इसी जन्म में स्वयं
को पाकर रहुँगा
नहीं चाह कोरे कागज
पोतने की,
नहीं मंच से कोरी
भाषण-लफ्फाजी की,
जो अनुभूत है वही
कहूँगा,
जो छलकेगा वही
लिखूंगा।।
नहीं किसी की नकल,
न किसी का अंधानुकरण,
न किसी से तुलना,
न किसी से कटाक्ष,
स्वयं से है
प्रतिद्वन्दता अपनी,
रोज अपने रिकॉर्ड तोड़ते
रहूंगा।।
स्वयं हूँ मैं मुकाम
अपना,
नित नए शिखरों का आरोहण करता रहूँगा,
नहीं जब तक
होता लक्ष्य प्रकाशित,
खुद की खुदाई करता
रहूँगा,
जब तक नहीं होता
अमृत से सामना,
स्वयं के अंतर को
टटोलता रहूँगा।।
हूँ मैं अमृतपुत्र, ईश्वर
अंश अविनाशी,
इसी जन्म में स्वयं
को पाकर रहूँगा।।
Bahut shandaar
जवाब देंहटाएंDhanyabad aapka...
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