एडवेंचर भरी मस्ती का एक जाम
अँधकार रहा सघन घनेरा,
दुःस्वप्न भरी रात बीत चली,
आशा की भौर के संग,
जीवन की नई सुबह आ चली,
क्षितिज पर मंजिल की एक झलक
क्या मिली,
आ चला हाथ में जैसे, जीवन पहेली का एक छोर।
अँधेरे के बीच गूँज उठी एक
तान,
गमों के बीच एक दैवी मुस्कान,
क्षितिज पर उठ रहा जैसे एक
तुफान,
शांति, स्वतंत्रता, स्वाभिमान भरा यह जाम,
खुद से शुरु, खुदी में खत्म,
प्रकृति के आंचल में, जीवन का
शाश्वत विजयी गान।
खोद रहा कीचड़ के बीच, निर्मल जल की एक धार,
राह में चढ़ाई भरे थकाऊ
पड़ाव,
लेकिन, मंजिल से
पहले अब कैसा विश्राम,
शोहरत मिले, प्रताड़ना-उपेक्षा या रहें
गुमनाम,
अपने ढंग से, अपने रंग में, चल पड़ा सफर,
आत्मबोध से शुरु दिवस, ईष्ट की ओर प्रवाहित हर
शाम।
पी ले संग मेरे आज, तू भी सृजन का, संघर्ष का,
प्रेम का, एडवेंचर का, यह मस्ती भरा जाम,
एक से शुरु, एक में खत्म,
खुद को खोकर खुद को पाने की
कवायद अविराम।
तन अपने कर्तव्य-धर्म में
मग्न, मन खोया
निज धाम,
प्रकृति के आंचल में, जीवन का
शाश्वत विजयी गान।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें