हिमालय की वादियों में मधुमक्खी पालन
बर्फ में हिमालयन बी फार्म मोहिला का विहंगम नजारा |
शहद के साथ बचपन की कितनी सारी यादें जुड़ी हुई
हैं। घर की छत्त पर प्राय़ः दक्षिण या उत्तर दिशा में मधुमक्खी के दीवाल के साथ
जड़े छत्त लगे होते थे, जिन्हें क्षेत्रीय भाषा में म़ड्ड़ाम कह कर पुकारते
हैं। साल भर में एक बार हमारे बड़े-बुजुर्ग इनसे शहद निकालते। धुँआँ देकर
मधुमक्खियों को कुछ देर के लिए बाहर निकाला जाता और इनके छत्तों के बीच शुद्ध शहद
से जड़े छत्ते को काटकर अलग किया जाता।
इसको ऐसे ही टुकड़े में खाने का लुत्फ लेते और शेष का कपड़छान कर अलग कर लेते। कभी कभार खाने के लिए इस शहद का उपयोग होता, अधिकाँशतः औषधी के लिए इसको सुरक्षित रखते। या फिर शास्त्र के रुप में इसे पूजा कार्यों के लिए संरक्षित रखा जाता। ऐसे नानीजी के खजाने में कईयों साल पुराने शहद से भरे वर्तन सुरक्षित मिलते। मालूम हो कि शहद एक ऐसा विरल उत्पाद है, जो कभी खराब नहीं होता।
हिमालयन बी फार्म में उपलब्ध शुद्ध देशी शहद |
अब हालाँकि पारम्परिक रुप में शहद के ये
तौर-तरीके पीछे छुटते जा रहे हैं। एक तो फल व सब्जियों में बहुतायत में उपयोग किए
जाने वाले रसायन व कीटनाशकों के कारण मधुमक्खियाँ खुलकर परागण नहीं कर पाती,
अधिकाँश तो विलुप्त हो चली हैं। इस कारण हिमालयन मधुमक्खियों का शहद अब पहाड़ों
में तराई के इलाकों की वजाए अधिक ऊँचाईयों तक सीमित हो चला है, जहाँ अभी भी जंगली
फूल व बनौषधियाँ प्रचूर मात्रा में उपलब्ध रहती हैं, जो खिलने पर मधुमक्खियों के
लिए परागण का आहार उपलब्ध कराते हैं।
मधुमक्खी पालन का नया चलन – हालाँकि अब बक्सों में शहद की मधुमक्खियों के पालन का चलन चल पड़ा है, जो पारम्परिक तरीके से एक प्रकार से थोड़ा अधिक वैज्ञानिक और व्यवहारिक लगता है, जिसमें मधुमक्खियों के छत्तों को कम से कम छेड़खान के साथ इससे अधिक शहद प्राप्त किया जा सकता है।
फ्रेमयुक्त बक्से में मधुमक्खी का आवास
वर्ष 2021 का नवम्बर माह और आज हमारी यात्रा का संयोग बन रहा था, ऐसे ही एक हनी कीपर, श्री लाल सिंह ठाकुर के हिमालयन बी फार्म में, जहाँ वे सेब के बगान के बीच पिछले 15-16 बर्षों से मधुमक्खी पालने के अपने शौक को अंजाम दे रहे हैं। इनके बगीचे में फैले 150 के करीब बक्सों में ये हर सीजन का शहद तैयार करते हैं। ये इनके मधुमक्खी पालन के शौक के साथ इनके लिए रोजगार का भी एक सशक्त साधन बन चुके हैं और ये इच्छुक किसानों को इसका प्रशिक्षण भी देते हैं और अपने यू-ट्यूब चैनल हिमालयन बीज (Himalayan Bees) के माध्यम से अपना अनुभव साझा करते रहते हैं, जिससे जुड़कर आप मधुमक्खी पालने की बारीकियाँ सीख सकते हैं।
नवम्बर माह में Himalayan Bees फार्म, Mohila |
नग्गर से होकर यहाँ जाने के लिए पहले पतलीकुहल पहुँचना
पड़ता है, जो कुल्लू-मानाली राइट-बैंक का मध्य बिंदु है। यहाँ तक का दूसरा रास्ता
कुल्लू की ओर से कटराईं होकर पतलीकुल पहुँचता है। मानाली से भी सीधे पतलीकुहल
पहुँचा जा सकता है।
पतलीकुहल से आगे बड़ाग्राँ-पनगाँ लिंक
रोड़ के साथ यहाँ तक पहुँचा जा सकता है।
नग्गर से पतलीकुहल की ओर, ब्यास नदी को पार करते हुए |
बड़ाग्राँ इस रुट का पहला बड़ा गाँव पड़ता है, इसके आगे आता है पनगाँ गोम्पा। यहां सड़क के नीचे रंग-बिरंगे कपड़ों की झालरें इसका परिचय देती हैं। इसके आगे सड़क पर बढ़ते हुए समानान्तर उस पार लेफ्ट बैंक में अप्पर बैली का विहंगम दृश्य दर्शनीय रहता है। यहीं से सामने नगर के पीछे चंद्रखणीं पास की बर्फ से ढ़की चौटियों के दर्शन किए जा सकते हैं। और पास में सडक के साथ पहाड़ों पर पहाड़ी घर व गाँव के नजारें बहुत सुन्दर लगते हैं।
थोड़ी आगे एक डायवर्जन आता है, जहाँ वायीं ओर से
सड़क आगे शेगली की ओर जाती है, जो स्वयं में एक लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन है,
जबकि सीधे आगे सड़क पनगां की ओर जाती है। सड़क के दोनों ओर सेब के बाग स्वागत करते
हैं, हालाँकि नवम्बर में इनमें फलों का तुड़ान हो चुका था।उस पार लेफ्ट बैंक नग्गर साईड, चंद्रखणी पास में बर्फ ढके पहाड़
पहाड़ी झरने रास्ते में अपने गर्जन-तर्जन भरे कलकल निनाद के साथ एक बहुत सुखद अहसास दिलाते हैं। साथ ही इस ऊँचाई पर वहने पाली ठण्डी आवोहवा आपको हिमालय की वादियों में विचरण की सघन अनुभूति देती है। थोड़ी ही देर में पनगाँ गाँव आता है, इसको पार करते ही हम अपने गन्तव्य मोहिला गाँव पहुँच चुके थे, जहाँ सेब के बागान में मधुमक्खी के बक्से सजे थे, जहाँ श्री लाल सिंह ठाकुर मधुपालन के अपने शौक को सेब की बगीचे में अंजाम दे रहे हैं।
मधुमक्खियाँ इनमें छेद से होकर अंदर-बाहर निकल रहीं थी। कुछ इसके चारों ओर मंडरा रहीं थी। इनकी चाल, इनके बोल व इनकी कार्यशैली तो येही जाने, हम तो बस इनकी मधुर गुंजार को सुन रहे थे, इनकी मस्त चाल को देख रहे थे, जो सब मिलकर इनकी अनवरत सक्रियता व अथक श्रम की बानगी पेश कर रही थी, जिसका मधुर फल शहद के रुप में बक्सों के अंदर छत्तों में तैयार हो रहा था।एक बक्से में औसतन सात फ्रेम जड़े थे, जिनमें मधुमक्खियाँ छत्ता बनाकर शहब इकट्ठा कर रही थीं। जिस फ्रेम में शहद पूरी तरह से भर जाता है, उस को अलग कर एख सेंट्रिफ्यूगल मशीन में फिट कर फिर शहद निकाला जाता है और शहद निकालने के बाद फ्रेम को पुनः बक्से में फिट किया जाता है, जहाँ फिर मधुमक्खियाँ अपना काम शुरु करती हैं।
लकड़ी के घर के बाहर सक्रिय हिमालयन मधुमक्खियाँ |
मालूम हो कि एक छत्ते में एक रानी मक्खी होती है।
रानी मक्खी का कार्य छत्तों में अण्डे देना होता है। इसके सहयोग के लिए कुछ नर
होते हैं, जिन्हें निखट्टू कहा जाता है, क्योंकि प्रजनन के अतिरिक्त इनका कोई
कार्य नहीं होता और इसके तुरन्त बाद इनका जीवन समाप्त हो जाता है। इनके साथ मुख्य
कार्य श्रमिक मधुमक्खियों का होता है, जो फूलों से परागण लाकर छत्तों में एकत्रित
करती हैं व शहद तैयार करती हैं। ये मादा मधुमक्खियाँ होती हैं, जिनमें डंक मारने
की क्षमता होती है, लेकिन दुःखद बात यह है कि डंक मारने के बाद इनके प्राण पखेरु
उड़ जाते हैं।
हिमालय बी फार्म से सामने लेफ्ट बैंक का खूबसूरत नजारा |
कुल्लू-मानाली घाटी के बीच राइट बैंक में मोहिला स्थित इस बी-फार्म में एक प्रगतिशील किसान श्री लाल सिंह ठाकुर के इन प्रयोग को देखकर बहुत कुछ जानने सीखने को मिला। पारम्परिक तरीके से, छत्त पर मड्डाम लगाकर मधुमक्खी पालन या जंगल से इनको छत्तों को निचोड़कर शहद निकालने के तौर-तरीकों से यहाँ चल रहा प्रयोग हमे अधिक व्यवहारिक व मानवीय लगा। साथ ही ग्रामीण परिवेश में स्वाबलम्बन का एक पुख्ता आधार दिखा।
यह सही है कि मधुमक्खी पालन में हम उनके मेहनत का मीठा फल शहद इस मेहनतकश नन्हें जीव से लेते हैं, लेकिन इनको रहने के लिए आवास की भी व्यवस्था करते हैं, सर्दियों में इनके लिए भोजन से लेकर आश्रय की व्यवस्था करते हैं।
बर्फ की मौसम में बी फार्म
इस तरह मिलजुल कर एक दूसरे के पूरक बनकर काम करते हैं। पूरी संजीदगी व
संवदेनशीलता के साथ मधुपालन के पेशे को अपनाया जाए, तो यह सभी के लिए हर दृष्टि से
एक उपयोगी कार्य रहता है। यहाँ हमें कुछ ऐसा ही प्रयोग देखने के मिला।
इस सबके साथ यहाँ से सामने चारों ओर घाटी का नजारा लाजबाब लगा। सामने लेफ्ट बैंक के गाँव, खेतों की सेरियाँ, इसके महत्वपूर्ण गाँव-कस्वों तथा पहाड़ों के दर्शन मोहित करने वाले हैं। यहाँ से ऊपर जगतसुख से लेकर नीचे नगर साईड और सामने हरिपुर व सोयल गाँव का नजारा प्रत्यक्ष दिखा। इनके पीछे देवदार से ढके पर्वत व इनके भी पीछे बर्फ से ढके पहाड़ यहाँ की भव्यता को चार चाँद लगाते हैं। नीचे ब्यास नदी के भी हल्के से दर्शन यहाँ से होते हैं। इस सबके साथ सेब के बगीचे में बी-फार्म की लोकेशन व आसपास का व्यू स्वयं में बहुत ही मनोरम व बैजोड़ अनुभव रहा। आप चाहें तो इस सबकी एक झलक नीचे दिए वीडियो में भी पा सकते हैं।
बर्फ में बी फार्म का नजारा दिलकश रहता है। हालाँकि ठण्ड में मधुमक्खियों की गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं, क्योंकि इस समय फूलों के रुप में आवश्यक आहार इन्हें उपलब्ध नहीं होता। इसके लिए इनके लिए अतिरिक्त आहार की व्यवस्था की जाती है, हालाँकि इनके छत्त में पहले से ही संचित मधु इस समय काम आता है।
धूप के बीच पिघलती बर्फ के बीच हिमालयन बीज फार्म का नजारा |