मंगलवार, 14 जुलाई 2015

यात्रा वृतांत - मेरी यादों का शिमला और पहला सफर वरसाती, भाग-2(अंतिम)




घाटी की इस गहराई में, इतने एकांत में भी युनिवर्सिटी हो सकती है, सोच से परे था। मुख्य सड़क से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि शहर के बीहड़ कौने में प्रकृति की गोद में ऐसा प्रयोग चल रहा हो। लेकिन यही तो मानवीय कल्पना, इच्छा शक्ति और सृजन के चमत्कार हैं। लगा इंसान सही ढंग से कुछ ठान ले, तो वह कोई भी कल्पना साकार कर सकता है, मनमाफिक सृष्टि की रचना कर सकता है। यहाँ इसी सच का गहराई से अनुभव हो रहा था। कुछ ही मिनटों में हम कैंपस में थे। राह में विचारकों, शिक्षाविदों, महापुरुषों के प्रेरक वक्तव्य निश्चित ही एक विद्या मंदिर में प्रवेश का अहसास दिला रहे थे। प्रकृति की गोद में बसे परिसर में, नेचर नर्चरिंग द यंग माइंड्ज, की उक्ति चरितार्थ दिख रही थी। चारों और पहाडियों से घिरे इस परिसर में उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर सामने पहाड़ी पर तारा देवी शक्तिपीठ प्रत्यक्ष हैं। आसमां पूरी तरह से बादलों से ढ़का हुआ था, मौसम विभाग की सूचना के अनुसार भारी बारिश के आसार थे। सम्भवतः हमारा गुह्य मकसद पूरा होने वाला था।
गेस्ट हाउस में फ्रेश होकर, स्नान-ध्यान के बाद विभाग एवं विश्वविद्यालय के अकादमिक विशेषज्ञों के साथ निर्धारित मीटिंग सम्पन्न हुई। पूरे परिसर में दीवार पर हर कदम पर टंगे प्रेरक सदवाक्य मौन शिक्षण दे रहे थे। इनसे संवाद चलता रहा, जो अच्छे लगे, कैमरे में कैद करता रहा। आसमान में बादल तो सुबह से ही उमड़-घुमड़ रहे थे, लेकिन अब कुछ-कुछ बरसना शुरु हो चुके थे। लग रहा था, आज पूरा बरस कर ही रहेंगे और हमारी शिमला घूमने की योजना संभव न हो पाएगी। बाहर बादल क्रमशः घनीभूत हो रहे थे। पीठ में रक्सेक टांगे बाहर निकलते, इससे पहले ही बारिश शुरु हो चुकी थी। धीरे-धीरे बारिश जोर पकड़ती गई। कुछ ही मिनटों में मूसलाधार बारिश हो रही थी। पता चला कि इस सीजन की यह सबसे भयंकर बारिश थी। शुरु में तो हमें यह हमारी यात्रा में खलल डालता प्रकृति का हस्तक्षेप लगा। लेकिन थोड़ी ही देर में अनुभव हुआ कि शिमला के इसी रुप को निहारने की इच्छा लेकर तो हम आए थे, जो आज पूरी हो रही थी। लगभग एक घंटा तक विवि के स्वागत कक्ष में बारिश के नाद-ब्रह्म के बीच जीवन के नश्वर-शाश्वत खेल पर चिंतन-मनन करते रहे और वरसाती मौसम की शीतल फुआर का आनन्द उठाते रहे। इसको फोटो एवं बीडियो में भी यथासम्भव कैद करने का प्रयास करते रहे।



जब मौसम शांत हुआ तो गाड़ी से शिमला की ओर चल पड़े। रास्ते में सूखे नाले दनदना रहे थे। रास्ते में जगह-जगह झीलें बन गई थी। कहीं थोड़ा बहुत लेंडस्लाइड भी हो गया था। प्रकृति स्नान के बाद तरोताजा दिख रही थी। राह की शीतल व्यार सफर को सुखद बना रही थी। चीड़, देवदार के बनों के बीच हम पँथाघाटी पहुंचे। मुख्यमार्ग से आईएसबीटी की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में आश्चर्यचकित हुए की यहां बारिश की एक भी बूंद नहीं गिरी है। सारी बारिशा पंथा घाटी तक सीमित थी। प्रकृति के दैवीय संतुलन पर हमारी आस्था और प्रगाढ़ हुई, जिससे हम बरसात का आनन्द भी उठा सके और शिमला की बाकि यात्रा भी बादलों की फाहों के बीच कर सके। आइएसबीटी से होते हुए हम बालूगंज पहुंचे। यहां से एडवांस स्टडीज के चरणस्पर्श करते हुए समर हिल और फिर दाईं और से संस्थान की परिक्रमा करते हुए मुख्य गेट से संस्थान में प्रवेश किए। 


भारतीय उच्च अध्यय संस्थान, शिमला का एक प्रमुख आकर्षण है। इसके दर्शन के बिना शिमला की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। 1888 में बना यह संस्थान भारत में शासन कर रही अंग्रेजी सरकार के वायसराय का निवास था। अर्थात यहीं से अंग्रेजी सरकार चलती थी। इसी लिए इसे वायसराय लॉज भी कहा जाता है। आजादी के बाद इसे राष्ट्रपति निवास के रुप में रुपांतरित किया गया। राष्ट्रपति महोदय से साल में एक-आध बार कुछ सप्ताहृ-माह के लिए यहां आते थे, बाकि समय यह मंत्रियों की आरामगाह बना रहता था। भारत के दूसरा राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्ण की दूरदृष्टि का सत्परिणाम था कि इसे 1962 से उच्चस्तरीय शोध-अनुसंधान केंद्र के रुप में स्थापित किया गया। उद्देश्यों के अनुरुप इसकी पंच लाईन रही – ज्ञानमय तपः। इसी उद्देश्य के अनुरुप यहाँ देश-विदेश से फैलोज एवं एसोशिएट्स शोध-अध्ययन के लिए आते हैं। एक माह से लेकर दो वर्ष तक यहाँ रहकर शोधकार्य करते हैं। हर सप्ताह का एक सेमीनार इसकी विशेषता है। इसके अतिरिक्त सीजनल वर्कशॉप, सेमीनार, बौद्धिक आयोजन यहाँ चलते रहते हैं। मानविकी और सामाजिक विज्ञान में शोध-अनुसंधान के इच्छुक कोई भी पीएचडी धारी सत्पात्र यहाँ की ज्ञानसाधना का हिस्सा बन सकता है। इसका पुस्तकालय देश के वृहदतम और श्रेष्ठतम में से एक है। यही शोध का केंद्र होता है। यहाँ सुबह 9 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक शोधार्थी ज्ञानसाधना में लग्न रहते हैं।


आज हम शाम को लेट हो चुके थे और संस्थान बंद हो चुका था। अतः वाहर से ही इसका विहंगावलोकन करते रहे, विताए पलों की यादें उमड-घुमड़ कर चिदाकाश पर बरसाती बादलों की तरह तैर रही थीं। इनकी शीतल फुआर से चित्त आनंदित-आल्हादित था। बादलों के साथ लुका-छिपी करते संस्थान के भव्य भवनों व देवतरुओं को केमरे में समेटते हुए कुछ मौसमी फोटो लिए। फिर यादों के समेटे बापिस लुगंज की ओर चल पड़े और अपनी फेवरट जलेवी-दूध की दुकान में पहुंचे। शिमला युनिवर्सिटी और एचवांस स्टडी का शायद की कोई छात्र एवं प्रोफेसर हों जो इस दुकान में न पधारे हों। यहाँ अपना मनपसंद नाश्ता किया। बाहर ढलती शाम का धुंधलका छा रहा था। साथ ही हल्की-हल्की बारिश भी शुरु हो चुकी थी। आज ही बापिस लौटना की बाध्यता थी, सो शिमला के बाकि हिस्से को अगली बरसात के लिए छोड़कर हम रात के बढ़ते अंधेरे को चीरती हुई रोशनी के बीच बस स्टेंड पहुंचे। यहाँ बस काउंटर पर खड़ी थी। टिकट लेकर प्रो. चौहान साहब से विदाई लेते हुए देहरादून के लिए बस में बैठ गए।
यहाँ से सोलन - चंडीगढ़ - नाहन - पांवटा साहिब होते हुए सुबह 5 बजे हम देहरादून पहुंच चुके थे। साढ़े छः बजे तक हम देसंविवि के गेट पर थे। बारिश की बूंदे अभिसिंचन करते हुए जैसा हमारा स्वागत कर रही थीं। बारिश से शुरु बारिश में खत्म शिमला का बरसाती सफर एक चिरस्मरणीय अनुभूति के रुप में अपने साथ था। यात्रा की खुमारी के साथ यात्रा की थकान को उतारते रहे। और नींद व थकान से हल्का होकर कलम उठाई, यात्रा के अनुभवों को कलमबद्ध करते रहे। यात्रा वृतांत आपके सामने है। 

शिमला घूमने के इच्छुक दोस्तों से इतना ही कहना है कि शिमला के हर मौसम के अपने रंग हैं। गर्मी में ठंड़क से राहत के लिए शिमला जाया जा सकता है, सर्दी में बर्फ का लुत्फ उठाया जा सकता है। पतझड़ और बसन्त के यहां अपने मनमोहक रंग हैं। लेकिन बरसात के मौसम के बिना शिमला का बास्तविक आनन्द अधूरा है। क्योंकि मौसम न अधिक गर्म होता है न अधिक ठंड़ा। उड़ते-तैरते आबारा बादलों के बीच घाटी का विहंगावलोकन एक स्वप्निल लोक में विचरण की अनुभूति देता है। हाँ बरसात में भारी बारिश से भीगने, भुस्खलन व बादल फटने जैसे खतरे तो अवश्य रहते हैं, लेकिन इन्हीं चुनौतियों के बीच तो यात्रा का रोमाँच अपने शवाब पर रहता है।
यदि इसका पहला भाग नहीं पढ़ा हो तो यहाँ पढ़ सकते हैं - मेरा शिमला का पहला सफर बरसाती, भाग-1।

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