रविवार, 23 फ़रवरी 2025

नाव वहाँ डूबी, जहाँ पानी सबसे कम गहरा था

 

तमसो मा ज्योतिर्गमय


नाव वहाँ डूबी, जहाँ पानी सबसे कम गहरा था,

नहीं तो परायों की क्या विसात, अपनों के बल हम अकेले ही जमाने पर भारी थे।


मासूमियत में कह गए थे बातें अपने दिल की सर्वहित में,

नहीं मालूम था कि सामने दिल में खोट गहरी थी।


हमें तो लूटने की आदत रही हर मासूम अदा पर अपनेपन में,

नहीं मालूम था कि सामने चाल शातिर गहरी चल रही थी।


जिस मासूमियत को मान बैठे थे खुदा, सेज फूल की,

नहीं मालूम था कि वहीं अपनी कब्र खुदने जा रही थी।


आत्मीयता आदर्शों की जहाँ हो रही थी बातें बड़ी गहरी,

नहीं मालूम था कि वहाँ पूरे कुंएं में भाँग पड़ी थी।


ऐसे में सफर रहा कुछ ऐसा, राह में सबसे कमजोर कढ़ियां पुल बनती गई,

था जिन पर गरुर बहुत, वही मंजिल के अंतिम मोड़ पर दगा दे गई।


अब तो डर लगने लगा है हर मासूमियत, व्यवहार की नम्रता मीठेपन से,

क्या मालूम वहाँ फूलों से ढका साँप ढसने की तैयारी में बैठा हो।


फिर भी नहीं अधिक गिला-शिक्वा अस्तित्व की इन चालों से,

इनको इनका कर्मफल मुबारक, हम तो अपनी नेक राह चल पड़े।


शुक्र ही मनाऊं इस अंधेरे का, जो दीया सा जलने की सार्थकता दे गए,

हो गई कर्मों की कुछ बसूली भी राह में, अब अगली मंजिल की ओर बढ़ चले।



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