इन
शाश्वत सूत्रों पर तनिक विचार, जेहन में उतारो
कहाँ खोए बेहोशी, मदहोशी
में, सुख की खुमारी से बाहर निकलो,
नाव में जल सागर का भर चला, डगमग नैया को संभाल चलो,
नहीं कोई विरोधी बैरी
प्रतिद्वन्दी यहाँ, जो किसी को हरा सके,
हैं अपने की छल छिद्र कुकर्म
दुश्मन ऐसे, जो खुद को मात दें,
आमदनी चवन्नी खर्च रुपया,
तिरस्कार और कष्ट तो तय भैया,
कर लो जितनी होशियारी-चालाकी,
चोर-भ्रष्ट की रूह सदा कांपेगी।।
खोज है अगर सच्चे सुख-शांति
की, तो अपने भीतर तनि निहारो,
सत्पुरुषों के अमृत वचनों
पर, थोड़ा गौर फरमा, जेहन में उतारो।
क्यों कहा गया धर्मो रक्षति धर्मः, क्यों कहा गया सत्यमेव जयते,
क्यों कहा गया मातृवत परदारेषु, क्यों कहा गया परद्रव लोष्टवत्,
क्यों कहा गया मातृवत परदारेषु, क्यों कहा गया परद्रव लोष्टवत्,
क्यों कही गयी बातें
यम-नियम, प्रत्याहार, आत्मवत् सर्वभूतेषू की,
क्यों कहा गया काम, क्रोध,
लोभ, मोह, अहं को द्वार नरक का,
क्यों कहा गया संसार को
दुम कुत्ते की, फूलों ढका सड़ा मुर्दा।
क्यों कहा गया संसार घर
दुःख का, समाधान शरणागति प्रभु की,
क्यों विषाद प्रारम्भ योग
का, दुःख दूत भक्त-वत्सल प्रभु का।।
ध्यानस्थ हो इन शाश्वत सूत्रों
पर, अंतस्थ हो तनिक विचारो,
कर्तव्य कर्म में हो
प्रवृत, जड़ता के अभिशाप से खुद को पार तारो,
ज्ञान के निर्मल जल में लगा
डुबकी, सुख की खुमारी से बाहर उबारो,
सद्गुरु से जोड़ तार दिल
के, इस कुचक्र से खुद को बाहर तारो।।
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