बुधवार, 29 जुलाई 2020

मेरा गाँव मेरा देश - पर्वतारोहण का विधिवत प्रशिक्षण, भाग-1

एडवेंचर कोर्स के वो रोमाँचक दिन

1991 के मई माह में किसी विज्ञापन से पता चलता है कि मानाली स्थित माउंटेनीयरिंग इंस्टीच्यूट में पंद्रह दिवसीय एडवेंचर कोर्स के लिए सीटें निकली हैं। इसमें एप्लाई करते हैं और प्रवेश भी मिल जाता है। पता चला कि इसके अलावा यहाँ पर्वतारोहण के एक-एक मासीय बेसिक और एडवांस कोर्स भी चलते हैं।

हमने शुरुआत एडवेंचर कोर्स से करनी उचित समझी, जो लगभग 15 दिन का था। इसमें लगभग 15 प्रवेशार्थी थे। मैं सबसे बड़ा 22 साल का, बाकि सब अंडर 17 थे। मैं अभी-अभी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से अपनी बीटेक की पढ़ाई पूरी कर बाहर निकला था।

मेरी पहाड़ों में रुचि बचपन से थी, जब से होश संभाला था। अब तक अपने पहाड़ों में घूमने के शौक को अपने ढंग से अंजाम देता रहा था। कभी ग्वाला बनकर गाय-बैल, भेड़-बकरियों के साथ, तो कभी जंगल से घास-पत्ति व सूखी लकड़ियों को लाने के वहाने, कभी अपने मवेशियों को जंगल में छोड़ने व वहाँ रात को रुकने के साथ, तो कभी देवताओं के साथ पहाड़ों के उस पार देवयात्रा का हिस्सा बनकर, तो कभी भादों की बीस में पावन जल स्नान हेतु पहाड़ी चश्में की सैर और कभी एक धार से दूसरी धार तक मित्रों के साथ ट्रेकिंग करते हुए।

लेकिन ये सब फ्री स्टाइल में हो रहा था। विधिवत प्रशिक्षण अभी तक हमें कहीं से नहीं मिला था। पर्वतारोहण संस्थान में यह काम पूरा होने वाला था। मालूम हो कि दिल्ली में इंडियन माउंटेनियरिंग फेडरेशन (आईएमएफ) ऑफ इंडिया भारत में पर्वतारोहण का मुख्य सरकारी कार्यालय है, जो माउंड एवरेस्ट से लेकर अन्य बड़े हिमशिखरों के अभियानों का नियोजन करता है।

इसके भारत में तीन प्रशिक्षण संस्थान हैं – 1.दार्जिलिंग, प.बंगाल, 2.उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड और 3.मानाली, हि.प्र.। मानाली स्थित पर्वतारोहण और एडवेंचर गतिविधियों से जुड़ा संस्थान अपनी तरह का भारत का सबसे बड़ा और विश्व के सबसे बड़े संस्थानों में अपना गरिमापूर्ण नाम रखता है।

मानाली का पर्वतारोहण संस्थान मुख्य शहर से हटकर व्यास नदी के लेफ्ट बैंक पर स्थित है। मानाली से लगभग दो किमी नीचे मानाली से कुल्लू लैफ्ट बैंक पर अलेउ नामक स्थान से दाएं लगभग आधा किमी नीचे देवदार के घने जंगलों के बीच इसका मनोरम कैंपस बसा हुआ है। इसकी थोड़ी दूरी पर ब्यास नदी बहती है।

इसके चारों ओर देवदार का घना जंगल पिछले कुछ दशकों में ही तैयार हुआ है, जो दूर से देखने पर बहुत सुंदर लगता है। ब्यास नदी की ओर यह बन इतना घना है कि संस्थान से ब्यास नदी व उस पार मुख्य मार्ग के दर्शन नहीं हो पाते। संस्थान के निर्देशक प्रायः आर्मी के कर्नल रैंक के अधिकारी रहते हैं, जिसकी पर्वतारोहण में उच्चस्तरीय उपलब्धियों होती हैं। साथ ही योग्य इंस्ट्रक्टरों की पूरी टीम प्रशिक्षुओं को ट्रैनिंग देती है, जिनमें कुछ तो एवरेस्ट शिखर का आरोहण तक किए हुए हैं।

यहाँ हमारे रुकने की व्यवस्था ब्यास होस्टल में की गई थी, जहाँ हमें डोर्मेटरी में स्थान मिला था।

मोर्निंग टी के साथ हमारी दिनचर्या शुरु होती। फिर आस-पास के मैदान व जंगलों में वार्म-अप ट्रेनिंग और मॉर्निंग ड्रिल होता, पसीना बहाने के बाद फिर स्नान और ब्रेकफास्ट होता। फिर कुछ विश्राम के बाद दिनचर्या आगे बढ़ती। शुरु के दिनों में पास के गाँव अलेउ के बन क्षेत्र में खड़ी चट्टानों के बीच रॉक क्लाइंविंग का अभ्यास होता रहा। क्नॉट प्रैक्टिस, रॉक-क्लाइंबिंग से लेकर रैप्लिंग आदि के बेसिक गुर हमने यहां सीखे। इसके बाद अगले एक-दो दिन पास की नदी में रिवर क्रासिंग का अभ्यास किया। तेज धार के साथ बहती पहाड़ी नदियों को पार करना कठिन होता है, लेकिन कुछ तकनीकों के सहारे यह काफी आसान हो जाता है। इसका विधिवत प्रशिक्षण हमने पाया। एक-दो दिन ब्यास नदी के किनारे कंटीली जंगली झाड़ियों के बीच बुश क्राफ्ट सीखा, कि कैसे इन झाड़ियों को पार किया जाता है।

इस तरह लगभग दस दिन के रॉक क्लाइंबिंग, रिवर क्रासिंग, बुश क्राफ्ट आदि के अभ्यास के बाद हम अगले अभियान के लिए तैयार थे, जिसके लिए हम मानाली से आगे सोलाँग वैली के लिए कूच करते हैं, जो यहाँ से लगभग 25 किमी आगे सर्दियों की प्रख्यात स्कीईंग स्लोप लिए हुए है।

यहाँ पर पर्वतारोहण संस्थान की बिल्डिंग भी है, जिसमें हम दो-तीन रात रुके। यहाँ हमारे सर्वाइवल कोर्स और नाईट सफारी के रोमाँचक पल इंतजार कर रहे थे।

सर्वाइवल कोर्स में हमें टीम में बाँटकर जंगल में भेजा गया, साथ में फ्राई पैन, चीनी, चाय पत्ती और बिस्कुट आदि थे। स्थानीय पालक आदि की जानकारी हमें दी गयी थी, जिनसे हम कुछ-कुछ पहले से ही परिचित थे। इस तरह न्यूनतम संसाधनों के साथ जंगल में कैसे सर्वाइव करते हैं, इसका अभ्यास किया जाना था। इसके तहत जंगल से लकडियाँ बीनना, चूल्हा बनाना, पानी की व्यवस्था करना, चाय बनाना, जंगली पालक को उबालकर अपना कामचलाऊ भोजन तैयार करना, चाय-बिस्कुट आदि के साथ दिन गुजारना इस सबका अभ्यास करते रहे। हमारे लिए इसमें कुछ अधिक नया नहीं था, लेकिन जो अपने शहरी घरों से पहली बार जंगल में निकले थे, उनके लिए ये यह सब एक नया अनुभव था।

नाईट सफारी के रोमाँच का शिखर अभी शेष था, जिसमें पूरी रात हमें टीम के साथ बीहड़ बन के घने अंधेरे के बीच गुजारनी थी। खिचड़ी का समान, कूकर आदि पाथेय साथ दिए गए थे। हमें शाम को ही वहाँ छोड़ दिया गया था। रात होने से पहले हम तम्बू गाढ़ चुके थे। पास बह रहे पहाड़ी नाले से पानी की व्यवस्था करते हैं। कुछ लोग लकड़ी इकटठा करते हैं, चुल्हा जलता है और रात की खिचडी तैयार होती है। दिन में सर्वाइवल कोर्स का अभ्यास यहाँ काम आ रहा था। फिर चूल्हे के ईर्द-गिर्द बैठकर कैंप फायर होती है, कुछ गीत-संगीत और गप्पबाजी के साथ रात आगे बढ़ती है। और फिर रात को जागने की पारियाँ निर्धारित होती हैं, जिसमें दो-दो घण्टे की शिफ्ट सबके हिस्से में थी। एक समय दो लोगों का जागना तय होता है।

अभी हम निद्रा देवी की गोद में प्रवेश किए ही थे कि हमारे पहरा दे रहे साथियों की आवाज हमें जगा देती है। आवाज में सहमापन था, कुछ भय था। सुनने में आया कि पास ही हमारे तम्बू के थोड़ी दूर किसी के घुंघरु की आबाजें आ रही हैं और दो काले साए भी नजर आ रहे हैं। एक बारगी तो हम सबका घबरा जाना स्वाभाविक था, कि इस बीहड़ बन में ये कौन से भूत-प्रेत या चुड़ैल जैसे साए आ गए, जो हमारा पीछा कर रहे हैं।

ग्रुप में सबसे सीनियर होने की बजह से अपना भय दबाकर अपनी बहादुरी का प्रदर्शन उचित समझा, जिससे ग्रुप में पैनिक न फैले। फिर थोड़ा साहस बटोरकर हम लाठी लेकर टोर्च के साथ आगे बढ़े। थोडी ही देर में सारा माजरा साफ था। गुज्जरों की दो अवारा भैंसें पास के मैदान में चर रही थी, उनके गले में बंधी घंटियाँ घुंघरु की आबाज जैसी ध्वनि कर रही थी।

इसके बाद जाग चुके सारे ग्रुप के हंसने व मस्ती की बारी थी। पहरा दे रहे हमारे दोस्तों का खूब मजाक बनता रहा और साथ ही सब राहत की साँस लेकर आग को और प्रदीप्त किए, होट ड्रिंक की व्यवस्था हुई और फिर निश्चिंत होकर अपनी अपनी पारी में सो गए। इस तरह से सुबह होती है और हम अपना तम्बू समेट कर सोलाँग वैली के होस्टल में पहुँच जाते हैं। अपने इंस्ट्रक्टर को पूरी कहानी सुनाते हैं। जिसको सुनकर उन्हें अच्छा लगा कि यही तो इस ट्रेनिंग का मकसद था। अनुभव के साथ जीवन के भय, गलतफहमियों पर विजय और विषम परिस्थियों में जीवट के साथ जीने की कला। जीवन की अनिश्चितताओं का साहस के साथ सामना करना और उसका आनन्द मनाना, यही तो एडवेंचर है।

एडवेंचर कोर्स का अगला रोमाँच सामने गुलाबा फोरेस्ट की बर्फ से ढकी ढलानों पर हमारा इंतजार कर रहा था। जिसे आप अगले भाग - गुलाबा फोरेस्ट की बर्फिली वादियों में पढ़ सकते हैं।


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