गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

यात्रा वृतांत - मेरी पहली गंगोत्री धाम यात्रा, भाग-1

हरिद्वार से उत्तकाशी

आज एक चिरप्रतिक्षित यात्रा का संयोग बन रहा था। पिछले कई वर्षों से बन रही योजना आज पूरा होने जा रही थी। लग रहा था कि जैसे गंगोत्री धाम का बुलावा आ गया। पत्रकारिता के 31 सदसीय छात्र-छात्राओं के दल के साथ गंगोत्री का शैक्षणिक भ्रमण सम्पन्न हो रहा था। पूरी यात्रा के पश्चात समझ आया कि इसकी टाइमिंग यह क्यों थी, जबकि पिछले चार-पांच वर्षों से गंगोत्री जाने की योजना बन रही थी, लेकिन किसी कारण टलती रही। इस बार की यात्रा के साथ घटित संयोग एवं सूक्ष्म प्रवाह के साथ स्पष्ट हुआ कि तीर्थ स्थल का बुलावा समय पर ही आता है, जिसमें अभीप्सुओं की संवेत पुकार के साथ जेहन के गहनतम प्रश्नों-जिज्ञासाओं के प्रत्युत्तर मिलते हैं और यह सब दैवीय व्यवस्था के अचूक विधान के अंतर्गत होता है, विशेषकर जब मकसद आध्यात्मिक हो।

6:15 AM, DSVV

29 सितम्बर की सुबह विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का 39 सदसीय दल देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रांगण से गायत्री महामंत्र की गुंजार के साथ प्रातः सवा छः बजे निकल पड़ता है। सभी के चेहरे पर नए गन्तव्य की ओर कूच करने के उत्साह, उमंग एवं रोमाँच के भाव स्पष्ट थे।

आधे घंटे में काफिला ऋषिकेश को पार करते हुए दोराहे पर माँ भद्रकाली के द्वार से आशीर्वाद लेते हुए वाईं सड़क पर नरेंद्रनगर की ओर बढ़ता है।


आल वेदर रोड़ की चौड़ी एवं साफ सड़क पर गाड़ी सरपट दौड़ रही थी। रास्ते में घाटी से उठते व बस का आलिंग्न करती धुंध और बादलों के फाहे खुशनुमा अहसास दिला रहे थे। स्थान-स्थान पर जलस्रोत ध्यान आकर्षित कर रहे थे। नरेंद्रनगर के प्रख्यात आनन्दा रिजॉर्ट को पार करते हुए बस कुंजापुरी के नीचे हिंडोलखाल से होते हुए आगरा खाल पहुंचती हैं, जहाँ प्रातःकालीन चाय-नाश्ता के लिए गाड़ी रुकती है।

8:30-9:00 AM, HINDOLKHAL, BREAKFAST

इस रुट पर अक्टूवर 2018 में सम्पन्न यात्रा वृतांत (गढ़वाल हिमालय की गोद में सफर का रोमाँच https://www.himveeru.dev/2018/11/blog-post.html) में इस रुट की तात्कालीन स्थिति को पढ़ सकते हैं और इस बीच हुए परिवर्तनों को भी समझ सकते हैं।

बांज बहुल इस क्षेत्र में हिमालयन वृक्षों के वनों व इनकी विशेषताओं से विद्यार्थियों को परिचित कराते है और साथ ही पनपे हुए चीड़ के वृक्षों से भी।


साथ लाई गई पूरी-सब्जी के साथ चाय का नाश्ता होता है और रिफ्रेश होकर काफिला आगे बढ़ता है। पहाड़ों में हिमालयन गांव के दृश्यों को देखकर रहा नहीं गया और केबिन में बैठकर मोबाईल से इनके सुंदर दृश्यों को कैप्चर करने का क्रम शुरु होता है।

बस में चल रहे सुमधुर गीतों की धुन एवं कालजयी संगीत के साथ किसी जमाने के फिल्मी गीतों की अपार सृजनात्मकता क्षमता पर विचार आता रहा और आज के अर्थहीन, वेसुरे और हल्के गीत-संगीत पर तरस आता रहा।

सेम्बल नदी पारकर बस इसके संग नई घाटी में प्रवेश करती है और चम्बा वाईपास से होकर आगे बढ़ती है।


इस संकरी घाटी में सफर एक नया ही अनुभव रहता है, जिसमें सड़क के किनारे तमाम ढावे-रेस्टोरेंट्स यात्रियों को चाय-नाश्ता का नेह भरा निमंत्रण देते रहते हैं, जिनके आंगन में सजी लोक्ल दालों, सब्जियों व फलों की नुमाइश भी दर्शनीय रहती है। इनकी विशेषता इनका आर्गेनिक स्वरुप रहता है, जिसे बापिसी में देवभूमि की याद के रुप में प्रसाद रुपेण खरीदा जा सकता है।

10:00 AM, CHAMBA

चम्बा शहर को वाईपास से पार करते हैं और अनुमान था कि हम नई टिहरी से होकर उत्तरकाशी की ओर बढ़ेंगे। लेकिन पता चला कि हम टिहरी से न होकर नए रास्ते से आगे जा रहे हैं। पहले टिहरी से होकर उत्तरकाशी का रास्ता जाता था। आल वेदर रोड़ के चलते नया रुट शुरु हो गया है, जिसमें संभवतः कई गाँव कवर होते हैं और साथ ही दूरी भी शायद कम पड़ती हो। चम्बा से लगभग 12 किमी आगे एक शांत-एकाँत स्थल पर बस चाय के लिए रुकती है।


10:30-11:00 AM, TEA BREAK

प्रकृति की गोद में बसे ढावे के संग बह रहा पहाड़ी नाला कलकल निनाद के साथ गुंज रहा था। साथ ही झींगुरों की सुरीली तान भी गुंज रही थी, जो स्थल की निर्जनता को पुष्ट कर रही थी। ढावे के बाहर साइड में एक क्षेत्रीय महिला वाजिब दामों में लोक्ल किवी बैच रही थी, जिसे हम बापिसी में खरीदने की योजना बनाते हैं।

सफर फिर आगे बढ़ता है। वृक्ष वनस्पतियों व जंगल पहाड़ों के स्वरुप को देखकर स्पष्ट था कि हम मध्य हिमालय की खूबसूरत वादियों से गुजर रहे थे। बीच-बीच में सुंदर-स्वच्छ पहाड़ी बस्तियों के दर्शन होते रहे।


रास्ते में टिहरी बाँध के वेकवाटर से बनी झील के दर्शन होते हैं, जो हमारे लिए एक नया आकर्षण था। उस पार के गाँव में चल रहे खेती के साथ सोलर लाइट के प्रयोग भी ध्यान आकर्षित करते रहे।

पूरा मार्ग जल स्रोतों की न्यूनता की मार से ग्रस्त दिखा। हाँ पीछे गगनचूंबी पहाड़ों से पुष्ट नाले व छोटे नद बीच-बीच में अवश्य दिखते रहे। अगले कुछ घंटों में सर्पिली सड़क के संग, कई पुलों को पार करते हुए हम 12 बजे तक कमान्द को पार करते हैं और चिन्यलिसौर, धरासु जैसे स्थलों को पार करते हुए उत्तरकाशी की ओर बढ़ते हैं।

1:00 PM, UTTARKASHI

दिन के 1 बजे हम उत्तरकाशी शहर में प्रवेश करते हैं, जो इस राह का एक प्रमुख स्थल है। यह विश्वनाथ मंदिर के लिए प्रख्यात है, जहाँ परशुरामजी द्वारा निर्मित विशाल त्रिशूल विद्यमान है। उत्तरकाशी में पर्य़ाप्त गर्मी का अहसास हो रहा था। यहाँ आल वेदर रोड़ भी समाप्त हो गया था। और अब आगे तंग रास्ते से होकर सफर शुरु होता है, जो बीच-बीच में उबड़-खाबड़ होने के कारण कहीं-कहीं थोड़ा असुविधाजनक भी अनुभव हो रहा था। इस रास्ते में आगे का अहम पड़ाव था गंगोरी। जहाँ कई आध्यात्मिक संस्थानों के आश्रम, मंदिर व धर्मशालाएं दिखी। अब हम हिमालय की गहन वादियों में प्रवेश कर चुके थे। मौसम की गर्मी कम हो रही थी और एक शीतल अहसास अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रोमाँच के भाव को तीव्र कर रहा था। (भाग-2, जारी...)

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