शनिवार, 30 सितंबर 2023

वरसात का विप्लवी मंजर और यात्रा का रोमाँच

चैलचोक से पंडोह व कुल्लू की पहली यात्रा

वर्ष 2023 का जुलाई-अगस्त माह भारत के हिमालयी क्षेत्र व साथ में लगे तराई व मैदान के लोगों को लम्बे समय तक याद रहेगा, जब लगातार भारी से भारी मूसलाधार बारिश के बीच कूपित प्रकृति के कोप ने जनमानस को दहशत के साय में जीने के लिए विवश किया था। 9-10 जुलाई, 14-15 अगस्त और फिर 23-24 अगस्त - ये तीन तिथियाँ इस संदर्भ में सदा याद रहेंगी।

इस दौर में बारिश का कहर कुछ इस तरह से बरसा था कि हिमालयी क्षेत्र के हिमाचल प्राँत में कुल्लू-मानाली-मंडी-शिमला-सोलन क्षेत्र विप्लवी मंजर के बीच गुजरते दिखे, जिसका विस्तार नीचे चंडीगढ़ पंजाब से लेकर दिल्ली-आगरा तक रहा। 12 अगस्त को हमारा हरिद्वार से कुल्लू जाने का संयोग बन गया था। मकसद अपने जन्मदिन को मनाने के साथ पिछले माह गृहक्षेत्र में बरसात में हुई भयंकर तबाही को नजदीक से देखने व अनुभव करने का भी था।

इससे पहले 9-10 जुलाई की भयंकर बारिश के दौरान हमारा गृहक्षेत्र कुल्लू-मानाली बूरी तरह से प्रभावित हुआ था। कुल्लू से मानाली के बीच के राइट बैंक का राष्ट्रीय मार्ग जगह-जगह से धड़ाशयी हो गया था, सड़क के नामो-निशान बीच-बीच में मिट गए थे। बस-कारें-ट्रक और नदी किनारे आबाद घर जल में धड़ाशयी होकर बहते नजर आ रहे थे। बादल फटने की तमाम घटनाएं इस दौरान होती रही, जिसमें गाँव के गाँव तथा जंगल-वस्तियाँ उजड़ती दिखीं। चारों ओर हाहाकार औऱ चीत्कार के स्वर उठ रहे थे। खंड जल प्रलय की स्थिति के दर्शन हो रहे थे।

कुल्लू से मंडी के बीच पिछले 50 से 100 वर्षों तक शान से खड़े पुल ब्यास नदी के उफान में ताश के पत्ते की भांति धड़ाशयी होते दिखे थे। जगह-जगह भूस्खलन की घटनाओं के बीच गाँव वासी दहशत में जीने के लिए विवश हो गए थे। इस बीच हमारे ही दोनों पुश्तैनी गाँवों में पीछे से पहाड़ दरकना शुरु हो गए थे, दोनों ओर से भूस्खलन और बादल फटने के बीच आए दिन कभी दिन को तो कभी रात को नालों में ऐसे दृश्य खड़े हो जाते कि समाचार पढ़कर तथा सोशल मीडिया में आ रहे विजुअल देखकर रुह कांप जाती। इस दौरान वहाँ रह रहे लोगों पर क्या बीती होगी, यह भुगतभोगी ही बता सकते हैं।

बरसात की पहली मार में अनुमान था कि कुल्लू-मानाली क्षेत्र 25 साल पीछे चला गया था, क्योंकि अगले 2 माह तक क्षतिग्रस्त सड़कें आंशिक रुप से ही ठीक होती रहीं, जिसमें फल-सब्जी का सीजन बुरी तरह से प्रभावित हुआ, क्योंकि येही सड़के मैदानी इलाकों की बड़ी मंडियों तक इनको ले जाने की लाइफ-लाइन रहती हैं। (पिछले दिन 29 सितम्बर को ही पहली बोल्वो बस के मानाली तक पहुँचने के समाचार मिले हैं। हालांकि मंडी-कुल्लू नेशनल हाइवे आंशिक रुप से बसों के लिए पिछले 2-3 सप्ताह से खुल चुका था।)

9-10 जुलाई के बाद दूसरा मंजर अभी इंतजार में था। इससे बेखबर हम अपने गृहक्षेत्र की यात्रा पर थे, इसके पीछे भी दैवी संयोग ही था, जिसका राज आगे स्पष्ट होगा। बस हरिद्वार से चल पड़ी ही थी कि खबर मिली कि सुंदरनगर क्षेत्र में बारिश बहुत तेज हो रही है और खड्ड़ में अत्यधिक जल भरने से कई किलोमीटर सड़कें जलमग्न हो गई हैं। हल्की बारिश रास्ते भर हो रही थी। हमारी बस रात को अंबाला-चंडीगढ़-रोपड़ को पार करती हुई कीरतपुर से आगे टनल में प्रवेश करते हुए बिलासपुर पहुँचती है। नए रुट पर रोशनी व अंधेरे की आंख-मिचौली के बीच हल्की से तेज बारिश के साथ सफर आनन्ददायक लग रहा था।

ड्राइवर तथा कंडकटर के संवाद से समझ आ रहा था कि रूट डायवर्ट किया जा रहा है। घाघस से धुमारवीं होकर हम आगे बढ़ रहे थे। सुंदरनगर की बजाए हम सीधा नैरचौक पहुंचते हैं और बारिश के बीच रात अढाई बजे मंडी पहुँच चुके थे। पता चला कि आगे 6 मील पर पूरा पहाड़ नीचे आ गया है, रास्ता बंद है और अगले दो दिन तक रस्ता खुलने के आसार नहीं हैं। इसी के साथ बस, बस-स्टैंड पर एक कौने पर खड़ी हो जाती है। प्रातः दस बजे तक बस में ही इंतजार करते बीते, आगे के लिए कोई बैकल्पिक मार्ग की छोटी या बड़ी गाडियां नहीं मिल सकी। भाईयों से टेलिफोनिक संवाद से पता चला कि फल के बाहन भी रास्ते में फंसे हुए हैं, सुंदरनगर साइड में खड़ड में पानी खत्तरे के स्तर को पार कर आसपास के इलाकों को जलमग्न किए हुए है।

मंडी से दो ही वैकल्पिक मार्ग कुल्लु के लिए थे - एक कंडी-कटौला होकर, जहाँ से छोटी गाँडियाँ चलती हैं, लेकिन आज यह भी भूस्खलन के चलते बंद था। दूसरा चैलचोक से होकर, जो पंडोह तक पहुंचाता है। मंडी से पंडोह सीधे मुश्किल से पोन घंटे का रास्ता है, जो कैरचोक के धुमावदार रास्ते से होकर 3-4 घंटे का हो जाता है। खैर आपातकाल में जहां 24 घंटे तक रास्ता खुलने के असार नहीं हों, तो ये 3-4 घंटे भी अधिक नहीं लगते, जब किसी तरह घर पहुंचना प्राथमिकता में रहता है।

किसी भी वैकल्पिक रुट के लिए कोई बस या टैक्सी नहीं मिल रही थी। इसी बीच फ्रेश होकर पास के ढावे में आलू-पराँठा, दही व चाय के नाश्ते के साथ तृप्त होकर अपना सामान पीठ पर लादे पास के पुल तक चहलकदमी करते हैं। कुछ पिछले सात-आठ घंटे तक बस में बैठकर शरीर में हॉवी हो चुकी जकड़न से निजात पाने के लिए, तो कुछ पुल से सुकेत खड्ड़ का मुआइना करने के भाव के साथ, जिसमें भयंकर जलभराव के समाचार आ रहे थे।

पुल पर पहुंचते ही नजारा साफ था, लोग पुल पर खड़े होकर भय मिश्रित आश्चर्य के साथ इसके उग्र स्वरुप के दीदार कर रहे थे। सुकेत नदी विकराल रुप लिए हुए थी। इसका प्रवाह पुल के नीचे से पार होकर आगे ब्यास नदी में मिल रहा था। दोनों के संगम पर दायीं और पंचवक्र शिव मंदिर है, जिसके दीदार 9-10 जुलाई के विप्लवी बाढ़ के मंजर के बीच पूरे विश्व ने किए थे, जिसमें केदारनाथ त्रास्दी की भीमशिला से संरक्षित केदारनाथ मंदिर के समकक्ष भोलेनाथ के दैवीय स्वरुप के भाव शिवभक्तों के ह्दय में झंकृत हुए थे, जब ऐसा लगा था कि स्वयं सावन भोलेनाथ के अभिषेक के लिए उमड़ पड़ा हो। आज पुल से इसके दिव्य तीर्थ का दूरदर्शन कर रहा था। लगा बाबा ने हमारी व्यथा-वेदना सुन-समझ ली थी।

वहाँ से बापिस होते ही बस स्टैंड पर हमें पठानकोट-कुल्लू बस के दर्शन हुए। पूछने पर पता चला कि ये चैलचोक से होकर पंडोह व आगे कुल्लू तक जा रही है। बस में आगे ही ड्राइवर के पीछे दूसरी पंक्ति में सीट मिल जाती है। घर पहुँचने का पहला मोर्चा फतह होते दिख रहा था, आठ घंटे का इंतजार खत्म हो रहा था। अगले आधे घंटे में बस के पूरा भरने के बाद हम चल पड़े नए-अनजान मार्ग पर, जिसके बारे में भाई से बहुत-कुछ सुना था। नए क्षेत्र से होकर यात्रा की उत्सुकतता व रोमाँच का भाव चिदाकाश में उमड-घुमड़ रहा था और हमारी बस मंडी से नैरचोक की ओर बढ़ रही थी।.......(शेष अगली पोस्ट में)     

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