बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

मेरा गाँव मेरा देश - घाटी की देवपरम्परा को समझने की कोशिश




बनोगी फागली की चिरप्रतिक्षित यात्रा एवं बर्फ से साक्षात्कार
बिगड़ते मौसम में घरबंदी – गूगल गुरु की भविष्यवाणी के अनुकूल मौसम बिगड़ चुका था। उच्च शिखरों पर स्नोफाल हो रहा था, जिसकी बर्फीली हवा पूरी घाटी को अपने आगोश में ले चुकी थी। ऐसे में तंदूर के ईर्द-गिर्द जीवन का सिमटना स्वाभिक था। घर पहुँचा तो तंदूर सुलग रहा था, कमरे की गर्माहट एक चिरपरिचित सुख और आनन्द का विश्राँतिपूर्ण अहसास दिला रही थी। हालाँकि बाहर चहल-कदमी करने, खेतों में काम करने व पहाड़ी रास्तों पर चढ़ने उतरने में सर्दी का अहसास काउंटर हो जाता है, लेकिन घर के अंदर तंदूर कक्ष ही सबसे अनुकूल शरणस्थल रहता है। बाकि सही ढंग के गर्म कपड़े ही ठंड में सबसे बड़ा सहारा रहते हैं।

नए मेहमान ग्रूजो से दोस्ती – घर में आया नया मेहमान 40 दिन का जर्मन शेफर्ड अपनी कूँ-कूँ से मौजूदगी का अहसास दिला रहा था। सो उससे परिचय, दोस्ती हुई। बचपन से ही पशुओं से विशेष लगाव रहा है। पहले घर में भेड़-बकरियाँ व गाय पलती थी। बचपन इनके मेमनों व बछड़ों से लाड़-प्यार संग खेलते-कूदते हुए बीता। जर्मन शेफर्ड एक उम्दा किस्म के कुत्ते की नस्ल है, जो अपनी वफादारी, बुदिमानी, साहस, आत्मविश्वास व जिज्ञासु वृति का एक विरल संगम है। घर में बच्चों की देखभाल इसके भरोसे छोड़ी जा सकती है। कुल मिलाकर यह एक वफादार दोस्त, घर का रखवाला और परिवार के एक अभिन्न सदस्य की भाँति अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। ग्रुजो से दोस्ती तो हो गई, लेकिन हर चीज को मूंह से पकड़ने व चबाने की हरकत का ध्यान रखना पड़ा, शायद दूधमुंहे दांतों में खुजली के कारण यह सीधे मूँह से हर चीज को पकड़ने की कोशिश करता हो।

पहला दिन, बनोगी फागली – बनोगी फागली का प्रतिक्षित दिन आ चुका था। भौर में उठते ही पूर्व दिशा में पहाड़ी के ऊपर बनोगी गाँव की टिमटिमाती रोशनी देवपर्व की चल रही तैयारियों का अहसास दिला रही थी। घर से यहाँ सूर्योदय शिखर की ओर दृष्टि डालते ही बनोगी देवता के दर्शन सदैव से ही आश्वसत करते रहे हैं। प्रातः ही नहाधोकर वहाँ के लिए सेऊबाग से कूच कर जाते हैं। रास्ते में अपने जन्मस्थल गाहर गाँव के पुश्तैनी घर में स्थान देव, कुलदेव, वास्तुदेव आदि का पूजन क्रम चला। बड़े-बुजुर्गों से मिलन, उनकी कुशलक्षेम के बाद परिवार के अन्य सदस्यों के साथ आगे बढ़ते हैं।


अब यहाँ की यात्रा की विशेषता सेऊबाग मुख्यमार्ग से फाडमेंह गाँव तक की पक्की सड़क है, जो स्थानीय गाँव-प्रतिनिधियों के अथक श्रम व प्रयास से रिकॉर्ड समय में मूर्त हुई। पहले गाँव से आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जहाँ दुर्गम रास्तों से कितने किमी पैदल चलकर आना पड़ता था, आज इस सड़क के चलते कुछ मिनट में दूरी तय हो जाती है।

बारिश एवं बिगड़े मौसम के कारण हमें पहुँचने में थोडा देर हो जाती है। लेकिन फागली के कर्मकाण्ड के समाप्न से पूर्व हम पहुँच चुके थे। मंजिल से पहुँचने से पहले 2 किमी पैदल सीधी चढ़ाई पर चलना पड़ा। मंजिल के करीब पहुँचने से कुछ पहले खड़ी चढाई का दबाव कुछ इस कदर अनुभव हो रहा था कि लगा फेफड़े फट जाएं। ऊँचाई की विरल हवा में लगा कि यहीँ रुक जाएं, लेट जाएं। प्रतीत हुआ कुछ बढ़ती ऊमर का असर है, तो कुछ बढ़ते बजन का प्रभाव। लेकिन अपने ट्रेकिंग स्टेमिना को दुरुस्त करना है, यह गहराई से समझ आ चुका था।
आगे के कुछ सीधे रास्ते में गहरे सांस लेते हुए, कुछ गत्यात्मक विश्राम के साथ थोड़ी राहत मिली, बेट्री रिचार्ज हुई व कुछ ही मिनट की चढ़ाई के साथ हम गन्तब्य स्थान पर पहुँच चुके थे। देवदार के गगनचुम्बी वृक्षों की छाया में कर्मकाण्ड अंतिम चरणों में था।


सामने घाटी एवं पहाड़ी ने बर्फ की सफेद चादर ओढ़ रखी थी। इतना पास से बर्फ के दर्शन इन तरसते नयनों के लिए गहरे सुकून व आनन्द का अहसास दिला रहे थे। देवस्थल पर अपना भाव निवेदन कर हम जेहन को कुरेदते प्रश्नों के समाधान खोजते रहे, कुछ चर्चा भी की, लेकिन लगा अभी कसर बाकि है। देवता की अनुमति के साथ गाँववासियों का काफिला बापिस अपने मूल स्थल की ओर कूच कर जाता है।

ज्ञातव्य हो कि घाटी भर में फागली का उत्सब मनाया जाता है। देवताओं का एक माह का प्रवास पूरा होने के अवसर पर यह स्वागत उत्सव रहता है। इस एक मास को यहाँ अंधेरा महीना कहा जाता है, जिसमें घर के मुखिया माह भर घर-गाँव से बाहर नहीं निकलते, विशेष नियम-ब्रत के साथ रहते हैं। मान्यता के अनुरुप देवता स्वर्ग लोक के प्रवास के बाद इंद्रकील पर्वत में देवसमागम का संदेश लेकर आते हैं और फागली के दौरान जनता को अपने गुर(स्पोक्समैन) के माध्यम से सुनाते हैं। इस बार का संदेश निष्कर्ष देवशक्तियों की विजय व उज्जवल भविष्य का भविष्यकथन था।

देवता अपने मंदिर एवं भंडार में आ चुके थे। बाहर वारिश के कारण ठंड काफी थी। हम राहत के लिए पारिवारिक रिश्तेदार के घर में शरण लेते हैं और अंदर तंदूर के सहारे वार्मअप होते हैं। हम इस घर में पहली बार आए थे, सो अंदर तमाम तरह के रिश्ते-नाते व जान पहचान निकल पड़ीं, जिनमें से अधिकाँश लोगों से हम पहली बार मिल रहे थे। अपने बड़े कुटुम्ब-परिवार का भाव भरा अहसास हमें हो रहा था। बीच में जब बाहर निकलते हैं तो बर्फवारी शुरु हो चुकी थी। बर्फ के हल्के फाहे गिर रहे थे। इनको यथासम्भव फोटो व विडियो में कैद करते रहे। लगा कि प्रकृति कभी अपने चाहने वालों को निराश नहीं करती। बर्फ हालांकि अभी जमीन पर नहीं जम पायी थी, लेकिन आसमान से बर्फ के गिरते फाहे, बचपन की अनगिन यादों को गहन अचेतन की गहरोईयों से कुरेद कर ताजा कर रहे थे।

लोग देवता का प्रसाद लेकर नीचे घाटी में अपने घरों की ओर कूच कर रहे थे। यह घाटी का अंतिम गाँव है। यहाँ से नीचे पूरी घाटी  बादलों से ढकी थी। घाटी के आर पार व ऊपर नीचे अबारा बादलों की उड़ान के बीच लग रहा था, जैसे हम किसी दूसरे लोक में विचरण कर रहे हैं। यहाँ से घाटी का अवलोकन, सेऊबाग स्थित घर की बादलों के बीच धुंधली सी झलक एक वर्णनातीत रोमाँच का अहसास करा रही थी। अपने मुख्य देवता की स्थली में जो शांति-सुकून और आनन्द मिल रहा था, लगा कुछ दिन यहाँ रहकर ध्यान-साधना एवं सृजन के गंभीर एकांतिक पल विताएं, लेकिन समय की सीमा में आज यह सम्भव नहीं था।

बनोगी गाँव से फाड़मेह तक की लगभग 2 किमी की सड़क निर्माणाधीन है। सो सीधी उतराई में बारिश के बीच वाहन स्टेंड तक पैदल चलना पड़ा। जिस खड़ी चढ़ाई में आते समय दम फूल गया था, उतराई में फिसलन का खतरा था। फिसलन भरी राह में जजमेंट दोष के कारण दो जगह सीधे फिसल कर जमीन पर धड़ाम गिरे। शुक्र है कोई गंभीर चोट नहीं आई, लेकिन कपड़े आधे कीचड़ से लथपथ थे। कुछ असावधानीवश तो कुछ यात्रा में रह गई त्रुटी का देवदंड मानकर मन को समझा रहे थे।
यहाँ सड़क लगभग अंतिम गाँव तक पहुँच चुकी है। थोड़ा सा 2 किमी की सड़क बाकि है। शेष बनी हुई 15 किमी पक्की सड़क के किनारे विकास की व्यार स्पष्ट देखी जा सकती है। खेतों में उत्पन्न हो रहे फल व सब्जियों को अब आसानी से मार्केट तक पहुँचाया जा सकता है, जिसमें पहले घंटों व कई दिन लगते थे। देखकर स्पष्ट हो रहा था कि किसी भी क्षेत्र में सड़क विकास की लाइफलाईन है। इस लाइफलाईन के सहारे छोटे भाई के संग गाँव-घाटी का अवलोकन करते हुए फागली की सुखद एवं रोमाँचक स्मृतियों के साथ घर की ओर चल पड़े। फागली देवपर्व के संदर्भ में जिज्ञासा के समाधान की एक कड़ी हाथ लग चुकी थी, लेकिन निष्कर्ष अभी शेष था, जिस पर अनुसंधान जारी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चुनींदी पोस्ट

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी    आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्...