जाणा फाल से बिजली महादेव
आगे का लिंक मार्ग –
जाणा फाल से आगे 3-4 किमी के
बीहड़ वनमार्ग से होते हुए रास्ता कोटधार गाँव पहुँचता है। यहाँ से एक लिंक रोड़
पक्के मार्ग से जुड़कर नीचे काईस गाँव की ओर बढ़ता है। 8-10 किमी का यह मार्ग
फुटासोर, सोईल, राउगीनाला जैसे गाँवों से होते हुए
लेफ्टबैंक मुख्यमार्ग में काईस स्थान पर पहुँचता है।
इस रास्ते पर जीप सफारी का अपना ही
आनन्द है। रास्ते में ऐसे व्यू प्वाइंट आते हैं जहाँ से नीचे कुल्लू घाटी तो ऊपर
कटराईं व मनाली की ओर का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।
घाटी
में उतरती हुई सड़क के साथ सर-सर बहती हवा के तेज झोंकों को रास्ते भर अनुभव किया
जा सकता है। कभी बिना सड़क के यह अविकसित क्षेत्र आज पक्की सड़क व फल-सब्जी
उत्पादन के साथ विकास की अंगड़ाइयाँ ले रहा है, जिसे यहाँ बन रहे नए घर-मकानों व
लोगों के पहनावे से लेकर जीवनशैली देखकर सहज ही आँका जा सकता है।
बिजली महादेव की ओर –
कोटाधार गाँव से सीधा रास्ता
बिजली महादेव की ओर आगे बढ़ता है। आगे का रास्ता कच्ची सड़क से होकर गुजरता है,
जिसमें जगह-जगह गहरी खाइयां व कुछ संकरे बिदुं ड्राइवर के कौशल व साहस की
अग्निपरीक्षा लेते हैं। वाहन यदि किसी मजबूत व अनुभवी सारथी के हाथों हो तो सफर
जीवन के सबसे रोमाँचक अनुभवों में शुमार हो सकता है। अनाड़ी व नौसिखिए ड्राइवर को
आगे जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, क्योंकि आगे रास्ता एकदम बीहड़ जंगल और रफ रुट से होकर
गुजरता है।
मानवीय
आबादी यहाँ दूर-दूर तक नज़र नहीं आती। दूसरा रास्ता बीच-बीच में बारिश के मौसम में
कीचड़ से भरा रहता है, फिसलन खतरनाक हो सकती है क्योंकि रास्ते की खाईयाँ इतनी
गहरी हैं कि नीचे देखना कमजोर दिलवालों के होश उडा सकता है। वन विभाग का विश्रामगृह –
जगह-जगह पर निर्मल जलस्रोत
सफर को खुशनुमा बनाते हैं। प्रकृति गगनचुम्बी देवदार-रई-तोस के साथ
बाँज-मोहरु-खनोर के वनों के बीच अपने भव्यतम एवं दिव्यतम रुप में राहगीरों का
स्वागत करती है।
इसी तरह
लगभग 8-10 किमी के
बाद वन विभाग का विश्रामगृह आता है। हालाँकि यह वन विभाग के कर्मचारी व अधिकारियों
के लिए बना हुआ है, लेकिन
राहगीर इनके
साथ मिलकर यहाँ चाय-नाश्ते का इंतजाम कर सकते हैं। अपने साथ अगर बर्तन व कच्ची
सामग्री हो तो कहीं भी जलस्रोत के पास खुले मैदान या चट्टान पर रसोई तैयार की जा
सकती है और कुछ पल प्रकृति की गोद में मौज-मस्ती भरी पिकनिक के बिताए जा सकते
हैं।
आसपास वन विभाग की क्यारियों
को देखा जा सकता है, जहाँ देवदार से लेकर बाँज, खोरश व अन्य ऊंचाई के पौधों की
तैयार हो रही पनीरी देखी जा सकती है। इस बंगले से नीचे कुल्लू घाटी व शहर का विहंगावलोकन एक सुखद अनुभव रहता है।
इसके ठीक नीचे बनोगी, फाड़मेह और नीचे
सेऊबाग जैसे गाँव पड़ते हैं। गाँववासियों की गाय-भेड़-बकरियों को इस ऊँचाई में
चरते देखा जा सकता है। गाँववासी किसी ग्वाले या फुआल को यह जिम्मा सौंप देते हैं,
जो इस ऊँचाई में तम्बू गाड़कर या किसी गुफा (रुआड़) को अपना ठिकाना बनाकर मवेशियों
की देखभाल करता है। रास्ते में यदि कोई ऐसा ठिकाना मिले तो इनके साथ जंगल-जीवन के
रोमाँचभरे अनुभवों को साझा किया जा सकता है।
यहीं से कच्ची मोटर मार्ग के ऊपर प्रचलित ट्रैकिंग रुट हैं, जिनमें एक फुटासोर से होकर चंद्रखनी की
ओर बढ़ता है तो दूसरा माऊट नाग की ओर। फुटासोर रुट काफी लम्बा और बीहड़
है, जिसमें सबसे पहले उबलदा पानी आता है। दरअसल यहाँ जमीं से पानी का
सोता फूटता है,
जो
उबाल लिए दिखता है। पानी हालाँकि एकदम ठंडा और निर्मल है, बस इसके उबाल के कारण
इसे यह नाम दिया गया है। भादों की बीस के लिए यह एक प्रख्यात तीर्थ स्थल है।
जहाँ स्थानीय गाँववासी दूर-दूर से यात्रा करते हुए आकर स्नान करते हैं। भादों की बीस इस क्षेत्र का एक
लोकप्रिय तीर्थस्नान का दिन है, जब पर्वतों में जड़ी-बूटियाँ के फूल अपने पूरे शबाव पर
होती हैं। ऐसे में जहाँ के जल स्रोत्र इनके औषिधियों गुणों से भरे
होते हैं। साथ ही पहाड़ी रास्ते व बुगियाल सतरंगी गलीचे की तरह सजे होते
हैं। जो किन्हीं तीर्थस्थल में स्नान नहीं कर पाते, वे ब्यास नदी में
डुबकी लगाते हैं,
यह
मानते हुए कि सभी
तीर्थ
आखिर ब्यास नदी में आकर मिलते हैं।
धार(रिज) से होकर सफर का अंतिम पड़ाव –
माऊट नाग का ट्रेैकिंग रुट आगे बिजली महादेव की ओर जा रहे कच्चे मोटर मार्ग में ही मिलता है। रैंउंश से आगे का जीप सफारी रुट भी माऊट नाग ट्रैकिंग के समानान्तर नीचे कुछ नालों को
पार करते हुए, कुछ चट्टानी रास्तों को लांघते हुए, कुछ संकरे प्वाइंटों को क्रोस
करते हुए सफर पहाड की धार (रिज) से होकर आगे बढ़ता है। जिसमें दाईं ओर कुल्लू घाटी
के दर्शन होते हैं तो बाईँ ओर मणिकर्ण घाटी के। इस रिज से लगभग 8-10 किमी तक
देवदार के घने जंगलों के बीच कच्ची सड़क के बीच बढ़ता सफर, अंत में बिजली महादेव
के खुले मैदान तक ले आता है, जहाँ वाहन खड़ा कर मंदिर में दर्शन किए जा सकते हैं।
मैदान से बिजली महादेव तक
का आधा किमी का रास्ता मध्यम चढ़ाई लिए हुए है। स्नो लाइन पर होने के कारण यहाँ
वृक्ष गायब हैं। हरी मखमली घास व कुछ जंगली झाड़ियां ही राह में मिलती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार इन्हीं के बीच दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जिनकी पहचान आम
राही नहीं कर पाता। अगस्त-सितम्बर माह में इनमें फूल आने से पूरा बुगियाल
रंग-बिंरगे गलीचे में बदल जाता है।
शायद यह
यहाँ यात्रा का सबसे बेहतर समय भी है। चोटी पर बसे होने के कारण यहाँ लगातार तेज हवा
बहती रहती है। स्वागत गेट को पार करते ही सामने मंदिर दिखता है। सड़ के एक और
विश्राम गृह तो दूसरी ओर पुजारियों के निवास स्थान।
मंदिर के समीप कैंट का एक वृहद वृक्ष
है, जो स्वयं में एक आश्चर्य है। इसी के साथ है बिजलीमहादेव का प्रख्यात मंदिर,
जिसमें पत्थर का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के सामने आसमान को छूता लकड़ी का बुर्ज
है। इसके नीचे हैं पत्थर के नंदी, शिवलिंग व अन्य मूर्तियाँ। मंदिर में दर्शन-वंदन-पूजन के बाद इस शिखर बिंदु से चारों ओर की घाटियों का विहंगावलोकन किया जा सकता है।
दक्षिण में भुंतर-बजौरा-नगवाईं घाटी, तो दाईं ओर उत्तर में मणिकर्ण वैली और दाईं ओर कुल्लू-डुग्गी लग वैली तो सीधे उत्तर में मानाली की ओर।
बिजली महादेव का विस्तृत
वर्णन व इसके कुल्लू से आते रुट को नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं - यात्रा वृतांत - विजली महादेव वाया खराहल फाटी कुल्लु
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