मनाली की वादियों में ट्रेनिंग के पहले नौ दिन
बेसिक कोर्स के शुरुआती दिनों में तो वही प्रशिक्षण मिला, जो एडवेंचर कोर्स में किए थे। लेकिन यह उससे थोड़ा एडवाँस्ड और कठिन था। पहले का प्रशिक्षण निश्चित रुप में हमारे काम आ रहा था। पंजाव कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में खेल कूद में सक्रिय होने के कारण तन-मन की रफ-टफ पृष्ठभूमि भी यहाँ उपयोगी साबित हो रही थी। अब तक का फ्रीस्टाइल में अपने आस-पास के पहाड़ों में की गई ट्रेकिंग औऱ घुमक्कड़ी के अनुभव तो साथ में थे ही। पहली बार ऐसे भाग-दौड़ भरे प्रशिक्षण में आए सुकुमार प्रशिक्षुओं को इसके थकाऊ ड्रिल भारी पड़ रहे थे और खून-पसीना तो सभी का बह रहा था। और यह अगले पड़ाव के कठिन दौर की आवश्यक तैयारी थी, जिससे जल्द ही हम लाहौल की बर्फिली वादियों में रुबरु होने बाले थे।
बेसिक कोर्स में सुबह की ड्रिल में मोर्निंग वॉल्क व रनिंग का दायरा बढ़ गया था।
लेफ्ट बैंक के मुख्य मार्ग में अलेऊ के आगे जगतसुख तक अर्जुन गुफा से होते हुए हमारा कठिन ड्रिल इसका हिस्सा था, जो प्रशिक्षण के छटे दिन सम्पन्न हुआ। इसके तहत लेफ्ट बैंक की मुख्य सड़क से ऊपर गाँव में प्रवेश होता है, फिर देवदार के घने जंगलों से होकर खेतों को पार करते हुए अर्जुन गुफा पहुँचते हैं। यहाँ कुछ दम भरकर फिर आगे जंगल, खेत को पार करते हुए नीचे जगतसुख कस्वे तक आते हैं। फिर बापिस मुख्य सड़क के साथ अलेउ होते हुए संस्थान पहुँचे। अभ्यास थक कर चूर करने वाला था। लेकिन हर रोज की तरह ऐसे अभ्यास के बाद स्नान और फिर टेस्टी एवं पौष्टिक भोजन, इसका अपना ही आनन्द रहता था।
अलेउ की रॉक फील्ड में शुरु के एक सप्ताह तक रॉक क्लाइंबिंग का प्रशिक्षण चलता रहा। इस बार कुछ एडवांस्ड तकनीकों को भी आजमाया रहा था। चट्टानें भी पहले से बड़ी, सीधी खड़ी और ऊँची थी, जिसमें रैप्लिंग की ऊँचाई भी अधिक थी, जिसमें रस्सी के सहारे खडी चट्टान के सहारे नीचे कूदना होता है। ऊपर चढ़ने के लिए चिमनी क्लाइंविंग का भी अभ्यास कराया गया, जिसमें दो चट्टानों के बीच के खाली स्थान से होकर पीठ व पंजे के बलपर ऊपर चढ़ना होता था। संस्थान के पीछे ब्यास नदी की ओर जंगल में स्थित चट्टानों में भी खाली समय में अपने स्तर से अतिरिक्त अभ्यास चलता रहा। इसके साथ एक दिन जुमारिंग का भी प्रशिक्षण दिया गया।
इस बार का बुश क्राफ्ट और रिवर क्रोसिंग भी कुछ एडवान्स्ड थी। इस बार नदी को लाठी के सहारे सीधा पार करने के साथ इसे संकरे स्थान पर तेज वहाव के ऊपर उलटा लटककर रस्सी के सहारे पार करने का भी अभ्यास होता रहा। इसी के साथ संस्थान के आडिटोरियम में पर्वतारोहण की फिल्में दिखाई जाती रहीं। साथ ही यहाँ संस्थान के निर्देशक के प्रेरक उद्बोधन भी होते रहे। उँचाईयों में माउंटेन सिकनेस पर डॉक्टर के विशेष उद्बोधन व फर्स्ट एड ट्रेनिंग भी चलती रही, कि कैसे ऑक्सीजन की कमी व अधिक दबाव के बीच साबधानियाँ बरती जानी हैं, व यदि कोई दिक्कत आती है, तो इनका कैसे तात्कालिक उपचार किया जाना है।
इस तरह पूरा ग्रुप अगले रोमाँच के लिए तैयार था और संस्थान द्वारा हायर की गई हिमाचल परिवहन निगम की बसों में सवार होते हैं, सामान छत पर पैक होता है और हम अपने अगले पड़ाव कुल्लु के पड़ौसी जिला लाहौल –स्पिति जिला में पर्वतारोहण संस्थान के स्थानीय जिप्सा केंद्र की ओर कूच करते हैं, जो रोहताँग दर्रा के उस पार लाहौल-स्पिति के मुख्यालय केलांग के कुछ आगे था। यहाँ तक पहुँचने का मार्ग विश्व के सबसे रोमाँचक रास्तों में एक है, जिसकी स्वयं में एक अलग दुनियाँ है। इसका सफर अगली ब्लॉग पोस्ट - मानाली से जिंगजिंगवार घाटी के रोमाँचक सफर में पढ़ सकते हैं।