पथ पत्थरीला पाँवों में पड़ गए छाले
कोई बात नहीं पथिक
यह तो कहानी हर ढगर की।।
वह राह ही क्या
जिसमें न कोई खाई खंदक, न कोई मोड़ चढाई
यात्रा का रोमाँच तो इन्हीं बीहड़ विकट व्यावानों में
इन्हें यात्रा का हिस्सा मान, मंजिल की ओर बढ़ता चल।।
चलते चलते थक गए, कुछ टूट गए
कोई बात नहीं पथिक
थोड़ा विश्राम कर दम भर
यह बाजिव चल जाएगा।।
फिर दूने उत्साह के साथ बढ़ चल आगे
अपने ध्येय, अपनी मंजिल की ओर
बस दृष्टि लक्ष्य से औझल मत होने देना।।
लेकिन हार गए हिम्मत अगर पथिक
कोशिश ही छोड़ दिए बीच राह में, और मुड़ चले पीछे
तो फिर ये ठीक नहीं, मंजूर नहीं।।
ऐसे में पहचान खो बैठोगे अपनी
छिन जाएंगे जीवन के, सुख चैन और आजादी
इससे बड़ी फिर, जीवन की क्या बर्वादी।।
ऐसे में अंदर की चिंगारी का बुझ जाना
अपनी नज़रों में गिर जाना
इससे बड़ी क्या दुर्घटना, क्या गम जीवन का।।
हिम्मत हार जाना
जीते जी मर जाना
नहीं इससे बड़ी हार जीवन की
ऐसी त्रास्दी, ऐसी हार से तो मरण अच्छा।।
हर हमेशा के लिए इतना जान लो, यह मान लो
जूझते हुए हार अच्छी, लड़ते हुए शहादत भली
पलायन से संघर्ष भला, इसे ठान लो।।
इसी के बीच फूटेगी किरण प्रकाश की, राह सूझेगी
फिर जब आ चला हाथ में जीवन पहेली का एक छोर
बढ़ता चल पथिक तू मंजिल की ओर।।
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