मनाली के आस-पास दर्शनीय स्थल
मनाली से सोलांग वैली की ओर... |
मनाली एक हिल स्टेशन के कारण चर्चित होने की बजह से सीजन में बाकि हिल स्टेशन की तरह यहाँ भी भीड़ रहती है। यहाँ की हवा में हिमालयन टच तो साल के अधिकाँश समय रहता है, लेकिन शाँति-सुकून के पल तो मनाली शहर से बाहर निकल कर ही मय्यसर होते हैं। इसके आसपास के ऐसे स्थलों की चर्चा यहाँ की जा रही है, जो पर्यटन, एडवेंचर, प्रकृति का सान्निध्य एवं तीर्थाटन हर तरह की आवश्यकता को पूरा करते हैं।
बस स्टैंड के सामने और थोड़ा उपर तिराहे पर दोनों स्थानों पर वन विहार मिलेगा, जो वन विभाग द्वारा संरक्षित है। शायद मानाली शहर का जो थोड़ा बहुत प्राकृतिक सौदर्य बचा है, वह इन्हीं दो वन विहारों के कारण है।
मनाली, व्यास नदी एवं वनविहार की पृष्ठभूमि में |
ऊपर बाले वनविहार में कोई फीस नहीं लगती, लेकिन इसके अंदर भी देवदार के घने जंगल के बीच कुछ पल एकांत शांत आवोहवा में वॉल्क किया जा सकता है। इसके उपर के गेट से बाहर निकल कर सीधा ऊपर हिडम्बा माता के मंदिर की ओर पैदल जाया जा सकता है।
गगनचूम्बी देवतरु की गोद में माँ हिडिम्बा मंदिर |
हालाँकि आटो आदि से भी बस स्टैंड से सीधे हडिम्बा माता के द्वार तक पहुँचा जा सकता है, जो महज 3-4 किमी दूरी पर है। समय हो तो पैदल भी रास्ता तय किया जा सकता है। बीच में सीड़ियों से होकर थोड़ी चढ़ाईदार रास्ते से जंगल के बीच से जाना पड़ता है। हिडम्बा माता का मंदिर मानाली का एक पौराणिक आकर्षण है, जो महाभारत काल की याद दिलाता है। यह पैगोड़ा शैली में बना मंदिर है। इसी के साथ बाहर कौने में हिडिम्बा-भीम के पुत्र घटोत्कच का मंदिर है। इसके सामने पूरी मार्केट हैं, जहाँ जल पान किया जा सकता है। बाहर चाय की चुस्की के साथ यहाँ से सामने बर्फ से ढके पहाड़ों का अवलोकन किया जा सकता है। बगल में म्यूजियम है, जिसमें हिमाचल की संस्कृति के दिग्दर्शन किए जा सकते हैं।
मनालसू नाला |
हिडिम्बा से नीचे उतर कर मनालसू नाले के उस पार थोड़ा चढ़ाई पार करते ही मनु महाराज का मंदिर है, जिसका अपना ऐतिहासिक महत्व है। पूरे विश्व में यह एक मात्र मंदिर है, जिसका सृष्टि की उत्पति के बाद मानवीय सभ्यता-संस्कृति के विकास की गाथा के साथ जोड़कर देखा जाता है। इसका मूल स्थान टीले के ऊपर है, जिसमें जल की एक बाबड़ी है। यहाँ से चारों ओर पहाड़ों और सामने घाटियों का विहंगावलोकन किया जा सकता है।
पौराणिक मनु मंदिर, विश्व में अद्वितीय |
मनाली में ही बस स्टैंड के पास अन्दर एक गोम्पा और शिव मंदिर भी हैं, जिनके दर्शन किए जा सकते हैं। इसके बाद यहाँ से 3-4 किमी की दूरी पर ब्यास नदी के उस पार वशिष्ट मंदिर आता है, जो गर्म पानी के कुण्डों के लिए प्रख्यात है। यहाँ भगवान राम का मंदिर भी है। यहाँ के जल को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। इनमें डुबकी एक रिफ्रेशिंग अनुभव रहता है।
ऋषि विशिष्ट मंदिर एवं तप्त कुण्ड |
यहाँ से नीचे मुख्य मार्ग में आकर आगे बांहग बिहाली पड़ती है, जहाँ बोर्डर रोड़ ऑर्गेनाइजेशन (ग्रेफ) का मुख्यालय है, जो सर्दियों में मनाली लेह रोड़ की देखभाल करते हैं और बर्फ काटकर रास्ता बनाते हैं। इसी के पास है नेहरु कुण्ड, जहाँ माना जाता है कि भृगु लेक का पानी भूमिगत होकर आता है। मान्यता है कि नेहरुजी जब भी मानाली आते थे, तो यहीँ का जल पीते थे।
मनाली सोलांग वैली के बीच कहीं रहा में... |
इसके आगे 2-3 किमी के बाद पलचान गाँव आता है, इससे वाएं मुडकर सोलाँग घाटी में प्रवेश होता है, जहाँ की स्कीईंग स्लोप में लोग बर्फ पड़ने पर स्कीईंग का आनन्द लेते हैं। इस सीजन में यहाँ खासी चहल-पहल रहती है। यही पूरा रास्ता अनगिन फिल्मों की शूटिंग का साक्षी रहा है। बाकि यहाँ पैरा ग्लाइडिंग तो हर सीजन में चलती रहती है।
सोलांग वैली का विहंगम दृश्य |
अंजली महादेव की ओर से सोलांग वैली |
सोलाँग के ही पीछे लगभग दो किमी दूरी पर अंजनी महादेव भी एक दर्शनीय स्थल है। यहाँ पहाड़ों की ऊँचाईयों से पानी झरता रहता है, जो ठण्ड में नीचे एक छोटे से शिवलिंग पर गिरता है और अनवरत अभिषेक चलता रहता है। सर्दियों में यहाँ गिरता पानी जम जाता है, जिस कारण यहाँ वृहदाकार प्राकृतिक शिललिंग बन जाता है। सोलाँग घाटी के ऊपरी छोर पर पहाड़ के नीचे यह स्थान एक हल्का ट्रैकिंग अनुभव भी रहता है। यहाँ एक कुटिया में बाबाजी रहते हैं, जहाँ गर्मागर्म चाय की व्यवस्था रहती है। मौसम की ठण्ड व ट्रैकिंग की थकान के बाद विश्राम एवं सत्संग के कुछ बेहतरीन पल यहाँ बिताए जा सकते हैं।
यह संक्षेप में मनाली के आसपास के दर्शनीय स्थलों का जिक्र हुआ। इसके अतिरिक्त रफ टफ लोग व जिनके पास समय है, वे इसमें कुछ ओर स्थलों को जोड़ सकते हैं। भृगु लेक, हामटा जोट, पाण्डु रोपा, नग्गर में कैसल और रोरिक गैलरी, अलेउ स्थित पर्वतारोहण संस्थान आदि। रोहताँग पास यहाँ का एक विशिष्ट आकर्षण रहता है, जहाँ गर्मियों में भी बर्फ के दीदार किए जा सकते हैं। पलचान, कोठी से होकर आगे गुलाबा जंगल और फिर मढ़ी इसके बीच के पड़ाव पड़ते हैं। रास्ता दिलकश पहाड़ियों, गहरी घाटियों, आसमान छूते पहाड़ों, हरे-भरे वृक्षों एवं झरनों से गुलजार है।
रोहतांग पास की ओर, गुलाबा फोरेस्ट |
मनाली माल रोड़ |
माल रोड़ पर कई दुकानें हैं, जहाँ खाने-पीने के कई ठिकाने हैं। यहाँ की सब्जी मण्डी में लोक्ल फल-फूल बाजिव दाम में खरीद सकते हैं। अंदर प्रवेश करेंगे तो तिब्बतन एम्पोरियन में कुछ बेहतरीन समान देख सकते हैं। अंडरग्राउँड मार्केट में भी बाहर के समान बिकते हैं। थोड़ी बार्गेनिंग अवश्य करनी पड़ती है।
जिनके पास अधिक समय हो तथा जो ट्रेकिंग तथा पर्वतारोहण का शौक रखते हों, उनके लिए मानाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान पास में ही है, जहाँ रुकने से लेकर प्रशिक्षण की उम्दा व्यवस्था है, जिनकी विस्तृत जानकारी आप पर्वतारोहण पर नीचे दिए गए लिंक्स पर पढ़ सकते हैं।
पर्वतारोहण, एडवेंचर कोर्स, भाग-1
पर्वतारोहण, बेसिक कोर्स, भाग-1
जिन्हें मानाली के आगे रोहतांग दर्रे (अब अटल टनल) के पार लाहौल घाटी के भी दर्शन करने हों, वे पढ़ सकते हैं, आगे के लिंक में यात्रा वृतांत - लाहौल के ह्दयक्षेत्र केलांग की ओर।
हिमक्रीम का स्वाद चख्ते हुए |
Beautiful blog😊
जवाब देंहटाएंThanks Sajal!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लेख, मनाली यात्रा बैठे-बैठे हो गई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका प्रकाशवाणी।
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