विद्यार्थी जीवन के महत्व की समझ
विद्यार्थी जीवन
किसी भी व्यक्ति के जीवन का स्वर्ण काल होता है, जिसकी यादें जीवन भर
गुदगुदाती रहती हैं, सुखद अहसासों के सागर में डूबने इतराने का कारण रहती हैं। साथ
ही यह समय जीवन का निर्णायक दौर भी होता है। यदि सही संगत व मार्गदर्शन
मिला तो जीवन संवर जाता है, भविष्य उज्जवल की दिशाधारा तय हो जाती है और यह मानव
जीवन धन्य हो जाता है। अन्यथा यदि संग-साथ गलत रहा, सही मार्गदर्शन का
अभाव रहा और विद्यार्थी जीवन के प्रति लापरवाही बरती गई तो यही जीवन
नरक तुल्य बन जाता है, जिसके दंश से जीवन भर व्यक्ति उबर नहीं पाता। पग-पग
पर इसके खामियाजे को भोगने के लिए व्यक्ति विवश-वाध्य महसूस करता है।
लेकिन बीत गया समय
फिर बापिस नहीं आता। एक पश्चाताप के अतिरिक्त हाथ में कुछ नहीं बचता। विद्यार्थी
जीवन की लापरवाहियों का दंश व्यक्ति स्वयं ही नहीं झेलता, पूरा परिवार,
समाज, राष्ट्र एवं विश्व तथा मानवता इसको भुगतने के लिए अभिशप्त होती है। दुःखी,
हैरान-परेशान, अशांत-क्लांत, बेरोजगार, आशंकित-आतंकित, आत्म-विश्वास से हीन पीढ़ी
इसका दुष्परिणाम। जो अपने पतन की पराकाष्ठा में भ्रष्टाचार एवं अपराधों में
लिप्त व्यक्तियों-नागरिकों की आत्मघाती पीढ़ी का कारण बन जाती है।
विद्या के अर्जन के
लिए समर्पित व्यक्ति, दो प्रयोजन को पूरा करता है – 1. उन क्षमताओं-योगयताओं
का अर्जन करता है, उस ज्ञान को प्राप्त करता है, जिससे अपने पैरों पर
खड़ा हो सके। अर्थात किसी नौकरी के माध्यम से अपनी रोजगार को सुनिश्चित
करता है। यदि नौकरी नहीं मिलती तो अपने कौशल व समझदारी के आधार पर स्वालबम्बी
जीवन जीता है। 2. उन जीवन-कौशल की क्षमताओं का विकास करता है, जिनसे
जीवन सफलता के साथ सार्थकता की अनुभूति लिए हो। युगऋषि के शब्दों में शिक्षा
के साथ विद्या का अर्जन करता है। जीवन जीने की कला को सीखता है।
इसके लिए विद्यार्थी
कैरियर गोल के साथ जीवन लक्ष्य की भी समझ को विकसित करता है। जिसमें अपने व
परिवार के कल्याण के साथ समाज राष्ट्र एवं विश्व के कल्याण का भी भाव निहित हो।
इसके लिए विद्यार्थी निम्न चरणों का चिंतन-मनन करते हुए अपने जीवन में अपना सकता है –
1.
अपनी रुचि, क्षमता एवं
योग्यता के अनुरुप कोर्स का चयन, कैरियर गोल का निर्धारण।
2.
कक्षा में नियमितता, जो
पढ़ाया गया, उसका घर आकर अध्ययन व नोट्स तैयार करना।
3.
अगले दिन प्रातः रिवीजन, जो
समझ न आए, उसको क्लास में शिक्षक से पूछना व स्पष्ट करना।
4. नित्य पुस्तकालय में कुछ समय
बिताना, नोट्स को समृद्ध करना। यदि रोज कुछ छूट जाए तो, सप्ताह अंत व छुट्टियों
में उसे पूरा करना।
5.
अपनी पढ़ाई के प्रति
ईमानदार, एकनिष्ठ, लक्ष्य केंद्रित, फोक्सड जीवन। अर्जुन की तरह लक्ष्य केंद्रित।
6.
राग-रंग, फैशनवाजी,
दुर्व्यसनों से दूर रहना। बिगड़ैल विद्यार्थियों के कुसंग से सावधान, सुरक्षित
दूरी। बुरी संगत से अकेला भला।
7. अपने विषय से अपडेटिड, नित्य
अखबार, मैगजीन व इंटरनेट के माध्यम से विषय की नवीनतम जानकारियों से रुबरु रहना।
उसे भी नोट्स में जोड़ते जाना।
8.
अपनी पढ़ाई के साथ, कुछ समय
सतसंग, स्वाध्याय व प्रेरक पुस्तकों के लिए भी।
9.
नित्य न्यूनतम जप-ध्यान (उपासना,
प्रार्थना, पूजा) आदि का क्रम, प्रातः स्नान के बाद, उसी के साथ स्वाध्याय।
10.
रात को सोने से पहले दिन भर
की समीक्षा, एक डायरी में लेखा जोखा।
11.
समय सारिणी बनाकर अध्ययन,
जिससे पढ़ाई के हगर विषय कवर हों, साथ ही व्यक्तित्व का समग्र विकास सुनिश्चित हो।
12.
पढ़ाई, खेल-कूद-व्यायाम-शारीरिक
श्रम, स्वाध्याय-पूजा-ध्यान, स्वस्थ मनोरंजन।
नित्य आत्म-निरीक्षण, आत्म-समीक्षा, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण।
13.
एक अनुशासित, संयमित जीवन
शैली (आहार-विहार-विचार-व्यवहार) का पालन।
14.
संवेदनशील व्यवहार,
जरुरतमंदो की सहायता, वाणी का संयम। विनम्र-शालीन व्यवहार।
15.
श्रमशीलता (अथक श्रम), स्वच्छता-सुव्यवस्था,
मितव्ययिता (सादा जीवन उच्च विचार), शालीनता, सहकारिता जैसे सद्गुणों का अभ्यास।
16.
ईमानदारी-समझदारी-जिम्मेदारी-बहादुरी
जैसे सद्गुणों का अभ्यास
17.
मोबाइल की माया से सावधान। इसके
लिए समय निर्धारित। अपनी पढ़ाई में इसका अधिकतम उपयोग। मोटिवेशनल कंटेट।
18.
इसके साथ आएगा जीवन के
प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, आशावादी रुख एव आत्म-विश्वास। साथ ही एक सफल विद्यार्ती
जीवन सुनिश्चित होगा, जो सार्थकता की अनुभूति से सरोवार होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें