उत्तर से दक्षिण भारत की ओर - सफर 2 घंटे का
भाग-2 - दिल्ली से हैदराबाद का हवाई सफर
गेट पर मुस्कुराती हुई एयर होस्टेस का स्वागत मिलता है और अपनी सीट के पास पहुंचकर बैठ जाते हैं। खिडकी का शटर खोलकर बाहर निहारते हैं। मोबाइल को फ्लाइट मोड में कर यथासंभव फोटो व सेल्फी लेते हैं। थोड़ी देर में विमान आगे सरकना शुरु होता है, कुछ वार्मअप के बाद जेट इंजन के शुरु होते ही कुछ मिनट में विमान गति पकड़ता है, लो हमारा जहाज एक हल्के से झटके के साथ टेक ऑफ करता है, हम क्रमशः हवा में ऊपर उठ रहे थे व आसमान में प्रवेश कर रहे थे।
बीच-बीच में विमान ऊँचाई को गेन करने के लिए कुछ करतव दिखाता है, जिससे कुछ झटके लगते हैं और विमान एक मानक ऊँचाई पर पहुँचता है और हम बादलों से भी ऊपर उठ चुके थे, सही मायने में आसमान से बातें कर रहे थे।
पूरा क्षितिज हमारी नजरों के सामने था। यह हमारी नज़रों की सीमाएं ही थीं जो हम बहुत दूर नहीं देख पार रहे थे।
बीच में एयर होस्टेस यात्रियों का स्वागत करती हैं, कैप्टन, क्रू मेम्बर व स्वयं का परिचय देती हैं।
सीट बेल्ट से लेकर आपातकालीन सुरक्षा सावधानियों की जानकारी देती हैं। ऑक्सीजन की कमीं होने पर मास्क कैसे पहने जाने हैं, आपातकाल में सेफ्टी जैक्ट आदि की जानकारी मिलती है। इस बीच हबाई जहाज आसमान की ऊँचाईयों में पहुंच चुका था। मानकों के अनुसार 35,000 से 42,000 फीट की ऊँचाई इसके लिए आदर्श मानी जाती है। इस ऊँचाई पर हवा विरल होती है, जिससे हवाई जहाज को आगे बढ़ने में आसानी होती है और ईँधन की वचत होती है, जो निचली ऊँचाईयों पर संभव नहीं होता।
इस ऊँचाई पर हम अधिकाँशतः बादलों के ऊपर थे, जिनके विभिन्न रुपाकार मन को बखूवी लुभा एवं उलझा रहे थे। कभी रूई के फाहों जैसे दिखते, कभी बर्फ सा वृहद आकार लेते, कभी हल्के-हल्के टुकड़ों में छितरा जाते व विरल हो जाते। ऐसे में नीचे का दृश्य स्पष्ट दिखता। नदी टेढ़ी-मेड़ी सर्पिली रेखा सी प्रतीत होती, खेत के बीच भवन चौकोर ढब्बों से लगते। सड़कें भी दिखती, लेकिन वाहन आदि इस ऊँचाई से नजरंदाज रहते।
हमारा विमान में प्रवेश का
समय हो रहा था, अनांउसमेंट होते ही हम विश्राम स्थल से कुछ दूरी पर लगे एस्कलेटर से नीचे उतरते हैं। टिकट व बोर्डिंग पास दिखाने के बाद हम
इंडिगो के प्रतीक्षालय तक पहुँचते हैं, कुछ देर इंतजार करते हैं और समय होने पर अंतिम टिकट चैक के बाद बाहर खड़ी अपनी फीडर बस की
लाईन में लगते हैं। और बस में बैठकर कुछ ही मिनट में खड़े विमान तक पहुँचते हैं।
पहली बार विमान को पास से देखने का कौतुक धीरे-धीरे शांत हो रहा था। उसके इँजन से
लेकर साइड के पंखे व पूँछ सब नजदीक से देखते रहे। बैग ड्राप पर जमा किया सामान
विमान में चढ़ रहा था, लाइन आगे बढ रही थी। हम अस्थायी सीढियों को चढ़ते
हुए विमान में प्रवेश करते हैं।
गेट पर मुस्कुराती हुई एयर होस्टेस का स्वागत मिलता है और अपनी सीट के पास पहुंचकर बैठ जाते हैं। खिडकी का शटर खोलकर बाहर निहारते हैं। मोबाइल को फ्लाइट मोड में कर यथासंभव फोटो व सेल्फी लेते हैं। थोड़ी देर में विमान आगे सरकना शुरु होता है, कुछ वार्मअप के बाद जेट इंजन के शुरु होते ही कुछ मिनट में विमान गति पकड़ता है, लो हमारा जहाज एक हल्के से झटके के साथ टेक ऑफ करता है, हम क्रमशः हवा में ऊपर उठ रहे थे व आसमान में प्रवेश कर रहे थे।
नीचे जमीं पीछे छूट रही थी, हवाई जहाज ऊँचाई पकड़ रहा था, और नीचे की
चीजें दूर होती जा रही थी व छोटी प्रतीत हो रही थी। शहर डब्बों में तबदील एक छावनी
लग रहा था, सड़कें पतली रेखा जैसी लग रही थी व चल रहे वाहन रेंगती चिंटियों जैसे दिख रहे थे।
बीच-बीच में विमान ऊँचाई को गेन करने के लिए कुछ करतव दिखाता है, जिससे कुछ झटके लगते हैं और विमान एक मानक ऊँचाई पर पहुँचता है और हम बादलों से भी ऊपर उठ चुके थे, सही मायने में आसमान से बातें कर रहे थे।
पूरा क्षितिज हमारी नजरों के सामने था। यह हमारी नज़रों की सीमाएं ही थीं जो हम बहुत दूर नहीं देख पार रहे थे।
बीच में एयर होस्टेस यात्रियों का स्वागत करती हैं, कैप्टन, क्रू मेम्बर व स्वयं का परिचय देती हैं।
सीट बेल्ट से लेकर आपातकालीन सुरक्षा सावधानियों की जानकारी देती हैं। ऑक्सीजन की कमीं होने पर मास्क कैसे पहने जाने हैं, आपातकाल में सेफ्टी जैक्ट आदि की जानकारी मिलती है। इस बीच हबाई जहाज आसमान की ऊँचाईयों में पहुंच चुका था। मानकों के अनुसार 35,000 से 42,000 फीट की ऊँचाई इसके लिए आदर्श मानी जाती है। इस ऊँचाई पर हवा विरल होती है, जिससे हवाई जहाज को आगे बढ़ने में आसानी होती है और ईँधन की वचत होती है, जो निचली ऊँचाईयों पर संभव नहीं होता।
इस ऊँचाई पर हम अधिकाँशतः बादलों के ऊपर थे, जिनके विभिन्न रुपाकार मन को बखूवी लुभा एवं उलझा रहे थे। कभी रूई के फाहों जैसे दिखते, कभी बर्फ सा वृहद आकार लेते, कभी हल्के-हल्के टुकड़ों में छितरा जाते व विरल हो जाते। ऐसे में नीचे का दृश्य स्पष्ट दिखता। नदी टेढ़ी-मेड़ी सर्पिली रेखा सी प्रतीत होती, खेत के बीच भवन चौकोर ढब्बों से लगते। सड़कें भी दिखती, लेकिन वाहन आदि इस ऊँचाई से नजरंदाज रहते।
राह
भर यथासंभव पास के बादलों को,
नीचे जमीं को, जंगल, गाँव व कस्वों को और दूर क्षितिज पर पर्वतश्रृंखलाओं
को निहारते रहे। बादलों के तमान पैटर्न जो रास्ते में दिखते गए, कैप्चर करते
गए। एक ओर हमारी तरह पहली वार हवाई सफर कर रहा यात्री और दूसरी ओर अभ्यस्त यात्रियों में अंतर स्पष्ट दिख रहा था। आसपास के अधिकाँश यात्री अपने में मग्न दिख रहे थे, शायद ही हमारी तरह बाहर ताक-झांक कर रहे हों, लेकिन हमारे लिए हर नया दृश्य कौतुक का विषय था और हम कुछ भी नायाव छोड़ने को तेैयार नहीं थे।
रास्ते में चाय-नाश्ते की उद्घोषणा होती है, व एयर होस्टेसिज नाश्ते की ट्रोली
आगे बढाते हुए हर यात्री के अनुरुप, उसकी मनपसंद स्नैक्स व पेय को परोस्ती हैं।
दाम ठीकठाक रहते हैं। हमें 100 रुपए की मसाला चाय का मग्गा भलीं भांति याद रहेगा,
जिसे हम शायद ही दुबारा दुहराना चाहें। लेकिन इस ऊँँचाई पर टाईम पास के लिए अपनी मनपसंद का पेय लेना यात्रा को सुकूनदायी अवश्य बनाता है।
इस तरह यात्रा 35,000 फीट की ऊँचाई पर आसमान
की गोद में गन्तव्य की ओर दो घंटे में पहुँचती है। पहुँचने से पहले घोषणा होती है,
अपने सीट बेल्ट् को कसने की चेतावनी दी जाती है और क्रमशः विमान आसमान से नीचे
उतरने लगता है। नीचे शहर, भवन, सड़क, खेत व जंगल के स्पष्ट दिग्दर्शन होने
लगते हैं। पट्टी पर नीचे छूते ही कुछ झटकों के साथ उतरने का
अहसास होता है, जो संभवतः 20 सैकंड के अंतराल में पटरी पर स्थिर होकर आगे बढ़ने लगता है और निर्धारित दूरी पर रुक जाता है। इसी के साथ हम अपनी
मंजिल पर पहुँचते हैं। विश्वास नहीं हो रहा था कि चिरप्रतीक्षित पहली हवाई यात्रा पूरा हो चुकी है।
वायुयान से ऊतरते ही बाहर इंडिगो की फीड़र बस इंतजार कर रही थी, जिसमें चढ़कर हवाई
अड्डे तक पहुंचते हैं। हवाई जहाज में चढ़ाया गया भारी सामान उचित स्थान पर आता है, वहाँ जाकर लगैज क्लैक्ट करते हैं और
एयरपोर्ट के बाहर खड़ी बस में बैठकर अपने गन्तव्य स्थल की ओर चल देते हैं।
निसंदेह रुप में पहली हवाई यात्रा हमारे लिए जीवन का एक बड़ा एवं यादगार अनुभव
रहेगी। हेैदराबाद हवाईअड्डे के अंदर एवं बाहर का सुंदर, स्वच्छ एवं सुव्यवस्थित स्वरुप हमें भा गया। हमें बाद में पता चलता है कि यह अड्डा विश्व रेंकिंग में शीर्ष एयरपोर्ट्स में शामिल है।
हैदराबाद स्वयं में एक अनूठा शहर है, एयरपोर्ट से शहर तक की पहली यात्रा भी हमें याद रहेगी, जिसकी विस्तार से चर्चा हम उचित समय पर किसी अन्य ब्लॉग पोस्ट मेें करेंगे। हैदरावाद में अपना कार्य पूरा होने के बाद हमारी बापसी की फ्लाइट शाम की थी, सो आसमां में वायुयान से सूर्यास्त का
विहंगम दृश्य देखने का मौका मिला, जो स्वयं में एक अद्भुत अनुभव रहा। काफी दूर तक हम पश्चिमी क्षितिज से अस्त हो रहे सूर्य भगवान के दर्शन करते रहे। बीच-बीच में विमान के दिशा परिवर्तन के कारण लुका छिपी का खेल भी चलता रहा। लेकिन क्रमशः सूर्य की बदलती रंगत व पसरते अंधेरे का नजारा काफी देर तक साथ बना रहा।
आगे अंधेरे के साथ मौसम भी
खराब होता गया। आकाश मार्ग में ही बारिश शुरु हो चुकी थी। ऐसे में जहाज की खड़खड़ाहट कंपा
देने वाला अनुभव रही। बीच में बारिश के कारण यात्रा मार्ग डायवर्ट होता है, जिसकी अनोउंसमेंट भी की कई और काफी मशक्कत के
बाद हम दिल्ली हवाई अड्डे पर पहँचते हैं। भारी बारिश के कारण जहाज काफी देर हवा
में मंडराता रहा और अंततः बारिश के बीच ही लैंडिंग होती है, जिसका रोमाँचक एवं भय मिश्रित स्वरुप आज भी जेहन में गहरे अंकित है।
इस तरह पहली हवाई यात्रा में हम कई
तरह के अनुभवों से रुबरु हुए, जिसने हमारी अगली हवाई यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार
कर दी थी। लगभग एक वर्ष बाद मई 2019 में हमारी पौलैंड यात्रा का संयोग बनता है।
यदि हम पहली डोमेस्टिक फ्लाईट का अनुभव न लिए होते, तो शायद इंटरनेश्नल फ्लाईट हमारे
लिए एक बहुत ही विकट अनुभव होता। अतः जीवन के ऐसे संयोगों को देखकर आश्चर्य
होता है, साथ ही इस सबके पीछे ईश्वरीय सत्ता की अचूक सूक्ष्म व्यवस्था को देखकर
दैवीय विश्वास भी दृढ़ होता है।
हमारी पहली अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा को आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं -
पिछली पोस्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं - मेरी पहली हवाई यात्रा, भाग-1