Life management की क्या आवश्यकता है, जो चल रहा क्या वही पर्याप्त नहीं है? जब हम सुख चैन की खा पी रहेक, मौज मस्ती की जिंदगी जी रहे हैं व सबकुछ ठीक चल रहा है, तो फिर जीवन प्रबन्धन की क्या आवश्यकता?
लेकिन जो चल रहा है, क्या वह सब ठीक चल रहा है, शायद नहीं।
क्योंकि अधिकाँशतः हमें पता ही नहीं कि
- हम जा किधर रहे हैं?
- जो कर रहे हैं, वो क्यों कर रहे हैं?
- आज से 10-20 वर्ष बाद इसके क्या परिणाम होने वाले हैं?
इस पर तब विचार और भी गंभीरता से करने की जरुरत हो जाती है, जब जीवन में धन, शौहरत, रौब-दौव व बहुत कुछ अचीव करने के बाद भी जीवन में संतुष्टि नहीं, शांति नहीं, सेटिस्फेक्शन नहीं। अन्दर एक शून्यता, खालीपन का भाव।
- जीवन में कुछ मजा नहीं आ रहा, इसमें सार्थकता के बोध का अभाव। जीवन गहरे तनाव, अवसाद, खालीपन, शून्यता, असुरक्षा व भय से आक्रान्त हो रहा है।
फिर यदि हम बहुत प्रतिभाशाली हैं, बहुत कुछ कर सकते हैं, तो इससे परेशान कि इग्जेक्टली हमें करना क्या है, जिससे हमारा जीवन डिफाइन हो, जीवन की पहेली का समाधान हो, जीवन का स्वधर्म समझ आ जाए तथा इसी जीवन में चिरस्थायी सुख, शांति, आनन्द व आजादी को अनुभव हो।
यहीं पर लाइफ मैनेजमेंट की जरुरत..। ताकि
1 जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो,
2 जो भगवान के दिए हए स्वाभाविक उपहार हैं, जैसे शरीर, मन, बुद्धि, भावना, अंतर्प्रज्ञा, समय आदि, इनका श्रेष्ठतम सदुपयोग करते हुए जीवन में सफलता के साथ शांति व सतुष्टि भी मिले।
3 एक्सलैंस के साथ समग्र सफलता मिले।
अपना बेस्ट वर्जन बनते हुए, जो बेहतरतम कर सकते थे इस जीवन में, उसके साथ जीवन का निष्कर्ष, अवसान या विदाई हो।
आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में कहें, तो हम Self-Actualization के लक्ष्य की ओर बढ़े व पा जाएं तथा भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में Self-knowledge, Self Realization, आत्मबोध, आत्म साक्षात्कार व आत्म ज्ञान को प्राप्त हों, जिसे सकल ज्ञान का आधार माना गया है।
4 इस सबके साथ जीवन में सार्थकता का बोध हो। A meaningful life, a sense of fulfillment.
और ऐसा न लगे कि इतना वेशकीमती जीवन यूँ ही बरवाद चला गया।
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परमपूज्य गुरुदेव ने, इसके सुत्र दिए –
सुबह उठते ही आत्मबोध– एकटूडू लिस्ट तैयार करना।
रात को सोते समय, तत्वबोध – दिन भर के क्रियाक्लापों का मूल्याँकन, निष्कर्ष और कल के लिए नया संकल्प। और दिन भर की भूल चूक का प्रायश्चित, परिमार्जन।
इसी में डायरी लेखन शामिल।
(पढ़ सकते हैं - डायरी लेखन की कला, डायरीलेखन के फायदे हजार)
और दिन भर, अनुशासित दिनचर्या अर्थात् आहार, विहार, विचार और व्यवहार।
आहार, मित, ऋत, हित। सात्विक, पौष्टिक मिताहार।
व्यायाम का न्यूनतम पैकेज – आसन, टहल से लेकर जिम तक अपनी क्षमता के अनुसार। इसके साथ नींद विश्राम का उचित अनुपान।
विहार,दिन भर की चर्चा, संग साथ, टाईम मैनेजमेंट। जीवन शैली के चारआयाम, रहे जिनका हर पल ध्यान।
प्राथमिकता के आधार पर कार्य –
1. Urgent भी और Important भी – क्लास, इग्जाम, प्रोजेक्ट, ड्यूटी आदि।
2. Urgent नहीं, लेकिन Important, जैसे – व्यायाम, ध्यान, स्वाध्याय, डायरी लेखन आदि।
3. Urgent, लेकिन Important नहीं, जैसे – किसी की शादी, फोन कॉल, मिलने वाले आ गए रिश्तेदार, यार-दोस्त आदि।
4. न Urgent और न ही Important, जैसे फिल्म देखना, मोबाईल साशल मीडिया व अन्य हल्का मनोरंजन आदि।
यदि न. 4 को प्राथमिक बना दिया और न. 3 को भी, तो फिर नं.1 के कार्य छुटने तय। परीक्षा के समय तनाव, बीपी हाई, तवीयत खराब। व्यायाम, ध्यान, डायरी लेखन के लिए समय ही नहीं। सुबह की क्लास में लेट। जीवन अस्त-व्यस्त और जीवन क्राइसिस मैनेजमेंट की अंतहीन प्रकिया में उलझा हुआ।
व्यवहार,
1. किसी को हर्ट नहीं, भावनाओं को ठेस नहीं।
2. वाणी –मित, मधुर, कल्याणी।
3. संवेदी श्रवण (एम्पेथिक लिस्निंग) जो ईमोशनल बैंक अकाउंट को समृद्ध बनाए।
4. अपने कर्तव्य का पालन, यथासंभव सेवा, न्यूनतम आशा अपेक्षा के।
विचार,
1. अपने लक्ष्य में व्यस्त, कसी हुई दिनचर्या।
2. अच्छी पुस्तकों का अध्ययन, अपनी रुचि की
3. स्वाध्याय, सतसंग, महापुरुषों का, अपने आदर्श का।
4. नित्य कुछ ध्यान व प्रार्थना आदि।
योग्यता बर्धन
1. टेक्निक्ल स्किल्ज –नया सॉफ्यवेयर, फोटोग्राफी, एडिटिंग स्किल आदि।
2. लेंग्वेज स्किल्ज –नई भाषा, लेखन आदि।
3. सॉफ्ट स्किल्ज –सेल्फ मैनेजमेंट, कम्यूनिकेशन स्किल आदि।
4. प्रोफेशनल स्किल्ज –आपके विषय के अनुरुप ....।
इस तरह, हर रोज, हर पलअपने जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ने केक्रिएटिव एडवेंचर में मश्गूल।
गोल सेटिंग, लक्ष्य निर्धारण – अंतःप्रेरित हो ,देखा देखी नहीं। begin with the end of your mind। आपके स्वाभाव, प्रकृति, योग्यता, रुचि व पैशन से जुड़ा हुआ हो।
1 कैरियर गोल, 2 लाईफ गोल – दोनों स्पष्ट हों। यदि दोनों का मिलान होता हो, तो फिर इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं, जीवन का वास्तविक अर्थ यहाँ शुरु हो जाए।
नित्य रुप से जीवन के हर आयाम को पोलिश - शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक-व्यवहारिक, आध्यात्मिक, प्रोफेशनल, सामाजिक।
स्वर्णिम सुत्र – अपनी अन्तर्वाणी (Inner Voice) का अनुसरण।
जीवन साधना के स्वर्णिम सुत्र – परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार,
इस युग के यम-नियम – पंचशील - श्रमशीलता, सुव्यवस्था, मितव्ययिता, शालीनता, सहकारिता। 4 मानसिक सुत्र - समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी। जिनका नित्य अभ्यास हो व जीवन में अधिकाधिक समावेश।
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