उत्तरकाशी से हर्षिल - धराली
उत्तरकाशी से गंगोरी को पार करते हुए हम मनेरी
से होकर गुजरते हैं, जहाँ भगीरथी पर विद्युत परियोजना के कारण ठहरी हुई जलराशि के
दर्शन होते हैं।
02:00 PM, CHECK POST
मनेरी को पार करते हुए हम भटवारी पहुँचते हैं,
जहाँ एक स्थान पर गाड़ी नीचे मैदान में रुकती है, कई टैंट लगे थे। वहाँ गंगोत्री
के लिए पंजीयन होता है। जितना देर पंजीयन की औपचारिकता पूरी होती रही, हम नीचे
भगीरथी नदी के दर्शन करते हैं। यह समीप से गंगा मैया के पहले दर्शन थे।
02:38 PM, MANERY WATERFALL
आगे मनेरी बांध के झरने के दर्शन करते हुए आगे
बढ़ते हैं, जो एक वृहद जलराशि के रुप में एक सुरंग से नदी के तट पर गिरता है, जिसे
शायद ही ऐसा कोई राही हो, जो दिल थामकर न निहारता हो।
आगे रास्ते भर स्थान-स्थान पर पानी के झरनों की
भरमार दिखी। हर मोड़ पर इनके दर्शन होते रहे, जो उत्तरकाशी से पूर्व के मार्ग के
एकदम विपरीत अनुभव था।
रास्ते में ही दयारा वुग्याल के लिए
वायीं ओर से लिंक रोड़ जाता दिखा।
04:00 PM, TEA BREAK
इस घाटी के अंतिम स्टेशन में गाड़ी रुकती है,
जहाँ कुछ चाय-नाश्ते व फल-सब्जी की दुकानें सजी थी। चाय नाश्ते के साथ काफिला
रिफ्रेश होता है। यहाँ पालतु पहाड़ी गाय व बछ़डों के दर्शन होते हैं, जो आकार में
काफी छोटे थे। ये यात्रियों से सहज ही घुलमुल जाते हैं। कारण, यात्री इन्हें
श्रद्धावश कुछ खिलाते रहते हैं। हमने भी साथ लाई पुड़ियाँ खिलाई और इनके साथ फोटो
खिंची।
चाय-नाश्ते के साथ तरोताजा होकर हम आगे के लिए
कूच करते हैं। रास्ते की आवोहवा में हिमालयन टच के साथ एक नया सुकून व शांति का
अहसास शुरु हो चुका था। यहाँ से पुल पार कर हम अब भगीरथी के वाएं तट के संग संकरी
घाटी में आगे बढ़ रहे थे। कुछ ही देर में आता है इस रुट का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल गंगनानी,
जो तप्तकुंडों के लिए प्रख्यात है।
05:00 – 05:30 PM, GANGNANI
माना जाता है कि यहाँ भगवान व्यास के पिता ऋषि
पराशर ने तप किया था। यहां पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग कुंड बने हुए हैं।
बाहर खुले में वाईं ओर झर रहे झरनों में भी स्नान किया जा सकता है। यहाँ के गर्म
कुँडों में स्नान कर हम सभी तरोताजा होते हैं और पितृपक्ष होने के कारण अपने
पितरों का सुमरन करते हुए उनके कल्याण के लिए भाव निवेदन और प्रार्थना करते हैं।
यहाँ से सफर संकरी घाटी से होते हुए मंजिल की ओर
बढता है। रास्ते में हर मोड़ पर खड़ी चट्टानें और मोड खतरनाक अहसास दिला रहे थे।
लग रहा था कि कुशल चालक ही इस राह पर वाहन को चला सकते हैं। उस पार ऊंचे पहाड़ों
की गोद में विरल गाँव के दृश्य देखकर आश्चर्य एवं रोमाँच होता रहा कि लोग इन
ऊंचाइयों व निर्जन क्षेत्र में किन मजबूरियों या प्रेरणा के वश बसे होंगे।
06:00 PM
लेफ्ट बैंक के छोर पर एक पुल पार होता है, जिसके
नीचे भगीरथी नदी गर्जन-तर्जन करती हुई बह रही थी। और पुल के पार झरने की कई धाराओँ
में जलराशि झर रही थी, जहाँ फोटो खींचने के लिए लोगों की भीड़ लगी थी।
इसके आगे चट्टानों के बीच रास्ता बढ़ रहा था और
वायीं और गगनचुम्बी चट्टानी पहाड़ों के संग हम आगे बढ़ रहे थे। यहीं मैदान में एक
स्थान पर भेड़-बकरियों के झुंड के साथ गड़रिए रात्रि विश्राम के लिए अपना ठिकाना
तैयार कर रहे थे।
6:15 – 6:30 PM
शाम का धुंधलका धीरे-धीरे हॉवी हो रहा था।
भगीरथी नदी दायीं ओर अपने रौद्र रुप में ढलान के संग नीचे मैदानों की ओर बढ़ रही
थीं। अपने मायके को छोड़कर मैदानों की ओर उसके उतरने का उत्साह देखते ही बन रहा
था।
आगे रास्ते में अंधेरा शुरु हो चुका था। बस अब जिग्जैग
सड़क के साथ ऊपर चढ़ रही थी। बाद में पता चला कि हम सुखू टॉप की ओर बढ़ रहे
थे। मार्ग में सेब से लदे वृक्षों के दर्शन शुरु हो गए थे, जो पहली बार पहाड़ों
में सफर कर रहे विद्यार्थी और शिक्षकों के लिए एक सुखद अहसास था। रास्ते भर सड़क
के ऊपर और नीचे सेब के बगीचों के दर्शन होते रहे। लगा कि दिन के उजाले में इनके
दर्शन होते, तो कितना अच्छा रहता। हम काफी ऊंचाई पर सफर कर रहे थे, नीचे घाटी में
वस्तियों की टिमटिमाती रोशनी इसका अहसास दिला रही थी। बस आगे चलकर फिर नीचे उतरती
दिखी।
07:00 PM
हम अब नीचे उतर रहे थे और रोशनी से जगमग बस्ती
को पार करते हैं। और भगीरथी के ऊपर एक पुल को पार कर फिर लेफ्ट बैंक के साथ आगे
बढ़ते हैं। पता चला कि हम हर्षिल घाटी में प्रवेश कर चुके हैं। रास्ते में
बस की रोशनी में देवदार के वृहद पेड़ों के दर्शन होते रहे और अंधेरे में भी इनको
यथासंभव कैप्चर करने के प्रयास चलते रहे। अब हम आज के गन्तव्य के मात्र 2-3 किमी
दूर थे। रास्ते में दनदनाते नाले व झरने बहुतायत में मिलते रहे। मंजिल के समीप
पहुँचने का सुकून व उत्साह भी हिलोरें मार रहा था। वाइं और भगीरथी समीप ही विस्तार
लिए बहती दिख रही थीं, जो पिछली संकरी घाटी के अनुभव के विपरीत खुली घाटी में
पहुँचने का एक नया अहसास था।
08:00 PM
लो हम धराली में प्रवेश कर चुके थे और
कुछ ही पलों में अपने होटल कल्प-केदार के सामने हमारी बस खड़ी होती है।
इस तरह लगभग 14 घंटे के सफर के बाद हम अपनी
मंजिल पर पहुंचते हैं। मालूम हो कि धराली इस घाटी के 8 गावों में एक प्रमुख गाँव
है, जो पौराणिक कल्प-केदार मंदिर के लिए प्रख्यात है, जो गंगोत्री से 20
किमी पहले पड़ता है। गौमुख के आगे तपोवन में रिकार्ड समय तक रहने वाली सुभद्रा
माता की मुख्य तपःस्थली भी यहीं धराली में स्थित है। अपने सेब के बगानों के
लिए धराली प्रख्यात है और इसके ठीक सामने भगीरथी नदी के उस पार मुख्वा गांव
पड़ता है, जो गंगा मैया का शीतकालीन आवास है।
कमरों की व्यवस्था व भोजन आदि के साथ रात के दस
बज जाते हैं। सफर में पहने हुए कपड़े कम प्रतीत हो रहे थे, क्योंकि यहाँ तापमान 12-14
डिग्री सेंटिग्रेट था, जो रात को 3-4 डिग्री तक तेजी से गिरने वाला था। रात को ही
समीपस्थ कल्प-केदार मंदिर में भी माथा टेक आते हैं, जो एक सुंदर, स्वच्छ व
भव्य कत्यूरी शैली में बना प्राचीन मंदिर है। इसे केदारनाथ मंदिर का ही समकालीन
माना जाता है और पांडवों से जुड़ा हुआ है। दल के होटल में व्यवस्थित होने के बाद
हम कमरे में प्रवेश करते हैं।
कमरा होटल की तीसरी मंजिल पर था, जहां की
वाल्कनी से बाहर सेबों से लदा बगीचा प्रत्यक्ष था और सामने मुख्वा गाँव की
टिमटिमाटी रोशनी से सजा आलौकिक दृश्य। चारों और गंगनचूंबी हिमालय के दर्शन
आह्लादित कर रहे थे औऱ भगीरथी नदी की कलकल निनाद करती मधुर ध्वनि गृहप्रदेश की
व्यास नदी की याद दिला रही थी। अगले दिनों इन सबका दीदार किया जाना था। इसी भाव के
साथ कंबल व रजाई में प्रवेश कर, स्वयं को गरमाते हुए निद्रा देवी की गोद में
प्रवेश करते हैं। (भाग-3, जारी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें