बन द्रष्टा, योगी, वीर साधक
मन की ये माया
गहन इसका साया
चुंगल में जो फंस गया इसके
तो उसको फिर रव ने ही बचाया ।1।
खेल सारा अपने ही कर्मों का
इसी का भूत बने मन का साया
आँखों में तनिक झाँक-देख लो इसको
फिर देख, ये कैसे पीछ हट जाए ।2।
मन का बैसे कोई वजूद नहीं अपना
अपने ही विचार कल्पनाओं की ये माया
जिसने सीख लिया थामना इसको
उसी ने जीवन का आनन्द-भेद पाया ।3।
वरना ये मन की विचित्र माया,
गहन अकाटय इसका आभासी साया
नहीं लगाम दी इसको अगर,
तो उंगलियों पर फिर इसने नचाया ।4।
बन योगी, बन ध्यानी, बन वीर साधक,
देख खेल इस मन का बन द्रष्टा
जी हर पल, हर दिन इसी रोमाँच में
देख फिर इस जगत का खेल-तमाशा ।5।
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