अपनों के वियोग-विछोह की पीड़ा एवं आध्यात्मिक सम्बल
कोरोना काल ने कई मायनों में जीवन की परिभाषा और
जिंदगी के मायने बदल दिए हैं, जिनमें एक है अपनों का असामयिक अवसान और इस जीवन की
नश्वरता का तीखा बोध।
सबसे पहले ह्दय की गहराई से अपनी संवेदनापूरक
श्रद्धाँजलि उन सभी दिवंगत मित्रों, परिवारजनों, परिजनों एवं जीवात्माओं को, जो
कोरोना के कारण असमय ही अपनों को बिलखते हुए छोड़ गए। परमात्मा, भगवान, गुरुसत्ता
उन सब दिवंगत आत्माओं को शांति दे, सद्गति दे, अपने चरणों में विश्राँति दे। साथ
ही परमात्मा शोकाकुल एवं दुःखी परिवारजनों, आत्मीयजनों एवं मित्रों को इनके बिछुड़ने के
असह्य दुःख को सहन करने की शक्ति दे।
निश्चित ही कोरोना के रुप में संव्याप्त जानलेवा अदृश्य वायरस ने एक आशंका, भय और आतंक का माहौल पैदा कर दिया है। प्रारम्भ में, पहली लहर
के दौर में स्थिति इतनी विकट नहीं थी, जब मात्र बिमार या न्यून इम्यूनिटी बाले
बृद्ध-बुजुर्गों को अपना निशाना बनाया था और इसका प्रभाव सीमित था तथा यह उतना
घातक नहीं था। कोरोना की दूसरी लहर के साथ इसके घातक स्वरुप ने स्वस्थ लोगों तथा युवाओं
को भी अपनी लपेट में ले लिया है। बहुत सारे इससे संक्रमित होकर उबर भी रहे हैं,
लेकिन जब कोई अपना अचानक इसके खूनी शिकंजे में फंस जाता है, तो दिल सहम जाता है।
प्रार्थना के स्वर उठते हैं, कि भगवान इनको जल्द ठीक कर दें। लेकिन प्रार्थना की
भी एक सीमा होती है। हमेशा ही यह काम नहीं कर पाती।
फिर खबर आती है कि अमुक नहीं रहे। कई बार तो
अनजाने में ही किसी मित्र को फोन करते हैं, तो जबाव किसी दूसरे की आबाज में आता है, कि आप कौन बोल रहे हैं।
परिचय पाने के बाद जब वो अपरिचित परिजन कहते हैं, कि अमुक तो अब नहीं रहे। ऐसा
अनपेक्षित उत्तर सीधे शॉक करता है, पूरे अस्तित्व को हिला डालता है कि यह कैसे हो
सकता है। अभी ही तो पिछले दिनों इनसे बातचीत हुई थी, स्वस्थ-सकुशल थे। अभी तो इनकी यात्रा शुरु ही हुई थी, अभी तो फूल को खिलना बाकि था। ऐसे
असमय सबको बिलखता हुआ छोड़कर कैसे चले गए, कुछ समझ नहीं आता। परमात्मा के विधान पर भी कुछ पल के लिए तो संशय होता है। यह कैसा नियति का, ईश्वर का क्रूर विधान।
लेकिन कुल मिलाकर अन्ततः जीवन-मरण के इस अकाट्य सत्य के सामने सर झुकाना पड़ता है।
इस पर आखिर किसका वश।
ऐसे पलों में जीवन की नई परिभाषा, नए मायने, नया
दर्शन अस्तित्व की गहराईयों से फूट पड़ता है। जब मृत्यु ही इस जीवन का अंतिम सत्य
है, तो फिर इस जीवन के क्या मायने हैं। एक व्यक्ति के असामयिक अवसान पर तो यह सवाल और भी
तल्ख हो जाते हैं।
फिर याद आते हैं, अपने बाबा, दादा-दादी, नाना-नानी और
घर के बड़े बुजुर्गों की, जो एक-एक कर परिवार-संसार को छोड़ गए थे। कुछ भाई बंधु, मित्र, गुरुजन तो समय से पहले ही। इस मृत्युलोक का गहरा शॉकिंग अहसास इन
पलों में हुआ था। जीवन की नश्वरता का गहरा तत्वबोध इन क्षणों में हुआ था। इंसान क्या,
हमें याद है घर में हमारी प्यारी बिल्ली को जब घर के कुत्ते ने ही मार डाला था,
अपना प्यारी गाय अचानक चल बसी थी या सड़क पर दुर्घटना में पशुओं को असामयिक इस देह
से अलग होते देखा तो, बहुत की गहरे प्रश्न कौंधे थे जेहन में कि इस नश्वर जीवन का
परमसत्य क्या है, जहाँ मृत्यु, वियोग-वछोह, दुःख, पीड़ा आदि गौण हो जाते हों, इनका
उपचार मिल जाता हो। एक शाश्वत जीवन की खोज का जन्म इन पलों में हुआ था।
मित्रो, यह प्रश्न हमारे अध्यात्म के प्रति रुझान
का एक बड़ा कारण रहा है। इन प्रश्नों की खोज में, इस नश्वर जीवन में शाश्वत की खोज
ने, इस मृत्यु लोक में अमरता की संभाव्यता के दर्शन की पिपासा ने हमें अध्यात्म
मार्ग में प्रवृत्त किया है। और यह हमारे विचार में हर संवेदनशील व्यक्ति की कहानी है। प्राय़ः जब कोई अपना बिछुड़ता है तो शमशान घाट पर
हर व्यक्ति के ऊपर शमशान वैराग्य तो छा ही जाता है। जीवन की नश्वता का गहरा बोध इन
पलों में होता है। यह बात दूसरी है कि कुछ समय बाद फिर जीवन पुराने ढर्रे पर आ
जाता है और जीवन-मरण के प्रश्न, एक शाश्वत जीवन की अभिलाषा कहीं गौण हो जाती है।
लेकिन क्या अच्छा होता कि शमशान वैराग्य की लौ आगे
भी सुलगती रहती, जीवन का एक हिस्सा बन जाती। व्यक्ति को हर पल जीवन की नश्वरता को बोध
होता रहता और वह इसके अनावश्यक पहलुओं में न उलझकर एक सार्थक जीवन जीता। यह प्राय़ः
नहीं हो पाता। लेकिन कोरोना काल ने इसे संभव कर दिखाया है। यह एक कटु सत्य है लेकिन इस विकट काल ने
जीवन में नश्वरता का अहसास स्थायी सा कर दिया है। जब यदा-कदा कोई अपना अचानक छोड़कर
जा रहा हो या अपने ही जीवन की कोरोना की चपेट में आने की नौवत आ रही हो, तो बार-बार
विस्मृत कटु सत्य कौंधता है और सोचने के लिए मजबूर कर देता है।
भगवान करे कोरोना काल के ये दुखद पल जल्द ही खत्म
हो जाएं और मानवीय जीवन इसके घातक शिकंजे से बाहर आ जाए। आम जीवन पटरी पर सरपट आगे बढ़े,
सामाजिक-राष्ट्रीय जीवन विकास पथ पर अग्रसर हो, समूची मानवता स्वस्थ एवं सुरक्षित
हो अमन-चैन से रहे। इस विकट काल में मिल रही अमूल्य सीख व सवकों को जीवन में धारण
कर हम सभी एक स्वस्थ, सुखी, खुशहाल और उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ें।
ओम शाँति, शाँति, शाँति।।
एक एक वाक्य आज घटित हो रहें घटनाक्रम को व्यक्त कर रहे हैं। जिसमे जीवन के शाश्वत सत्य को जिस भाव में वर्णित किया गया हैं वो अद्भूत हैं, और हमें जीवन लक्ष्य की ओर सतत अग्रसर होने को प्रेरित करते है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विवेक। स्वस्थ रहो, सुरक्षित रहो।
हटाएंशानदार।
जवाब देंहटाएंजीवन और मृत्यु को रूबरू कराती एवम इसे समझने हेतु एक दृष्टिपरख लेख।
🙏🙏🙏
बहुत धन्यवाद आपका...।
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