतना उत्तम है, श्रेयस्कारी
है, कल्याणकारी है।
गायत्री के सिद्ध साधक, इस युग के विश्वामित्र,
युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य व्यवहारिक अध्यात्म के प्रणेता रहे हैं,
वैज्ञानिक अध्यात्म के जनक रहे हैं। उनके द्वारा दिए गए दैनिक जीवन में अध्यात्म
के सुत्र सरल किंतु प्रभावशाली हैं, जिन्हें अपना पारिवारिक-सामाजिक जीवन जीते हुए
सहज सरल रुप में अपनाया जा सकता है।
वे अध्यात्म को जीवन साधना के रुप में परिभाषित
करते हैं, जिसके तीन चरण हैं उपासना, साधना और अराधना। इन्हें अन्यत्र वे संयम,
स्वाध्याय, सेवा, साधना के रुप में भी समेटते हैं।
उपासना भगवान की, साधना मन
की और अऱाधना समाज की। इस तरह इनके दायरे में पूरा जीवन, पूरा अस्तित्व समा
जाता है। इनको भक्ति योग - ज्ञान योग,
ध्यान योग तथा कर्म योग के रुप में भी समझा जा सकता है, जिनकी फलश्रुतियाँ श्रद्धा,
प्रज्ञा एवं निष्ठा रहती हैं।
दैनिक जीवन में अध्यात्म का समावेश प्रातः आत्म
बोध से शुरु होता है, जिसमें ईश्वर का स्मरण करते हुए, ईश्वर प्रदत्त इस मानव
जीवन की गरिमा, महिमा का अहसास करते हुए, आज के दिन के श्रेष्ठतम उपयोग की रुपरेखा
बनाई जाती है। इसके लिए अपने डायरी व स्लिप पैड (प़ॉकेट डायरी) में दिन के कार्यों
की प्राथमिकता के आधार पर सूची बनाई जाती है, यह To do List दिन के हर पल का श्रेष्ठतम उपयोग
सुनिश्चित करती है। बीच-बीच में इनको झांक कर देखने पर याद रहता कि आज क्या-क्या
काम पूरे करने थे। आज के डिजिटल युग में मोबाइल डायरी का भी उपयोग किया जा सकता
है।
दिन भर अपनी व्यस्त दिनचर्या के बाद फिर रात को तत्वबोध
का क्रम आता है, जिसके अन्तर्गत दिन भर के कार्यों का लेखा-जोखा किया जाता है। जो
विधिवत रुप में डायरी लेखन के रुप में सम्पन्न होता है। इस तरह आत्मबोध से शुरु
दिनचर्या तत्वबोध में समाप्त होती है।
दिन भर में प्रातः Morning Walk, योगाभ्यास, व्यायाम आदि के
साथ अपनी क्षमता, आयु एवं समय के अनुरुप शारीरिक फिटनेस का कार्य़क्रम निर्धारित
किया जा सकता है। अपने प्रातःकालीन आवश्यक कार्यों के बाद स्नान एवं इसके बाद उपासना
के अन्तर्गत जप-ध्यान का न्यूनतम कार्यक्रम पूरा किया जा सकता है। जो अपनी
क्षमता, स्थिति के अनुरुप कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटे का हो सकता है। इसमें माला की
संख्या से अधिक अपने ईष्ट-अऱाध्य-भगवान से भावनात्मक प्रगाढता मायने रखती है।
उपासना के बाद साधना का
क्रम आता है, जो दिन भर चलता है। जिसके अन्तर्गत आचार्यश्री इंद्रिय संयम, समय
संयम, अर्थ संयम और विचार संयम की बात करते हैं। इंद्रिय संयम में स्वाद,
दृष्टि-स्पर्श-जननेंद्री एवं वाणी प्रमुख हैं। अपने शरीर के अनुकूल हल्का-फुल्का,
सात्विक एवं पौष्टिक भोजन लिया जाता है, शास्त्रों में बताए गए ऋतभुख्-मितभुख्-हितभुख्
का सुत्र अनुकरणीय रहता है।
स्वाद का सीधा सम्बन्ध जननेंद्रि
से रहता है, जितना सात्विक व हल्का आहार रहेगा, इस इंद्रिय का संयम उतना सरल रहेगा।
फिर मन को उत्तेजित करने वाले बाहर के दृश्यों के प्रति सजगता एवं सावधानी आती है।
आज के इंटरनेट एवं मोबाइल युग में प्रलोभनों की भरमार रहती है, समाज का वातारण भी
विषाक्त रहता है, ऐसे में इस तरह के उत्तेजक उत्प्रेरकों से निपटना किसी चुनौती से
कम नहीं रहता, लेकिन यही तो साधना का एडवेंचर है। साधक अपने ढंग से इस साधना समर
में जूझता है और अपनी विजय को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
वाणी – व्यवहार की साधना
में मित-मधुर-कल्याणी के सुत्र का अनुसरण करें। कम बोलें, जितना आवश्यक हो। शिष्ट-शालीनता
रहें, हितकर ही बोलें। साधना काल में अवांछनीय तत्वों से दूर ही रहें व उनके
भड़काउ व्यवहार के प्रति मौन व उपेक्षा का भाव रखें। अपने मन की शांति व स्थिरता को
बनाए रखना ही इस साधना का उद्देश्य रहता है।
संयम संयम – Time Management साधना का एक महत्वपूर्ण अंग
है, जिसने काल को साध लिया, समझो उसकी महाकाल की उपासना हो चली। इसके लिए दिनचर्या
में महत्वपूर्ण व तातकालिक (Important and Urgent) कार्यों की समझ आवश्यक
होती है। इसमें खण्ड 1 में ड्यूटी, परीक्षा, एसाइन्मेंट, आपातकालीन परिस्थिति जैसे
Impt/Urgnt कार्य आते हैं, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर निपटाना होता है। दूसरे खण्ड
में स्वाध्याय, डायरी, व्यायाम, उपासना, सेवा जैसे Impt/Not Urgnt कार्य़ आते हैं, जिनको
दिनचर्या में शामिल करना होता है।
तीसरे खण्ड में फोन कॉल, शादी-विवाह, दोस्त की पार्टी जैसे Not Impt/Urgnt कार्य आते हैं, जिन्हें
टाला जा सकता है या दूसरों को सौंपा जा सकता है। और अंततः खण्ड 4 के Neither Impt/
Nor Urgnt कार्य आते हैं, जो मन के बहलावे या टाइमपास के लिए किए जाते हैं, या जैसे
फिल्म, मोबाइल, दुर्व्यसन (शराब, नशा आदि)। येही समय, ऊर्जा व फोक्स की बर्वादी का
कारण बनते हैं। खण्ड 3 व 4 के कार्यों को यदि सही ढंग से मैनेज कर लिया तो खण्ड 1
व 2 के उपयोगी कार्य संभव होंगे तथा व्यवहारिक जीवन में साधना का मकसद पुरा होगा।
अर्थ संयम में जितनी आमदनी है उसके
हिसाब से खर्च की बात आती है, और जो अतिरिक्त अर्जन होता है, उसका उचित बचत के साथ
जरुरतमंदों की सहायता में लगाया जा सकता है। सादा जीवन उच्च विचार इसका स्वर्णिम
सुत्र है। विचार संयम, श्रेष्ठ विचारों में रमण करने व अपने लक्ष्य के
प्रति फोक्स्ड रहने पर सधता है। इसें स्वाध्याय, सत्संग के साथ आत्म-चिंतन व मनन
का विशेष महत्व रहता है।
इसके साथ अपने रिलेश्नशिप्स में, रिश्ते नातों व
मित्रों से न्यूनतम आशा-अपेक्षा से भरा कर्तव्य पालन तथा सेवा का भाव उचित रहता
है, जो अराधना के अंतर्गत आता है। हर इंसान व जीव में ईश्वर के दर्शन करते
हुए उससे व्यवहार, इंटरएक्शन इसका हिस्सा है। दूसरों से व्यवहार में व्यक्तित्व की
न्यूनतम गरिमा एवं गुरुत्व इसका हिस्सा हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि दैनिक जीवन में
अध्यात्म के लिए जीवन का आध्यात्मिक लक्ष्य होना अभीष्ट है, साथ ही अपना
आध्यात्मिक ईष्ट- अऱाध्य – आदर्श जितना
स्पष्ट होगा, उतना ही श्रेष्ठ रहेगा। इतना करते हुए जीवन में संयम, स्वाध्याय,
सेवा व साधना का क्रम बन पडेगा, जीवन में अध्यात्म का समावेश हो चलेगा।
रात को सोने से पहले तत्व बोध में डायरी
लेखन के अंतर्गत स्व मूल्याँकन के साथ दिनचर्या पूर्ण होगी। दिन भर जो भूल-चूक
हो गई, उसके लिए भगवान से क्षमाप्रार्थना करते हुए अगले दिन की और पुख्ता रण्नीति
बनाते हुए, आज के जीवन को ईश्वर को अर्पित करते हुए निद्रा देवी की गोद में चले
जाएं। इस तरह हर रोज सुबह नया जन्म और सोते समय रात को नित्य मौत का अभ्यास जीवन
को अध्यात्म से ओतप्रोत करेगा।