माना परिवर्तन नहीं पसंद जड़ मन को
माना परिवर्तन नहीं पसंद
जड़ मन को,
ढर्रे पर चलने का यह आदी,
अपनी मूढ़ता में ही खोया डूबा
यह,
चले चाल अपनी मनमानी।1।
लेकिन, जड़ता प्रतीक ठहराव
का,
यह पशु जीवन की निशानी,
परिवर्तन नियम शाश्वत जीवन
का,
चैतन्यता ही सफल जीवन की
कहानी।2।
यदि परिवर्तन के संग सीख
लिया चलना,
खुद को ढालना, बदलना,
कदमताल करना,
तो समझो, बन चले कलाकार
जीवन के,
जीवन बन चला एक मधुर तराना।3।
सो परिवर्तन का सामना करने
में होशियारी,
इसकी हवा, नज़ाकत को पढ़ने
में समझदारी,
तपन सुनिश्चित इसकी
कष्टकारी,
लेकिन यही तो जीवन के
रोमाँच की तैयारी।4।
परिवर्तन के लिए नहीं अगर कोई
तैयार,
अपनी मूढ़ता की आँधी पर
सवार,
तो मूर्ति को गढ़ता छैनी का
हर प्रहार,
बन जाए जीवन का वरदान भी
अभिशाप।5।
ऐसे में दे कोई मासूमियत की दुहाई
कालचक्र ने कब किसकी सुनी
है सफाई,
राजा को रंक बना कर, कितनों
को है धूल चटाई।
समझ कर तेवर इसके, बदलने, सुधरने में है भलाई।6।