हिमाच्छादित हिमालय के संग एक रोमाँचक सफर
दिव्य झलक - हिमाच्छादित पर्वतश्रृंखलाएं, नेपाल, हिमालय |
यह हमारी पहली नेपाल यात्रा थी। वर्ष 2021 के उथल-पुथल भरे कलिकाल का समाप्न जैसे भगवान पशुपति नाथ क्षेत्र से आमन्त्रण के साथ हो रहा था। हरिद्वार से मुरादावाद होते हुए हम भारत की सीमा पर नानकमत्ता, बनवसा की ओर से प्रवेश करते हैं। यहाँ पहुँचते-पहुँचते शाम हो चुकी थी, अतः यहाँ पर काली नदी के दर्शन रात के अँधेरे में बिजली की रोशनी में ही कर पाए। काली नदी के बारे में बहुत कुछ पढ़-सुन चुके थे, सो इसके दर्शन की अभिलाषा दिन के उजाले में आज अधूरी ही रही।
मालूम हो कि काली नदी भारत और नेपाल के बीच एक नैसिर्गिक सीमा रेखा का काम करती है, जिसे महाकाली, कालीगंगा, शारदा जैसे कई नामों से जाना जाता है। यह उत्तराखण्ड के पिथौड़ागढ़ के 36,00 मीटर (लगभग 10,800 फीट) ऊँचे स्थान कालापानी स्थान से प्रकट होती है और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में शारदा के नाम से 350 किमी लम्बा सफल तय करती हुई अन्ततः सरयू नदी में जा मिलती है। काली नदी सरयू नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। तवाघाट, धारचूला, जौलजीबी, झूलाघाट, पंचेश्वर, टनकपुर, बनबसा, महेंद्रनगर आदि इस नदी पर बसे मुख्य नगर हैं। इसकी जलराशि को
देखकर इसके विराट स्वरुप का अहसास हो रहा था और इसके प्रत्यक्ष दर्शन की इच्छा को अगले टूर के लिए छोड़ते हुए हम यहाँ की सुरक्षा औपचारिकताएं पूरा करते
हुए नेपाल की सीमा में प्रवेश करते हैं और इसके समीपस्थ शहर महेंद्रनगर में रुकते हैं।
मालूम हो कि महेंद्रनगर नेपाल के सुदूर पश्चिम में भारत का समीपस्थ शहर है, जिसे दिवंगत राजा महेंद्र ने बसाया था और यह एक पूरी योजना के तहत एक सुव्यवस्थित शहर है। नेपाल का यह नौवां सबसे बड़ा शहर है तथा काठमाण्डू से 700 किमी दूरी पर स्थित है। यहाँ के होटल में नेपाल के खान-पान से जुड़ी विशेषताओं से परिचय शुरु हो जाता है।
महेंद्रनगर में रात्रि विश्राम के यादगार पल |
यहाँ रोटी का चलन न के बराबर दिखा, चाबल यहाँ भोजन का प्रमुख हिस्सा है। यहाँ से प्रातः पास के शहर धनगढ़ी तक का सफर गाड़ी से करते हैं, जहाँ से काठमाण्डू के लिए हवाई यात्रा की व्यवस्था हो चुकी थी। रास्ते में हम नेपाल के ग्रामीण परिवेश से पहला परिचय पा रहे थे, जिसे यहाँ की लोकल बसों में देखकर समझ आया कि इसे सुदूर पश्चिम के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र नेपाल के पश्चिमी छोर की ओर बसा है। हम पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ रहे थे और काठमाण्डू नेपाल के लगभग बीच में पड़ता है।
रास्ते में हर आध-एक किमी की दूरी पर छोटी-छोटी नदियों के दर्शन निसंदेह रुप में ताजगी भरा अहसास जगाते रहे, क्योंकि जहाँ भी जल दिखता है, वहीं जीवन की सकल संभावनाएं नजर आती हैं, जबकि जल से हीन भू-भाग देखकर मन में एक सुखापन सा कुरेदने लगता है, एक शुष्कता का भाव जेहन को आक्राँत करता है। रास्ते भर दायीं ओर पहाड़ियों के दर्शन होते रहे, लगा जैसे अपने ही गृह प्रदेश में एक नए परिवेश में विचरण कर रहे हैं। यात्रा के दौरान एक स्वप्न सरीखे अनुभव से स्वयं को गुजरता महसूस कर रहे थे और जेहन की कोई गहरी अतृप्त इच्छा जैसे पूरा हो रही थी।
पहाडियों से निस्सृत मार्ग की एक छोटी नदी |
मार्ग में जीवन्त लोकजीवन के दर्शन होते रहे। बीच में दूल्हे की बारात जा रही थी, जिसमें लोक्ल गीत, संगीत व बाजे के साथ थिरकते लोग, बहुत सुन्दर नजारा पेश कर रहे थे। इसके साथ रास्ते भर कई जंगल, खेत, खलिहान, गाँवों को निहारते हुए हम मार्ग में कृष्णपुर व अटरिया जैसे कस्बों को पार करते हुए आखिर धनगढ़ी पहुँचे। विकास की दृष्टि से निहारने पर लगा की यह क्षेत्र अपनी पुरातन संस्कृति को संजोए हुए नए तौर तरीकों को अपना रहा है। खेती का चलन अधिक दिखा, कहीं-कहीं सब्जियाँ को उगाते देखा। बागवानी का चलन कम ही दिखा। धनगढ़ी के मुख्य मार्ग से अन्दर खेत-खलिहान के बीच होते हुए यहाँ के एयरपोर्ट पहुँचते हैं।
मार्ग के खेत खलिहान |
थोड़ी ही देर में धनगढ़ी से काठमाण्डू की फ्लाइट
मिल जाती है। अगले एक घण्टे जीवन के सबसे रोमाँचक पलों में शुमार होने वाले थे,
क्योंकि हम बर्फ से ढकी हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन करने जा रहे थे, जिनमें कुछ तो
विश्व के सबसे ऊँचाई बाले शिखरों में शुमार हैं। अभी तक जो हवाई यात्राएं हम दिल्ली व
चण्डीगढ़ से हैदरावाद, मुम्बई तथा फ्रैंकर्फट, बिडगोश आदि की किए थे, वे सभी 35,000
फीट ऊँचाई के आसपास की थी। अतः इन यात्राओं में बादलों के अलावा नीचे के नजारे अधिकाँशतः
नदारद ही रहे। आज की यात्रा महज 15,000 फीट की ऊँचाई पर होने वाली थी, जिसमें
सामने हिमाच्छादित हिमालय और नीचे पर्वतों, घाटियों, नदियों, गाँवों, कस्वों तथा सड़कों को
नजदीक से निहारने का अवसर मिल रहा था।
अगले एक घण्टे इन्हीं को निहारते हुए जीवन के बहुत ही रोमाँचक एवं यादगार पल रहे और यथा सम्भव अपने मोबाईल से इनको कैप्चर करते रहे, जिसकी एक झलक आप नीचे दिए विडियो में पा सकते हैं।
काठमाण्डू आने से पहले ही पोखरा के समीप से होकर गुजरे। दूर से भी नीचे इसकी झीलें स्पष्ट दिख रही थीं। इससे पहले हम संभवतः गोरखा इलाके से गुजरे, जिसे आठवीं सदी के यौद्धा सिद्ध-संत गुरु गोरखनाथ से जोड़कर देखा जाता है। यहाँ से गुजरते हुए जनरल सैम मनेक्शा के उद्गार याद आए कि यदि कोई कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या वह गोरखा है।
रास्ते में नीचे हरी-भरी पहाड़ियां, इनसे फूटती छोटी-बड़ी नदियाँ व इनके मार्ग स्पष्ट दिख रहे थे। कहीं-कहीं कई किमी दूर तक जंगल ही जंगल दिखते, कहीं पहाडियों में बसे गाँव व इनके पास से गुजरती सर्पिली पहाड़ी सड़कें - 15000 फीट से गुजर रहे शौर्य यान से निहारते रहे। इनके पीछे क्रमिक रुप में बढ़ती ऊँचाईयों के साथ सव अल्पाईन, अल्पाईन व हिमाच्छादित पहाड़ पहली बार एक साथ साँसों को थामकर देख रहा था। बर्फ से ढकी हिमालय की पर्वतश्रंखलाएं रास्ते भर दिखती रही, मोबाईल से जूम करने पर इनको इतने पास से देखना एक अलग ही अनुभव था। पर्वतशिखरों के साथ कितने सारे ग्लेशियर (बर्फ की नदियाँ) रास्ते भर दम थामकर देखते रहे और इनको यथासम्भव मोबाईल से कैप्चर भी करते रहे।
काठमाण्डू प्रवेश की एक झलक |
इन दृश्यों को निहारते हुए पता ही नहीं चला कि हम कब काठमाण्डू के पास पहुँच चुके हैं। नीचे पहाडियों पर राजभवनों के दर्शन के साथ काठमाण्डू शहर में प्रवेश होता है। चारों और पहाड़ियों से घिरा काठमाण्डू शहर अपनी पूरी भव्यता के साथ हमारे सामने नीचे प्रत्यक्ष था। भवनों के जमघट के साथ एक बड़ी आवादी को समेटे काठमाण्डू शहर के
दर्शन शुरु हो चुके थे। पीछे पृष्ठभूमि में हरे भरे पहाड, इनके भी पीछे सुदूर हिमाच्छादित पर्वतश्रृंखाएं और नीचे भवनों के समूह, कहीं अट्टालिकाएं तो बीच में नदियाँ, सड़कें तो कहीं कहीं हरे जंगल व खेतों के दर्शन - इन सबको निहारते हुए हमारा हमारा शौर्य यान धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था और शहर के भवन, सड़कें, नदियाँ व गलियाँ सब स्पष्ट दिख रही थीं। हम नेपाल के सबसे बड़े शहर व इसकी राजधानी काठमाण्डू से गुजर रहे थे, विश्वास नहीं हो रहा था। बाबा पशुपतिनाथ एवं गुरु गोरखनाथ की पावन धरती का भाव सुमरन व धन्यवाद ज्ञापन करते हुए हम काठमाण्डू हवाई अड्डे पर उतरते हैं।
यहाँ के भव्य स्वागत के साथ अपने दिव्य गन्तव्य स्थल तक पहुँचते हैं। फिर अगले कुछ दिन यहाँ के प्रवास के साथ आस-पास के जो दर्शन हुए उनका सारगर्भित वर्णन आप अगली पोस्ट में पढ सकते हैं, जो यहाँ पहली बार पधार रहे यात्रियों के लिए उपयोगी हो सकते हैं।....जारी।
सर बहुत ही अच्छे एवं सरल शब्दों में यात्रा का व्याख्यान की मन गद गद हो गया लेखा पढ़कर।🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जयप्रकाश, खुशी हुई जानकर।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनेपाल जाने की इच्छा फिलहाल स्वप्नों में ही कैद है। परन्तु इस वृतांत से उस स्वप्न को खुली आंखों से महसूस कर पा रहा हूं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर, मेरी सबसे पसंदीदा जगह के विषय में सबसे प्यारा और सहज वृतांत मुझे सौंपने के लिए।
धन्यवाद अंकुर। अपनी इच्छा बनाएं रखें, आपका स्वप्न एक दिन अवश्य साकार होगा।
हटाएंनेपाल यात्रा एक खुशनुमा अहसास है जिसे जकड़ पुड़ा करूंगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद चंद्रशेखरजी यहाँ पधारने के लिए। भगवान आपके संकल्प को अवश्य पूरा करेंगे।
हटाएं